उड़ी आतंकी हमले और सर्जिकल स्ट्राइक की पूरी कहानी
उड़ी आतंकी हमले का ऐसे लिया था बदला!
ये दो तारीखों के दरमियान की कहानी है. 18 सितंबर 2016. सुबह 5 बजे का वक्त. लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ अपने क्वार्टर में सुबह की पहली चाय पी रहे थे कि तभी उनके फोन की घंटी बजी.
"सर उड़ी बेस पर हमला हुआ है. हालात बहुत गंभीर हैं".
दुआ, कश्मीर कोर कमांडर के जनरल ऑफिसर हुआ करते थे. अपनी किताब India’s Bravehearts: Untold Stories from the Indian Army में वे बताते हैं कि 18 सितंबर की वो तारीख़ उनकी ज़िंदगी की सबसे काली तारीख़ थी (Uri Terror Attack). हालांकि इसके कुछ रोज़ बाद एक और तारीख़ आई. 29 सितंबर, 2016. इस रोज़ दुआ के हाथ में चाय नहीं थी. ट्रे में एक मशहूर ब्रांड की एक बोतल रखी थी. सामने खड़े थे 9 पैरा और 4 पैरा स्पेशल फोर्स के वो कमांडो जो अभी अभी सरहद पार से एक ऑपरेशन को अंजाम देकर लौटे थे (Surgical strike 2016). दुआ ने सबसे मुख़ातिब होकर कहा,
"यूं तो मौसम बियर का है लेकिन टाइगर्स के लिए ज्यादा कड़क चीज़ की ज़रूरत होती है".
दुआ ने बोतल खोली. लेकिन साथ में गिलास नहीं थे. किसी ने गिलास के बारे में पूछा तो दुआ बोले,
"ये जवान जब जोश में होते हैं, तो व्हिस्की के साथ गिलास भी चबा जाते हैं".
इसके बाद दुआ ने एक-एक कर बोतल का घूंट सबके होंठों पर डाला. ये जीत का जश्न तो था ही. लेकिन साथ-साथ उन 19 जवानों को आखिरी श्रद्धांजलि थी. जो कुछ रोज़ पहले उड़ी आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त हुए थे. आज उनका बदला पूरा हो चुका था. आज हम सुनाएंगे कहानी उड़ी आतंकी हमले और उसके बाद भारतीय सेना द्वारा जवाबी कार्यवाही की. (Uri: The Surgical Strike)
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Uri पर कैसे हुआ हमला?कश्मीर का बारामुला ज़िला. यहीं पड़ता है उड़ी. पश्चिम में बहती झेलम और उत्तर में पीर पंजाल की पहाड़ियां. उड़ी से एक रोड भी निकलती है, जो हाजी पीर दर्रे से होते हुए पुंछ जिले तक जाती है. उड़ी लाइन ऑफ कंट्रोल से एकदम सटा हुआ है. और यहां LOC से महज़ 10 किलोमीटर दूर इंडियन आर्मी का ब्रिगेड हेडक्वार्टर बना हुआ है. यहीं सैनिक शिविर में जवान अपने टेंट्स में सोए हुए थे. कि अचानक उन पर ग्रेनेड की बारिश होने लगी. जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकी शिविर में घुस आए थे. वे लोग पूरी तैयारी के साथ आए थे. उनके पास AK-47 राइफल थी. और कमर में बंधी बेल्ट में ग्रेनेड लटके हुए थे. रातों रात इन लोगों ने बॉर्डर पर लगी तारबाड़ काटी. 10 किलोमीटर का रास्ता इस शातिर तरीके से पार किया कि किसी को खबर नहीं लगी. सुबह पांच बजे ये चारों आर्मी शिविर के पास अपनी पोजीशन ले चुके थे. (2016 Indian Line of Control strike)
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आतंकियों की प्लानिंग से ये भी पता चलता था कि मौके का चयन काफी सोच समझकर किया गया था. जिस रोज़ हमला हुआ, उड़ी में दो बटालियन मौजूद थीं. आर्मी में नियम है कि ऊंचाई वाली जगह पर हर दो साल में बटालियन बदली जाती है. डोगरा रेजिमेंट की दसवीं बटालियन के दो साल खत्म हो रहे थे. और बिहार रेजिमेंट की छठी बटालियन उनकी जगह लेने आ रही थी. हालांकि कुछ हफ़्ते तक दोनों बटालियन को साथ रहना था. ताकि नए जवानों को स्थानीय इलाक़ों और ज़रूरी ड्रिल्स से रूबरू कराया जा सके. इस कारण शिविर में आम दिनों से ज़्यादा सैनिक थे. और कई सैनिक टेंट शेयर कर रहे थे.
सुबह पांच बजे जब आतंकी हमला शुरू हुआ. अधिकतर जवान सो रहे रहे थे. आतंकियों ने टेंट्स की तरफ़ ग्रेनेड दागे. टेंट्स ने आग पकड़ ली. टेंट्स के बगल में एक ईधन का भंडार था. जहां तेल के पीपे रखे थे. खाने के तेल के अलावा वहां बहुत सारा केरोसिन रखा हुआ था, जो पीर पांजाल की चोटियों पर तैनात सैनिकों के लिए भेजा जाता था. आतंकियों ने एक ग्रेनेड ईंधन भंडार की तरफ़ फेंका. वहां एक ज़ोर का धमाका हुआ. और केरोसिन की आग चारों तरफ फैल गई.
आतंकियों ने एक ग्रेनेड कुकिंग हाउस की तरफ़ भी उछाला. वहां रखे एक सिलेंडर में ज़बरदस्त विस्फोट हुआ. जिसने नजदीक के दो टेंट्स पर असर डाला. आतंकी ग्रेनेड फेंकते जा रहे थे और साथ ही गोली चलाते जा रहे थे. उड़ी पर इससे पहले कभी ऐसी कोई वारदात नहीं हुई थी. इसलिए सब सकते में थे. जवानों ने जब तक मोर्चा संभाला, 18 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे. और 30 गंभीर रूप से चोटिल हो गए थे. इसके बाद जवानों ने कुल चार घंटे तक आतंकियों के साथ मुठभेड़ की. अंत में चारों आतंकी मारे गए.
जवाबी हमले की तैयारीये आतंकी हमला, भारतीय फौज पर हुआ अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला था. आतंकियों के पास मिले हथियार और GPS सेट साफ़ गवाही दे रहे थे कि हमला पाकिस्तान से शुरू हुआ था. आतंकी पाकिस्तान की ज़मीन से ट्रेन होकर आए थे. भारत में दुःख के साथ गुस्से का माहौल था. 21 दिसंबर 2016 को तत्कालीन विदेश सचिव एस. जयशंकर ने पाकिस्तान के हाई कमिश्नर अब्दुल बासित को समन किया. उन्हें बुलाकर उड़ी हमले में पाकिस्तान के शामिल होने के सबूत दिए. घटना की भरपूर निंदा की. लेकिन पाकिस्तान की सरकार और सेना ने इन सबूतों को मानने से इंकार कर दिया. इसी समय संयुक्त राष्ट्र महासभा का सत्र भी चल रहा था. यहां भी भारत ने उड़ी हमले का मुद्दा उठाया. हालांकि ये बात महज कूटनीति तक सीमित नहीं रही.
अपनी किताब, India’s Bravehearts में लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ लिखते हैं,
"उड़ी हमले के बाद सर्च टीम कई दिनों तक आसपास के जंगलों के तलाशी लेती रही. स्थिति काफी गंभीर थी. उड़ी के शिविर में लगी आग को बुझाने में ही काफ़ी वक्त लग गया था".
जनरल सतीश दुआ जब उड़ी में हालात संभाल रहे थे. उन्हें खबर मिली कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर वहां आ रहे हैं. दुआ लिखते हैं,
"मैं नहीं चाहता था कोई VIP वहां आए लेकिन जब रक्षा मंत्री पहुंचे, मैं उनकी सादगी देखकर काफी प्रभावित हुआ. वे उड़ी जाना चाहते थे. लेकिन स्थिति की नजाकत देखते हुए, मुझे उन्हें मना करना पड़ा.”
घटना के कुछ रोज़ बाद पर्रिकर ने सेना के अधिकारियों से एक मीटिंग की. जिसमें सतीश दुआ भी मौजूद थे. पर्रिकर ने दुआ से पूछा,
"आगे की क्या योजना है".
पर्रिकर पूछना चाह रहे थे कि उड़ी हमले का भारत को कैसे जवाब देना चाहिए? दुआ ने जवाब दिया,
"आप हां कहेंगे तो मैं कर दूंगा".
हालांकि करना क्या था ये बात अभी तक पक्की नहीं हुई थी. दुआ ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा,
“हम LOC के पार जाकर आतंकी ठिकानों को नष्ट करेंगे”
पर्रिकर ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. पर्रिकर समझ रहे थे की दुआ सर्जिकल स्ट्राइक की बात कर रहे हैं. लेकिन कब, क्या कैसे? ये सब तय करने में बहुत सी पेचीदगियों का ख्याल रखना ज़रूरी था. मसलन सेना की तैयारी कितनी है, पाकिस्तान कैसे रिएक्ट करेगा? पर्रिकर ये सब सोच ही रहे थे कि जनरल दुआ ने उनके आगे एक शर्त रख दी. दुआ बोले,
“सर, आतंकी कैंप पर हमला करेंगे लेकिन टार्गेट और टाइमिंग की ज़िम्मेदारी आप हमारे ऊपर छोड़ दीजिए.”
इसके बाद पर्रिकर ने दुआ से दो सवाल पूछे. पहला - कोई कोलेट्रल डैमेज तो नहीं होगा? पर्रिकर जानना चाहते थे कि सेना की कार्रवाई में आम लोगों को नुकसान तो नहीं होगा. दुआ ने रक्षा मंत्री को इसकी गारंटी देते हुए बताया कि वो लोग रिहायशी इलाकों से दूर रहेंगे. इसके बाद पर्रिकर ने अपना दूसरा सवाल पूछा. आशंका से भरे हुए पर्रिकर बोले,
“हमारा कोई जवान हताहत नहीं होना चाहिए”
इस पर जनरल दुआ ने एकदम शांत लहजे में कहा,
"सर ये युद्ध है. युद्ध में इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती".
ये जवाब सुनकर पर्रिकर एक बार फिर ख़ामोश हो गए. दुआ लिखते हैं,
"उनकी खामोशी देखकर मेरा दिल डूबने लगा था".
पर्रिकर की खामोशी टूटी. उनके मुंह से सिर्फ एक शब्द निकला - बरोबर. दुआ के लिए इतना जवाब काफ़ी था. सेना और सरकार के ऊपरी तलों पर डिस्कस होने के बाद दुआ को सीमा पार ऑपरेशन की इजाज़त दे दी गई. इसके बाद हुआ वो ऑपरेशन जिसका आधिकारिक तौर पर कोई नाम नहीं रखा गया था. और जिसे मीडिया ने सर्जिकल स्ट्राइक का नाम दिया. ऑपरेशन की तारीख कैसे चुनी गई, इसकी कहानी भी अपने आप में काफी दिलचस्प है.
सेना का बदलाजैसा पहले बताया उन्हीं दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा का सत्र चल रहा था. जिस वक्त हमला हुआ. 22 तारीख को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का भाषण हुआ. भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का भाषण 25 सितंबर को तय था. इसलिए सेना इतने दिन तक रुकी रही. 25 के बाद तीन दिन और इंतज़ार किया गया. दुआ लिखते हैं,
“हम चाहते थे पाकिस्तानी फौज को कोई भनक न लगे. इसलिए तीन दिन तक इंतज़ार के बाद 28 सितंबर की रात ऑपरेशन के लिए चुनी गई.”
दुआ के अनुसार ऑपरेशन को कोई कोड नेम नहीं दिया गया था. वो लिखते हैं,
“कोड नेम देने से लोगों को भ्रम हो जाता है कि चीज़ गुप्त हो गई है. लेकिन हम नहीं चाहते थे कोई इस ऑपरेशन का ज़िक्र भी करे. इसलिए ऑपरेशन को कोई नाम नहीं दिया गया”
किताब में दुआ बताते हैं कि उन्होंने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन तक देने से मना कर दिया था. जहां डायग्राम की ज़रूरत होती, वहीं बनाकर उसे मिटा दिया जाता. इसके बाद जब पूरी तैयारी हो गई, 28 सितंबर की आधी रात ऑपरेशन की शुरुआत हुई. पैरा स्पेशल फोर्सेज की दो टीम LOC पार कर पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके में दाखिल हुई. 4 पैरा ने कुपवाड़ा के नौगाम से सीमा पार की. वहीं 9 पैरा के जवान पुंछ से दाखिल हुए. एक ड्रोन साथ -साथ चल रहा था, जो इस पूरे ऑपरेशन की डायरेक्ट फ़ीड कमांड सेंटर तक पहुंचा रहा था. टीम ने पहले से सात आतंकी शिविरों की निशानदेही की थी. जो LOC से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थे.
जनरल दुआ अपनी किताब में बताते हैं, आगे बढ़ते हुए पूरी सावधानी का ध्यान रखा गया. एक जगह लीडर ने बताया कि आगे जाने के दो रास्ते थे. एक रास्ता छोटा था लेकिन वो एक गांव के नजदीक से होकर जाता था. एक दूसरा रास्ता भी था लेकिन वो लम्बा था. कमांड सेंटर में बहस छिड़ी कि कौन सा रास्ता चुनना चाहिए. दुआ लम्बे रास्ते को तरजीह दे रहे थे क्योंकि गांव वाले रास्ते में एक कुत्ता भी भौंक देता तो टीम की लोकेशन का पता चल सकता था. अंत में तय हुआ कि टीम लम्बे रास्ते से जाएगी. इसके बाद पूरा रास्ता पैदल पार कर टीम आतंकी शिविरों के नजदीक पहुंची. और वहां पहुंचते ही स्पेशल फोर्स के कमांडो तुरंत हरकत में आ गए .
शिविर के पास एक जगह पर डीजल और पेट्रोल जमा कर रखा गया था. एक रॉकेट लांचर से उस पर हमला किया गया. ज़ोर का धमाका हुआ और काफ़ी सारे आतंकी वहीं ढेर हो गए. जो बचे उन्हें भी स्पेशल फोर्सेस ने मार गिराया. कुल 35- 40 आतंकी मारे गए. यह सारा मिशन सिर्फ 25 कमांडो ने पूरा किया. इनके अलावा 150 कमांडो बैकअप और एक्स्ट्रा सपोर्ट के लिए LoC के पास रुके हुए थे. जो जरूरत पड़ने पर तुरंत सपोर्ट दे सकते थे. ऑपरेशन पूरा कर टीम सवेरा होने से पहले ही वापस लौट आई. सबसे अच्छी बात ये थी कि इस ऑपरेशन में भारत का कोई जवान हताहत नहीं हुआ. हालांकि दो जवान बारूदी सुरंग की चपेट में आने से जख्मी ज़रूर हुए थे.
सर्जिकल स्ट्राइक - ये नाम मीडिया ने दिया. 29 सितंबर की सुबह मीडिया को इस ऑपरेशन की खबर मिली. दुआ अपनी किताब में लिखते हैं,
“दिल्ली में बैठा हर शख़्स प्रेस कांफ्रेंस करने के लिए उतावला था. लेकिन उन्हें तब तक रोका गया. जब तक जवानों की गिनती पूरी नहीं हो गई”
इसके बाद मीडिया को बताया गया कि भारत ने LOC पार कर आतंकी ठिकाने को नष्ट कर दिया है. मीडिया ने छापा- सर्जिकल स्ट्राइक. और तभी से ये नाम प्रचलित हो गया. दुआ लिखते हैं,
"उड़ी में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों का दुख कभी काम नहीं होगा लेकिन LOC के पार किए उस ऑपरेशन से उन्हें तसल्ली हुई कि उन्होंने अपने साथियों का बदला ले लिया है".
दुआ लिखते हैं कि ऑपरेशन पूरा करने के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने उन्हें कॉल किया. दुआ को पर्रिकर का बोला 'बरोबर' याद था. वो एक शब्द जिसने ऑपरेशन को मंज़ूरी दे दी थी.ऑपरेशन खत्म होने के बाद भी पर्रिकर ने दुआ से सिर्फ एक शब्द कहा -'कांग्रेचुलेशन'.
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