"60 नहीं, 70 मार चुका हूं", 25 साल के सीरियल किलर ने और क्या बताया जो पुलिस के होश उड़ गए?
Amazon Prime पर आई वेब सीरीज़ 'Paatal Lok' में हथौड़ा त्यागी का किरदार इसी किलर से प्रभावित बताया जाता है.
साल 1973. राजस्थान का श्रीगंगानगर जिला. सुबह के पांच, साढ़े पांच बजे होंगे. जिले के सादुलशहर थाने में शिफ्ट चेंज हो रही थी. तभी फोन की घंटी बजी. सिपाही ने फोन उठाया. दूसरी तरफ से खबर आई कि रात में गुरुद्वारे में तीन लोगों का कत्ल हो गया है. पुलिस पहुंची तो देखा कि गुरुद्वारे के सेवादार और उनके दो बेटों का बेजान शरीर जमीन पर पड़ा था. फर्श पर बिखरा हुआ तीनों का खून भी सूख चुका था. पुलिस ने जब ध्यान से तीनों शवों को देखा तो पाया कि इनके कान के नीचे किसी भारी चीज से वार किया गया था.
पुलिस को ये समझते हुए देर नहीं लगी की इन तीनों क़त्ल का ताल्लुक, हत्याओं की उस कड़ी से जुड़ा है जो पिछले कुछ समय में आसपास के इलाकों में हुई है. ये एक सीरियल किलिंग थी जिसे अंजाम दिया था कनपटीमार किलर ने. कनपटीमार, नाम के ही मुताबिक ये किलर लोगों की कनपटी पर वार कर उनकी जान लेता. ये किलर इतना शातिर था कि अब तक 10 से ज्यादा जगहों पर हमले कर चुका था. फिर भी पहचान के नाम पर पुलिस के पास इसकी फोटो या हुलिया तक नहीं था. अपने पूरे क्रिमिनल जीवन के दौरान इस किलर ने 70 लोगों की जान ली.
किसी एक इंसान ने अगर कई लोगों की जान ली हो, और इन हत्याओं में कोई पैटर्न या मोटिव साफ न हो; इन्हें कहा जाता है Serial killings. किलर रैंडम टारगेट चुनता है और हत्याएं करता है. अधिकतर मामलों में हत्याओं के बीच कोई कॉमन लिंक भी नहीं मिलता. इसलिए ये पता करना मुश्किल हो जाता है कि क्राइम करने का मकसद क्या था. कनपटीमार किलर के मामले में भी ऐसा ही हुआ.
70 का दशक. देश में पाकिस्तान से जंग के बादल घिरने लगे थे. ये लगने लगा था कि जंग कभी भी छिड़ सकती है. इसी बीच राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के इलाके में एक खौफ अपने पांव पसार रहा था. अगर आप उत्तर भारत के किसी ग्रामीण इलाके से हैं तो मुमकिन है आपने मुंहनोचवा या चोटीकटवा जैसे शब्द सुने होंगे. मुंहनोचवा या चोटीकटवा रात के अंधेरे में घात लगाकर हमला करने के लिए मशहूर थे. अधिकतर मामलों में ये घटनाएं चोरी और लूटपाट तक ही सीमित थीं. पर राजस्थान का कनपटीमार किलर जब तक अपने शिकार की जान नहीं ले लेता, तब तक उसे छोड़ता नहीं था.
ये किलर रात के अंधेरे में कंबल ओढ़कर घात लगाए रहता था. कंबल में हथौड़ा छिपा रहता था. जैसे ही इसे कोई अकेला इंसान मिलता, ये उनके कान के ठीक नीचे हमला करता. कान के ठीक नीचे का हिस्सा नाजुक होता है. ऐसे में हथौड़े के एक से दो वार किसी को धराशायी करने के लिए काफ़ी होते हैं. कंपटीमार एक के बाद एक हमले कर रहा था. लेकिन वो कौन था, कहां था, पुलिस को इसकी कोई खबर नहीं थी.
ये वो दौर था जब सर्विलांस और फॉरेंसिक साइंस जैसी चीजें दुर्लभ थीं. पहचान के नाम पर पुलिस के पास न कोई नाम, न कोई हुलिया था. थी तो बस किलर के हमले से बचकर निकले कुछ लोगों की गवाही, जिन्होंने बस इतना बताया था कि ये Serial Killer रात के अंधेरे में कंबल ओढ़कर, घात लगाकर हमला करता है. इस मामले में एक बड़ा मोड़ आया साल 1973 में.
श्रीगंगानगर के एक गुरुद्वारे में कनपटीमार ने तीन लोगों की हत्या कर दी. एसपी श्याम प्रताप सिंह ने इस मामले की छानबीन शुरू की. काफी पूछताछ के बाद एक सुराग मिला. पता चला कि हत्या की रोज़ एक शख्स रेलवे ट्रैक पर चलते हुए सादुलशहर रेलवे स्टेशन की तरफ जाते देखा गया था. वो कौन था, इसका पता नहीं चल पाया.
सादुलशहर इलाके में अधिकतर लोग एक दूसरे को जानते थे, इसलिए ये बात तो तय थी कि सुबह के समय रेलवे लाइन के पास दिखा इंसान लोकल नहीं था. जांच की कहानी आगे बढ़ते हुए पहुंची सादुलशहर रेलवे स्टेशन. यहां मौजूद रेलवे स्टाफ ने बताया कि तड़के सादुलशहर से बठिंडा का टिकट जारी हुआ था. जब पुलिस बठिंडा पहुंची तो पता चला कि वहां से भी एक टिकट सादुलशहर के लिए जारी किया गया था.
पुलिस को ये कन्फर्म तो हो गया कि जिस शख्स ने टिकट खरीदा था, उसका इस मर्डर से जरूर कोई न कोई कनेक्शन है. पर न नाम, न कोई पहचान, न कोई हुलिया. इन सबके बिना उस किलर को ढूंढा कैसे जाए? तो पुलिस ने वही पुराना तरीका अख्तियार किया. ऐसे सभी लोगों को बुलाया गया जिनका कभी इस कनपटीमार किलर से सामना हुआ था. पुलिस को एक चीज पता थी. किलर कंबल ओढ़कर रहता है लेकिन विक्टिम पर हमला करने के लिए उसे कंबल हटाना पड़ता होगा. बिना कंबल हटाए, किसी पर ऐसा हमला करना मुमकिन सा नहीं लगता था. ऐसे में पुलिस को एक विक्टिम मिला, जिसने कनपटी मार किलर का चेहरा देखा था. जब वो एक सुनसान रास्ते से गुजर रहा था, तब कनपटीमार किलर ने उसपर हमला किया. जब उसने हमला किया तो उसका कंबल नीचे गिर गया और इस व्यक्ति ने किलर का चेहरा देख लिया.
इसके बाद पुलिस ने एक एक कर सारे विक्टिम्स से अलग-अलग पूछताछ की. इस आधार पर किलर का एक मोटा-माटी हुलिया तैयार किया गया. सभी से अलग अलग बात करने पर ये बात भी साफ हो गई कि पंजाब से लेकर राजस्थान तक, हथौड़ा मार कर जान लेने की जितनी भी वारदात हुई हैं, उन सबका किलर एक ही है.
एक सवाल अब भी बना हुआ था. किलर को लोकेट कैसे किया जाए? क्राइम का दायरा एक बड़े इलाके में फैला था और सारे क्षेत्र की तलाशी भी मुमकिन नहीं थी. तो पुलिस ने अपने सर्च ऑपरेशन के दायरे को थोड़ा नैरो डाउन किया. पुलिस अब ऐसी जगहों और रास्तों पर नजर रखने लगी जो सुनसान थे और जहां ऐसे किलर के लिए किसी मर्डर को अंजाम देना एकदम मुफीद था.
कई रातें गुजर गईं पर कनपटी मार किलर का कोई पता नहीं चला. फिर साल 1979 में पुलिस के हाथ एक शख्स लगा. एक रात, पुलिस जयपुर के एक सुनसान इलाके में गश्त पर थी. पुलिस ने देखा कि सड़क पर एक साया सा चला आ रहा था. जो पुलिस को देखते ही सड़क किनारे एक पेड़ के पीछे छुप गया. फिर उसने एक कंबल निकाला और उससे खुद को ढंक लिया. पुलिस को पहले तो लगा कि ये उनकी टीम का ही कोई सिपाही है. पर पुलिस तो कंबल लेकर आई नहीं थी.
पुलिस ने कुछ देर इंतज़ार किया. पेड़ के पीछे छिपा शख्स कंबल लपेटकर बाहर निकला और इस बार पुलिस ने उसे दबोच लिया. हालांकि अभी ये कन्फर्म नहीं था कि यही कनपटीमार किलर है. थाने ले जाकर उससे पूछताछ की गई. उसने अपना नाम शंकरिया बताया. साथ ही जयपुर का एक एड्रेस बताया. पुलिस बताए गए पते पर पहुंची. वहां उन्हें शंकरिया के मां-बाप मिले, जिससे पुख्ता हो गया कि वो सच बोल रहा है.
पुलिस ने उससे थोड़ी और पूछताछ की. शंकरिया से पूछा गया कि पूरे राज्य में किलर का खौफ है, 60 से ज्यादा लोगों की हत्या हो चुकी है. ऐसे में वो अकेले कंबल लेकर कहां घूम रहा था? पुलिस को उस पर शक था. लेकिन उसके पास कोई हथियार नहीं मिला था. जबकि, जो लोग मारे गए थे, उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये साफ था कि किसी हथौड़े जैसी चीज से उनके सर पर वार किया गया है. शंकरिया के पास से पुलिस को ऐसा कोई हथौड़ा नहीं मिला.
कई दिनों तक पुलिस उससे पूछताछ करती रही. और वो गोलमोल जवाब देता रहा. फिर एक रोज़ शंकरिया झल्ला उठा. पुलिस ने उससे पूछा, 60 लोगों की हत्या हो चुकी है, क्या तुमने की? इस पर शंकरिया ने जो जवाब दिया, उससे पुलिस के होश उड़ गए. उसने कहा
“साहब, 60 नहीं, 70 मार चुका हूं. हां मैं ही कनपटीमार किलर हूं”
पुलिस को अब भी पक्का नहीं था कि एक 25 साल का दुबला-पतला, देखने में ठीक-ठाक सा लड़का, ऐसा कर सकता है. पुलिस ने उससे हथौड़े के बारे में पूछा. शंकरिया पुलिस को उसी जगह ले गया जहां वो छिपकर बैठा था. झाड़ी के पीछे से उसने एक हथौड़ा निकाला.
इससे ये बात पक्की हो गई कि शंकरिया ही कातिल है. पुलिस ने जब उसके मां-बाप से उसके रूटीन के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वो ज्यादातर घर पर ही रहता था. पर कभी कभी देर रात बाहर निकलता था, दोस्तों से मिलने के लिए. हालांकि उसके दोस्त कभी उसके घर नहीं आते थे.
शंकरिया ने धीरे-धीरे सब उगलना शुरू किया. 70 में से 50 मर्डर की तो उसे तारीख तक याद थी. हालांकि अदालत में पुलिस 70 में से बस 63 कत्लों के सबूत सामने रख पाई. शंकरिया से इन कत्लों की वजह पूछने पर उसने बताया कि जब वो हथौड़े से लोगों को मारता तो वो चीखते थे. इससे उसे मज़ा आता था. एक जगह तो वो कहता है कि मरने वालों की चीख उसे किसी संगीत की धुन जैसी लगती थी.
शंकरिया का अपराध रेयर ऑफ द रेयरेस्ट की श्रेणी में आता था. इसलिए उसका केस पहले राजस्थान हाई कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. लेकिन सभी जगहों से उसे सजा-ए-मौत सुनाई गई. उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाई, वो भी रिजेक्ट हो गई. 16 मई, 1979 की तारीख थी. जब शंकरिया को फांसी दे दी गई. शंकरिया केस की खास बात ये भी थी कि ये देश के इतिहास में सबसे स्पीडी ट्रायल्स में से एक था. जिनमें सजा ए मौत दी गई थी. जनवरी 1979 में वो पकड़ा गया था और मई में उसे फांसी दे दी गई. तब शंकरिया की उम्र मात्र 27 साल थी.
पॉल सिम्पसन की किताब, द सीरियल किलर फाइल्स के अनुसार मरने से पहले शंकरिया अपने किए पर शर्मिंदा था. मरने से कुछ वक्त पहले उसने एक पुलिस वाले से कहा था,
"मैंने जो हत्याएं की. वो बेवजह थीं. मैं नहीं चाहता कोई मेरे जैसा बने."
शंकरिया चला गया हालांकि उत्तर भारत के इलाकों में कंपटीमार का खौफ कई सालों तक बरक़रार रहा. हत्या का कोई केस सामने आता, सबसे पहले अफवाह फैलती की कंपटीमार फिर से आ गया है. सीरियल किलिंग का ये केस देश के सबसे खूंखार अपराध की कहानी है. जो राजस्थान में आज भी सुनाई दे जाती है. कुछ वक्त पहले, अमेज़न पर एक सीरीज आई थी. पाताललोक. जिसमें एक कैरेक्टर था - हथौड़ा त्यागी - उसका किरदार भी कंपटीमार शंकरिया पर बेस्ड था.
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