मेरा जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ. परिवार धार्मिक था. अभी भी है. अभी कल ही मांने व्रत रखा. संतानों के सुख और स्वास्थ के लिए. पिता भी पूजा-पाठ करते हैं.और मैं. मैं नास्तिक हूं. क्यों हूं. ये समझाऊंगा तो मामला फैल जाएगा. शॉर्ट मेंसमझना हो तो शहीद भगत सिंह का ये लेख पढ़ लीजिए. मैं नास्तिक क्यों हूं?हां, तो मैं नास्तिक हूं. मगर फिर भी मेरे घर पर दो मूर्तियां और एक भगवान परकिताबों की भरमार है. मूर्ति एक तो बुद्ध की है. बुद्ध की मूर्ति मुझे लुभाती है.शांति, करुणा. अपना दीपक आप बनो. हालांकि ये भी लगता है कि जो बुद्ध मूर्ति पूजा केविरोध में खड़े हुए, उनके ही अनुयायियों ने उनकी मूर्तियां बना दीं. बड़ी, बहुतबड़ी. बामियान वाले बुद्ध तो पहाड़ी से ऊंचे थे. खैर, हम बुद्धू हैं. ज्यादा क्याकहें.दूसरी मूर्ति गणेश की है. इनके दो काम हमें खूब जमते हैं. खूब खाना और खूब पढ़ना.मेरी दोस्त कहती है, तुम टॉरियन हो, इसलिए पेटू हो. हो सकता है. पढ़ना मजेदार लगताहै. दुनिया जहान की बातें पता चलती हैं. हिस्ट्री, पॉलिटिक्स, जियोग्राफी. मन काभरम और अभिमान, सब खत्म हो जाता है. सरल होने का रास्ता दिखता है.तो पढ़ने से आते हैं किताबों पर. एक भगवान पर खोज कर किताबें पढ़ता हूं. कृष्ण.पेंसिल लेकर पढ़ता हूं. गीता, भागवत, उन पर लिखे गए मृत्युंजय सरीखे उपन्यास. उन परकाशीनाथ सिंह का लिखा उपसंहार भी खूब रुचा. कृष्ण के आखिरी दिनों की कहानी. जबरमानवीय. मुझे कृष्ण फंडू लगते हैं. उनसे, उनकी लाइफ से, उनकी हरकतों से, उनके केआरएसे मैंने ये सात चीजें सीखीं.1. बहन को मर्जी से शादी करने दोआज-कल घर की इज्जत के नाम पर, मर्यादा के नाम पर, संस्कृति के नाम पर, प्रोटेक्शनके नाम पर, केयर के नाम पर मर्द खूब गधापना करते हैं. पहले भी करते थे. अब उनकाकरना ज्यादा दिखता है. क्योंकि कारोंच का रंग समझ आ गया. कृष्ण सही थे. आज-कल केभाइयों की तरह नहीं. जो बहनों को मार देते हैं. या पापा से कहते हैं, आप ही ने इसेछूट देकर बिगाड़ा है.उनकी बहन थी. सुभद्रा नाम की. उनकी बड़ी मम्मी रोहिणी की बेटी. सुभद्रा के दो भइया.कृष्ण और बलराम.तो बलराम ने सुभद्रा की शादी दुर्योधन से तय कर दी. राम जाने रोका हुआ था या नहीं.मगर एक बार रैवासा पर्वत पर एक रिलीजियस फंक्शन चल रहा था. वहां सुभद्रा गई. अर्जुनभी आया था. दोनों मिले. बातें-वातें हुईं. पसंद जम गई. अर्जुन ने कृष्ण को बताया.भाई ने बहन से पूछा. उसने भी यो कह दिया.अर्जुन-सुभद्रा प्रसंग की एक तस्वीरतो कृष्ण ने बहन की हेल्प की. दिक्कत बड़े भइया बलराम से थी. तो अर्जुन और सुभद्राने उन्होंने कहा. समाज की छोड़ो. गदबद लगा लो. दोनों रथ पर बैठ दौड़े. रथ चला रहीथीं सुभद्रा. बलराम को पता चला. उन्होंने धर दबोचा आधे रस्ते में. लगे फायर होने.कृष्ण ने समझाया. अपनी बहन है. अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है. और उसी के लिएलड़के को भगाकर ले जा रही है. गुस्सा थू कर दो दाऊ. दाऊ समझ गए.आप भी समझ लो. आपकी बहन-बेटी की अपनी जिंदगी है. अपने फैसले हैं. अपनी गलतियां हैं.उसे करने दीजिए. उसकी लाइफ के मालिक मत बनिए. और हां, जान से तो प्लीज मत ही मारिए.वर्ना जेल में सड़ेंगे. इज्जत नहीं बचेगी.Photo: Pinterest2. सहेलियों के साथ खड़े रहो, उनकी शादी के बाद भीद्रौपदी कृष्ण की दोस्त थीं. पांडव पत्नी बनने से पहले भी. कृष्ण उन्हें सखी कहाकरते थे. महाभारत का एक चर्चित मामला है. जब पांडव जुए में बीवी हार जाते हैं. तबद्रौपदी को दोस्त याद आता है. साड़ी वाले चमत्कार को किनारे रख दें. आज की सोचें.कई बार आपका लाइफ पार्टनर चंपू निकलता है. दोस्त साथ देते हैं. अपनी दोस्तों के साथरहिए. उनकी शादी के इशूज में हेल्प करिए. ऐसी हेल्प जिनसे उन्हें मदद मिले. कभी येशादी बचाने के लिए भी हो सकती है और कभी चीजें बेहद खराब हों तो शादी तोड़ने वालीभी.द्रौपदी के साथ कृष्ण3. मजा सबके साथ करने में है, अकेले नहींकृष्ण अकेले लीला नहीं करते. अकेले सबको मार नहीं देते. अकेले खेल नहीं लेते. अकेलेकरने में एक नकली किस्म की महानता है. ये काम मैंने किया. मैं. पहाड़ सा. धम्म.कृष्ण सामुदायिक जीवन का, टीम वर्क का धांसू एग्जाम्पल हैं. गाय चराने जाते थे.कृष्ण भी. बाकी गोप दोस्त भी. और वहीं खेल खेलते. तरह-तरह के. बाद में भी यही हुआ.महाभारत की जंग हो या द्वारका बसाना. सबका साथ, सबका विकास किया. सिर्फ बातें नहींफटकारीं.4. फर्जी आदर्शवाद नहीं हौंकते बचपन में पढ़ा था. शठे शाठ्यम समाचरेत. कमीने लोगों के साथ वैसा ही सुलूक करनाचाहिए. बड़े हुए तो सीख लिया. एव्री थिंग इज फेयर इन लव एंड वॉर. कृष्ण जबरदस्ती केभरम नहीं पालते. उन्हें अपना केआरए, अपने टारगेट पता हैं. और फिर उसके लिए तगड़ीप्लानिंग भी. फ्लैक्सिबिलिटी भी रखते हैं. शुचिता के फेर में डगमगाते नहीं हैं.महाभारत के युद्ध में ये कौशल खूब दिखा. चाहे भीष्म से मौत का तरीका पूछना हो, याफिर द्रोणाचार्य को निपटाने के लिए अश्वत्थामा हाथी की हत्या का हल्ला करवाना.5. किंग नहीं, किंग मेकरकमाल देखिए. कृष्ण सबसे ताकतवर हैं. सबसे तगड़े राज परिवार के लौंडे उनके हुकुम परहिल जाते हैं. मगर वह खुद राजगद्दी पर नहीं बैठते. कभी भी. न मथुरा की. न द्वारकाकी. हमेशा मंत्री भाव से रहते हैं. यही काम रामायण में हनुमान करते हैं. ये सबक अहमहै. आज-कल आदमी को टॉप की पोजिशन चाहिए. करेंगे क्या उस पोजिशन का. किसी को नहींपता. और जिसे पता है. वो किसी भी पोजिशन पर रहे. एजेंडा सेट कर ले जाता है. यहांकृष्ण की मेधा मजा मार है.6. दोस्त के लिए लुटने को रेडीसुदामा प्रसंग मार्मिक है. दरवाजे पर दोस्त आया. कांख में पोटली. पोटली में चावल.कृष्ण को पता चला. भागे चले आए. इतना रोए कि सुदामा के पैरों की धूल साफ करने केलिए पानी की परात में पैर रखने की जरूरत नहीं पड़ी. और फिर छीनकर चावल खाने लगे.कुल तीन मुट्ठी. दो ही मुट्ठी खा पाए. तीसरे के पहले बीवी ने रोक दिया. क्यों रोका.क्योंकि हर मुट्ठी के साथ कृष्ण सुदामा को अपनी संपत्ति दिए जा रहे थे. तीसरा ग्रासभी निगल लेते, तो खुद सड़क पर आ जाते.Photo: Pinterestबात फिल्मी लग सकती है. पर दोस्ती ऐसी ही होनी चाहिए. पइसे का हिसाब-किताब. उसनेक्या कहा, तुमने क्या किया. ये सब टुच्चई लगती है. दोस्तों के बीच जबर इश्क होनाचाहिए. ऐसे हुमक कर छाती से भींच लो. उसके दुख को अपना मान लो. उसके सुख में इतरातेफिरो. ये मैंने किशन से सीखा.7. हारने का डर नहींकृष्ण का एक नाम रणछोड़ है. क्यों छोड़ा होगा. अरे सिंपल है. हार रहे होंगे. तोसमझदारी इसी में रही कि पीछे हट जाओ. फिर दम जुटाओ. अगली बार धावा बोलो. मथुरा वालेमामले में भी यही स्ट्रैटिजी दिखाई. बार-बार हमले हो रहे थे. कंस तो मर गया था.रिश्तेदार चरस बोए थे. तो समेटा कुनबा. और जे हजारों मील दूर द्वारका में बसाईस्मार्ट सिटी.लेसन ये मिला कि कई बार आगे बढ़ने के लिए पीछे हटना पड़ता है. कभी कोई नया शॉटट्राई करने में बैडमिंटन का मैच हार गए. कभी करियर में नया करने के लिए सेफ मगरबोरिंग जॉब छोड़ दी. कभी कोई नया रास्ता ट्राई करने में भटक गए. कथित तौर पर परेशानहुए. सब सही है. सब नए सिरे से आगे बढ़ा रहा है.सरकार में बच्चन अमिताभ कहता है न. पास का फायदा देखने से पहिले दूर का नुकसानसोचना चाहिए. कृष्ण यही करते थे. दूर की देखते सोचते थे. फंडू थे एक नंबर के. और भीतमाम बातें हैं. कमियां भी होंगी. मगर एक बात तो है गुरु. ये भगवानों को जो हमरात-दिन पूजते रहते हैं. इसमें बात नहीं है. बात है उनकी लाइफ हिस्ट्री पढ़ने में.उनके लॉजिक समझने में. पर वो हम लोग करते नहीं हैं. धार्मिक किताबों को लाल कपड़ेमें लपेट रख देते हैं. या फिर पढ़ते भी हैं. तो हूबहू मान लेते हैं.अरे किताबें हैं. काटेंगी नहीं. पढ़िए. पेंसिल लेकर पढ़िए. जो अच्छा, काम का लगे.उसे अपना लीजिए. बाकी को खुदा हाफिज कर दीजिए. पूजिए नहीं पढ़िए. श्रद्धा डर सेनहीं आनी चाहिए. प्रेम होना चाहिए. और प्रेम तो जानने से ही आता है. चाहे कोई इंसानहो या उसका बनाया भगवान.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें...कृष्ण जन्माष्टमी पर ये एक फिल्म जरूर देखनी चाहिए!वो 4 मुस्लिम जो जबर कृष्ण भक्त थेकृष्ण की ये 6 कहानियां पढ़ें, आप उनकी बुद्धि का लोहा मान जाएंगेपिछले 29 साल से कान्हा एस अहमद के घर जन्म लेते हैं