आज से ठीक 15 साल पहले डेब्यू करने वाले महेंद्र सिंह धोनी अब अपने करियर के आखिरीपड़ाव में हैं.--------------------------------------------------------------------------------पहला आईपीएल. साल 2008. चेन्नई सुपर किंग्स और कोलकाता नाईट राइडर्स पहली बार एकदूसरे से मुखातिब थीं. कोलकाता ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग करनी चाही. कट टू लास्टओवर. बीसवें ओवर की पांचवीं गेंद. वर्ल्ड टी-20 2007 के फाइनल के हीरो जोगिन्दरशर्मा एक बार फिर इनिंग्स का आखिरी ओवर फेंक रहे थे. इनिंग्स की सेकण्ड लास्ट बॉल.इन स्विंगिंग यॉर्कर. लेग स्टम्प के भी बाहर. लेकिन बैट्समैन लक्ष्मीरतन शुक्ला खुदलेग स्टम्प पर रूम बना रहे थे, लिहाज़ा गेंद ब्लॉक होल में पड़ी. बल्ला तक नहीं लगा.कई मायनों में अच्छी गेंद. खासकर डेथ ओवर में. नॉन स्ट्राइकिंग एंड पर खड़े इशांतशर्मा बाई का रन चुराना चाहते थे. जाने क्यूं आखिरी गेंद वो खेलना चाहते थे. दौड़पड़े. शुक्ला ने पहली चार गेंदों में ग्यारह रन बनाये थे. आत्मविश्वास से भरे थे.इशांत को वापस जाने को कहा. मगर इशांत के पलीते में आग लग चुकी थी. अब वो न रुकनेवाले थे. अगले ही पल दोनों बल्लेबाज बैटिंग एंड पर खड़े एक दूसरे का मुंह ताक रहेथे. धोनी ने विकेट के पीछे गेंद पकड़ी और उसे जोगिन्दर के पास फेंक दिया. और साथ हीएक इशारा किया. रुक जाने का. ऐसा शायद पहली बार देखा गया था. कि कोई कप्तान रन आउटन करने के लिए कह रहा हो. इशांत ये सोचकर पवेलियन जाने लगे कि वो आउट हो चुके हैं.क्यूंकि शुक्ला ने तो अपनी क्रीज़ ही नहीं छोड़ी थी. इसी बीच लक्ष्मीरतन शुक्ला इशांतको समझाने के लिए आगे बढ़े. उधर उन्होंने इशांत की पीठ पर थपथपाते हुए कुछ कहा औरइधर धोनी ने जोगिन्दर को इशारा किया - "अब मारो." जोगिन्दर ने गिल्लियां उड़ा दीं.धोनी ने अपील की. अपील के दौरान अम्पायर को साफ़-साफ़ कहा कि अपील इशांत के आउट होनेके लिए नहीं बल्कि लक्ष्मीरतन शुक्ला के लिए है. धोनी ने उस पल तक के लिए इंतज़ारकिया जब लक्ष्मीरतन अपनी भूल से क्रीज़ से बाहर आ जाये. धोनी जानते थे कि शुक्ला ऐसीभूल करेगा. उसने की भी. अंपायर ने लक्ष्मीरतन शुक्ला को आउट दे दिया. आखिरी गेंदसचमुच इशांत ने ही खेली. https://youtu.be/dyNzWMVmvIM?t=3m23s इस विकेट में धोनीकी ताक़त मालूम पड़ती है. इंसानी फ़ितरत को पढ़कर उसे क्रिकेट के खेल में अप्लाई करनेकी ताक़त. फिर वो चाहे वर्ल्ड कप फाइनल में खुद युवराज से आगे बैटिंग करने का फ़ैसलाहो या बांग्लादेश के खिलाफ़ बैंगलोर में पंड्या से शॉर्ट-ऑफ़-द-लेंथ गेंद फिंकवा करमुस्तफीज़ुर को रन आउट करने का मामला हो. धोनी का मामला ऐसा है कि गेम को खेला कम औरपढ़ा ज़्यादा. हमें कम्पेयर करने में बहुत मज़ा आता है. तो उस हिसाब से भी अगर देखेंतो पायेंगे कि धोनी इंडियन क्रिकेट के शक्तिमान हैं. क्यूंकि होता है जब आदमी कोअपना ज्ञान कहलाये वो, शक्तिमान!! और यकीनन, धोनी को अपना ज्ञान हो चुका है. एक दिनअचानक, सीरीज़ के बीचों-बीच, बस यूं ही धोनी ने कह दिया कि मैं टेस्ट मैचों सेसंन्यास ले रहा हूं. बस ऐसे ही बता दिया. कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं, कोई हो हल्लानहीं, कोई जश्न नहीं, कोई मातम नहीं. बस ऐसे ही कह दिया. जैसे टेस्ट क्रिकेट न होघर के बगल में बने पार्क में क्रिकेट खेलना हो. लेकिन धोनी के क्रिकेट के किसी एकफॉरमैट से जाने की बजाय उनके क्रिकेट में आने की कहानी ज़्यादा दिलचस्प है.मेटलर्जिकल और इंजीनियरिंग के एक प्लांट में मामूली से पम्प ऑपरेटर का 17-18 साल काबेटा जब साइकल के हैंडल में अपना किटबैग बांधकर प्रैक्टिस करने पहुंचता था तो लोगउसे 'बहुत कर्रा मारने वाला लड़का' के नाम से जानते थे. टेनिस बॉल क्रिकेट में रांचीऔर आसपास के इलाकों में भरपूर नाम कमा चुका धोनी इस उम्र तक ये तय नहीं कर पाया थाकि उसे जिंदगी भर क्रिकेट ही खेलना है. चूंकि क्रिकेट को करियर ऑप्शन बनाना पैसोंके लिहाज़ से एक महंगा फ़ैसला साबित होता है, धोनी के सामने क्रिकेट के साजो-सामान कीभी एक मुश्किल खड़ी थी. इस मुश्किल में साथ दिया छोटू भइय्या ने. छोटू भइय्या रांचीमें प्राइम स्पोर्ट्स नाम की एक दुकान चलाते थे. उन्होंने ही जालंधर की BAS नाम कीकंपनी से धोनी को उसका पहला कॉन्ट्रैक्ट दिलाया. अब धोनी को पूरी किट कंपनी की ओरसे मिलती थी. 2001 की शुरुआत में ही दिलीप ट्रॉफी के लिए धोनी को ईस्ट ज़ोन के लिएचुना गया. धोनी इस टूर्नामेंट में कैसे भी खेलना चाहता था क्यूंकि उस सीज़न में सचिनतेंदुलकर भी खेल रहे थे. लेकिन सेलेक्शन के बावजूद धोनी तक खबर नहीं पहुंची. ये वोसमय था जब मोबाइल फ़ोन इतनी भरपूर मात्रा में उपलब्ध नहीं थे. साथ ही बिहार क्रिकेटअसोसिएशन ने धोनी तक उसका सेलेक्शन लेटर ही नहीं पहुंचाया था. धोनी को अपनेसेलेक्शन के बारे में मालूम चला अपने दोस्त परमजीत से. वो कोलकाता में रहता था औरअखबार में धोनी के सेलेक्शन की खबर सुनकर उसने धोनी के घर फ़ोन मिला दिया. फ़ोन आयारात के आठ बजे. और अगले चौबीस घंटों के भीतर ईस्ट ज़ोन की टीम को कलकत्ता से अगरतलाके लिए उड़ान भरनी थी. रांची से कलकत्ता जाने वाली सभी ट्रेनें जा चुकी थीं. अगलेदिन ट्रेन पकड़ने का मतलब साफ़ था - फ्लाइट छूट जाती. यहां फिर से से काम आये छोटूभइय्या. उन्होंने बिहार क्रिकेट असोसिएशन से एक कार मांगी जिससे धोनी को कलकत्तापहुंचाया जा सके. लेकिन असोसिएशन ने साफ़ इनकार कर दिया. छोटू भइय्या फायर हो चुकेथे. उन्होंने खुद पैसे इकठ्ठा किये. थोड़े पैसे गौतम गुप्ता ने भी दिए और इन दोनोंने मिलकर एक टैक्सी बुक की. कलकत्ता के लिए. धोनी को साथ बिठाया और चल पड़े. लेकिनहाय री किस्मत! किस्मत के धनी कहे जाने वाले धोनी की टैक्सी बीच रास्ते में ही खराबहो गयी. धोनी की फ्लाइट मिस हो गयी. उसकी जगह दीपदास गुप्ता ने मैच में खेला.हालांकि धोनी अगले मैच के लिए पुणे ज़रूर पहुंचे. वहां वेस्ट ज़ोन को सचिन तेंदुलकरने बड़े मार्जिन के साथ जिताया. धोनी को टैक्सी से कलकत्ता पहुंचाने की हर कोशिशकरने वाले छोटू भइय्या आज भी रांची में एक बड़ी सी स्पोर्ट्स शॉप चलाते हैं. और गौतमगुप्ता आज धोनी के रिश्तेदार हैं. उन्होंने धोनी की बहन से शादी की. 2008 में धोनीआखिरी बार छोटू भइय्या की स्पोर्ट्स शॉप में पहुंचे थे. वहां इतनी भीड़ इकठ्ठा होगयी कि धोनी को एक हाथ में चाय और एक हाथ में समोसा उठाकर उनकी शॉप से भाग कर पड़ोसमें बने एक छोटे से गोदाम में शरण लेनी पड़ी थी.--------------------------------------------------------------------------------अब रांची में धोनी निकलते हैं तो बस अपनी यामाहा 350D पर. हेलमेट के अन्दर छुपेहुए. साथ में कंधे पर लटका एक बैग जिसमें होती है उनकी लाइसेंसी बन्दूक.--------------------------------------------------------------------------------धोनी की बंदूकों से मोहब्बत कुछ छुपी नहीं है. उनका एक अपना रिवाज़ है. साल के पहलेदिन निशानेबाजी करने का. इंडिया में होने वाले मैचों के दौरान धोनी के पास हमेशाउनकी बन्दूक रहती है. साल 2014 की पहली रात और टीम इंडिया साउथ अफ्रीका से वापस आईथी. सभी प्लेयर्स मुंबई एयरपोर्ट से सीधे होटल निकल गए. धोनी ने अपने लिए गाड़ीमंगवाई और वहां से सीधे नेशनल सेक्योरिटी गार्ड की शूटिंग रेंज में पहुंच गए. अपनेरिवाज़ को कायम रखने. एक सेना के जवान जैसी ज़िन्दगी जीने वाले धोनी जब भी अपने होटलरूम में साथियों के साथ होते हैं, वो ये पक्का करते हैं कि हर कोई पहले एक राउंडमें ही खाना मंगवाए. वो नहीं चाहते कि किसी भी तरह से खाना फेंका जाए. उनका कहना हैकि आपने कभी कमांडो को देखा है? वो कितने कम सामान में अपना काम बिना शिकायत करतेजाते हैं. शायद इन्हीं कमांडोज़ से प्रेरित होकर ही इंडिया के सीमित बॉलिंग लाइनअपसे भी जितना हो सकता है अपना काम निकलवा लेते हैं धोनी. राहुल द्रविड़ उनके बारे मेंकहते हैं, 'आप जान जाते हैं कि वो अचीवमेंट्स की बहुत इज्ज़त करता है. हालांकि वोइसके बारे में खुलके कभी नहीं कहेगा. वो राहुल सर या राहुल जी भी नहीं कहेगा. आपसमझ जाओगे कि वो कितना बड़ा फ़्री-थिंकर है. लेकिन इसके साथ ही उसे वो आर्मी वालास्ट्रक्चर बेहद पसंद है.' शायद यही कारण था कि फ़िज़िकल ट्रेनिंग नापसंद होने केबावजूद धोनी गैरी किर्स्टन के कहने पर स्विमिंग सेशन के लिए सबसे पहले आ जाते थे.क्यूंकि वो गैरी की बेशुमार इज्ज़त करते थे. साथ ही उन्हें अथॉरिटी के मायने मालूमहैं. क्रिकेट में इन्हीं बातों को मिलाकर परोसने वाले इंसान का नाम है महेंदर सिंहधोनी. अप्रैल 2007 में वेस्ट इंडीज़ में वर्ल्ड कप से बाहर होने के बाद हुई घर परपत्थरबाजी ने धोनी को और भी कठोर बना दिया था. उसके बाद सितम्बर 2007 में ही टी-20वर्ल्ड कप जीत के आने के बाद हुए भव्य स्वागत ने उन्हें एक बात समझाई. वो कहते हैंकि 'जो कुछ भी फ़ील्ड पर होता है उसे मैं इतना सीरियसली नहीं ले सकता. मैं किसी भीहालत में मैदान पर अपने किये से परिभाषित नहीं होना चाहता.' मैच में हर चीज कोसिंपल रखना धोनी की खासियत रही है. उन्होंने चीज़ों को इस कदर सिंपल किया हुआ है किटीम का कप्तान बनने के बाद उनका पहला काम था टीम की ऑफ-फ़ील्ड ड्रेस में से टाई औरट्राउज़र्स को हटवाना. वो कहते थे कि हम में से काफ़ी सारे लोग सलीके से ट्राउज़र्सनहीं संभाल पाते हैं. ऐसे में हमपर एक्स्ट्रा प्रेशर क्यूं डालना. अरुण पांडे.नेशनल स्टेडियम दिल्ली में नेट्स को संभालते थे. धोनी के दिल्ली आने पर वो उनकीहिटिंग से इम्प्रेस्ड हुए. दोनों में दोस्ती हुई. अब धोनी जब भी दिल्ली आते, पांडेकी बरसाती के नीचे उनके ही साथ रहते. आज अरुण धोनी के मैनेजर हैं और साथ ही सबसेकरीबी दोस्त भी. पांडे के नाम से बुलाये जाते हैं. धोनी चीज़ों को कितना सिंपल रखतेहैं ये पांडे से अच्छा कोई नहीं बता सकता. पांडे कहते हैं कि धोनी फ़ील्ड के बाहरक्रिकेट के बारे में कोई बात नहीं करता. ऐसा लगता है जैसे कि एक स्विच है. जो मैचके दो घंटे पहले ऑन हो जाता है और फिर धोनी की नज़रें मैच पर ही होती हैं. मैच खतमहोते ही स्विच ऑफ. वो किसी से भी क्रिकेट के बारे में डिस्कस नहीं करते. उनके दिमागमें प्लान होता है. वैसा ही फ़ील्ड पर काम आता है. बाकी सब कुछ ऑन-द-स्पॉटइम्प्रोवाइज़ेशन. एक बार पांडे ने धोनी से कह दिया था कि वो बहुत नीचे बैटिंग करतेहैं. उन्हें थोड़ा ऊपर खेलना चाहिए था. इसपर धोनी ने जो जवाब दिया था, पांडे नेपलटकर आज तक धोनी से क्रिकेट के बारे में कोई डिस्कशन नहीं किया. धोनी ने उनसेसाफ़-साफ़ कह दिया, 'आज तो बोल दिए हो, आगे से मत बोलना.' बस इतना सा है फ़लसफ़ा धोनीका. खराब स्वाद की वजह से शराब न पीने वाला रिटायरमेंट के सवाल पर जर्नलिस्ट कोअपने बगल में बिठा कर पूछ लेता है, "मैं आज जैसे दौड़ रहा था, क्या लगता है? 2019 तकखेल पाऊंगा?" उसके लिए सब कुछ बहुत सिंपल है. या तो सफ़ेद है या काला. ग्रे जैसा कुछनहीं. ग्रे अगर कुछ है तो बस दिमाग में. भरपूर भरा हुआ ग्रे मैटर. जो वो लगाता हैअपने गेम में. और बाकी का जीवन है उसकी गाड़ियां, पिस्टल, बेमिसाल खंजर और वीडियोगेम्स. खिलाड़ी कहते हैं कि उनका पूरा जीवन बस उनका खेल ही है. लेकिन धोनी के साथऐसा नहीं है. खेल उनके जीवन का एक हिस्सा मात्र है. जिससे वो वैसी ही निर्ममता सेअलग होंगे जिस निर्ममता से सेना का जवान अपने घर-द्वार को छोड़ सीमा पर किसी अनजानकी गोली का सामना करने चल देता है. और उस दिन, सिर्फ इंडियन क्रिकेट में ही नहीं,वर्ल्ड क्रिकेट में भी एक बहुत बड़ा ब्लैक होल बन जायेगा. जिसे भर पाने में सैकड़ोंआकाशगंगाएं कम पड़ेंगी. और जब भी ये ख़याल दिमाग में आता है तो मैं खुद से ही कहताहूं -'आज तो बोल दिए हो, आगे से मत बोलना.'