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कहानी हर्षद मेहता की, जिसे एक जमाने में स्टॉक मार्केट का अमिताभ बच्चन कहा जाता था!

जिसके ऊपर हंसल मेहता ने वेबसीरीज 'स्कैम 1992'. बना डाली.

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हर्षद मेहता कांड के बाद ही सेबी का गठन हुआ था (फोटो क्रेडिट- AAJ Tak)
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Varun Kumar
11 अक्तूबर 2020 (Updated: 11 अक्तूबर 2020, 16:55 IST)
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शाहिद, अलीगढ़ और ओमेर्टा जैसी फिल्में बना चुके मशहूर निर्देशक हंसल मेहता की एक वेबसीरीज इन दिनों चर्चा में है. नाम है 'स्कैम 1992'. ये कहानी है हर्षद मेहता की. वही हर्षद मेहता जिनको एक जमाने में स्टॉक मार्केट का अमिताभ बच्चन कहा जाता था, वही हर्षद मेहता जिनके पास लक्जरी गाड़ियों का पूरा काफिला था. वही हर्षद मेहता जिन्होंने प्रधानमंत्री पर रिश्वत लेने का आरोप लगा दिया था. हर्षद मेहता की कहानी उस गुजराती लड़के की कहानी है जिसकी जेब तो खाली थी, लेकिन आखें सपनों से भरी थीं. सपना था दौलत की उस ऊंचाई को छूने का, जहां अभी तक कोई पहुंच नहीं पाया था. तो चलिए आपको कहानी सुनाते हैं हर्षद मेहता की जो कहलाता था स्टॉक मार्केट का बिग बुल.

1990 का दशक

90 का दशक बड़े बदलावों के साथ शुरू हुआ था. 1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया था. ये फैसला था नई आर्थिक नीति लागू करने का. देश के दरवाजे दुनिया के लिए खोल देने का. निजीकरण और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने का. कुल मिलाकर ये एक ऐसा दौर था, जहां लोग पैसे को लेकर कन्फ्यूज़ थे. ऐसे में सामने आया वो स्कैम जिसने देश भर को हिला दिया. 1992 का ये घोटाला कितना बड़ा था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके बाद शेयर बाजार के लिए सेबी नाम की नियामक संस्था बनाई गई.

हर्षद मेहता

अब बात करते हैं हर्षद शांतिलाल मेहता की. 29 जुलाई 1954 को हर्षद मेहता का जन्म गुजरात के राजकोट में हुआ था. उसका कुछ वक्त छत्तीसगढ़ के रायपुर में भी बीता. लेकिन उसकी किस्मत उसे ले आई सपनों के शहर में. मुंबई जो उस वक्त बंबई हुआ करता था. बीकॉम करने के बाद हर्षद ने एक बीमा कंपनी में सेल्स की नौकरी कर ली. लेकिन ना ये नौकरी हर्षद के लिए थी और ना हर्षद इस नौकरी के लिए. उसकी किस्मत में तो शायद कुछ और ही बनना लिखा था, कुछ और ही करना लिखा था. ये जो 'कुछ और' फैक्टर है ये हर्षद को खींच लाया शेयर के धंधे में. एक ब्रोकरेज फर्म में उसने नौकरी कर ली. इस फर्म के कर्ता धर्ता प्रसन्न परिजीवनदास को गुरु मान लिया और स्टॉक मार्केट के हर पैंतरे को बारीकी से सीखने लगा.

ऐसे बना 'बिग बुल'

1984 में उसने खुद की कंपनी शुरू की और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की मेंबरशिप ले ली. 80 का दशक खत्म हो रहा था, लेकिन हर्षद का जलवा बढ़ता जा रहा था. 90 का दशक आते आते हर अखबार में हर्षद छाया हुआ था, हर मैगजीन में उसकी तस्वीरें छपा करती थीं और बड़े-बड़े लोग उसके साथ मीटिंग के लिए तरसते थे. कहते हैं कि जब ऊपर वाला देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है. हर्षद के साथ भी ऐसा ही हो रहा था. नए लोग उसके जैसा बनना चाहते थे, पुराने लोग उसका नाम इज्जत के साथ लेते थे और सब यही जानना चाहते थे कि हर्षद मेहता का राज क्या है.

आखिर क्या था हर्षद मेहता का राज़

हर्षद वो पारस पत्थर था कि जिस शेयर को छूता था वो सोने का हो जाता था. हर्षद की वैल्यू स्टॉक मार्केट में कोहिनूर से भी ज्यादा थी. लेकिन हर्षद मेहता का राज़ समझने के लिए समझना होगा उसके काम करने का तरीका. एसीसी के शेयर में जब उसने दिलचस्पी ली तो वो 200 रुपये का था, लेकिन थोड़े ही वक्त में इसी शेयर की कीमत 9 हजार तक पहुंच गई. सोचिए वो कौन सा राज था जिसके खुलने पर देश का बैंकिंग सिस्टम हिल गया था? वो ऐसा क्या करता था कि शेयर बाजार के होश उड़ गए थे? और वो शख्स कौन था जिसने ये खुलासा किया था?

पत्रकार ने किया पर्दाफाश

टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार सुचेता दलाल ने हर्षद का भांडा फोड़ा था. बाद में उन्होंने देबाशीष बासु के साथ मिलकर इस पूरे प्रकरण पर ‘द स्कैम’ नाम की किताब भी लिखी थी. सुचेता बहुत वक्त से इस स्टोरी के तारों को खंगाल रही थीं, लेकिन उनको कामयाबी मिली 1992 में. उन्हें पता चला कि मेहता, बैंक से 15 दिनों के लिए लोन लेता है और अगले 15 दिन में इस पैसे को वापस कर देता है. मजेदार बात ये है कि कोई बैंक 15 दिन के लिए लोन नहीं देता.

यहां हर्षद की ट्रेनिंग काम आ रही थी जो उसने शुरुआती दिनों में सीखी थी. उसकी बैंकिंग सिस्टम में अच्छी जान पहचान थी. बैंकों को जब कैश की जरूरत होती है तब वो सरकारी बॉन्ड दूसरे बैंक के पास गिरवी रख कर पैसे लेते. लेकिन असलियत में बॉन्ड का लेनदेन नहीं होता, बल्कि एक रसीद से काम चल जाता है. ये काम बिचौलियों के जरिए किया जाता है. हर्षद मेहता ने सिस्टम की इसी नब्ज को दबोच लिया था. और इसके बाद उन्हें शेयर बाजार में पैसा लगाने के लिए रुपयों की कमी नहीं पड़ी.

उन्होंने दोनों हाथों से इसी पैसे को बाजार में लगाया और करोड़ों का मुनाफा कमाया. ये रकम कितनी थी कोई ठीक से नहीं जानता, लेकिन जिस ठाट-बाट के साथ हर्षद रहते थे और जिस अंदाज के साथ जीते थे वो बहुत लोगों की आखों में चुभने भी लगा था. कहते हैं कि बुरा वक्त बता कर नहीं आता. ऐसा ही कुछ हुआ हर्षद के साथ भी. शायद उसे इसकी कोई उम्मीद नहीं थी और ना ही उसने इस बुरे वक्त के लिए तैयारी की थी.

लगातार बढ़ता जा रहा था शेयर बाजार

शेयर बाजार लगातार ऊंचाई छू रहा था और साथ ही हर्षद मेहता का जलवा भी बढ़ता जा रहा था. ये वो वक्त था जब देश की अर्थव्यवस्था बदलाव के दौर से गुजर रही थी. निजीकरण और विदेशी निवेश बढ़ रहा था. देश बदलाव की राह पर कदम बढ़ा चुका था. जब तक बाजार बढ़ता रहा, मेहता का जलवा भी बढ़ता रहा, लेकिन एक वो दिन आया जब शेयर बाजार धड़ाम हो गया. मेहता बैंकों को पैसा लौटा नहीं पाए और तब जाकर खुला ये 'हर्षद मेहता कांड'. इस मामले के बाद न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख छपा था जिसमें बिजनेस टुडे के लेखक देबाशीष बासु ने कहा था,"समस्या मेहता नहीं है. ये भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास का वो अनोखा वक्त है जब पुराने पन्नों को फाड़ा जा रहा है. ऐसे पलों में घोटालेबाज अपने खोल से बाहर निकल ही आते हैं."

अर्श से फर्श पर

सुचेता दलाल की कलम ने वो कर दिया था जिसे कभी हर्षद से जलने वाले भी नहीं कर पाए थे. दलाल स्ट्रीट से लेकर संसद तक में इस घोटाले की चर्चा होने लगी थी. बात बढ़ी तो मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाई गई. सीबीआई ने हर्षद के साथ उसके दोनों भाइयों अश्विन और सुधीर को भी गिरफ्तार कर लिया. 72 आपराधिक मामले और 600 से ज्यादा दीवानी मामले हर्षद के खिलाफ दर्ज हो चुके थे.

इसके बाद वो हुआ जो देश के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था. मेहता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि उसने पीएम नरसिम्हा राव को एक करोड़ की रिश्वत दी थी. कांग्रेस और राव ने आरोपों को नकार दिया. इसका कभी कोई सुबूत भी नहीं मिला. लेकिन इस मामले ने नरसिम्हा राव की बहुत किरकिरी की, क्योंकि इसी दौरान उन पर अपनी सरकार बचाने के लिए जेएमएम सांसदों को रिश्वत देने के भी आरोप लगे थे.

ऐसे डूबा मेहता का टाइटैनिक

जमानत मिलने के बाद मेहता ने फिर से अपना धंधा शुरू कर लिया था. एक के बाद एक केस में उसे जमानत मिल रही थी. ऐसा लगने लगा था कि दिन फिर से बदल जाएगे. लेकिन 2001 में उसे फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया जहां 31 दिसंबर 2001 को उसकी दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

आरबीआई की जनाकिरामन समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1992 का ये घोटाला 4025 करोड़ का था. इसमें सबसे बड़ा मामला एसबीआई के साथ किए गए 600 करोड़ के फ्रॉड का था. कहते हैं कि जब वो कोर्ट में पेशी पर जाया करता था तब भीड़ उसके पक्ष में नारेबाजी करने के लिए जमा हो जाती थी.

इस मामले का खुलासा करने वाली पत्रकार सुचेता को 2006 में पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा गया था. अपने ब्लॉग के एक लेख में सुजाता लिखती हैं,

"मेहता के साथ दिक्कत ये थी कि उसने कभी अपना फॉर्मूला नहीं बदला. वो इस बात को भांपने में नाकाम रहा कि उसका पुराना जादू अब इन्वेस्टर्स पर असर नहीं कर रहा है. वो हमेशा दिखावे की दुनिया में जीता था. एसबीआई कांड सामने आने के बाद उसने मुंबई चिड़ियाघर में भालू को मूंगफली खिलाते हुए एक फोटोशूट कराया था. इसके जरिए वो ये दिखाना चाहता था कि शेयर मार्केट हमेशा उसके इशारों पर चलेगा."

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