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क्या है महाराष्ट्र में राजनैतिक संकट की पूरी कहानी?

ठाणे के दादा ने उद्धव सरकार को घुटनों पर ला दिया?

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एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे (फोटो: इंडिया टुडे)
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21 जून 2022 (Updated: 21 जून 2022, 23:59 IST)
Updated: 21 जून 2022 23:59 IST
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महाराष्ट्र में राजनैतिक संकट है. आज से पहले ये लाइन इतनी बार कही जा चुकी है कि घिसने लगी थी. महाविकास अघाड़ी सरकार ने जब शपथ भी नहीं ली थी, तभी उसके गिरने की खबर आई, जब अचानक अजीत पवार के समर्थन के साथ देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ले ली. इसके बाद भी कभी किसी हवाई अड्डे के नाम पर तो कभी पंचायत चुनाव में हार-जीत की बात पर खबर आती रही कि मुंबई में सरकार गिरने वाली है. लेकिन हमेशा बात पत्रकारों की गॉसिप और संपादकीय टिप्पणियों तक ही महदूद रही. लेकिन इस बार महाराष्ट्र का राजनैतिक संकट वाकई असली है. महाविकास अघाड़ी सरकार के तकरीबन दो दर्जन विधायक, गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटील के शहर सूरत चले गए हैं. और ये टूट महाविकास अघाड़ी की सबसे मज़बूत कड़ी मानी जाने वाली शिवसेना में हुई है. आज दिन भर लगातार मुंबई और दिल्ली में हलचल होती रही.

भारत में सरकार सिर्फ चुनाव से ही नहीं बनती. मैनेजमेंट से भी बनती है. और उसके लिए ज़रूरत पड़ती है एक अदद होटल या रिज़ॉर्ट की. ''सरकार और रिज़ॉर्ट और संकट'' - ये तीन शब्द जब एक वाक्य में आ जाते हैं, तो दर्शक भी समझ जाते हैं कि कहानी क्या होने वाली है. बस सूबे का नाम, पार्टियों के नाम और नेताओं के नाम बदलते रहते हैं. आपने रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स नाम की इस वेब सीरीज़ के कई एपिसोड देखे हैं - कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आदि. ताज़ा एपिसोड एयर हो रहा है महाराष्ट्र से.

विधायकों के बाड़ेबंद होने की खबर भले आज आई हो, लेकिन महाराष्ट्र में राजनैतिक संकट की आहट बीते दिनों में ही मिलने लगी थी. 20 जून को महाराष्ट्र विधान परिषद के लिए चुनाव हुए. कुल 10 सीटों पर परिषद के सदस्य चुने जाने थे. महाविकास अघाड़ी के तीनों दलों - शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने दो-दो उम्मीदवारों को खड़ा किया. और भाजपा ने पांच उम्मीदवारों को उतारा.

शिवसेना के दोनों उम्मीदवार आसानी से जीत गए. एनसीपी के भी दोनों उम्मीदवार जीत गए. लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवारों को द्वितीय वरीयता मतों की ज़रूरत पड़ गई. बावजूद इसके पार्टी का दलित चेहरा माने जाने वाले चंद्रकांत हंदोरे हार गए. दूसरी तरफ भाजपा ने अपने पांचों उम्मीदवार जिता लिए. जब सारा गणित सामने आया, तो मालूम चला कि 106 विधायकों वाली भाजपा को कुल 133 मत मिले थे. और इनमें महाराष्ट्र के निर्दलीय विधायकों और छोटी पार्टियों से इतर कम से कम 6 वोट महाविकास अघाड़ी के विधायकों के थे - 3 शिवसेना के और 3 कांग्रेस के.

इससे पहले 10 जून के रोज़ भी यही नज़ारा देखने को मिला था. भाजपा अपने बूते सिर्फ दो उम्मीदवारों को राज्यसभा चुनाव जिता सकती थी. दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी, निर्दलीय और छोटी पार्टियों के समर्थन से 4 उम्मीदवारों को राज्यसभा भेजना चाहती थी. लेकिन जब वोटिंग हुई, तो भाजपा के तीनों उम्मीदवार जीत गए. शिवसेना के एक उम्मीदवार -  संजय पवार को हार का सामना करना पड़ा. तब भाजपा को कुल 123 वोट मिले थे. इसका मतलब, पार्टी ने 10 दिनों के भीतर 10 और विधायकों का समर्थन जुटा लिया.

आज के घटनाक्रम को इन दो चुनावों और उनके नतीजों के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए. आपको सारा खेल और उसके पीछे की राजनीति समझ आए, इसीलिए ज़रूरी है कि आप महाराष्ट्र विधानसभा में पार्टियों की मौजूदा स्थिति जान लें.

भाजपा - 106
शिव सेना - 55
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी - 53
कांग्रेस - 44
बहुजन विकास अघाड़ी - 3
सपा - 2
AIMIM - 2
प्रहार जनशक्ति पार्टी - 2
निर्दलीय - 13

सात पार्टियां ऐसी हैं, जिनके एक-एक विधायक हैं -
> भाकपा 
> पेज़ेंट्स एंड वर्कर्ज़ पार्टी ऑफ इंडिया
> महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना 
> स्वाभिमान पक्ष 
> राष्ट्रीय समाज पार्टी
> जनसुराज्य पार्टी 
> क्रांतिकारी शेतकरी

फिलहाल एक सीट रिक्त है.

ध्यान दीजिए, कि महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सदस्य होते हैं और बहुमत का आंकड़ा है 144. लेकिन चूंकि एक सीट रिक्त है और दो विधायक फिलहाल जेल में हैं, इसीलिए सदन में मौजूद सदस्यों की संख्या है 285. इस लिहाज़ से बहुमत का आंकड़ा हो जाता है 143. महाविकास अघाड़ी सरकार के पास अपने तीन घटक दलों में कुल 152 विधायक हैं. इसके अलावा सरकार को कुछ छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी मिला हुआ है. लेकिन जैसा कि दर्शक जानते ही हैं, छोटे दल और निर्दलीय विधायकों के मामले में अंतरात्मा की आवाज़ कभी भी सुर बदल लेती है.

अब इन आंकड़ों के संदर्भ में आज दिन भर हुई हलचल को समझिए. सुबह-सुबह खबर आती है कि शिवसेना के कुछ विधायक सूरत के ली मेरिडियन होटल में हैं. और होटल के बाहर गुजरात पुलिस का सख्त पहरा है. पहले संख्या दो दर्जन बताई गई. दोपहर में संख्या 35 के ऊपर गई. लेकिन शाम तक 30 का आंकड़ा चलने लगा. बताया गया कि इस 30 की संख्या में तीन महाराष्ट्र कैबिनेट के मंत्री भी हैं.

कौन हैं एकनाथ शिंदे 

अब इतना तो आप जानते ही हैं कि फौज में जब बगावत होती है, तो उसकी कमान एक बाग़ी जनरल के हाथ में ही होती है. तो शिवसेना में हुई बगावत के जनरल थे, एकनाथ संभाजी शिंदे. अब ये लाज़मी है कि आप पूछें कि ये एकनाथ शिंदे कौन हैं?

उद्धव कैबिनेट में एकनाथ शिंदे को शहरी विकास और लोक निर्माण विभाग PWD की ज़िम्मेदारी दी गई. देश के दूसरे सूबों की तरह महाराष्ट्र में भी हर ज़िले के लिए प्रभारी मंत्री बनाए जाते हैं, जिन्हें पालक मंत्री कहा जाता है. शिंदे, ठाणे और गडचिरोली ज़िले के पालक मंत्री हैं. साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले शिंदे एक पुराने शिवसैनिक हैं. मूल रूप से महाराष्ट्र के सतारा के हैं और अब मुंबई के करीब पड़ने वाले ठाणे ज़िले में मज़बूत पकड़ रखते हैं. शुरुआत शाखा प्रमुख रहते हुए की और फिर पार्षद बने. तब तक ठाणे ज़िले के दबंग शिवसैनिक आनंद दिघे का हाथ सिर पर आ गया था. 2001 में दिघे की असमय मृत्यु हुई तो पार्टी ने ठाणे की बागडोर एकनाथ शिंदे को दे दी.

शिंदे ठाणे की कोपरी - पाच पाखडी सीट से चार बार के विधायक हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना अलग-अलग लड़े थे. तब उद्धव ठाकरे शिंदे को नेता प्रतिपक्ष बनाने वाले थे. लेकिन दोनों पार्टियों ने साथ में सरकार बना ली और एकनाथ शिंदे मंत्री बन गए. माना जाता है कि 2014 में शिंदे उन नेताओं में थे, जो भाजपा के साथ गठबंधन के पक्षधर थे. 2019 में भी एकनाथ शिंदे भाजपा के साथ सरकार बनाने के पक्षधर थे. शिवसेना ने उन्हें विधायक दल का नेता भी चुन लिया था और माना जा रहा था कि शिंदे सीएम तक हो सकते हैं. लेकिन वो सीएम बन नहीं पाए. क्यों?

याद कीजिए, 2019 में भाजपा और शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव साथ-साथ लड़ा था. और महायुति गठबंध ने शानदार जीत भी दर्ज की थी. सबको यही लगा कि सरकार पहले की तरह चलती रहेगी. और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने रहेंगे. लेकिन तभी शिवसेना ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि भाजपा को अपना वादा निभाना चाहिए. शिवसेना की तरफ से दावा किया गया कि एक बंद कमरे में भाजपा के प्रमुख चुनावी रणनीतिकार अमित शाह ने वादा किया था कि मुख्यमंत्री पद पर रोटेशन होगा. ढाई-ढाई साल के लिए शिवसेना और भाजपा को मौका मिलेगा.

जैसा कि हमने कहा, ये शिवसेना का दावा था. बंद कमरे में हुई इस बैठक की कोई तस्वीर या वीडियो सामने नहीं आए. बावजूद इसके शिवसेना ज़िद पर अड़ी रही. क्योंकि पार्टी के सामने अस्तित्व का प्रश्न था. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा 2014 के मुकाबले कम सीटें जीती थी. लेकिन केंद्र में उसके हाथ मज़बूत हुए थे. इसीलिए शिवसेना को ये डर था कि भविष्य में वो एक जूनियर पार्टनर बनकर रह जाएगी. इसीलिए पार्टी ने मुख्यमंत्री पद पर रोटेशन वाली बात को इतना तूल दिया और अंत में धुर विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने की बात तक कह डाली. ये ऐलान हुआ 22 नवंबर 2019 को.

इधर बातचीत से बात नहीं बनी, तो भाजपा ने सरकार बनाने की एक कोशिश और की. 23 नवंबर की सुबह जब पूरा भारत सो रहा था, सुबह-सुबह देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. खबर आई कि भाजपा को अजित पवार के नेतृत्व में बाग़ी एनसीपी विधायकों का समर्थन मिल गया है. और अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा. लेकिन दोपहर होते होते शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें शरद पवार ने कह दिया कि NCP के विधायक लौट आएंगे.

शपथ ग्रहण का मामला देखते-देखते सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. 24 नवंबर को सुनवाई हुई. और 25 नवंबर को शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मुंबई के एक 5 स्टार होटल में 162 विधायकों की परेड करवा दी.

26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया कि 27 नवंबर को महाराष्ट्र विधानसभा में फडनवीस सरकार विश्वास मत हासिल करे. लेकिन इसकी नौबत आई नहीं और देवेंद्र फडणवीस ने खुद ही इस्तीफा दे दिया.

यहां से शिवसेना - कांग्रेस - एनसीपी की महाविकास अघाड़ी सरकार के बनने का रास्ता साफ हुआ. लेकिन एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री नहीं बने. क्योंकि शरद पवार का कहना था कि गठबंधन उद्धव ठाकरे के नेतृत्व बेहतर काम करेगा. शिंदे ने इस फैसले को एक आदर्श शिवसैनिक की तरह लिया और कैबिनेट में शामिल हुए. बीते ढाई सालों में जब-जब महाराष्ट्र सरकार के सामने कोई संकट आया, तब एकनाथ शिंदे ने उद्धव के दाएं हाथ की तरह काम किया.

जब इस पूरे संकट में एकनाथ शिंदे की भूमिका पर सवालों की संख्या काफी बड़ी हो गई, तो उन्होंने एक ट्वीट किया, जो मराठी में था. हम उसका अनुवाद आपको बता देते हैं. 

‘’हम बाला साहेब के कट्टर शिवसैनिक हैं. बाला साहब ने हमें हिंदुत्व की शिक्षा दी है. सत्ता के लिए हमने बाला साहेब के विचार और धर्मवीर आनंद दिघे की शिक्षा से कभी समझौता नहीं किया और न ही भविष्य में करेंगे.''

एकनाथ शिंदे ने इस ट्वीट के ज़रिए शिवसेना के उस भावुक काडर को संबोधित किया था, जिसके लिए बाल ठाकरे एक आइकन हैं और वफादारी सबसे बड़ा मूल्य. एकनाथ शिंदे ने अपने ट्वीट में दो लोगों का ज़िक्र किया. एक हैं बाल ठाकरे, जिनसे दर्शक पहले से परिचित हैं. हम आपको यहां आनंद दिघे के बारे में कुछ बातें बता देते हैं. दिघे, शिवसेना के एक बाहुबली नेता थे, जिनकी ठाणे ज़िले में बड़ी पकड़ थी. वो अपना ''दरबार'' तक चलाते थे, जिसमें लोगों की छोटी-मोटी शिकायतों का ''त्वरित'' निवारण किया जाता था. 2001 में जिस अस्पताल में उनकी हृदयघात से मौत हुई, उसे शिव सैनिकों ने जला दिया था. फ्रंटलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक शिव सैनिकों के उत्पात के चलते जब लाइफ सपोर्ट मशीनों ने काम करना बंद कर दिया, तब एक छह महीने के बच्चे और एक 65 साल के बुज़ुर्ग की भी जान चली गई.

शिंदे ने जिस तरह बाल ठाकरे और आनंद दिघे का ज़िक्र किया है, उसने शिवसेना में कुछ समय से चली आ रही असहजा की तरफ संकेत किया है. हिंदुत्व सुनते ही आज हमारे दिमाग में भाजपा की तस्वीर आती है. लेकिन बाल ठाकरे के हिंदुत्व में जो उग्रता थी, उसके चलते वो हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने लगे. उनके बरअक्स उद्धव ठाकरे का हिंदुत्व व्यावहारिक ज़्यादा है और भावुक कम. ये चीज़ और उभरकर आई जब शिवसेना ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली.

भाजपा ने इस चीज़ को तुरंत भांप लिया था और पार्टी सरकार बनने के बाद से ही हिंदुत्व की लाइन पर शिवसेना को ललकारती रही. चाहे कोरोना काल में मंदिर खुलवाने की ज़िद हो या फिर राणा दंपति द्वारा मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने की चुनौती. हर बार ये शिवसैनिकों के लिए दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई बनती रही. यही कारण है कि बाल ठाकरे के बेटे से अलग जाने वाले शिंदे, पार्टी काडर को बाल ठाकरे की ही याद दिला रहे हैं.

अब तक हमने इतिहास भूगोल खूब बतिया लिया गया. अब आपको ये बताते हैं कि ढाई साल में भाजपा ने दूसरी बार सरकार बनाने की कोशिश किस रणनीति के तहत की. इसके लिए हमने इंडिया टुडे टीवी में एडिटर, कमलेश सुतार से बात की. सुतार ने 2019 की घटनाओं को करीब से कवर किया था और वो आज भी मौके से रिपोर्टिंग कर रहे हैं. उन्होंने भाजपा की रणनीति के बारे में बताया,

"एकनाथ शिंदे के खेमे में ये दावा किया जा रहा है कि उनके साथ शिवसेना के 36 विधायक हैं. ये आंकड़ा इसलिए अहम है कि महाराष्ट्र में शिवसेना के 55 विधायक हैं, और इसका दो तिहाई 36 के करीब होता है. अगर शिंदे ने ये आंकड़ा जुटा लिया तो आगे की कार्रवाई की जाएगी. इससे पहले बीजेपी एक बार ये सीन अजित पवार के साथ देख चुकी है इसलिए अभी कुछ नहीं कह रही, जब वो पूरी तरह से संतुष्ट हो जाएगी तभी कुछ घोषणा होगी."  

दर्शक जानते हैं कि 2019 में एनसीपी विधायकों को वापस लाने में शरद पवार की बड़ी भूमिका थी. इस बार ये काम उद्धव ठाकरे को करना है. क्या उद्धव ठाकरे भी शरद पवार की तरह अपने कुनबे को दोबारा समेट सकते हैं, इसपर कमलेश सुतार का कहना है, 

"इस बार पार्टी में दो चीजों को लेकर बगावत है. पहली उद्धव ठाकरे के नेतृत्व को लेकर और दूसरी मौजूदा सरकार में तीन अलग-अलग विचारधाराओं का होना. इस बार शरद पावर कुछ नहीं कर सकते क्योंकि सरकार शिवसेना की वजह से गिर रही है और विधायक भी शिवसेना के ही हैं. इस बार शिंदे ने वही आरोप लगाया है जो पिछले ढाई साल से भाजपा शिवसेना पर लगा रही थी कि पार्टी हिंदुत्व से दूर जा रही है. ये लड़ाई उद्धव ठाकरे के लिए आसान नहीं होगी."

शिवसेना लगातार इस संकट से पार पाने के रास्ते तलाश रही है. आज पार्टी ने अपने दो नेताओं, रवि पाठक और मिलिंद नार्वेकर को सूरत भी भेजा. और दूसरी तरफ संजय राउत प्रेस से ये कहते रहे कि ये संकट उतना बड़ा भी नहीं है. शिवसेना की एक समस्या ये भी है कि NCP इस सब में अपने हाथ नहीं जलाना चाह रही है. आज दोपहर में शरद पवार ने कह भी दिया कि सीएम कौन बने, ये शिवसेना का आंतरिक मामला है. शरद पवार ने हमेशा संयम की राजनीति की है. लेकिन कांग्रेस की तरफ से पृथ्वीराज चौहान ने खुलकर आरोप लगाए.

आज का पूरा दिन मुंबई और दिल्ली में ताबड़तोड़ अपडेट्स का रहा. कभी खबर आती कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह से मिले हैं, तो कभी खबर आती कि देवेंद्र फडणवीस को दिल्ली बुला लिया गया. फिर ये मालूम चलता कि कांग्रेस ने आने वाले दिनों में होने वाली हलचल को देखते हुए कमल नाथ को AICC ऑब्ज़र्वर बनाकर महाराष्ट्र भेज दिया है. रही बात शिवसेना की, तो उसने एकनाथ शिंदे को सदन में विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया है और अपने पार्टी कार्यालय पर समर्थकों का शक्ति प्रदर्शन भी करवा लिया है. लेकिन इस संकट का कोई ठोस हल उसके पास है, अब तक ऐसे संकेत मिले नहीं हैं. दूसरी तरफ भाजपा इस बार गच्चा खाने के मूड में नहीं हैं. इसीलिए फूंक-फूंक के कदम रख रही है.

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