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पेगासस ने इज़रायल में क्या खेल कर दिया?

पेगासस पर हुए खुलासों ने अमेरिका, इज़रायल की नींद उड़ाई!!

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पेगासस पर हुए खुलासों ने अमेरिका, इज़रायल की नींद उड़ाई (सांकेतिक फोटो -AP)
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अभिषेक
2 फ़रवरी 2022 (Updated: 2 फ़रवरी 2022, 17:35 IST)
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अल्फ़्रेड नोबेल ने डायनामाइट का आविष्कार किया. वो डायनामाइट को शांति का माध्यम बताते थे. तर्क ये कि जिस दिन देशों को ये अहसास होगा कि एक झटके में पूरी सेना खत्म हो सकती है, वे युद्ध की कल्पना करना भी छोड़ देंगे. नोबेल ने अपनी मित्र और ऑस्ट्रियन लेखिका वार्था वोन सटनर को लिखा था,
ये संभव है कि मेरी डायनामाइट की फ़ैक्ट्रियां आपके शांति-सम्मेलनों से पहले युद्ध पर लगाम लगा दे.
उनका दावा ग़लत साबित हुआ. नोबेल डायनामाइट से होने वाली तबाही देखने के लिए ज़िंदा नहीं रहे. इसी तरह एटॉमिक बॉम्ब के जनक रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने पहला परमाणु परीक्षण देखने के बाद कहा था, मैं मृत्यु का रूप ले चुका हैं. मैं दुनिया का विनाशक बन गया हूं. ओपेनहाइमर ताउम्र परमाणु युद्ध की आशंका को टालने की मुहिम चलाते रहे. लेकिन दुनिया ने ना तो तब सीखा और ना अब. इस कड़ी में नया नाम पेगासस का है. इसे तकनीक का एटम बम भी कह सकते हैं. पेगासस एक मोबाइल स्पाईवेयर है, जिसका इस्तेमाल फ़ोन की हैकिंग में होता है. इसे इज़रायली कंपनी NSO ग्रुप बनाती है. कंपनी दावा करती है कि वो पेगासस सिर्फ़ और सिर्फ़ सरकारों को बेचती है. दावा ये भी कि इसका इस्तेमाल कभी भी निजी फायदे के लिए नहीं होता. लेकिन दावे इस इतर की हक़ीक़त कुछ और ही है. आज हमारा फ़ोकस दो खुलासों पर होगा. पहला मामला अमेरिका का है. एक Whistleblower ने ये आरोप लगाया है कि NSO ग्रुप ने अमेरिका की एक मोबाइल सिक्योरिटी कंपनी को ख़ूब सारा पैसा ऑफ़र किया. किस काम के लिए? ग्लोबल सिग्नलिंग नेटवर्क के एक्सेस के लिए ताकि लोगों के फ़ोन्स के ज़रिए उनकी निगरानी की जा सके. आरोप 2017 में ही लगाए गए थे. अब उसकी रिपोर्ट बाहर आई है. दूसरा मामला इज़रायल का है. वहीं से, जहां से पेगासस निकला. जनवरी 2022 में एक इज़रायली वेबसाइट कैलकेलिस्ट ने एक रिपोर्ट पब्लिश की. इसके मुताबिक, इज़रायल की पुलिस ने पेगासस के ज़रिए अपने ही नागरिकों का फ़ोन हैक किया. एक फ़रवरी को इज़रायल की पुलिस का बयान आया. उन्होंने कहा कि आरोप सच हैं. पेगासस को लेकर हुए नए खुलासों की पूरी कहानी क्या है? इसने अमेरिका और इज़रायल की नींद क्यों उड़ा दी है? और, इन खुलासों का असर क्या होगा? पहले बैकग्राउंड समझ लेते हैं. इज़रायल की एक सीक्रेट इंटेलीजेंस यूनिट है. इसका नाम है, यूनिट 8200. इज़रायल की मोसाद हो या आर्मी के सीक्रेट ऑपरेशंस, उसके पीछे खुफिया जानकारियां जुटाने का काम इसी यूनिट का है. इस यूनिट में काम कर चुके कई लोगों ने बाद में अपना स्टार्ट-अप शुरू किया. कुछ कंपनियां ऐसी भी हैं, जिन्होंने यूनिट 8200 की विकसित की तकनीक से प्रेरणा ली. 2010 में दो दोस्तों ने मिलकर NSO ग्रुप की स्थापना की. ये कंपनी मोबाइल सर्विलांस में हाथ आजमाने आई थी. ताकि सरकारी जांच एजेंसियां अपराधियों पर नज़र रख सके. NSO ग्रुप ने 2011 में पेगासस लॉन्च किया. ये अब तक नामुमकिन समझे जाने वाले कामों को आसानी से पूरा कर सकता था. मसलन, स्मार्टफोन्स में सेंध लगाना. डेटा चुराना. ये फ़ोन कॉल, मेसेज़, ईमेल्स, कॉन्टैक्ट लिस्ट, लोकेशन सब को क्रैक कर सकता था. ये फेसबुक और वॉट्सऐप जैसे ऐप्स के माध्यम से भेजी गई जानकारियों को भी हैक कर लेता था. ये पेगासस दूर बैठकर आपके मोबाइल की मालिक बन जाती थी. वो फ़ोन के साथ जो चाहे करती. आप पर चौबीस घंटे निगाह रखती. वो भी बिना आपकी जानकारी के. पेगासस को अब तक का सबसे शक्तिशाली मोबाइल स्पाईवेयर बताया जा रहा है. जुलाई 2021 में 17 मीडिया संस्थानों ने एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट पब्लिश की थी. प्रोजेक्ट पेगासस. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि किस तरह से दुनियाभर की सरकारें पेगासस के जरिए अपने आलोचकों और विरोधियों की जासूसी कर रही है. इनमें पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता के अलावा आम लोग भी शामिल थे. NSO ग्रुप ने दावा किया कि पेगासस संभावित आतंकी घटनाओं और दूसरे संगीन अपराधों को रोकने के काम आता है. जैसे कि मैक्सिको ने कुख़्यात ड्रग तस्कर अल चापो को पेगासस की मदद से ही पकड़ा गया था. ब्रिटिश खुफिया एजेंसी MI6 ने पेगासस के ज़रिए कई आतंकी घटनाओं का पर्दाफ़ाश किया. यहां तक तो सब ठीक था. लेकिन जब प्रोजेक्ट पेगासस छपकर बाहर आया, तब पता चला कि सरकारों ने पेगासस का कतई ग़लत इस्तेमाल किया है. मसलन, आलोचकों और विरोधियों पर नज़र रखने में, पत्रकारों को धमकाने में, शासकों के निजी हित में आदि. कुछ उदाहरणों से समझते हैं. मेक्सिको पेगासस के सबसे पहले खरीदारों में से था. वहां की सरकार ने पेगासस को सिर्फ़ अल चापो को पकड़ने या ड्रग गैंग्स को खत्म करने के लिए यूज़ नहीं किया, बल्कि इसके जरिए पत्रकारों और राजनैतिक विरोधियों पर भी नज़र रखी गई. सऊदी अरब ने पेगासस के ज़रिए पत्रकार जमाल खशोग्जी पर नज़र रखी. जमाल का तुर्की के सऊदी दूतावास में क़त्ल कर दिया गया था. बाद में उनकी मंगेतर के फ़ोन में भी पेगासस लगाया गया था. दुबई के शासक ने अपनी पत्नी प्रिंसेज़ हया और उनके वकीलों के ख़िलाफ़ पेगासस का इस्तेमाल किया. भारत समेत कई देशों की सरकारों पर पेगासस के नाजायज इस्तेमाल का आरोप लगा. प्रोजेक्ट पेगासस में तकरीबन 50 हज़ार फ़ोन्स की जानकारी बाहर आई थी, जिनपर निगाह रखी जा रही थी. इनमें सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार, विपक्षी नेता आदि शामिल थे. NSO ग्रुप लगातार इन आरोपों से इनकार करता रहा. उसने ग़लती मानने से इनकार कर दिया. कंपनी ने कहा कि हमारी पॉलिसी सख़्त है और हम पूरी पड़ताल के बाद ही अपनी टेक्नॉलजी बेचते हैं. हमारे सॉफ़्टवेयर का ग़लत इस्तेमाल हो ही नहीं सकता. मीडिया रिपोर्ट्स कंपनी के दावेों को झूठा साबित करती है. आज हम पेगासस की कहानी फिर से क्यों सुना रहे हैं? हमने शुरुआत में अमेरिका और इज़रायल में हुए दो खुलासों का ज़िक्र किया था. पहले अमेरिका वाला मामला समझ लेते हैं. कैलिफ़ोर्निया की एक कंपनी है, मोबिलियम. ये दुनियाभर में मोबाइल कंपनियों को सिक्योरिटी सर्विस मुहैया कराती है. इस कंपनी के एक पूर्व सीनियर अधिकारी ने NSO ग्रुप के साथ एक आपत्तिजनक बातचीत का दावा किया है. गैरी मिलर मोबिलियम के वाइस-प्रेसिडेंट थे. उन्होंने 2020 में कंपनी छोड़ दी. मिलर का आरोप है कि 2017 में एक मीटिंग के दौरान NSO ग्रुप ने एक दिलचस्प ऑफ़र दिया था. उस मीटिंग में NSO के दो को-फ़ाउंडर भी शामिल थे. उसी दौरान एक ओमरी लाविए ने SS7 नेटवर्क का ज़िक्र छेड़ा था. इस नेटवर्क के ज़रिए दुनियाभर में कॉल्स और दूसरी सेलुलर सर्विसेज़ को रूट किया जाता है. मिलर ने दावा किया कि NSO ग्रुप इस नेटवर्क में एक्सेस के बदले मनचाहा पैसा ऑफ़र कर रहा था. इस मीटिंग के कुछ महीने बाद मिलर ने एफ़बीआई को गुमनाम टिप भेजी. लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद उन्होंने इस जानकारी को जस्टिस डिपार्टमेंट और एक अन्य एजेंसी के साथ साझा किया. मिलर ने कैलिफ़ोर्निया के सेनेटर टेड लियु को भी भेजा. लियु इसे लेकर जस्टिस डिपार्टमेंट के पास गए. लियु ने कुछ संशोधित कॉपीज़ फ़ॉरबिडन स्टोरीज़, प्रोजेक्ट पेगासस और वॉशिंगटन पोस्ट को भी दी. दस्तावेज़ों की स्टडी के बाद रिपोर्ट बाहर आई है. यूएस जस्टिस डिपार्टमेंट ने इस पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है. NSO ग्रुप का कहना है कि उसने मोबिलियम के साथ कभी कोई कारोबार नहीं किया. वो कभी नकदी में सौदा नहीं करते. उनका कहना है कि सारे आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं. इस रिपोर्ट का क्या मतलब निकाला जाए? जानकारों का कहना है कि अगर आरोपों में तनिक भी सच्चाई है तो मामला संगीन है. SS7 नेटवर्क में दुनिया के हर मोबाइल कस्टमर की जानकारी मौजूद है. NSO ग्रुप आम नागरिकों के फ़ोन नेटवर्क पर नियंत्रण क्यों चाह रही थी, उसे इस पर जवाब देना होगा. NSO ग्रुप ने दावा किया था कि उसके स्पाईवेयर का इस्तेमाल अमेरिका और इज़रायल के नागरिकों के ऊपर नहीं होगा. ये रिपोर्ट उस दावे को छलावा साबित करती है. अमेरिका ने नवंबर 2021 में NSO ग्रुप को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया था. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिकी एजेंसियां कंपनी पर लगे आरोपों की जांच कर रही है. इस संबंध में कई लोगों से पूछताछ भी हुई. हालांकि, इस जांच का पूरा दायरा अभी पता नहीं चला है. कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में कुछ चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं. ये तो हुई अमेरिका की बात. इज़रायल वाला मसला क्या है? 18 जनवरी 2022 को एक फ़ाइनेंशियल डेली कैल्केलिस्ट ने एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट पब्लिश की. इसमें एक ज़बरदस्त खुलासा किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, इज़रायल पुलिस 2013 से ही अपने नागरिकों के ख़िलाफ़ पेगासस का इस्तेमाल कर रही थी. वो भी किसी वॉरंट या कोर्ट के आदेश के बिना. रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि पेगासस के ज़रिए विपक्षी नेताओं, LGBTQ प्रोटेस्टर्स और सामाजिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ किया गया. पुलिस ने 2013 में पेगासस का बेसिक वर्ज़न खरीदा था. उसके बाद हर साल और पैसे देकर इसे अपग्रेड किया जाता रहा. इज़रायली न्यूज़ वेबसाइट हारेट्ज़ के पास भुगतान की एक रसीद है. इसके मुताबिक, पुलिस ने NSO ग्रुप को पेगासस के लिए लगभग पांच करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इज़रायल NSO ग्रुप का इस्तेमाल बाकी दुनिया से अपने संबंध बेहतर करने में करता रहा है. बेंजामिन नेतन्याहू मार्च 2009 से जून 2021 तक इज़रायल के प्रधानमंत्री रहे हैं. उनकी विदेश-नीति का एक ट्रेंड देखा गया है. जानकारों की मानें तो जिन भी देशों ने पेगासस का ग़लत इस्तेमाल किया, उनसे नेतन्याहू सरकार के संबंध बेहतर होते गए. रिपोर्ट आने के एक हफ़्ते बाद NSO ग्रुप के चेयरमैन एशर लेवी ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. हालांकि, उन्होंने कहा कि इसका रिपोर्ट से कोई संबंध नहीं है. एक फ़रवरी को इस मामले में नया मोड़ आया. इज़रायली पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि उनके डिपार्टमेंट के कुछ लोग पेगासस के ज़रिए अपने ही नागरिकों की जासूसी कर रहे थे. बयान में ये भी कहा गया कि जानकारियां हैरान करने वाली हैं. इज़रायल के अटॉर्नी जनरल ने पुलिस से सख़्त कदम उठाने के लिए कहा है. जांच के लिए इंक़्वायरी टीम बना दी गई है. इस मामले में जो कुछ नया होगा, उसे हम आप तक पहुंचाते रहेंगे. अब सुर्खियों की बारी. पहली सुर्खी पश्चिम अफ़्रीकी देश गिनी-बिसाऊ से है. एक फ़रवरी को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कैबिनेट के कई मंत्री गवर्नमेंट पैलेस में बैठे थे. इसी दौरान कुछ बंदूकधारियों ने पैलेस को घेर लिया. पांच घंटे तक चली गोलीबारी के बाद मामला शांत हुआ. हमलावरों की साज़िश को नाकाम कर दिया गया. सरकार का कहना है कि ये तख़्तापलट की कोशिश थी. अभी तक हमलावरों की ठीक से पहचान नहीं हो सकी है. गिनी-बिसाऊ 1974 में पुर्तगाल से आज़ाद हुआ. तब से अब तक यहां चार तख़्तापलट सफ़ल हो चुके हैं, जबकि दस से अधिक दफ़ा साज़िश नाकाम रही है. पिछला सफ़ल तख़्तापलट 2012 में हुआ था. अगर गिनी-बिसाऊ में एक फ़रवरी वाली साज़िश कामयाब होती तो ये इस साल का दूसरा तख़्तापलट होता. इससे पहले जनवरी में बुर्किना फ़ासो में सेना ने लोकतांत्रिक सरकार पलट दी थी.

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