जब चित्रा से शादी करने के लिए जगजीत सिंह उनके पति के पास परमिशन मांगने पहुंच गए
चिट्ठी न कोई संदेस, जाने वो कौन सा देस, जहां तुम चले गए...
हाथ छोटा हो और कद लंबा, तो टुकड़ों में गिनना शऊर कहलाता है. जगजीत सिंह को यूं भी देख सकते हैं. एक जगजीत, बीकानेर का बच्चा. जालंधर में कॉलेज करता. हॉस्टल में कुछ हींडते, ज्यादातर हंसते. उसके आलाप और गानों पर. यूथ फेस्ट की जान. हॉकी में भी खूब दखल. मोहम्मद रफी को तो ऐसे गाता था, जैसे जेरॉक्स कर लाया हो आवाज.चित्रा सिंह. ग़ज़ल गायकी का एक बेहद सम्मानित नाम. जगजीत सिंह जैसे बरगद के साए में रह कर भी पूरी तरह फला-फूला मौसीक़ी का पेड़. बेटे की मौत के बाद जैसे खोल में सिमट गई. 1990 में हुए उस दहशतनाक हादसे के बाद कभी सुर नहीं छेड़े. कभी तान नहीं भरी. संगीत से ही मुंह मोड़ लिया. यूं जैसे कुदरत की नेमतों से ही खफ़ा हो गईं हो. यूं जैसे ईश्वर से जंग छेड़ दी हो. 'तूने एक कीमती चीज़ छीनी, तो दूसरी भी तू ही रख' मार्का प्रतिरोध. पूरे 27 साल चला. इन 27 सालों में ज़हनी सुकून की तलाश में क्या कुछ नहीं किया. आध्यात्म की ओर रुख कर लिया. सुनते हैं कि ईश्वर से अपने बेटे की गलतियों का ब्यौरा मांगने की आरज़ू मन में लिए तरह-तरह के अनुष्ठान भी आज़माए. ट्रेजेडी का दूसरा हमला तब हुआ जब उनकी बेटी ने भी 2009 में आत्महत्या कर ली. दो साल बाद 10 अक्टूबर के दिन जगजीत भी साथ छोड़ गए. बिल्कुल ही बेसुकून इस तनहा रूह ने शायद संगीत में ही पनाह पाने का इरादा कर लिया है. बनारस के संकट मोचन मंदिर से उन्होंने गायकी की दुनिया में वापसी की. उनके और उनके पति जगजीत के कुछ रोचक किस्से पढ़ाते हैं आपको.
एक जगजीत सिंह, मुंबई में जगह तलाशता. और एक दिन एक जिंगल की रेकॉर्डिंग के दौरान चित्रा से मिलता. प्रोड्यूसर की बीवी चित्रा. कभी गाना गाने वाली चित्रा. खूबसूरत चित्रा. कुछ बंधी बुझी सी चित्रा. रियाज चलता रहा और एक दिन गजल मुकम्मल हो गई. जगजीत की चित्रा. सुरीली चित्रा. खिलखिलाती चित्रा. मगर नशे में धुत्त होने पर जगजीत को आंख तरेरती चित्रा भी.
और आखिरी टुकड़ा. बेटे की जवानी जीते जगजीत सिंह. अगर दुनिया इक गोल चक्कर थी तो विवेक उसका केंद्र, जिससे बंधे रहकर ही गतिमान होने में गुरूर था. मगर इक दिन मुंबई की एक सड़क पर एक्सिडेंट हुआ. डोर टूट गई. विवेक की जिंदगी से. जगजीत और चित्रा की विवेक से और आगे जिंदगी की ख्वाहिश से भी. चित्रा अब तक इससे नहीं उबर पाईं. उन्होंने गाना बंद कर दिया. बस किस्सों में उनका जिक्र होता रहा उसके बाद. जगजीत उबरे. फिर डूबे. संगीत में. और इसी ने उन्हें उस पार पहुंचाया.
ये जगजीत सिंह की कहानी है. तीन निगाहों में. बचपन. कॉलेज में गमकता. जवानी. चित्रा संग संगत में उफनती-निखरती. और बुढापा. बेटे की मौत के साथ आमद देता. बैरागीपन की तरफ ले जाता.
तीनों की तासीर को हम एक एक वाकये के सहारे जिएंगे. 1. प्रिंसिपल का लंच ब्रेक और जगजीत रेडियो चालू
जालंधर का डीएवी कॉलेज. कस्बे के बाहर बना. और कॉलेज बिल्डिंग के सामने सड़क. सड़क के उस तरफ नया बना हॉस्टल. दो मंजिल का. ढेर सारे कमरे. कौन सा किसको मिले. इसके लिए नियम बना दिया गया. जो टॉपर, उसको अच्छा कमरा. और टिड्डी फिसड्डी, उनको बुरे कमरे. बुरे कमरों की तीन कैटिगरी. पहली, सीढ़ी के किनारे वाले, दिन भर शोर. दूसरी, बाथरूम और टॉयलेट के किनारे वाले. सुबह शोर, दिन भर गंध. और तीसरा जगजीत सिंह कॉरिडोर. ये तीसरा वाला इसलिए, क्योंकि एक कमरे में एक लड़का रहता था. जगजीत सिंह.
प्रिंसिपल सूरजभान का प्यारा. यूथ फेस्टिवल में म्यूजिक के सब अवॉर्ड समेट कर कॉलेज लाने वाला. लेकिन हॉस्टल वाले तो कोई कानसेन न ठहरे. जगजीत सुबह 5 बजे रियाज शुरू कर देता. 2 घंटे चलता. भरी पूरी आवाज का आलाप. इस चक्कर में अड़ोस पड़ोस वाले कपास का खेत खोजते. कभी शाम रात को भी लय खिंच जाती. तो कभी कोई खीझकर चीखने लगता, यार तुम्हें तो पास होना नहीं. हमें तो पढ़ने दे.
यही जगजीत कॉलेज में सबके मजे लगाता. दोपहर में सूरजभान लंच ब्रेक में कॉलेज से जाते. 2 घंटे बाद लौटते. तब तक कॉलेज के पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम की कुंजी जगजीत के पास रहती. कभी टप्पे सुनाता, को कभी गजल. मगर एग्जाम में तो ये सब नहीं चलता. तो सरदार जी हुसड़कर नकल करते. धर लिए गए एक बार. गुस्से में एग्जामिनर ने बाहर खींच निकाला. फिर दूसरे कमरे में ले गए. सन्नाटा. और तब गुरुजी की आवाज सुनाई दी. यहां बैठकर तसल्ली से लिख.
2. चित्रा संग झगड़े और फिर संग की शुरुआत साउथ बॉम्बे के बहारिस्तान इलाके में देबू प्रसाद दत्ता रहते थे. ब्रिटानिया बिस्किट में बड़े अधिकारी. कंपनी का फ्लैट. फ्लैट में बीवी चित्रा और बिटिया मोना. देबू को साउंड रेकॉर्डिंग में बहुत दिलचस्पी थी. नई से नई टेक्नॉलजी की जानकारी. आगे चलकर उन्होंने घर में ही एक रेकॉर्डिंग स्टूडियो बना लिया. खैर, एक रोज की बात है. चित्रा बालकनी में खड़ी थी. पड़ोस वाले फ्लैट में एक गुजराती परिवार रहता था. बच्चा नहीं हुआ तो गोद ले लिया. दाई उसको झुलाती दूध पिलाती बालकनी में आ जाती. चित्रा भी बच्चे के साथ खेल लेतीं. एक रोज बच्चा चुपाए न चुपे. मेड उसे लेकर चित्रा के दरवाजे पर खड़ीं. बच्चा चुप गया. और चित्रा की पड़ोसियों से दोस्ती हो गई. फिर एक रोज की बात है. चित्रा इस बार भी बालकनी में खड़ी थीं. सामने सड़क पर उन्हें एक नौजवान दिखा. भयानक टाइट सफेद पैंट पहने. किसी तरह हंसी रुकी. कुछ देर बाद गुजराती पड़ोसी के घर से साज सुर सुनाई देने लगे. ये अकसर होता था. महफिल कोई नई तो नहीं थी. कुछ और देर बाद बालकनी में वही सफेद पैंटधारी आया. सिगरेट फूंकी और चला गया. शाम को चित्रा उनके घर गईं. पड़ोसन लगीं तारीफ के ढेर बनाने में. क्या गाता है ये लड़का. पंजाब की मिठास लिए. ये कहकर उन्होंने एक रेकॉर्डिंग प्ले की. चित्रा बोलीं. सरदार है क्या. जवाब आया, हां, मगर दाढ़ी कटवा दी है. कुछ देर बाद चित्रा बोलीं. छी. ये भी कोई सिंगर है. गजल तो तलत महमूद गाते हैं.
नापसंदगी का अभी एक दौर और चलना था. देबू की तरक्की हो गई थी. अब वह गुलिस्तान में रहते थे. और उनके यहां रेकॉर्डिंग के चलते कंपोजर्स का मजमा लगा रहता. ऐसे ही एक सज्जन थे. वैद्यनाथन. एक दिन उनकी तय की सिंगर नहीं आई. तो वह चित्रा से इसरार करने लगे. चित्रा झिझकीं. बोलीं, मैं तो बरसों पहले दुर्गा पूजा में गाती थी. कभी कभार रेडियो में गा दिया. कैसे करूंगा. पर किया. और कुछ ही बरसों में मुंबई सर्किट की जिंगल क्वीन कहलाने लगीं.
एक रोज चित्रा के घर शोकेस रेकॉर्डिंग थी. महिंदरजीत सिंह ने स्टूडियो बुक किया था. नए सिंगर्स का एलबम निकालना था. चित्रा सिंगर भी थीं और होस्ट भी. एक बार घंटी बजी. दरवाजा खोला तो देखा. एक आदमी किनारे सिर टिकाए ऊंघ रहा था. चित्रा कुछ पूछतीं, तब तक पीछे से सिंह साहब की आवाज आई. अरे लल्लू तुम. आ जाओ आ जाओ.
लल्लू आया और जमात में किनारा पकड़कर फिर नींद में. कुछ घंटे बाद उसकी रेकॉर्डिंग का नंबर आया. उठा. ऊंघते हुए हारमोनियम बजाने लगा. और लेओ. जैसे रियाज रुका ही न हो. सिंह साहब बोले. पहले ये सिंगल गाएगा और फिर चित्रा के साथ डुएट. चित्रा अब तक आवाज पहचान गई थीं. वही सफेद पैंट वाला. वो बोलीं. मैं नहीं गाऊंगी. मेरी पतली और हाई पिच वाली आवाज है. जबकि इसकी भारी बास साउंड. लल्लू ने नजर उठाई. घर को उचटती नजरों से निहार फिर चित्रा पर टिका. और बोला. आपको गाने की जरूरत ही क्यों है. चित्रा बमक गईं. जगजीत ने अकेले ही रेकॉर्ड किया.
यहां सुनिए उन्हीं दिनों का एक गाना, देख तो दिल कि जां से उठता है. ये धुंआ सा कहां से उठता है.
https://www.youtube.com/watch?v=HJhn_nwrooM
मगर होनी जो थी, वो निरी कमीनी और फिल्मी थी. शाम को देबू घर आया. उसने रेकॉर्डिंग सुनी. और जगजीत की आवाज पर फिदा हो गया. अगले दो रोज तक उसी की रेकॉर्डिंग होती रही. लकीरें अब भी धारदार थीं. मगर बीच में दस्ता था. समानांतर सड़क सा बिछा.
क्रॉसिंग आई 1967 में. जगजीत और चित्रा एक ही स्टूडियो में रेकॉर्ड कर रहे थे. बाहर मिले तो बात हुई. चित्रा बोलीं, आपको मेरा ड्राइवर छोड़ देगा घर तक. रास्ते में चित्रा का घर आया. उन्होंने जगजीत को चाय पर बुलाया.
अब घुमाओ दिमाग का कैमरा. ड्राइंग रूम में जगजीत सिंह बैठे हैं. गुनगुनाते. किचेन में चित्रा हैं. चाय का पानी खौलातीं. और तभी आवाज का चरखा चल पड़ता है. सुर के सूत कातता. ये एक गजल है. जो कि जगजीत गा रहे हैं. धुंआ उट्ठा था. चित्रा किचेन से सुनती रहती हैं. उन्हें पसंद आती है. पूछती हैं किसकी है. जगजीत कहते हैं मेरी. मैंने कंपोज की है. और तब पहली मर्तबा जगजीत सिंह की गायकी से चित्रा इंप्रैस हुईं. ये सब एक ऐसे घर में हो रहा था. जहां जब गूंजते थे तो रेकॉर्डिंग के कहकहे. साजिंदों की लय. या जो होती थी बचे वक्त में. वो चुप्पी. चित्रा और देबू के बीच सब ठीक नहीं चल रहा था.
देबू बंगाली भद्रलोक वाला आदमी. कलकत्ता का. एक रोज उसने टैगोर डांस ड्रामा देखा. लड़की से नजर नहीं हटी. घरवालों को बताया. बच्चा काबिल था. मोटी सैलरी पर था. सलीकेदार था. शादी हो गई. चित्रा 16 बरस की थीं. फिर अगला एक दशक उन्होंने अच्छी बीवी और मां बनने में गुजारे. मोनिका के होने के बाद चीजें रंग बदलने लगीं. और एक दिन देबू ने कह दिया. चित्रा, तुम अच्छा गा रही हो. उसी में आगे बढ़ो. मैं भी किसी और तरफ निकलना चाहता हूं.
इशारा साफ था. शादी मिसमैच थी. ओवर होने को थी. जल्द ही चित्रा को देबू के अफेयर के बारे में पता चल गया. और 1968 में तलाक का प्रोसेस शुरू हो गया. चित्रा मोनिका को लेकर एक वनरूम फ्लैट में आ गईं. संगीत बिरादरी के तमाम लोगों ने भी धीरे-धीरे नाता तोड़ लिया. मगर जगजीत जो फकत एक बरस पहले दोस्त बना था. साथ खड़ा रहा मजबूती से. और एक रोज लाल सूजी जुकाम वाली आंखों से जगजीत ने कह दिया. मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं चित्रा. चित्रा बोलीं. मगर मैं शादीशुदा हूं और तलाक अभी मुकम्मल नहीं हुआ. जगजीत बोले, मैं इंतजार करूंगा.
जगजीत सिंह और चित्रा सिंह को स्टारडम दिलाने वाला गजल एलबम
इंतजार हुआ खतम 1970 में. चित्रा के पति देबू ने भी दूसरी शादी कर ली थी और उन्हें एक बेटी भी हो गई थी. जगजीत देबू के पास गए. और कहा, मैं चित्रा से शादी करना चाहता हूं. कमाल आदमी था यार. निरा बच्चा. चित्रा के पूर्व पति से इजाजत लेने गया था कि आशीर्वाद. शादी हुई. 30 रुपये के खर्च में. एक मंदिर में. तबला प्लेयर हरीश ने पुजारी का इंतजाम किया. गजल सिंगर भूपिंदर सिंह दो माला और मिठाई का डब्बा लेकर आए. और मिठास भर गई.
जगजीत और चित्रा कैसे थे. ऐसे थे. इस वीडियो को देखिए. उनकी आपसी केमिस्ट्री और जुगलबंदी. पंजाबी टप्पों के बहाने.
https://www.youtube.com/watch?v=__uS4BJ9MK8 3. विवेक सिंह. जगजीत-चित्रा का बेटा. मोनिका का भाई. टॉल, फेयर एंड हैंडसम. उम्र 18 साल और 11 महीने. अपने दो दोस्तों के साथ मरीन ड्राइव पर घूम रहा था. एक दोस्त, साईराज बहुतुले. जो आगे चलकर मशहूर क्रिकेटर बने. दूसरे, राहुल मजूमदार. रात के 2 बजे थे. कार तेज स्पीड में जा रही थी. ड्राइविंग सीट पर विवेक था. तभी उसे नजर आई सड़क पर पड़ी सीढ़ी. जिसका इस्तेमाल म्यूनिसिपैलिटी वाले स्ट्रीट लाइट ठीक करने में करते हैं. स्टेयरिंग घूमी. मगर बैलेंस बिगड़ गया. भयानक एक्सिडेंट. विवेक की मौके पर ही मौत हो गई. बाकी दोनों घायल हुए और बाद में दुरुस्त हो गए.
अगले दिन हर अखबार की यही सुर्खी. और उसकी टोन यही. रईसजादे शराब की नशे में धुत्त वगैरह वगैरह. विवेक की बहन भाई बब्बू के बारे में इस तरह लिखी चीजों को नजरअंदाज नहीं कर पाई. उसने लंबी लीगल लड़ाई लड़ी. म्यूनिसिपैलिटी की जिम्मेदारी समझ आई, जिसने सड़क पर सीढ़ी छोड़ दी थी. बाद में उस सड़क का नाम विवेक सिंह के नाम पर रख दिया गया.
मगर जगजीत और चित्रा के बीच एक बोर्ड टंग गया था. हवा में फड़फड़ाता. आगे रास्ता बंद है, ऐसा लिखा झिलमिलाता. जगजीत तो खैर कुछ हफ्तों बाद तानपुरे पर लौटे. और 6 महीने की चुप्पी के बाद उन्होंने संगीत में ही मुक्ति खोजी. मगर चित्रा का रास्ता बदल चुका था. उसके बाद उन्होंने कभी गाना नहीं गाया. कई तरह के धार्मिक और आध्यात्मिक और ओझाओं वाले भी रास्ते खंगाले. अमेरिका तक गईं. एक शख्स से मिलने. जो आत्माओं से बात करता था. उन्हें बुला सकता था.
तस्वीर में लेफ्ट से राइड, मोनिका (चित्रा की पहली शादी से बेटी), चित्रा, विवेक और जगजीत
चित्रा को लगता रहा कि उनका बब्बू कुछ कहने की कोशिश कर रहा है. यही कि जिंदगी जारी रहे. चित्रा कई बरसों में ये संदेश समझ पाईं. जगजीत शायद जल्दी संभल गए. या कि समझ गए. उसके बाद वह अकेले ही थे. स्टेज पर भी. और काफी कुछ जिंदगी में भी. एक कोने को फिर रौशन किया. आध्यात्मिक की धूप ने. इसी दौरान उन्होंने कई भजन रिकॉर्ड किए.
कांपती लौ का अकंपित यकीन. हे राम
https://www.youtube.com/watch?v=g4OAVIpCiss
और चूंकि रस्म है, तो जगजीत के कुछ गाने/ गजल ये रहे. जो टीम लल्लनटॉप ने पहली सांस में ही अलग अलग कोनों से उचार दिए. मेरे भी दो फेवरिट हैं. झुकी झुकी सी नजर. और चिट्ठी न कोई संदेश.
झुकी झुकी सी नजर, बेकरार है कि नहीं दबा दबा सा सही, दिल में प्यार है कि नहीं
https://www.youtube.com/watch?v=xY2P6IAd0MI
चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश, जहां तुम चले गए
https://www.youtube.com/watch?v=aBNqmmtbqXI&index=6&list=PLXCoHsJ9oLef46DLdg8Iw9IOYVZaB2bmX
होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो
https://www.youtube.com/watch?v=P_i_huFceUQ
वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी
https://www.youtube.com/watch?v=zC0O6gTcGDg
इस स्टोरी के लिए जो किस्से लिखे गए. उसके लिए एक किताब से काफी मदद मिली. इसका नाम है बात निकलेगी तो फिर - द लाइफ एंड म्यूजिक ऑफ जगजीत सिंह. इसकी कलमकार हैं सत्य़ा सरन. हार्पर कॉलिन्स ने किताब छापी है. अंग्रेजी में है. जगजीत और चित्रा के फैंस को जरूर पढ़नी चाहिए.
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