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योगी सरकार ने हत्या के दोषी BJP नेता उदयभान करवरिया की सजा माफ की, लेकिन क्यों?

उदयभान करवरिया इलाहाबाद के बारा विधानसभा सीट से दो बार विधायक रहे हैं. और इलाहाबाद के ब्राह्मण वोटर्स में करवरिया परिवार का खासा प्रभाव माना जाता है.

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उदयभान करवरिया जेल से बाहर आ गए हैं. (इंडिया टुडे)
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आनंद कुमार
26 जुलाई 2024 (Updated: 27 जुलाई 2024, 16:05 IST)
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13 अगस्त 1996. इलाहाबाद का सिविल लाइन्स इलाका. एक सफेद मारुति और उसके ठीक पीछे टाटा सूमो चल रही थी. पैलेस टॉकीज के पास सफेद टाटा सिएरा ने मारुति को ओवरटेक किया. मारुति के ड्राइवर गुलाब यादव को अनहोनी की आशंका हुई. लेकिन वो कुछ करते तब तक उनके बगल की लेन में एक और मारुति वैन उनके बराबर चलने लगी. और फिर आगे चल रही टाटा सिएरा अचानक से रुक जाती है. अब गुलाब यादव के पास कोई ऑप्शन नहीं था. बगल की लेन वाली मारुति वैन से चार लोग उतरे. और सामने वाली टाटा सिएरा से एक और शख्स उतरा. इनके पास रायफल, रिवॉल्वर और एके-47 जैसे हथियार थे. हाथ में एके-47 थामे एक शख्स ने आवाज लगाई बाहर निकलो जवाहर पंडित (जवाहर यादव). इसके बाद सिविल लाइन्स गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. आधे घंटे में जवाहर पंडित के शरीर में दस गोलियां धंस चुकी थी. साथ बैठे कल्लन और गुलाब यादव को भी गोलियां लगीं. गुलाब और जवाहर पंडित मौके पर ही दम तोड़ गए. जबकि कल्लन यादव घायल हो गए.  जवाहर तब समाजवादी पार्टी के विधायक थे. 

जवाहर यादव के भाई सुलाकी यादव की तहरीर पर बीजेपी के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया, बसपा के पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया, श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी को इस हत्याकांड का आरोपी बनाया गया. 4 नवंबर 2019 को इस हत्याकांड में फैसला आया. चारों दोषियों को सश्रम उम्रकैद और 7.20 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई. अब योगी सरकार ने इस मामले में सजायाफ्ता उदयभान करवरिया की समय से पहले रिहाई का फैसला किया है. यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने राज्य सरकार के इस फैसले पर मुहर लगा दी है. इस आदेश के बाद एक तरफ यूपी सरकार पर सवाल उठने शुरु हो गए हैं. वहीं, दूसरी तरफ यूपी और खासकर इलाहाबाद की सियासत में इस फैसले के मायने भी निकाले जाने लगे हैं.

25 जुलाई की सुबह उदयभान करवरिया इलाहाबाद की नैनी जेल से रिहा हो गए. राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने प्रयागराज के SSP, DM और उनकी दया याचिका समिति की सिफारिश पर उदयभान की रिहाई का आदेश दिया. इसमें कहा गया था कि जेल में उनका आचरण “सर्वोच्च स्तर” का है.

19 जुलाई 2024 को यूपी के जेल प्रशासन और सुधार विभाग के सचिव कृष्ण कुमार ने छूट का आदेश जारी किया. बताया गया कि 31 जुलाई 2023 तक उदयभान ने आठ साल, तीन महीने और 22 दिन जेल में बिताए हैं.

जवाहर पंडित की पत्नी का विरोध

उदयभान करवरिया की रिहाई के खिलाफ मृतक जवाहर यादव की पत्नी विजमा यादव सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है. विजमा प्रतापपुर से सपा की विधायक हैं. उनका कहना है,  

“जब तक हम अपने पति के हत्यारे को सजा नहीं दिला लेते. तब तक पीछे नहीं हटेंगे. प्रदेश सरकार को इस निर्णय से पहले सोचना चाहिए था. 1996 में सिविल लाइंस में मेरे पति की हत्या हुई थी. अब उस हत्यारे को छोड़ दिया गया है. इसके लिए मैं आगे लड़ाई लड़ती रहूंगी.”

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विजमा यादव. (फोटो- इंडिया टुडे)

उन्होंने आगे कहा कि अगर हत्या करके आजीवन कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति का आचरण इतना अच्छा हो जाता है तो ऐसे में सारे कैदियों को रिहा कर देना चाहिए. विजमा ने सवाल उठाया कि इनका परिवार कई पीढ़ी से अपराध में लिप्त है. ऐसे व्यक्ति का जेल में आचरण कैसे अच्छा हो सकता है.

योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह दूसरा मौका है जब किसी सजायाफ्ता नेता को सजा से छूट मिली है. इससे पहले पूर्व मंत्री और बीएसपी नेता अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को भी सजा में छूट दी गई थी. त्रिपाठी दंपती को 2003 में कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था.

अमरमणि त्रिपाठी के बाद उदयभान करवरिया की रिहाई से अब यूपी सरकार के ‘सुशासन’ और ‘अपराध मुक्त उत्तर प्रदेश’ के दावों पर सवाल उठ रहे हैं. इस मामले में यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने दी लल्लनटॉप को बताया,

“जनहित में किसी भी बाहुबली या अपराधी का ज्यादा से ज्यादा सलाखों के पीछे रहना जरूरी है. क्योंकि बाहुबली एक तो मुश्किल से गिरफ्तार होते हैं. और उससे भी ज्यादा मुश्किल से उनको सजा मिलती है. और ऐसा कौन सा जनहित सिद्ध होता है कि उन्हें समय से पहले रिहा किया जा रहा है. कोई भी बाहुबली समय से पहले छूटता है तो मेरे अपने संदेह और प्रश्न हैं. और इस फैसले पर मैं प्रश्नचिन्ह लगाना चाहता हूं. ये असाधारण और असामान्य कृपा अवांछित है. और गैर-जरूरी है. नहीं होनी चाहिए. खासकर करवरिया की बात करें तो इसने सबसे पहले इलाहाबाद में एके-47 का प्रयोग किया था. इसके पुराने केस खोल कर इसकी सजा और बढ़ानी चाहिए थी.”

उदयभान करवरिया की रिहाई को लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद, कौशाम्बी और फतेहपुर क्षेत्र में बीजेपी के खराब प्रदर्शन से जोड़कर देखा जा रहा है. प्रयागराज क्षेत्र की पांच सीटों पर हुए चुनाव में पार्टी चार सीटें हार गई. इसमें इलाहाबाद, कौशाम्बी, प्रतापगढ़ और फतेहपुर शामिल है. बीजेपी केवल फूलपुर सीट ही बरकरार रख पाई. उदयभान की रिहाई के फैसले पर राज्य के सीनियर पत्रकार परवेज अहमद बताते हैं,

“राजनीति में हमेशा सीधा फायदा नहीं देखा जाता. यहां परसेप्शन और संकेतों की राजनीति होती है. जाहिर सी बात है वहां (इलाहाबाद) बीजेपी का एक कैंडिडेट हारा लोकसभा चुनाव में. और वो सबसे ज्यादा पिछड़ा मेजा विधानसभा क्षेत्र में जो कि ब्राह्मण बहुल है. और वहां करवरिया परिवार का काफी प्रभाव माना जाता है. इलाहाबाद की राजनीति ब्राह्मण बनाम यादव, मुसलमान के त्रिकोण में घूमती है. और इसमें एक ध्रुव करवरिया परिवार है. और वो लंबे समय से बीजेपी की राजनीति करते आ रहे हैं. जाहिर सी बात है वो छूट गए हैं. तो बीजेपी के लिए काम करेंगे. और फूलपूर में उपचुनाव होने हैं. जहां ब्राह्मण वोटर्स की संख्या ठीक ठाक है. तो इसका लाभ बीजेपी को मिलेगा.”

ये भी पढ़ें - जब जवाहर पंडित ने करवरिया बंधुओं के सीने पर रायफल तान दी थी

दी प्रिंट से जुड़ी शिखा सिलारिया की रिपोर्ट के मुताबिक, करवरिया की रिहाई से प्रयागराज क्षेत्र में एक समानांतर सत्ता का केंद्र विकसित होने की संभावना है. वर्तमान में योगी आदित्यनाथ सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य प्रयागराज इलाके में बीजेपी का चेहरा हैं. मौर्य द्वारा ‘संगठन सरकार से बड़ा है’ और आरक्षण पर सीएम के विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखने जैसे मामलों के सामने आने के बाद, करवरिया की रिहाई को बीजेपी के नेता भी सीएम और उनके डिप्टी के बीच ‘शीत युद्ध’ में एक और चिंगारी के रूप में देख रहे हैं.

दी प्रिंट से बातचीत में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि उदयभान करवरिया एक दबंग व्यक्ति हैं. जिनके परिवार का प्रयागराज क्षेत्र में वर्चस्व है. लेकिन उनके और मौर्य के बीच कोई दोस्ती नहीं है. करवरिया की रिहाई से क्षेत्र में उनकी ताकत और बढ़ेगी, जो मौर्य को पसंद नहीं आएगा. करवरिया की रिहाई से आदित्यनाथ ने मौर्य को संदेश दिया है.

वहीं, इलाहाबाद से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार मनोज तिवारी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं कि करवरिया मौर्य को कोई चुनौती दे पाएंगे. मनोज तिवारी ने कहते हैं, 

“मौर्य और करवरिया एक समय बीजेपी में साथ रहे हैं. और दोनों की प्रतिद्वंदिता भी रही है. लेकिन मौर्य अब इस होड़ में काफी आगे निकल चुके है. केशव प्रसाद मौर्य राज्य के डिप्टी सीएम हैं. प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. और सबसे बड़ी बात केंद्रीय नेतृत्व के कृपापात्र हैं. तो अब करवरिया उनके लिए कोई मुश्किल खड़ी कर पाएंगे, इसकी संभावना कम ही दिखाई पड़ती है.”

उदयभान की रिहाई को ब्राह्मण वोटर्स को साधने की कवायद से भी मनोज तिवारी असहमत नजर आते हैं. उनके मुताबिक प्रयागराज क्षेत्र में बीजेपी हारी जरूर, लेकिन ब्राह्मण तो बीजेपी के साथ ही रहे हैं. और उदयभान करवरिया भी पहले से बीजेपी में रहे हैं. मनोज आगे कहते हैं कि उदयभान बीमार रहते हैं और वे अपनी पत्नी को लीवर डोनेट करने वाले हैं. इन दोनों बातों के आधार पर उनको रिहाई मिली.

तीन पीढ़ी में बना साम्राज्य

करवरिया परिवार पिछले 5 दशकों से राजनीति में है. उनके दादा जगत नारायण करवरिया 1967 में सिराथू विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे. लेकिन सफलता नहीं मिली. उनके मंझले बेटे भुक्खल महाराज ने भी इलाहाबाद उत्तरी और दक्षिणी से किस्मत आजमाई. लेकिन असफल रहे. जीत हासिल हुई परिवार की तीसरी पीढ़ी को. भुक्खल महाराज के मंझले बेटे उदयभान करवरिया पहली बार कौशांबी जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने. फिर साल 2002 में इलाहाबाद की बारा सीट से बीजेपी के टिकट पर विधायक बने. उन दिनों इलाहाबाद के सांसद थे मुरली मनोहर जोशी. उदयभान उनके सबसे खास लोगों में थे.

2007 में भुक्खल महाराज के छोटे बेटे सूरजभान करवरिया एमएलसी बने. इधर, 2007 के चुनाव में उदयभान फिर विधायक बने. इलाहाबाद की 12 विधानसभा सीटों में केवल बारा सीट पर ही कमल खिला था. और उदयभान क्षेत्र में बीजेपी के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे. 2009 के चुनाव में उनके भाई कपिलमुनि करवरिया ने भाजपा से लोकसभा का टिकट मांगा. मगर बात नहीं बनी. फिर कपिलमुनि ने बीजेपी छोड़ बसपा का दामन थामा. फूलपुर से हाथी के निशान पर चुनाव लड़े और संसद पहुंचे. 

2012 में बारा विधानसभा सीट सुरक्षित हो गई. तो उदयभान को इलाहाबाद उत्तरी से चुनाव लड़ना पड़ा. लेकिन कांग्रेस के अनुग्रह नारायण सिंह से हार मिली. 2012 में राज्य में सपा की सरकार बनी. जवाहर पंडित हत्याकांड की सुनवाई में तेजी आई. 2013 में हाई कोर्ट ने मामले की कार्यवाही से स्टे हटाया. और उदयभान की गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया. उदयभान दो महीने फरार रहे. फिर 1 जनवरी 2014 को सरेंडर किया.

बाद में कपिलमुनि और सूरजभान भी जेल गए. 2014 में उदयभान तो टिकट नहीं पाए. लेकिन कपिलमुनि को बसपा ने फिर से फूलपुर से उतारा. इस बार हार मिली. जीते केशव प्रसाद मौर्य. 2017 में उदयभान की पत्नी नीलम को बीजेपी ने मेजा विधानसभा से टिकट दिया. और वो मेजा से पहली बार बीजेपी को जितवाने में सफल रहीं. लेकिन 2022 में नीलम करवरिया को हार का सामना करना पड़ा.

वीडियो: CJI इलाहाबाद के दिनों को याद कर सीएम योगी ने कौन सा किस्सा सुनाया?

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