'जब तक मैं जिंदा हूं, मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा.'यह बयान देना अपने आप में विवादित हो सकता है. किसी पार्टी का कोई नेता ऐसा बयानदे, तो इन दिनों उसे पाकिस्तान भेजने तक की नसीहत दी जा सकती है. लेकिन यह बयानकरीब 100 साल पहले दिया गया. और ऐसा कहने वाले थे देश का राष्ट्रगान लिखने वाले,नोबेल पुरस्कार विजेता कवि गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर.भारत के साथ ही बांग्लादेश का राष्ट्रगान लिखने वाले और गीतांजलि जैसे महाकाव्य परनोबेल हासिल करने वाले टैगोर मानवता को राष्ट्रीयता से ऊपर रखते थे. नोबेल विजेताअमर्त्य सेन ने किताब 'Argumentative Indian' में 'टैगोर और उनका भारत' में टैगोरके राष्ट्रीयता और देशभक्ति से जुड़ी बातें बताईं हैं. ये बातें उन्होंने सामाजिककार्यकर्ता और पादरी सी एफ एंड्रूज के हवाले से लिखी हैं.एंड्रूज महात्मा गांधी और टैगोर के करीबी मित्रों में से एक थे. लेकिन गांधी औरटैगोर के विचार एकदूसरे से अलग थे. टैगोर मानते थे कि देशभक्ति चारदीवारी से बाहरविचारों से जुड़ने की आजादी से हमें रोकती है. दूसरे देशों की जनता के दुख दर्द कोसमझने की स्वतंत्रता भी सीमित कर देती है. वह अपने लेखन में राष्ट्रवाद को लेकरआलोचनात्मक नजरिया रखते थे.1908 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की पत्नी अबला बोस की आलोचना का जवाबदेते हुए टैगोर ने कहा था कि देशभक्ति हमारा आखिरी आध्यात्मिक सहारा नहीं बन सकता,मेरा आश्रय मानवता है.टैगोर ने 1916-17 के दौरान जापान और अमेरिका की यात्रा के दौरान राष्ट्रवाद पर कईवक्तव्य दिए थे. ये एक पुस्तक राष्ट्रवाद की शक्ल में 2003 में सामने आए. इसमें1917 में दिए गए भाषण में टैगोर ने कहा था, 'राष्ट्रवाद का राजनीतिक और आर्थिकसंगठनात्मक आधार उत्पादन में बढ़ोतरी और मानवीय श्रम की बचत कर अधिक संपन्नता हासिलकरने का प्रयास है. राष्ट्रवाद की धारणा मूलतः राष्ट्र की समृद्धि और राजनैतिकशक्ति में बढ़ोतरी करने में इस्तेमाल की गई है. शक्ति की बढ़ोतरी की इस संकल्पना नेदेशों में पारस्परिक द्वेष, घृणा और भय का वातावरण बनाकर मानव जीवन को अस्थिर औरअसुरक्षित बना दिया है. यह सीधे-सीधे जीवन से खिलवाड़ है, क्योंकि राष्ट्रवाद की इसशक्ति का प्रयोग बाहरी संबंधों के साथ ही राष्ट्र की आंतरिक स्थिति को नियंत्रितकरने में भी होता है. ऐसी स्थिति में समाज पर नियंत्रण बढ़ना स्वाभाविक है. ऐसे मेंसमाज और व्यक्ति के निजी जीवन पर राष्ट्र छा जाता है और एक भयावह नियंत्रणकारीस्वरूप हासिल कर लेता है. दुर्बल और असंगठित पड़ोसी राज्यों पर अधिकार करने की कोशिशराष्ट्रवाद का ही स्वाभाविक प्रतिफल है. इससे पैदा हुआ साम्राज्यवाद अंततः मानवताका संहारक बनता है.'रवीन्द्र नाथ टैगोर ने शांति निकेतन की स्थापना की थी. यह तस्वीर 1929 की है.भारत के संदर्भ में टैगोर ने लिखा,'भारत की समस्या राजनैतिक नहीं, सामाजिक है. यहां राष्ट्रवाद नहीं के बराबर है.हकीकत तो ये है कि यहां पर पश्चिमी देशों जैसा राष्ट्रवाद पनप ही नहीं सकता,क्योंकि सामाजिक काम में अपनी रूढ़िवादिता का हवाला देने वाले लोग जब राष्ट्रवाद कीबात करें तो वह कैसे प्रसारित होगा? भारत को राष्ट्र की संकरी मान्यता छोड़करअंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.'भारत के संदर्भ में टैगोर ने सुझाव दिया था कि भारत भले ही पिछड़ा हो, मानवीयमूल्यों में पिछड़ापन उसमें नहीं होना चाहिए. निर्धन भारत भी विश्व का मार्गदर्शन करमानवीय एकता में आदर्श को प्राप्त कर सकता है. भारत का अतीत यह साबित कर सकता है किभौतिक संपन्नता की चिंता न कर भारत ने अध्यात्मिक चेतना का सफलतापूर्वक प्रचार कियाहै.