आज से दस पंद्रह साल पहले ‘बायोगैस’ और 'गोबर गैस' का जितना बज़ था उतना अब देखने कोनहीं मिलता. ये कोई ‘पोलियो जागरूकता अभियान’ तो था नहीं कि जब पूरा देश पोलियोमुक्त हो जाए तो या तो अभियान समाप्त ही कर दिया जाए या धीमा कर दिया जाए.लेकिन फिर क्या बात हुई कि ‘गोबर गैस’ के प्रति जागरूकता अभियान अपनी मंज़िल तकपहुंचने से पहले ही थक कर हांफने लगा है?गोबर गैस प्लांटबायोगैस कोई एक गैस नहीं, कई गैसों का मिश्रण होता है. ये गैसें तब बनती हैं जबकार्बनिक यौगिकों को हवा की अनुपस्थिति में फर्मनटेट किया जाता है. बायोगैस में जिनगैसों का मिश्रण होता है उनमें अन्य गैसों के अलावा मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड(CO2) और मीथेन (CH4) होती हैं.मीथेन एक दहनशील गैस है. दहनशील मतलब मीथेन में आग लगाओ तो वो जलने लगती है. यूंमीथेन को ईंधन के लिए यूज़ किया जा सकता है.--------------------------------------------------------------------------------# बायोगैस प्लांट –'बायोगैस प्लांट' मने वो ताम-झाम जिससे घर में ही चूल्हे के लिए गैस बनाई जा सकतीहै. इसमें पांच पार्ट होते हैं –तस्वीर साभार - Biocyclopedia# इनलेट - यहां से प्लांट में मानव या पशु अपशिष्ट और अन्य कार्बनिक पदार्थप्रोसेसिंग के लिए डाले जाते हैं.# फर्मनटेशन कक्ष – ये सारे कार्बनिक पदार्थ फर्मनटेशन कक्ष में सड़ाए जाते हैं.# गैस – और इस फर्मनटेशन से बनती है गैस (या गैसों का मिश्रण).# गैस भंडारण टैंक – अब ऐसा तो है नहीं कि इस गैस को तुरंत यूज़ कर लिया जाएगा. तोइसलिए, जब तक ये गैस यूज़ नहीं हो जाती इसे एक जगह स्टोर कर लिया जाता है.# आउटलेट और# निकास पाइप - जिसमें से गैस बहकर चूल्हे तक पहुंचती है.--------------------------------------------------------------------------------# कई और फायदे की बातें -आउटलेट से एक बाय-प्रोडक्ट निकलता है जो कई पोषक तत्वों से समृद्ध होता है और इसेमछली के चारे या खेतों में खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है. यानी गंदगी काकोई नाम-ओ-निशान नहीं.कार्बनिक कचरे और अपशिष्ट की ये प्रोसेसिंग पर्यावरण को साफ रखने में मदद करती है.सीवेज या खाद की कोई बुरी गंध नहीं रहती. बायोगैस से खाना पकाने पर लकड़ियों और उपलेजलाने की तुलना में कहीं कम (बल्कि शून्य) धुआं और गंदगी फैलती है. यूं फेफड़े औरआखें स्वस्थ रहती हैं.भारत का बायोगैस प्रोग्राम दुनिया में सबसे पुराने बायोगैस प्रोग्राम्स में से एकहै. इसे भारत सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त है और सब्सिडी का विकल्प भी है. भारत कीकेवल 2% ग्रामीण जनता बायोगैस का इस्तेमाल करती है. यूं न बायोगैस और न बायोगैसप्रोग्राम को ही सफल कहा जा सकता है.--------------------------------------------------------------------------------# बायोगैस और गोबर गैस में क्या अंतर है?बायोगैस और गोबर गैस की पूरी प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं है. इसकी टेक्नोलॉजी मेंभी नहीं. बस एक छोटा सा अंतर है – बायोगैस बनाने में में जहां किसी भी कार्बनिकपदार्थ का उपयोग किया जा सकता है वहीं गोबर गैस में केवल गाय के गोबर का इस्तेमालहोता है. इसलिए ही तो इसे गोबर गैस कहते हैं.और चूंकि ये अंतर बहुत छोटा है इसलिए कई बार आम बोलचाल की भाषा में बायोगैस को गोबरगैस कह लिया जाता है. और गोबर गैस को बायोगैस कहना तो वैज्ञानिक और तार्किक रूप सेभी गलत नहीं है.--------------------------------------------------------------------------------# क्यूं बायोगैस और इसका प्रोग्राम भारत में असफल हुआ?# गोबर आधारित बायोगैस प्रौद्योगिकी बहुत ज़्यादा खर्चीली है. 1 किलो उपलों (सूखेगोबर) से 4000 किलो कैलोरी के लगभग ऊर्जा मिलती है. वहीं इससे बनने वाली बायोगैस सेकेवल 200 किलो कैलोरी. यानी बीसवां अंश.# उपले बेचे जा सकते हैं लेकिन गोबर गैस नहीं. घरेलू बायोगैस में प्रतिदिन 20 किलोगोबर का इस्तेमाल होता है. अगर इसे उपलों के रूप में बेचा जाए तो रोज़ पचास रुपए केलगभग मिल जाते हैं. ऊर्जा के सस्ते विकल्प होने के चलते रोज़ के 50 रुपए खाना बनानेके लिए कौन ही खर्च करेगा?# एक घरेलू गोबर गैस प्लांट के लिए कम से कम 5-6 मवेशियों की ज़रूरत होती है. लेकिनअब इतनी आबादी एक घर में मिलना मुश्किल है. खासतौर पर तब, जब मवेशियों के बदलेखेती-बाड़ी में मशीनें यूज़ होने लगी हैं.# गोबर गैस को लगभग 40 लीटर पानी की ज़रूरत रोज़ पड़ती है. और भारत में पानी की कमी केबारे में क्या ही बोला जाए.# उज्ज्वला जैसी योजनाओं के चलते अब ग्रामीण इलाकों में भी एलपीजी आसानी से उपलब्धहै. एक परिवार को रोज़ लगभग 500 ग्राम एलपीजी की जरूरत होती है जो गोबल गैस से आधेमूल्य में मिल जाती है. और एलपीजी के साथ इतना ज़्यादा ताम-झाम नहीं चाहिए होता--------------------------------------------------------------------------------# चीन से तुलना -भारत सालों तक बायोगैस प्रौद्योगिकी का अग्रदूत रहा है लेकिन केवल पिछले एक दशक मेंचीन ने भारत को इस क्षेत्र में भी पीछे छोड़ दिया. आज से लगभग एक साल पहले ‘दीटाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने, अर्थशास्त्री टी के मौलिक की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुएये बात बताई. यानी 'विज्ञान' नाम के धर्म में गोबर सबसे पवित्र और उपयोगी था. औरभारत इसमें सबसे आगे भी था. अब चीन है!ये रिपोर्ट आज की नहीं 1980 की थी. मने दिक्कतें तब से ही शुरू हो गई थीं.जसभाई पटेल और टी के मौलिक की चीन भ्रमण के बाद बनी इस रिपोर्ट में और भी कई परेशानकरने वाले आंकड़े हैं. एक बानगी डालिए -# भारत के पास गोबर गैस डायजेस्टर प्रोग्राम को विकसित और क्रियान्वित करने का 30वर्षों से अधिक का अनुभव है, अनुकूल वातावरण है. दुनिया की सबसे बड़ी मवेशी आबादीहै. फिर भी भारत ने अब तक सिर्फ़ 70,000 डायजेस्टर (गोबर गैस प्लांट) बनाए हैं.इसमें से भी बीस प्रतिशत के लगभग तो बंद ही पड़े हैं.बीजिंग का एक बायो गैस स्टोरेज# भारत में जहां बायोगैस विकास कार्यक्रम अपनी पहल और रचना दोनों ही हिसाब से‘एलीट’ था, वहीं चीन का कार्यक्रम गावों के स्तर के कहीं ज़्यादा अनुकूल था. यूं,जहां भारत तकनीकी रूप से और कुशल, और कुशल बायोगैस प्लांट बनाने के प्रयासों मेंलगा रहा, वहीं चीन के पास जो कुछ भी ज्ञान, तकनीक और संसाधन थे उसी को लेकर ज़्यादासे ज़्यादा बायोगैस प्लांट बनाने के कार्य युद्ध स्तर पर शुरू हो गए. और फिरजैसे-जैसे आय बढ़ी, बायोगैस को लेकर अनुभव बढ़ा वैसे-वैसे बायोगैस का परफॉरमेंस भीबढ़ता चला गया.# परजीवियों का चीन में बहुत आंतक था, जिससे सूवरों से लेकर मनुष्यों तक बीमारीफैलती थी. लेकिन बायोगैस ने अपशिष्ट को काफी साफ़ और सुरक्षित तरीके हैंडल किया, औरइसके चलते 90% से अधिक परजीवी अंडे मर गए.--------------------------------------------------------------------------------# अंततः -बहरहाल इस रिपोर्ट के आने के बाद भारत में ऊर्जा के इस स्रोत पर काम तो शुरू हुआलेकिन ज़रा फिर से चाइना से तुलना करें तो -# 1990 तक भारत में 12.3 लाख बायोगैस संयंत्र थे. 2012 तक आते-आते यह संख्या 45.4लाख हो गई. लेकिन तब तक चीन में यह संख्या 2.7 करोड़ हो गई थी.--------------------------------------------------------------------------------कुछ और एक्सप्लेनर –भारत के LGBTQ समुदाय को धारा 377 से नहीं, इसके सिर्फ़ एक शब्द से दिक्कत होनीचाहिएक्या है नेटफ्लिक्स जो टीवी को ठीक वैसे ही लील जाएगा, जैसे टीवी रेडियो को खा गया!अगर इंसान पर बिजली गिर जाए तो क्या होता है?सुपर कंप्यूटर और आपके घर के कंप्यूटर में क्या अंतर होता है?मेट्रो और ऑफिस की एक्स-रे मशीन में टिफन डालने पर क्या होता है?सुना था कि सायनाइड का टेस्ट किसी को नहीं पता, हम बताते हैं न!क्या होता है रुपए का गिरना जो आपको कभी फायदा कभी नुकसान पहुंचाता हैजब हादसे में ब्लैक बॉक्स बच जाता है, तो पूरा प्लेन उसी मैटेरियल का क्यों नहींबनाते?प्लेसीबो-इफ़ेक्ट: जिसके चलते डॉक्टर्स मरीज़ों को टॉफी देते हैं, और मरीज़ स्वस्थ होजाते हैंरोज़ खबरों में रहता है .35 बोर, .303 कैलिबर, 9 एमएम, कभी सोचा इनका मतलब क्या होताहै?उम्र कैद में 14 साल, 20 साल, 30 साल की सज़ा क्यूं होती है, उम्र भर की क्यूं नहीं?प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से पहले उसके नीचे लिखा नंबर देख लीजिएहाइपर-लूप: बुलेट ट्रेन से दोगुनी स्पीड से चलती है येATM में उल्टा पिन डालने से क्या होता है?चिप्स में सूअर का मांस मिला होने की ख़बर पूरी तरह से ग़लत भी नहीं है--------------------------------------------------------------------------------Video देखें:पंक्चर बनाने वाले ने कैसे खरीदी डेढ़ करोड़ की जगुआर, 16 लाख रुपए की नंबर प्लेट?