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ममता बनर्जी के करीबी अनुब्रत मंडल को गायों की तस्करी के आरोप में सीबीआई ने किया गिरफ्तार

अभी ज़्यादा दिन नहीं बीते, जब हम नोटों के उन बंडलों को देखकर हैरान हो रहे थे, जो ममता कैबिनेट में रहे पार्था चैटर्जी की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के यहां से बरामद हुए.

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अनुब्रता मंडल और ममता बनर्जी.
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निखिल
11 अगस्त 2022 (Updated: 11 अगस्त 2022, 24:07 IST)
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हमेशा एक साधारण सी साड़ी और पैरों में रबड़ की चप्पल पहने नज़र आने वाली ममता बैनर्जी पर सार्वजनिक जीवन में कभी सीधा इल्ज़ाम नहीं लगा. खासकर पश्चिम बंगाल में उन्हें एक साफ छवि वाले नेता के रूप में पहचाना जाता है. लेकिन उनके करीबियों पर ये बात लागू नहीं होती. अभी ज़्यादा दिन नहीं बीते, जब हम नोटों के उन बंडलों को देखकर हैरान हो रहे थे, जो ममता कैबिनेट में रहे पार्था चैटर्जी की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के यहां से बरामद हुए. पार्था अभी तक ED की हिरासत से बाहर नहीं आए हैं. और आज खबर आई कि ममता के एक और करीबी सहयोगी अनुब्रत मंडल उर्फ केश्टो दा को CBI ने मवेशियों की तस्करी के मामले में पूछताछ के लिए बुला लिया है.

अनुब्रत मंडल से CBI पूछताछ के मायने आप तब तक नहीं समझ सकते, जब तक आपको अनुब्रत मंडल के कद का अंदाज़ा नहीं लग जाता. पश्चिम बंगाल से 185 किलोमीटर दूर पड़ता है बीरभूम. जीके मज़बूत रखने वाले बीरभूम को शांति निकेतन के लिए जानते हैं. वो जगह, जहां रवींद्रनाठ ठाकुर ने पढ़ने और पढ़ाने की एक नई परंपरा के बीज बोए थे. लेकिन नेतानगरी के वासियों के लिए बीरभूम अनुब्रत मंडल उर्फ केष्टो दा का ''इलाका'' है. इलाके पर ज़ोर हमने क्यों दिया, आपको जल्द समझ आ जाएगा.

बांग्ला लोगों में दो नाम रखने का चलन होता है. एक जो आधिकारिक नाम होता है, स्कूल वगैरह में लिखवाया जाता है. और दूसरा होता है ''डाक नाम.'' तो अनुब्रत मंडल का डाक नाम है केष्टो. बांग्ला में केष्टो शब्द भगवान कृष्ण और हनुमान के लिए आता है. बांग्ला में आदर प्रकट करने के लिए नाम के साथ ''दा'' लगाया जाता है. सो ऐसे अनुब्रत मंडल का नाम हो गया केष्टो दा.

नाम की बात हो गई, अब काम पर आते हैं. राजनीति में दो तरह के नेता होते हैं. एक जो चुनावी राजनीति में उतरते हैं, वोट बटोरकर विधायक आदि बनते हैं. फिर दूसरी तरह के नेता होते हैं, जो चुनाव लड़ते नहीं, लड़वाते हैं. जो पॉलिटिकल मैनेजमेंट का काम देखते हैं. हिंदी में - संगठन का काम. अनुब्रत मंडल दूसरी तरह के नेता हैं. अपनी उम्र के छठे दशक में हैं. जब 1998 में ममता बैनर्जी कांग्रेस से अलग हुईं और तृणमूल कांग्रेस का जन्म हुआ, तभी से मंडल ममता के साथ हैं. लेकिन आज तक एक भी चुनाव नहीं लड़ा. हमेशा बूथ मैनेजमेंट किया. अगर आपको पश्चिम बंगाल की राजनीति का क-ख-ग मालूम हो, तो आप जानते ही होंगे कि पश्चिम बंगाल में बूथ लेवल की राजनीति कितनी हिंसक होती है.

यहां मामला चुनौती और धमकी से शुरू होकर चुनाव के दिन और चुनाव के बाद होने वाली हिंसा तक जाता है. पश्चिम बंगाल के पत्रकार बताते हैं कि इस तरह के ''मैनेजमेंट'' में मंडल माहिर हैं. वो एक क्लासिक बाहुबली हैं. येन-केन-प्रकारेण चुनाव में नतीजा ले ही आते हैं, चाहे आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के कितने ही मामले बन जाएं. पश्चिम बंगाल में पंचायत के चुनावों में तृणमूल के बंपर प्रदर्शन की एक वजह ये भी थी, कि तृणमूल प्रत्याशी के खिलाफ कोई खड़ा ही नहीं हुआ. क्योंकि माहौल में भय था. इस भय के लिए जिस काम की ज़रूरत पड़ती है, उसमें मंडल माहिर माने जाते हैं.

इसीलिए बीरभूम से बाहर भी, जब जब तृणमूल कांग्रेस को कोई चुनाव फंसता नज़र आता है, मंडल को तैनात कर दिया जाता है. चाहे बात पंचायत स्तर की हो या फिर लोकसभा की. मार्च-अपैल 2022 में पश्चिम बंगाल में आसनसोल और बालीगंज लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ. आसनसोल से सत्ताधारी तृणमूल को टिकट मिला शत्रुघ्न सिन्हा को. सिन्हा को लेकर विपक्ष ने लगातार बाहरी बताना शुरू किया. लेकिन सिन्हा का चुनाव देख रहे थे अनुब्रत मंडल. जब नतीजे आए, तब सिन्हा की लीड तीन लाख के भी पार थी.

नतीजों में नज़र आने वाले ऐसे ही प्रदर्शन का सिला था, कि 2022 की शुरुआत में जब ममता बैनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस की नेशनल वर्किंग कमेटी बनाई, तब अभिषेक बैनर्जी, पार्था चैटर्जी और फिरहाद हकीम जैसे नेताओं के साथ, उसमें अनुब्रत मंडल को भी शामिल किया. जबकि तकनीकि रूप से मंडल महज़ ज़िला स्तर के नेता हैं. क्योंकि पार्टी में उनका पद चाहे जो हो, सारे नेता, कार्यकर्ता और समर्थक जानते हैं कि मंडल ममता कैबिनेट के कई मंत्रियों से ज़्यादा वज़न रखते हैं.

फिर बीरभूम में होने वाले कोयला खनन और रेत खनन से पैदा होने वाले वैध और अवैध संसाधनों का मामला भी है. इसपर पकड़ का कोलकाता से राज करने वाली पार्टियों की सेहत पर सीधा असर पड़ता है. टिप्पणीकारों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस ये काम मंडल के मार्फत ही करवाती है. पुलिस-प्रशासन के मामले में मंडल को मिले कथित फ्रीहैंड का ही नतीजा है कि अब बीरभूम के नज़दीकी ज़िलों में भी उनकी तूती बोलने लगी है. और ये बात पश्चिम बंगाल का विपक्ष भी समझ रहा है. एक थ्योरी ने आकार ले लिया है, कि जब तक मंडल को बीरभूम की सत्ता से नहीं डिगाया जाता, तब तक तृणमूल को गंभीर नुकसान पहुंचना मुश्किल होगा.

पश्चिम बंगाल को लेकर भाजपा जिस तरह गंभीर हुई है, उसका नतीजा 2019 के लोकसभा चुनाव में नज़र आ गया था. तृणमूल कांग्रेस 34 से 22 सीटों पर आ गई और भाजपा 2 से 18 पर चली गई. तब एक पत्रकार ने इसपर केष्टो से बांग्ला में प्रतिक्रिया मांगी थी, कि भाजपा ने पश्चिम बंगाल में इतनी बड़ी जीत हासिल की, आप क्या कहना चाहेंगे. तब केष्टो दा ने गर्दन घुमाकर बस दो शब्द कहे थे - ''खेला होबे''. माने, अब खेल होगा. अंग्रेज़ी में - द गेम इज़ ऑन. खेला होबे की उत्पत्ति को लेकर असम से लेकर बांग्लादेश तक से दावे किए जाते हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीति में जिस अर्थ में खेला होबे का इस्तेमाल होता है, उसके पीछे मंडल का ये बयान ही था. इशारा साफ था - आप यहां तक आ तो गए हैं, लेकिन अब देखिए खेल कैसे होता है.

2021 में विधानसभा चुनाव आए. तृणमूल कांग्रेस में भारी टूट के बावजूद मंडल ममता के साथ बने रहे. तमाम अनुमानों को धता बताते हुए तृणमूल कांग्रेस ने चुनावों में शानदार जीत दर्ज की. इसके बाद पूरे पश्चिम बंगाल में विजयी जुलूस निकले, जिनके दौरान विपक्षी पार्टियों के खिलाफ जमकर हिंसा हुई. बीरभूम से भी तब हिंसा के कई वीडियो सामने आए थे. जब इन मामलों की जांच सीबीआई को दे दी गई, तब आलमबाज़ार में एक शख्स की हत्या के मामले में मंडल को समन भेजा गया था. तब मंडल CBI के समन के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय से राहत ले आए थे. इस साल जून में जाकर सीबीआई मंडल से पूछताछ कर पाई थी.

मार्च 2022 के दूसरे हफ्ते में बीरभूम ज़िले में एक तृणमूल कार्यकर्ता बादू शेख की हत्या हुई. इसके नतीजे में 21 मार्च के रोज़ बोगतुई गांव में 9 लोगों को ज़िंदा जलाकर मार डाला गया. इस मामले में भी भाजपा ने खुलकर मंडल का नाम लिया था. लेकिन जब ममता बैनर्जी बोगतुई गईं, तो मंडल उनके साथ थे. इशारा साफ था, ममता पूरी तरह मंडल के साथ खड़ी हैं. बाद में सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में लिखा कि बोगतुई मामले का संबंध दो गुटों की आपसी लड़ाई से था.

अब आते हैं उस मामले पर, जिसके लपेटे में मंडल आए हैं. ये एक ओपन सीक्रेट है कि मवेशी अवैध रूप से पश्चिम बंगाल से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के रास्ते बांग्लादेश भेजे जाते हैं. जबकि सीमा पर एक केंद्रीय अर्धसैनिक बल तैनात है - BSF. इस खेल में पुलिस, प्रशासन, कस्टम अधिकारी और सीमा सुरक्षा बल के लोग शामिल हैं. जनवरी 2018 में केरल के अलप्पुज़ा रेलवे स्टेशन बीएसएफ का एक असिस्टेंट कमांडेंट जीबू मैथ्यू गिरफ्तार हुआ. इसके पास से 47 लाख रुपए कैश मिले. जब इसकी आय से पैसों का मिलान किया गया, तो मालूम चला कि कमाई अवैध है. पूछताछ हुई तो मवेशियों की स्मगलिंग के कारोबार का पता चला. BSF के अधिकारी स्मगलिंग रोकने के नाम पर मवेशी पकड़ते. 24 घंटों के भीतर इन मवेशियों को नीलाम कर दिया जाता. नीलामी में पहले से तय कारोबारी ही मेवेशी खरीदते. लेकिन इनके वज़न और नस्ल की जानकारी दर्ज करने में धांधली होती और बीएसएफ को चूना लगता. बाद में यही मवेशी बीएसएफ की ही छत्रछाया में बॉर्डर पार करा दिए जाते.

पूरी कहानी मालूम करने के लिए इस मामले के आधार पर CBI ने जांच शुरू की. और 2018-19 से ही तृणमूल के छुटभैये नेताओं के नाम सामने आने लगे. धीरे धीरे बात मंडल के नाम तक पहुंची, तो एजेंसी ने समन भेजने शुरू किए. लेकिन मंडल हमेशा स्वास्थ्य का बहाना बनाकर समन की तामील से इनकार कर देते. मई 2022 में वो दुर्लभ मौका आया, जब मंडल पूछताछ के लिए आए, लेकिन उस दिन भी उन्होंने 4 घंटे चली पूछताछ के बाद छाती में दर्द की शिकायत की. जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया. मंडल उस रोज़ भी पूछताछ के लिए इसीलिए गए थे, क्योंकि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया था.

11 अगस्त, मामने आज CBI मंडल को पूछताछ के लिए अपने कैंप ऑफिस ले गई. और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. मंडल का नाम अभी तक किसी एफआईआर में नहीं आया है. उन्हें इसलिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वो पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहे थे. और इस बाबत उन्हें कई बार नोटिस दिया जा चुका था. आप सोच रहे होंगे कि हम बात घुमा रहे हैं. लेकिन सच ये है कि लोगों को धमकाने और मार तक डालने के मामलों में नाम सामने आने के बावजूद मंडल कभी कानूनन दोषी नहीं पाए गए. इसीलिए सब कुछ आरोप की शक्ल में ही है. चुनाव आयोग द्वारा लागू की जाने वाली आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन वो इतनी बार कर चुके हैं, जिसकी गिनती नहीं.

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