न्यूक्लियर बटन होता क्या है, जो किम जोंग उन और ट्रंप ने दबाने की धमकी दी
कहते हैं कि एक अमेरिकी राष्ट्रपति न्यूक्लियर कोड अपने जूते में लेकर चलते थे.
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नया साल आया तो दुनियाभर के नेताओं ने बयान दिए क्योंकि दुनियाभर के नेता बयान दे रहे थे. हां. इसी तरह 'नए साल पर राष्ट्र के नाम संदेश' की रवायत पड़ी. खैर, इस साल सबका ध्यान रहा उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग उन पर. उन्होंने एक कायदे की बात की. कहा कि वो दक्षिण कोरिया से 'शांतिपूर्ण वार्ता' को राज़ी हैं. मूड ठीक रहा तो फरवरी 2018 में होने वाले विंटर ओलंपिक के लिए अपना 'डेलिगेशन' भी दक्षिण कोरिया भेज देंगे.
फिर उन्होंने एक फालतू बात की.
कि उत्तर कोरिया का न्यूक्लियर बम बनकर तैयार है और उसका लॉन्च बटन हमेशा उनकी मेज़ पर रखा रहता है. किम जोंग की फालतू बात का जवाब ट्रंप ने अपनी फालतू बात से दिया. कह दिया कि बटन मेरे पास भी है, वो भी तुम्हाए वाले से बड़ा. अब इस लॉन्च बटन को मीडिया 'न्यूक्लियर बटन' कहकर बावला हो रहा है, बावला कर रहा है. हमने इस बात की शुरुआत इसे फालतू बात कहकर की थी. लेकिन 'दिल बहलाने को ग़ालिब, खयाल अच्छा है' टाइप के मूड में हमने टटोला इस न्यूक्लियर बटन वाली बात को. कि क्या किम जोंग उन के पास ऐसी कोई मेज़ है, जिस पर लगा बटन दबा देने से एक न्यूक्लियर मिसाइल अमरीका की ज़मीन पर जा लगे?
हम बताने की कोशिश करेंगे.
माना जाता है कि अमरीका तक मार करने लायक मिसाइल और परमाणु बम फिलहाल उत्तर कोरिया के पास नहीं है. (फोटोः रॉयटर्स)
पहली बात तो ये कि उत्तर कोरिया दुनिया के सबसे खुफिया मुल्कों में से है. तो मेज़ और बटन होगा भी तो उसका ठीक पता करना मुश्किल है. उत्तर कोरिया में हद दर्जे का प्रोपगंडा चलता है तो किम का कहा भर मानने में भी समस्या है. और एक तीसरी बात भी है. दुनियाभर के विशेषज्ञ ये तो मानते हैं कि उत्तर कोरिया ने परमाणु बम बना लिया है. उसके पास कुछ मिसाइल भी हैं. लेकिन उनका मानना यही है कि फिलहाल उत्तर कोरिया के पास ऐसी कोई मिसाइल नहीं जो इतने बड़े और जटिल बम को अमरीका (या जापान) जितनी दूर पहुंचा सके. परमाणु बम को भी मिसाइल के हिसाब से ढालना होता है. उत्तर कोरिया फिलहाल इस मामले में भी पीछे है.
तो ज़्यादा संभावना इसी बात की है कि किम जब अपनी मेज़ का बटन दबाएं, तो वो बम अपनी जगह पर ही फट जाए.
तो क्या न्यूक्लियर बटन जैसा कुछ नहीं होता?
नहीं और हां.
#. नहीं - इसलिए कि परमाणु बम एक बटन से दग जाए, ऐसा सिस्टम दुनिया में कहीं नहीं होता. परमाणु बम चाहे जितनी खस्ता क्वॉलिटी के हों, उन्हें चला देने पर हज़ारों लोगों की जान जा सकती है. और पीढ़ियों तक विस्फोट का असर भी रहता है. बड़ी ज़िम्मेदारी वाली बात होती है. इसलिए ऐसा सिस्टम अमूमन हर देश में बनाया जाता है (अब उत्तर कोरिया अपवाद भी हो सकता है) कि एक अकेले आदमी की कोहनी टिफिन खाते-खाते किसी मासूम बटन पड़ जाए और परमाणु बम चल जाए, ऐसा न हो.
परमाणु हमले का घातक असर लंबे समय तक रहता है. हिरोशिमा में हुए परमाणु हमले में झुलसा एक शख्स.
#. हां - इसलिए कि बटन जैसा न्यूक्लियर बटन भले न हो. लेकिन परमाणु हमला करने के लिए पोर्टेबल जुगाड़ ज़रूर होते हैं. ये आमतौर पर एक ब्रीफकेस जितने बड़े होते हैं. इसलिए इन्हें न्यूक्लियर ब्रीफकेस कह दिया जाता है. न्यूक्लियर हमले की इजाज़त देने वाला आमतौर पर राष्ट्राध्यक्ष होता है. अब राष्ट्राध्यक्ष पूरे समय किसी बंकर में बैठकर न्यूक्लियर हमला करने को तैयार नहीं रह सकते, उन्हें तो मोदी जी की तरह पूरी दुनिया नापनी पड़ती है. इसलिए न्यूक्लियर ब्रीफकेस बनाए गए. ताकि ज़रूरत पड़ने पर दुनिया के किसी भी कोने से परमाणु हमला किया जा सके या उसका जवाब दिया जा सके.
दुनिया के दो सबसे चर्चित न्यूक्लियर ब्रीफकेस हैं अमरीका का 'फुटबॉल' और रूस का 'चेगेत.'
'फुटबॉल'
'फुटबॉल' बस नाम का फुटबॉल है. है ये एल्युमीनियम का एक ब्रीफकेस है, जो चमड़े के एक कवर में रखा रहता है. 1980 में ब्रेकिंग कवर नाम से एक किताब आई थी. इसे लिखा था वाइट हाउस मिलिटरी ऑफिस के डायरेक्टर रहे बिल गली ने. इसके मुताबिक फुटबॉल में चार चीज़ें रहती हैं.
अमरीकी राष्ट्रपतियों के पास रहने वाला न्यूक्लियर फुटबॉल. (फोटोः विकिमीडिया कॉमन्स)
'ब्लैक बुक' - इसमें अमरीका पर परमाणु हमला हो जाने की स्थिति में जवाबी हमला करने का तरीका लिखा होता है.फुटबॉल हमेशा अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ चलने वाले एक 'मिलिटरी एड' के हाथ में रहता है. इसलिए कई बार तस्वीरों में आ जाता है. एक बार तो एक शख्स ने फुटबॉल पकड़े मिलिटरी एड के साथ सेल्फी भी ले ली थी. कभी-कभार होता है कि फुटबॉल प्रेसिडेंट से बिछड़ जाता है. जब रॉनल्ड रीगन पर जानलेवा हमला हुआ था, तब उनका काफिला तेज़ी से आगे निकल गया था और फुटबॉल पीछे छूट गया था. रीगन को गोली लगी थी. जब एमरजेंसी रूम में रीगन के कपड़े काटे गए तो उनमें से ऑथेंटिकेशन कोड वाला कार्ड नीचे गया जहां उनके जूते पड़े थे. ये बात बाहर लोगों की खुसुर-फुसुर में बदलकर ये हो गई कि रीगन कार्ड अपने जूते में लेकर चलते हैं. बाद में कार्ड भी फुटबॉल के अंदर ही रखे जाने लगे.
एक और किताब, जिसमें खुफिया ठिकानों की जानकारी होती है.
एक फोल्डर जिसमें एमरजेंसी ब्रॉडकास्ट सिस्टम से जुड़ी जानकारी देते कागज़ होते हैं.
एक कार्ड जिसपर ऑथेंटिकेशन कोड लिखे रहते हैं. इसे बिस्किट कहते हैं.
फुटबॉल पकड़े वाइट हाउस का एक मिलिटरी एड. (फोटोः रॉयटर्स)
चेगेत
चेगेत रूस का 'फुटबॉल' है. इसका नाम माउंट चेगेत के नाम पर पड़ा है. रूस में जब नया राष्ट्रपति चुना जाता है (पुतिन के आने के बाद से ये चलन धीमा, बहुत धीमा पड़ गया है) तो पुराना राष्ट्रपति उसे चेगेत एक सेरेमनी में सौंपता है. गोरबाचेव के ज़माने में लाया गया चेगेत पुतिन ने ही सबसे ज़्यादा संभाला है. चेगेत रूस की सामरिक परमाणु सेना के कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम का हिस्सा होता है.
अब तक बस एक बार ऐसा हुआ है कि चेगेत को इस्तेमाल में लाया गया हो. 25 जनवरी, 1995 को नॉर्वे में नॉर्वे के और अमरीकी साइंटिस्ट्स ने मिलकर एक रॉकेट दागा. रूस को लगा कि दग गया परमाणु बम. तब चेगेत को इस्तेमाल में लाकर हमले की तैयारी शुरू हो गई थी. लेकिन वक्त रहते बात साफ हो गई. और दुनिया बच गई.
2012 में जब पुतिन रूस के राष्ट्रपति बने (फिर एक बार!) तो उन्हें एक समारोह में चेगेत थमाया गया. (फोटोः विकिमीडिया कॉमन्स)
और भारत...
अगर आपने स्टोरी यहां तक पढ़ ली है, और जानना चाहते हैं कि भारत के न्यूक्लियर ब्रीफकेस को क्या कहते हैं और वो किसके पास रहता है, तो हमें सॉरी कहना पड़ेगा. क्योंकि अपने परमाणु हमले का सारा लेन-देन न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी के पास रहता है. इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं. अब ये काम कैसे करती है, ये किसी को बताया नहीं जाता. इसलिए हम भी नहीं बताएंगे. क्योंकि हम भी नहीं जानते.
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