घायल साथियों का इलाज और ऑपरेशन तक करती हैं चींटियां, एंटीबायोटिक भी बनाती हैं, विज्ञान समझ लीजिए
अमेरिका के फ्लोरिडा में चींटियों पर एक रिसर्च हुई है (Florida, US ant research). रिसर्च में देखा गया कि चींटी अपने साथियों के घाव साफ करती हैं. जरूरत पड़ने पर खराब पैर काट देती हैं. बताया जा रहा है, इंसानों के अलावा ऐसा करने वाले ये दूसरे जीव हैं.
तारीख थी 21 मई, 2020. फोर्ब्स में एक लेख छपता है, जिसमें एक दिलचस्प बात का जिक्र मिलता है. कहा जाता है कि 15 हजार साल पहले मिली एक टूटी हड्डी, मानव सभ्यता का पहला सबूत है. बताया जाता है कि ये हड्डी फीमर यानी कूल्हे और घुटने को जोड़ने वाली सबसे बड़ी हड्डी थी. दरअसल इस आदिम हड्डी का फ्रैक्चर टूट कर जुड़ चुका था. लेकिन ये कोई साधारण बात नहीं थी. बिना किसी मॉर्डन मेडिसिन के हड्डी जुड़ने में करीब 6 हफ्ते का समय लगता. उस समय पैर की टूटी हड्डी के साथ, अकेले किसी का बच पाना बेहद मुश्किल था.
कहा गया, ऐसा हो पाना इस बात का सबूत है कि किसी ने उस आदिम मानव की मदद की होगी. यानी सभ्यता की शुरुआत में, हम इंसानों ने दूसरों की मदद करना शुरू कर दिया था. खैर सभ्यता की शुरुआत या मदद का हाथ बढ़ना कब शुरू हुआ? इसमें सब कई मत हैं. लेकिन आज हम ये बात तो जानते हैं कि इंसानों में दूसरों की मदद करने का भाव तो है. लेकिन क्या इंसान ही इकलौते ऐसे हैं? चीटिंयों पर हुई एक हालिया रिसर्च कुछ और ही कहानी बता रही है.
‘डॉक्टर-डॉक्टर’ खेलती चींटियांहाल में नेचर जर्नल में एक और रिसर्च आई थी. जिसमें देखा गया था कि एक ओरांगुटान अपने घाव भरने के लिए पत्तियों का इस्तेमाल कर रहा था. माने जानवरों का इलाज करना कोई नई बात नहीं. लेकिन ये इलाज तो बस खुद के लिए था. अपनी प्रजाति के दूसरे जानवर के लिए ऐसा कुछ करना काफी कम देखा जाता है. एक तो हम इंसान ही हैं. जिनमें अब तक घायल साथियों की देखभाल करना देखा जाता रहा है. लेकिन 2 जुलाई, 2024 को करेंट बॉयोलॉजी जर्नल में छपी एक रिसर्च छपी है. जो इस फेहरिस्त में चींटियों का नाम भी जोड़ती नजर आ रही है.
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माने ये नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है. चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है. ये तो सोहन लाल द्विवेदी की कविता वाली बात हो गई. अब ये हालिया रिसर्च बता रही है कि ये नन्हीं चीटिंयां दाना ले जाने के अलावा, अपने साथियों की मदद करती हैं. उनका ‘इलाज’ भी करती हैं. कहें तो एक तरह का ‘ऑपरेशन’ तक करती हैं. भरोसा न हो रहा हो, तो पहले ये वीडियो देखिए. फिर जानते हैं, इस रिसर्च में क्या-क्या मेन चीजें थीं.
रिसर्च में कुछ ये बातें देखीं गईं-
- चींटियां साथी चींटियों के घायल पैर काट देती हैं, ताकि इंफेक्शन कम हो.
- पैर काटने से इनके बचने के चांस बढ़ गए.
- चींटियां अलग-अलग तरह के घावों में अंतर कर सकती हैं. उसी हिसाब से इलाज भी अपनाती हैं.
हम जानते हैं कि खुले घाव की वजह से इंफेक्शन का खतरा रहता है. युद्ध में गोलियों के अलावा, घावों के इंफेक्शन ने भी काफी जानें ली हैं. हम इंसानों ने तो एंटीबायोटिक बना लिए, लेकिन जानवरों के पास ये सुविधा न थी. पर इस खतरे से निपटने के कुछ उपाय कुदरत ने इन जीवों को दिए.
मसलन चींटियों की सोसायटी एक तरह के एंटीमाइक्रोबियल तरल का इस्तेमाल करती हैं. जो इनको इंफेक्शन से बचाने में मदद करता है. एंटीमाइक्रोबियल माने बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म जीवों से बचाने वाला. ये इनकी मेटाप्लूरल नाम की ग्रंथी से निकलता है. पर एक समस्या ये हुई कि विकास के क्रम में ये ग्रंथी, चींटियों की कुछ प्रजातियों में खो गई. जैसे फ्लोरिडा की ये कारपेंटर चींटियां (Camponotus floridanus). जिनमें इस रिसर्च के जरिए, ये जानने की कोशिश की जा रही थी कि आखिर बिना एंटीमाइक्रोबियल लेप के, ये चींटियां इंफेक्शन से कैसे बचती हैं. और जो बातें सामने आईं वो बहुत दिलचस्प थीं.
इस सब के बारे में जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ वर्ज़बर्ग के रिसर्चर एरिक टी फ्रैंक एक X पोस्ट में बताते हैं. एरिक लिखते हैं,
चींटियों में घावों की देखभाल करने का नया व्यावहार! यहां हम दिखा रहे हैं कि कैसे चींटियां घायल चींटियों के पैर काट देती हैं. (जीवों में पहला मामला) बहरहाल अंग काटना हमेशा सबसे बेहतर उपाय नहीं है. और चींटियों ने अपना इलाज इसी के मुताबिक ढाल भी लिया है.
बकौल एरिक 90% बार चींटियों ने घायल पैर को काट दिया. ये काफी कारगर भी रहा. इससे घायल चींटी के बचने के चांस 45% से 95% बढ़ गए, वो भी बिना किसी देखभाल के.
एरिक बताते हैं, सभी चींटियों की प्रजातियां ऐसा नहीं करती हैं. मेटाबेल चींटियों में मेटाप्लूरल ग्रंथी के लेप से इंफेक्शन से लड़ा जाता है. वहीं फ्लोरिडा की कारपेंटर चींटियां अंग काटकर इलाज करने को प्राथमिकता देती नजर आती हैं.
रिसर्च में एक बात और देखी गई. चींटियां पैर के ऊपरी हिस्से फीमर की चोट को, तो काटकर अलग करती थीं. लेकिन निचले हिस्से, टिबिया में लगी चोट में ऐसा नहीं किया गया. अनुमान लगाया गया कि फीमर के इंफेक्शन से बचाने लिए, अंग को काटना ज्यादा कारगर था. बजाय टिबिया के. इसे देखते हुए ही ये कहा जा रहा है कि चींटियों ने चोट के हिस्से के मुताबिक अपना इलाज भी चुना.
Livescience के मुताबिक, फ्रैंक बताते हैं कि चींटियां घाव भी पहचान सकीं. किस घाव में इंफेक्शन था किस में नहीं. इसी हिसाब से इन्होंने इलाज का तरीका अपनाया. जो इंसानों को टक्कर देने वाला था.
ये चींटियां काफी समझदार मालूम होती हैं. हैं भी, ये काफी सामाजिक जीव हैं. चलते-चलते आपस में दुआ-सलाम करते, इन्हें आपने देखा ही होगा. ये चींटियां कॉलोनी में रहती हैं. इनमें अलग-अलग चींटियों के अलग काम भी बंटे होते हैं. कुछ रानी चींटी होती हैं, जो अंडे देती हैं. कुछ प्रजातियों में ड्रोन चींटियां होती हैं, जिनका काम प्रजनन करना होता है. वहीं जो सबसे ज्यादा देखने मिलते हैं, वो होते हैं वर्कर. या कामकाजी चींटियां. इनका भी 9-5 ऑफिस होता होगा शायद. खैर ये बच्चों की देखभाल करती हैं, खाना जुटाने वगैरह का काम भी करती हैं.
समझ सकते हैं कि चींटियां भी अपने-अपने में काफी गुल खिलाती हैं. तमाम काम करती हैं. खैर चींटियों के इस ‘डॉक्टर व्यवहार’ के बारे में ये रिसर्च, इनके कामों में इसे भी जोड़ रही है. बाकी आगे कुछ नया कारनामा आएगा, तो हम आपको बताएंगे ही. आप भी हमें बताएं, चींटिंयों की ये अनोखी कहानी आपको कैसी लगी?
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