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महान वैज्ञानिक गैलीलियो के मरने के बाद उनकी 3 उंगलियां क्यों काट दी थीं?

धर्म और विज्ञान की पहली लड़ाई में कौन जीता?

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Galileo vs. the Catholic Church
22 जून, 1633 के दिन गैलीलियो को चर्च ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी (तस्वीर- space.com/thesun)
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22 जून 2023 (Updated: 21 जून 2023, 21:36 IST)
Updated: 21 जून 2023 21:36 IST
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कमरे में बैठा एक शख़्स आसमान की ओर निहार रहा था. कुछ देर बाद वो ज़मीन की ओर देखता है. फिर अपने पैर से ज़मीन को ठोकर मारता है. उसके मुंह से निकलता है,

"लेकिन वो घूमती है".

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ये साल 1634 की बात है. और जिस शख़्स की ज़बान से ये शब्द निकले थे, उनका नाम था 'गैलीलियो गैलिली'(Galileo Galilei). वो शख़्स जिसने ये बोलकर कि सूरज धरती के चारों तरफ़ नहीं घूमता बल्कि धरती सूरज के चारों तरफ़ घूमती है, धर्म की सत्ता को चुनौती दे डाली थी. और जिसकी उसे बड़ी भारी सजा भुगतनी पड़ी थी. लेकिन क्या गैलीलियो का कसूर सिर्फ़ इतना ही था?(Galileo vs. Church)

रोमन कैथोलिक चर्च ने गैलीलियो को सन 1633 में सजा सुनाई,(Galileo's scientific and biblical conflicts). जबकि इससे एक सदी पहले ही निकोलस कॉपरनिकस ने धरती के सूरज के इर्द गिर्द घूमने वाली थियोरी दे दी थी. कई साल तक आम लोगों के बीच भी ये बात प्रचलित रही थी. फिर सजा गैलीलियो को ही क्यों मिली? और क्यों उनके मरने के बाद उनके शरीर से तीन उंगलियां काट ली गई? (The Galileo Controversy)

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Galileo before the Holy Office
गैलीलियो को अपने बयान के लिए रोमन कैथोलिक चर्च के आगे सफाई देनी पड़ी थी (तस्वीर- wikimedia commons)
रुई हो या लोहा, साथ नीचे आएंगे   

साल 1592 की बात है. पीसा की झुकी हुई मीनार का नाम सुना होगा आपने. क़िस्सा मशहूर है कि एक बार गैलीलियो इस मीनार के ऊपर चढ़ गए थे. उनके हाथ में थे दो गोले, एक भारी और एक थोड़ा कम भारी. गैलीलियो ने दावा किया- देखना, दोनों गोले समान गति से नीचे गिरेंगे. गैलीलियो एक बड़ी यूनिवर्सिटी में टीचर थे. इसलिए उनके इस एक्स्पेरिमेंट को देखने उनके बहुत से छात्र आए. लेकिन किसी को गैलीलियो की बात पर विश्वास नहीं था. गैलीलियो से पहले लगभग 2 हज़ार साल से लोग यूनानी दार्शनिक अरस्तु के सिद्धांत को मानते आए थे. जिसके अनुसार जो चीज़ ज़्यादा भारी होगी वो और तेज़ी से नीचे आएगी.गैलीलियो ने अपने एक्स्पेरिमेंट से ये बात ग़लत प्रूव कर दी.

आज ये विज्ञान का साधारण सिद्धांत है कि धरती पर हर चीज़ 9.8मीटर/सेकेंड स्कवायर के एक्सेलेरेशन से गिरती है. और इस गति का का भार से कोई लेना देना नहीं होता.आप सोच सकते हैं कि फिर एक पंख और एक लोहे का गोला, अलग-अलग गति से नीचे क्यों आते हैं. तो इसका जवाब है हवा का रेसिस्टेंस. अगर किसी वैक्यूम में दोनों साथ गिराएं जाएं तो एक साथ नीचे ज़मीन तक पहुंचेंगे. फिर भी विश्वास ना होता हो तो ऐसे कई एक्सपेरिमेंट्स आप इंटर्नेट पर देख सकते हैं. या चाहे तो खुद भी कर सकते हैं. इसके लिए आपको सिर्फ़ इतना करना है कि पंख के नीचे एक किताब रखनी है, इसके बाद उसे, और किसी भारी वस्तु को साथ-साथ गिराना है. पंख के नीचे किताब रखने से हवा का रेसिस्टेंस ख़त्म हो जाएगा और दोनों चीजें साथ-साथ नीचे गिरेंगी.

बहरहाल 16 वीं सदी में इस बात को प्रूव कर गैलीलियो ने पहली बार अरस्तु से पंगा ले लिया. और फिर एक के बाद एक, ऐसी खोजें की, जिन्होंने अरस्तु को ग़लत साबित कर दिया. उन्होंने टेलीस्कोप की मदद से साबित किया कि चांद एक चिकनी सतह वाला गोला नहीं है, बल्कि उसमें खड्डे और पहाड़ हैं. उसने जूपिटर के चार उपग्रहों की खोज की. और शनि ग्रह के इर्द गिर्द घूमते छल्लों को पहली बार देखा. हालांकि तब उन्हें लगा था कि ये छल्ले कोई और ग्रह हैं.

ये सभी खोजें अपने आप में महान थीं. क्योंकि अरस्तु के सिद्धांतों के हिसाब से ब्रह्मांड में मौजूद हर वस्तु धरती के इर्द गिर्द घूमती थी. ऐसे में ये पता चलना कि दूसरे ग्रहों के अपने खुद के उपग्रह भी होते हैं. जो उनके इर्द गिर्द चक्कर लगाते हैं. ये चौंकाने वाली बात थी. इन खोजों ने गैलीलियो को रोम और आसपास के राज्यों का सबसे मशहूर व्यक्ति बना दिया. हालांकि उनकी यहीं खोजें, एक ऐसे रास्ते का निर्माण कर रही थी, जिस पर आगे चलकर गैलीलियो को सर्व शक्तिशाली रोमन कैथोलिक चर्च से टकराना था.

गैलीलियो और चर्च का पंगा कैसे शुरू हुआ? 

उसके लिए हमें एक घटना के बारे में जानना होगा. गैलीलियो एक के बाद एक, अरस्तु के हर सिद्धांत को ग़लत साबित कर रहे थे. लेकिन उन्होंने अरस्तु के उस सिद्धांत को चुनौती नहीं दी थी, जो कहता था, धरती ब्रह्मांड के केंद्र में है और बाक़ी सभी चीजें उसके इर्द गिर्द घूमती हैं. बाक़ायदा अपने करियर की शुरुआत में गैलीलियो खुद इस बात पर विश्वास करते थे. फिर एक रोज़ एक घटना ने उनके मन में शक पैदा कर दिया.

Nicholas Copernicus
निकोलस कॉपरनिकस जिन्होंने यूरोप में पहली बार सूरज के ब्रह्माण्ड के केंद्र में होने की बात कही थी (तस्वीर- inquiriesjournal)

हुआ यूं कि उनके कुछ छात्रों को एक वैज्ञनिक सम्मेलन में बुलाया गया. जहां कॉपरनिकस की थियोरी का प्रदर्शन होना था. निकोलस कॉपरनिकस गैलीलियो से पिछली सदी में पैदा हुए थे. उन्होंने ये थियोरी दी थी कि ब्रह्मांड के केंद्र में धरती नहीं, बल्कि सूरज है. गैलीलियो इस थियोरी को बकवास मानते थे, इसलिए सम्मेलन में नहीं गए. जब उनके छात्र सम्मेलन से लौटे तो उन्होंने उनसे पूछा,

"किस-किस को कॉपरनिकस की थियोरी पर भरोसा हुआ?"

सभी छात्रों ने ना में जवाब दिया, सिवाय एक के. उसने बताया कि उसे कॉपरनिकस के तर्क सही जान पड़े. अब यहां  गैलीलियो के सोचने का तरीक़ा देखिए. कॉपरनिकस की थियोरी को टालना सरल था. क्योंकि पूरी दुनिया जिसके ख़िलाफ़ हो, उसे नकार देना कितना ही मुश्किल है. लेकिन अगर एक व्यक्ति  उसका समर्थन कर रहा है, तो पहली बात उस व्यक्ति में ऐसा कहने की हिम्मत है. दूसरा, वो  व्यक्ति सिर्फ़ तभी ये कहेगा, जब उसे कॉपरनिकस के तर्कों में दम लगा हो.

ये सोचकर गैलीलियो ने कॉपरनिकस के तर्कों का पढ़ना शुरू किया. और यहीं से वो यात्रा शुरू हुई, जिसने उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च के आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया. आगे क्या हुआ देखिए. साल 1615 तक गैलीलियो को भरोसा हो चुका था कि धरती के केंद्र में होने की बात ग़लत है. ये बात बाइबल के ख़िलाफ़ थी. इसलिए वो आम लोगों के सामने ये बात नहीं कहते थे. साल 1615 में उन्होंने इस बाबत एक ख़त में लिखा,

“प्रकृति को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि इंसान उसके नियमों पर विश्वास करे या नहीं”

इसी ख़त में गैलीलियो एक और बात लिखते हैं. वो कहते हैं.

“बाइबल में लिखा कुछ भी ग़लत नहीं, लेकिन प्रकृति के नियम भी ग़लत नहीं है. अगर दोनों के बीच कोई अंतर आता है, तो इसका मतलब है, हमें बाइबल के सूत्रों की व्याख्या को बदलना होगा”

अब ये बात रोमन कैथोलिक चर्च के ख़िलाफ़ थी. क्योंकि चर्च का क़ानून था कि बाइबल की व्याख्या का हक़ सिर्फ़ कुछ चुनिंदा लोगों के पास है. चर्च के पास जब ये खबर पहुंची कि गैलीलियो, बाइबल की दूसरी व्याख्या की बात कर रहे हैं. उन्होंने अपना एक पादरी गैलीलियो के पास भेजा. इस मुलाक़ात में गैलीलियो और चर्च के बीच एक समझौता हुआ. जिसमें कहा गया कि गैलीलियो सूरज के ब्रह्मांड के केंद्र में होने की बात को प्रसारित नहीं कर पाएंगे. ना इस मसले पर कोई किताब लिखेंगे ना पब्लिक में इस थियोरी को बढ़ावा देंगे. मामला यहीं शांत हो गया.

Galileos Dialogue Title Page
गैलीलियो ने एक किताब ‘Dialogue Concerning the Two Chief World Systems’ (तस्वीर- wikimedia commons)
पोप को अनाड़ी बोल दिया! 

यहां से कहानी पहुंचती है साल 1632 में. इस साल गैलीलियो ने एक किताब लिखी. जिसका शीर्षक था, Dialogue Concerning the Two Chief World Systems. इसी किताब के चलते गैलीलियो पर मुक़दमा चला. ऐसा क्या था इस किताब में?  ये किताब एक संवाद की शक्ल में लिखी गई थी. जो दो लोगों के बीच होता है. एक जो ये मानता है कि ब्रह्मांड के केंद्र में सूरज है, और दूसरा जो मानता है, कि केंद्र में पृथ्वी है. किताब में दोनों अपने-अपने तर्क देते हैं. चूंकि गैलीलियो खुद मानते थे कि केंद्र में सूरज है, इसलिए उन्होंने इसके पक्ष में अपने नज़रिए से तर्क लिखे, जबकि दूसरी तरफ़ के तर्क जरा कमजोर पड़ गए. अभी थोड़ी देर पहले हमने बताया था कि1616 में गैलीलियो ने चर्च से समझौता कर लिया था कि वो बाइबल की बात के विरोध में नहीं लिखेंगे. फिर उन्होंने ये किताब क्यों लिखी?

दरअसल ये किताब लिखने का सुझाव उन्हें खुद पोप ने दिया था. 1623 में चर्च के एक नए पोप बने, जिनका नाम था पोप अर्बन (आठवें). पोप बनने से पहले ये महोदय गैलीलियो के मुरीद हुआ करते थे. और उनकी वैज्ञानिक थियोरीज को काफ़ी बढ़ावा दिया करते थे. बल्कि जब 1616 में गैलीलियो के ख़िलाफ़ चर्च ने कड़ा कदम उठाया, अर्बन इसके ख़िलाफ़ थे. पोप बनने के बाद उन्होंने गैलीलियो से कहा कि वो कॉपरनिकस की थियोरी के पक्ष और विपक्ष में तर्क देते हुए एक किताब लिखें. गैलीलियो तैयार हो गए और उन्होंने किताब लिख डाली. हालांकि यहीं पर उनसे एक बड़ी गलती हो गई. किताब में जो पात्र, कॉपरनिकस की थियोरी का विरोध कर रहा था. उन्होंने उसे सिंपलटन नाम दिया. अंग्रेज़ी के इस शब्द का अर्थ होता है, अनाड़ी. एक अति साधारण आदमी.

पोप ने जैसे ही ये किताब पड़ी उन्हें ग़ुस्सा आ गया कि ये आदमी मुझे अनाड़ी बुला रहा है. उन्होंने गैलीलियो के ख़िलाफ़ मुक़दमा शुरू करने का आदेश दे दिया. 22 जून, 1633. गैलीलियो को चर्च के एक बड़े हॉल में बुलाया गया. उनके सामने 10 पादरी और पोप खड़े थे. मुक़दमे की  कार्रवाई पूरी हो चुकी थी. अब बस फ़ैसला बाक़ी था. घुटने के बल बैठे हुए गैलीलियो को ईश निंदा का दोषी करार दिया गया. गैलीलियो अपने बचाव में लगातार बोलते रहे लेकिन चर्च ने एक ना मानी. अंत में उन्हें अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी और सजा के तौर पर उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. बाद में आजीवन कारावास की सजा को नज़रबंदी में तब्दील कर दिया.

एक क़िस्सा मशहूर है कि सजा मिलने के बाद उन्होंने कहा था,

"लेकिन वो फिर भी घूमती है".

“मुझे चाहे सजा दे दो लेकिन धरती सूरज के इर्द गिर्द घूमती है”.

हालांकि ये बात कितनी सच है इसे लेकर भी मतभेद हैं. ये बात पहली बार उनकी मौत के 100 साल बाद एक किताब में लिखी गई थी. 

तीन उंगलियां क्यों काटी? 

एक मिथक ये भी है कि गैलीलियो को बहुत यातनाएं दी गई थी. इस बात में भी कोई सच्चाई नहीं है. सजा के वक्त गैलीलियो की उम्र 69 वर्ष थी. आगे की ज़िंदगी उन्होंने घर में नज़रबंद रहकर गुज़ारी. जिस दौरान सजा के तौर पर 3 साल तक रोज़ उन्हें बाइबल के सूत्र पढ़ने होते थे.गैलीलियो की मौत साल 1642 में हुई. चर्च ने उनके शरीर को उनके माता पिता के साथ दफ़नाने की इजाज़त नहीं दी. इसलिए एक छोटे से कमरे में उनके शरीर को दफ़नाया गया. साल 1737 में उनके शरीर को इस कमरे से निकाल कर उसकी उचित जगह पर दफ़नाया गया. और इस दौरान कुछ लोगों ने उनकी तीन उंगलियां और एक दांत निकाल लिया. ऐसा क्यों किया?

Pope Urbanus VIII
पोप अर्बन VIII जिनके कार्यकाल में गैलीलियो को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी (तस्वीर- wikimedia commons)

दरअसल ईसाई परंपरा में जिसे संत की उपाधि मिलती है, उनकी उंगली और शरीर के हिस्सों को अलग रखने की प्रथा है. ऐसा माना जाता है कि इन अंगों में दिव्य शक्तियां होती हैं. गैलीलियो के अनुयायियों से ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो दर्शाना चाहते थे कि धर्म के लिए चाहे वो संत हो ना हों, विज्ञान के लिए वो संत है. इत्तेफ़ाक देखिए कि गैलीलियो की जिन उंगलियों को निकाला गया,  वो वही थीं, जिनसे वो पेन पकड़ा करते थे. आज भी ये तीन उंगलियां, इटली के फ़्लोरेंस शहर के एक म्यूज़ियम में रखी हुई हैं. जहां तक रोमन कैथोलिक चर्च की बात है, गैलीलियो के साथ अन्याय हुआ, ये मानने में उसे 300 साल लग गए. साल 1992 में पोप ने माना कि गैलीलियो की बात सही थी.

वीडियो: तारीख: सौतेली मां हत्याकांड केस 120 सालों से चर्चा में क्यों

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