हिमालय चीरकर सड़कें बनाने वाली सरकार मजदूरों को क्यों नहीं निकाल पा रही?
पिछले 9 दिनों में सरकार ने मजदूरों को बाहर निकालने के लिए क्या-क्या किया?
41 मजदूर हैं, जो उत्तरकाशी के एक निर्माणाधीन सुरंग में 9 दिन से फंसे हुए हैं. ये बाहर कब आएंगे? नहीं पता. ये बाहर कैसे आएंगे? ये भी नहीं पता. बस उम्मीद लगातार बनी हुई है, और प्रयास लगातार जारी हैं. 12 नवंबर को सिल्कयारा और बरकोट को जोड़ने वाली निर्माणाधीन सुरंग धंस गई. इसमें 41 मजदूर फंस गए. ये मजदूर यूपी, झारखंड, उत्तराखंड, असम, बिहार, और हिमाचल से आते हैं. कौन हैं ये 41 मजदूर? हम बताते हैं-
राम सुन्दर, उत्तराखंड
गब्बर सिह नेगी, उत्तराखंड
पु्ष्कर, उत्तराखंड
सबाह अहमद, बिहार
सोनु शाह, बिहार
वीरेन्द्र किसकू, बिहार
सुशील कुमार, बिहार
दीपक कुमार, बिहार
मनिर तालुकदार, पश्चिम बंगाल
सेविक पखेरा, पश्चिम बंगाल
जयदेव परमानिक, पश्चिम बंगाल
विशेषर नायक, ओडिशा
राजू नायक, ओडिशा
धीरेन, ओडिशा
सपन मंडल, ओडिशा
भगवान बत्रा, ओडिशा
विश्वजीत कुमार, झारखंड
सुबोध कुमार, झारखंड
अंकित, यूपी
राम मिलन, यूपी
सत्यदेव, यूपी
सन्तोष, यूपी
जय प्रकाश, यूपी
अखिलेष कुमार, यूपी
मंजीत, यूपी
अनिल बेदिया, झारखंड
श्राजेद्र बेदिया, झारखंड
सुकराम, झारखंड
टिकू सरदार, झारखंड
गुनोधर, झारखंड
रनजीत, झारखंड
रविन्द्र, झारखंड
समीर, झारखंड
महादेव, झारखंड
मुदतू मुर्म, झारखंड
चमरा उरॉव, झारखंड
विजय होरो, झारखंड
गणपति, झारखंड
संजय, असम
राम प्रसाद, असम
विशाल, हिमाचल प्रदेश
आपने नाम सुने. अब जानते हैं प्रयासों के बारे में. कैसे बचाने के क्या प्रयास किए गए, जो असफल रहे? इसको समझने के लिए पहले सबसे छोटी-सी बात समझिए. सुरंग का जो मुहाना आपको खबरों में दिखाई दे रहा है, वो सिल्कयारा साइड का मुहाना है. उस मुहाने से अगर आप 200 मीटर चलकर अंदर जाएं, तो आपको मजदूर मिलेंगे. यही मजदूर, जो बार-बार गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें बचा लो. आप समझ लीजिए कि अंधेरा है. ठंड है. उन मजदूरों पर क्या बीत रही होगी? लेकिन ये 200 मीटर पार करना इतना आसान नहीं है. इस दूरी में बहुत सारा मलबा पसरा हुआ है. ऐसा पसरा है कि उसने सुरंग का मुंह लगभग बंद कर दिया है. लेकिन मजदूरों को बचाने के लिए जरूरी खाना पानी और जरूरी दवा मिले, इसके लिए किसी तरह टनल में एक चौड़ी-सी पाइप डाली गई. इस पाइप से कंप्रेशर की मदद से सामान अंदर भेजे जा रहे हैं. ऐसे समझिए कि एक सिरे से सामान रखकर प्रेशर से अंदर की ओर भेजा जा रहा है.
अब बचाव शुरू हो, इसके लिए प्रयास भी होने लगे थे. सबसे पहले सबसे फौरी तरीका अपनाया गया. एक्स्कवैटर मशीनों की मदद से मलबा हटाया जाने लगा. इसमें सफलता नहीं मिली. तो मलबे के भीतर आम तरीकों से ड्रिल किया जाने लगा. लेकिन सामने कठोर चीजें आईं. ज्यादा वाइब्रेशन होने लगा. और खुदाई कर रही ऑगर मशीन फंस गई. खबरों के मुताबिक, मशीन को रन किया गया तो और मलबा गिर गया. 15 नवंबर को इस ड्रिलिंग को इन दिक्कतों की वजह से रोकना पड़ा.
फिर कुछ देर नई रणनीति पर काम शुरू किया गया. नई रणनीति सामने आई 18 नवंबर की शाम. क्या है ये रणनीति? प्वाइंट्स में जानिए -
1 - Borders Road Organisation (BRO) - ये संगठन टनल साइट तक आने वाली सारी सड़कों को क्लीयर करेगा. साथ ही जिस पहाड़ी के नीचे सुरंग में मजदूर फंसे हुए हैं, उस पहाड़ी के ठीक ऊपर एक एरिया को साफ और तैयार करेगा.
2 - Rail Vikas Nigam Limited (RVNL) BRO द्वारा तैयार की गई इस साइट पर ऊपर से नीचे एक 6 इंच की पाइप डालेगा. यानी ड्रिल करके सुरंग को ऊपर की तरफ से खोदा जाएगा. इस पाइप की मदद से मजदूरों को खाना-पानी-दवा दी जाएगी.
3 - Sutluj Jal Vidyut Nigam (SJVNL)और Oil and Natural Gas Corporation (ONGC) मिलकर 6 इंच वाली पाइप के बराबर में एक और ड्रिल ऊपर से नीचे की ओर करेंगे. इसके लिए रेलवे की मदद से गुजरात और ऑडिशा से मशीनें भी मंगवा ली गई हैं.
4 - Tehri Hydro Development Corporation Limited (THDCL) सुरंग को बरकोट वाली साइड से हॉरिजॉन्टल खोदना शुरू करेगा. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की मानें तो इस साइड से मजदूरों तक पहुंचने में लगभग 483 मीटर की खुदाई करनी होगी.
5 - National Highways and Infrastructure Development Corporation Limited (NHIDCL) इस पूरे ऑपरेशन को मानिटर कर रहा है. साथ ही सिल्कयारा साइड से 200 मीटर की जो खुदाई चल रही है, NHIDCL इस खुदाई को चालू रखेगा. साथ ही टनल का जो भी ढांचा अभी मौजूद है, NHIDCL उस ढांचे को भी इन्टैक्ट रखने का प्रयास करेगा.
आपको ये बता दें कि ये वो एजेंसियां हैं, जिनके पास हेवी मशीनरी और मैनपावर का काम है. इनके अलावा सेना, NDRF और SDRF जैसे तमाम यूनिट्स लगातार राहत कार्यों में मदद के लिए मौके पर मौजूद हैं.
अब इस प्लान को छोटे में समझाएं तो ये सुरंग को तीन दिशाओं से खोदकर मजदूरों तक पहुंचने का प्लान है. अमूमन ऐसे कदम उन्हीं मौकों पर उठाए जाते हैं, जब ऑपरेशन में बहुत सारी दिक्कतें शामिल हों. जैसे अगर हम उत्तरकाशी और केंद्र सरकार के चारधाम परियोजना के अधीन बन रही इस सुरंग की बात करें तो सबसे पहले हम ये कहेंगे कि हिमालय के पहाड़ बहुत भंगुर हैं. कई पर्यावरणविद हिमालय को बहुत युवा पहाड़ कहते हैं. जो कई तरह के करवट ले रहा है. पहाड़ टूटता-बनता रहता है. कई जगह से पत्थर और मिट्टी गायब और कमजोर रहते हैं. मिट्टी के भुसभुसेपन, लैंडस्लाइड और कटाव से कोई भी ड्रिलिंग कमजोर पड़ सकती है. जमीन और धंस सकती है. लैंडस्लाइड फिर से हो सकता है. ऐसे में एक से ज्यादा बैकअप मौजूद रहने चाहिए. गोया एक प्लान फेल करे, तो अंदर पहुंचने के एक से ज्यादा रास्ते मौजूद रहें. बता दें कि इस पांच सूत्रीय प्लान पर 19 नवंबर की रात से काम शुरू हो चुका है.
इस बीच अच्छी खबर भी आई है. जो 6 इंच की पाइपलाइन डाली जानी थी, उस पाइपलाइन को डाले जाने का काम पूरा हो गया. NHIDCL के अधिकारियों ने बताया कि उस पाइप की मदद से मजदूरों से बात की जा रही है. अब तक उन्हें चना, मुरमुरा और ड्राई फ्रूट जैसी चीजें खाने के लिए दी जा रही थीं, लेकिन अब उन्हें पकाया हुआ खाना दिया जा सकेगा.
इंडिया टुडे के पत्रकार आशुतोष मिश्रा इस समय मौके पर मौजूद हैं. उन्होंने उन मशीनों को देखा और उनका मुआयना किया, जिनकी मदद से मजदूरों को बचाने की कोशिश की जा रही है. बचाव कार्य पर जानकारी देते हुए केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और जनरल वीके सिंह (रिटायर्ड) ने भी मीडिया से बात की. लेकिन बात सुरंग के बाहर खड़े परिजनों ने तमाम एजेंसियों और अधिकारियों पर लेटलतीफी के आरोप लगाए. ये भी कहा कि मजदूरों को बचाने की जगह एक्सपेरिमेंट किये जा रहे हैं.
लेकिन जाहिर है कि मजदूरों को बचाने के प्रयास जारी हैं. तमाम एजेंसियां पूरी शिद्दत से इस जुगत में लगी हुई हैं कि मजदूरों को सकुशल बाहर निकाला जा सके. और समय से निकाला जा सके. लेकिन अब इस प्रोजेक्ट को लेकर कुछ बातें होने लगी हैं. जैसे जब सुरंग बनाई जा रही थी, तो मजदूरों के लिए कोई एस्केप चैनल क्यों नहीं बनाया गया, ताकि किसी अनहोनी की स्थिति में मजदूर उस एस्केप चैनल से बाहर आ सकें? अब ये सवाल नितिन गडकरी के सामने रखा गया. तो पत्रकारों से नितिन गडकरी ने कहा कि जैसे जम्मू-कश्मीर में बनी एक टनल में एस्केप चैनल बनाया गया है, वैसे ही इस सुरंग में भी एस्केप टनल बनाए जाने की तैयारी थी लेकिन ये हादसा उससे पहले हइ हो गया
यानी इस चैनल को प्लान जरूर किया गया था, लेकिन बनाया नहीं गया. अगर ये टनल मौजूद होती तो क्या ये स्थिति होती? शायद नहीं. लेकिन उम्मीद है कि जल्दी ही मजदूरों को बहार निकाल लिया जाएगा. उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे मजदूरों से जुड़े तमाम अपडेट्स के लिए जुड़े रहे लल्लनटॉप के साथ.