उत्तर प्रदेश के कई जिलों की बत्ती गुल है. लखनऊ, प्रयागराज, बरेली, मेरठ, वाराणसी,देवरिया, गोरखपुर, चंदौली, आजमगढ़, मऊ, मिर्जापुर और नोएडा के भी कई हिस्से इसमेंशामिल हैं. समस्या सोमवार सुबह से शुरू हुई. मंगलवार सुबह तक भी कई जगह बिजली नहींआई. बत्ती नहीं तो पानी भी नहीं. लोगों ने बिजली विभाग को फोन खटखटाने शुरू किए.लेकिन वहां न तो फोन उठाने वाला कोई था, न उनकी समस्या हल करने वाला. कहां गए सारेबिजली कर्मचारी? हड़ताल पर. उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के करीब15 लाख कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी है. क्यों हैं हड़ताल पर? क्या मांग है? आइएजानते हैं.UPPCL और इसकी पांच डिवीज़नउत्तर प्रदेश में बिजली बांटने का काम करती है UPPCL. इसकी पांच डिवीज़न हैं.ये सूबे के ही अलग-अलग हिस्सों में बिजली वितरण का काम देखती हैं. 1. पूर्वांचलविद्युत वितरण निगम 2. पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम 3. मध्यांचल विद्युत वितरणनिगम 4. दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम 5. केस्को इनमें से एक डिवीज़न के निजीकरणका प्रस्ताव है- पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम. यह कंपनी पूर्वी उत्तर प्रदेश मेंबिजली आपूर्ति देखती है. इसके अंतर्गत आने वाले शहरों में प्रदेश के राजनीतिक रूपसे दो सबसे अहम शहर भी शामिल हैं- वाराणसी और गोरखपुर. बनारस पीएम मोदी का संसदीयक्षेत्र है तो गोरखपुर सीएम योगी का गृह क्षेत्र है.क्यों है निजीकरण का प्रस्तावउत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण कंपनियां काफी नुकसान में चल रही हैं. बिज़नेसस्टैंडर्ड की एक ख़बर के मुताबिक, मार्च-2020 तक पांचों वितरण कंपनियों का कुलनुकसान 800 करोड़ रुपए के आस-पास था. इस नुकसान से उबरने के लिए ही एक डिवीज़न केनिजीकरण की योजना लाई गई.हड़ताल क्यों है?हड़ताल इसीलिए है, क्योंकि कर्मचारी निजीकरण के पक्ष में नहीं हैं. विद्युतकर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के कन्वीनर अवधेश कुमार ने इकॉनमिक टाइम्स को बताया- ओडिशा, दिल्ली, औरंगाबाद, नागपुर, उज्जैन, ग्वालियर जैसे शहरों में निजीकरण कामॉडल फ्लॉप रहा है. बिजली विभाग का निजीकरण जनता के पक्ष में भी नहीं है, क्योंकिइससे बिजली महंगी होगी. इससे सिर्फ बिज़नेस घरानों को ही फायदा होगा. कर्मचारियोंको ये भी डर है कि निजीकरण के बाद वे अपनी नौकरी को लेकर भी पहले की तरह आश्वस्तनहीं रह पाएंगे.कर्मचारियों की मांगें क्या हैं?पहली मांग है कि बिजली विभाग में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं, मगर बिनाकर्मचारियों को विश्वास में लिए कोई निजीकरण न हो. कर्मचारी संगठन का कहना है किबिलिंग, कनेक्शन और उपभोक्ता सेवाओं में सुधार के लिए जो भी कदम उठाए जाएंगे, उसमेंवे सरकार के साथ हैं. निजीकरण के विरोध में कर्मचारियों ने काम का बहिष्कार तो अबकिया है, लेकिन इसका विरोध वे करीब महीने भर से कर रहे हैं. कर्मचारियों की एक औरमांग इसी से जुड़ी है. वे चाहते हैं कि इस पूरे आंदोलन के चलते किसी भी कर्मचारी केखिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न की जाए. हड़ताली कर्मचारियों का आरोप है किसरकार को कर्मचारी संगठनों के साथ 5 अप्रैल 2018 को हुए समझौते का पालन करना चाहिए.इस समझौते में प्रावधान था कि निजीकरण से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले सरकारकर्मचारियों को विश्वास में लेगी. लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हो रहा है.सरकार का क्या कहना है?ख़बर है कि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के हस्तक्षेप के बाद निजीकरण काप्रस्ताव फिलहाल वापस लिया जा सकता है. सरकार कर्मचारियों को ये भरोसा भी दिलानाचाह रही है कि बिना उनको भरोसे में लिए ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा. मंगलवार कोविद्युत कर्मचारी समिति, पावर कॉर्पोरेशन और सरकार के बीच बातचीत भी हुई. लेकिन कोईठोस नतीजा नहीं निकला और रजामंदी पर हस्ताक्षर नहीं हो सके. अधिकारियों का कहना हैकि ऐसे में उनका यह आंदोलन जारी रहेगा. बता दें कि बिजली कर्मचारियों की हड़ताल कीवजह से सोमवार को लखनऊ में डिप्टी सीएम, ऊर्जा मंत्री समेत करीब 36 मंत्रियों और150 विधायकों के घरों की बिजली भी गुल हो गई थी. आनन फानन में इसे बहाल कराया गयाथा.