कुछ साल पहले की बात है. हमारे एक मित्र राजस्थान के किसी छोटे कस्बे में गए हुएथे. यूं तो उनको उसी दिन लौट आना था लेकिन जिस काम के लिए गए थे, वो नहीं हुआ. रातवहीं रुकना मजबूरी बन गई. अब वो ज़माना गूगल सर्च और ओयो रूम्स ऐप तो था नहीं. सोउन्होंने होटल के लिए आसपास पूछताछ करनी शुरू कर दी. एक से पूछा भई यहां कोई होटलहै? उसने कहा, हां, आगे चौराहे पर हैं दो-तीन. वहां पहुंचे पर एक ढूंढे न मिला.थोड़ा आगे गए तो एक और से पूछा. उसने भी एक दिशा की तरफ हाथ करके बताया कि उधर मिलजाएगा. वहां पहुंचे तो वहां भी कोई होटल नहीं.ऐसा तीन चार बार हुआ. तब जा के उनकी समझ में आया कि स्थानीय लोग उन्हें जहां भेजरहे थे, वो कोई होटल नहीं बल्कि खाना खिलाने वाले ढाबे/रेस्टोरेंट थे. वहां उन्हेंही होटल बोला जा रहा था. वहां के लोगों ने उनसे शिकायत भी की कि अगर रहने की जगहचाहिए थी तो धरमशाला बोलते. बहरहाल बड़ी जद्दोजहद के बाद उन्हें एक सराय में कमरामयस्सर हो सका.भारत के हर शहर-कस्बे में पाए जाते हैं ढाबे.ये घपला बहुतों के साथ हुआ होगा. कई बार छोटी-छोटी सी बातें बिना किसी एक्सप्लेनेशनके हम चलाते रहते हैं. बरसों तक बरतने के बावजूद हमें ये नहीं पता होता कि जो टर्महम इस्तेमाल कर रहे हैं उसका मतलब क्या है? जैसे होटल, मोटल और रेस्टोरेंट का फर्क.आइए देखते हैं.--------------------------------------------------------------------------------# होटलहोटल वो जगह होती है जहां आपको रहने के लिए कमरा, खाने के लिए खाना और बाक़ी कीसुविधाएं औकातानुसार मिलती हैं. औकात होटल की आपकी नहीं. होटल का पहला काम पराए शहरमें मुसाफिर को रिहाइश उपलब्ध कराना है. यहां आपको रहने-खाने के अलावा टीवी, फ्रिज,वाईफाई जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं. हालांकि हर जगह ये ज़रूरी नहीं. कुछ सस्ते होटलइन सुविधाओं के बगैर भी होते हैं. रूम सर्विस का सिस्टम आपको अपने कमरे में ही तमामचीज़ें मयस्सर कराता है. खाना होटल की पर्सनल किचन से परोसा जाता है. कुछ बड़े होटलोंका अपना पर्सनल रेस्टोरेंट भी होता है.500 रुपए से लेकर लाखों रुपए प्रति दिन के किराए तक चार्ज करते हैं होटल्स.--------------------------------------------------------------------------------# मोटलमोटल, होटल का छोटा भाई है. ये शब्द मोटर और होटल से मिलके बना है. मोटल का सिस्टममुख्यतः हाइवे पर होता है. इनका काम उन मुसाफिरों को रात रुकने का जरिया उपलब्धकराना है जो लंबे सफ़र पर निकले हैं और रात में ड्राइव करना नहीं चाहते. ज़्यादातरमोटल सड़क के किनारे होते हैं, जहां कमरे के साथ ही ओपन पार्किंग स्पेस भी होता है.मोटल में होटल जैसी तमाम सुविधाएं अक्सर नहीं होती है. हां, कई मोटल खाना उपलब्धकरा देते हैं लेकिन ये ज़रूरी नहीं.मोटल, मुख्यतः रातगुज़ारी का अड्डा.--------------------------------------------------------------------------------# रेस्टोरेंटवो जगह जहां आप सिर्फ खाना खाने जाते हो. ये देसी ढाबों का थोड़ा अपग्रेडेड वर्जनहै. यहां आप रेस्टोरेंट की शोहरत, साज सज्जा या खाने की क्वालिटी के अनुसार तय कीगई कीमतों पर खाना खाते हैं और लौट आते हैं. किसी रेस्टोरेंट में रहने की व्यवस्थानहीं होती. बस खाओ और घर चले जाओ. भले पैक करवा लो.रेस्टोरेंट सिर्फ वेज भी होते हैं और वेज-नॉन वेज दोनों भी.--------------------------------------------------------------------------------# रिसॉर्ट्सये लग्ज़री आइटम है. रिसॉर्ट्स अमूमन टूरिस्ट प्लेस पर होते हैं. ये रिलैक्स करनेजाने वाली जगह है. यहां आप होटल या मोटल जैसी मजबूरी में नहीं बल्कि मौज करने जातेहैं. लंबा-चौड़ा प्लान बनाकर. ऑफिस से, बिज़नेस से छुट्टियां लेकर. रिसॉर्ट्स मेंआपको उम्दा खान-पान से लेकर स्पोर्ट्स, एंटरटेनमेंट जैसी तमाम सुविधाएं मुहैया कराईजाती हैं. चाहे स्विमिंग पूल हो या स्पा. रिसॉर्ट आपकी तमाम सुख-सुविधाओं का ख़यालरखता है और आपको ज़िंदगी की भागदौड़ को, तनाव को कुछ दिनों के लिए भुलाने में मददकरता है. हां, मामला खर्चीला है गुरु!सैलानियों के स्वर्ग गोवा में एक रिसॉर्ट.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें:रेलवे स्टेशनों में ये जंक्शन, टर्मिनस और सेंट्रल क्या होता है?'शैतान का नाम लो, शैतान हाज़िर', ये कहावत कहां से आई?क्रिसमस के बाद वाले दिन को 'बॉक्सिंग डे' क्यों कहते हैं?वीडियो: राष्ट्रपति जिसपर प्रधानमंत्री के बर्तन धोने का लांछन लगाया गया