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कैसा था 'तानाशाह' Adolf Hitler का बचपन? चमड़े के चाबुक से क्यों मारते थे पिता?

हिटलर के पिता एलॉयस के भी कई नाजायज बच्चे थे. हिटलर की मां क्लारा से शादी से पहले उनकी दो शादियां हो चुकी थीं.

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the story of early life of a dictator adolf hitler
हिटलर के बचपन और जवानी की तस्वीर (PHOTO-विकीपीडिया)
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राजविक्रम
20 नवंबर 2024 (Updated: 20 नवंबर 2024, 22:44 IST)
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जर्मनी का म्यूनिक शहर. शुक्रवार का दिन. मार्च महीने की पंद्रहवीं तारीख. साल 1929. शहर का बर्गर-बुकेलर बियर हॉल, जहां जानी-पहचानी छोटी मूछों वाला, कुछ पांच फुट नौ इंच का एक आदमी तमाम लोगों के सामने एक भाषण दे रहा था. इसी हॉल में कभी नाज़ी पार्टी की पुनर्स्थापना की घोषणा की गई थी. यहीं दस साल बाद, साल 1939 में इसी शख्स की हत्या की कोशिश की जाएगी. जिसमें ये 13 मिनट के अंतर से बाल-बाल बचेगा. यहीं नाज़ी जर्मनी का फ्यूहरर. यानी एडॉल्फ हिटलर एक भाषण में कह रहा है,

“अगर इंसान जीना चाहते हैं, तो उन्हें दूसरों को मारने पर मजबूर होना पड़ता है. जब तक दुनिया में लोग हैं, राष्ट्र एक दूसरे के विरोध में रहेंगे. और वो अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए मजबूर किए जाएंगे. जैसे एक आदमी अपने अधिकारों की रक्षा करता है. शख्स या तो हथौड़ा हो सकता है या फिर निहाई. मैं कहता हूं कि यह हमारा मकसद है कि हम जर्मनी के लोगों को हथौड़ा बनने के लिए तैयार करें. ”

यही हथौड़ा यानी नाज़ी जर्मनी आगे चलकर करोड़ों लोगों की जान लेगा. गैस चैंबर्स में लोगों को सांस का मोहताज कर, मार दिया जाएगा. जंग में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल होगा. और आधी दुनिया युद्ध में झोंक दी जाएगी. इस सब के साथ एक नाम बार-बार लिया जाएगा. नाज़ी तानाशाह हिटलर, जो क्रूरता का पर्याय बन गया. जिसके एक इशारे पर हजारों लोग मरने-मारने को उतर गए. यही हिटलर जब छह साल का था, तब इसे मां से दूर भेज दिया गया था. पर क्यों? हिटलर स्कूल में अपना बस्ता कैसे रखता था? पढ़ाई में कैसा था? और हिटलर के पिता उसके साथ क्या सुलूक करते थे? 

hitler in paris
द्वितीय विश्वयुद्ध में पेरिस पर कब्जे के बाद हिटलर (PHOTO-WIKIPEDIA)
मकान नंबर 36

हिटलर कभी कलाकार बनना चाहता था, तो वो तानाशाह क्यों बना? क्या इसके राज़ उसके बचपन में छिपे हो सकते हैं? जानते हैं शुरुआत है. हिटलर के पिता के बचपन से.

खूबसूरत पहाड़ियों, पेड़ों और जंगल के पास बसा ऑस्ट्रिया का वॉल्ड-विएरटेल इलाका. सात जून, 1837 को यहां के स्ट्रोंस गांव में मारिया एन्ना स्किलग्रुबर एक बच्चे को जन्म देती हैं. 42 साल की मारिया की शादी नहीं हुई थी. चूंकि स्ट्रोंक्स में सुविधा नहीं थी, इसलिए बच्चे का पंजीकरण पास के एक कस्बे में करवाया गया. रजिस्टर में लड़के का नाम लिखा गया, एलॉयस स्किल-ग्रुबर. और नाम के आगे लिखा गया, ‘नाजायज’. इसके पिता के नाम की जगह खाली छोड़ दी गई. यही बच्चा एलॉयस, आगे चलकर हिटलर का पिता बनेगा.

खैर गांव में तरह-तरह की बातें चलीं. पर एलॉयस का पिता कौन था, ये राज़ नहीं खुला. माना जाता है कि पड़ोस का ही कोई शख्स रहा होगा. इस बात की संभावना भी जताई जाती है कि एलॉयस के पिता यानी हिटलर के दादा एक रईस यहूदी थे. जिनके घर में हिटलर की दादी मारिया काम करती थीं. कुछ वक्त बाद मारिया ने एक शख्स, जॉर्ज हीडलर से शादी कर ली. पर कुछ सालों बाद ही मारिया की मौत हो गई. और एलॉयस को हीडलर के एक रिश्तेदार ने - पुराने ऑस्ट्रिया के स्पिटल गांव में मकान नंबर 36 में पाला. यही फार्म हाउस और पड़ोस, हिटलर के बचपन में अहम भूमिका निभाने वाला बना. यहीं हिटलर ने गर्मियों की तमाम छुट्टियां बिताईं.

बहरहाल मां के गुजरने के बाद, युवा एलॉयस के लिए हालात ठीक ना थी . उसने घर से भागने का फैसला किया. इस बारे में हिटलर अपनी किताब माइन केम्फ़ में जिक्र करता है,

“उन्होंने महज तीन ग्लुडेन, यानी तब चलने वाले सोने के सिक्के लेकर, एक अंजान सफर पर निकले का फैसला किया.”

कुछ वक्त जूते सिलने से काम चलाया. और फिर एलॉयस ने तय किया कि अब जीवन में बेहतर राह तलाशनी है. और इसी राह में वो सिविल सर्वेंट बने. मेहनती होने के कारण प्रमोशन भी होते रहे. जल्द ही वो जर्मनी के पास इन्न नदी के तट पर कस्टम इंस्पेक्टर बन गए.

adolf hitler father
हिटलर के पिता एलॉयस (PHOTO-WIKIPEDIA)
एलॉयस स्किलग्रुबर से एलॉयस हिटलर

जिस शख्स ने एलॉयस को पाला था, उसने एलॉयस स्किलग्रुबर का नाम, अपने परिवार के नाम यानी हीडलर पर रखने की सोची. क्योंकि उस वक्त उनके छोटे से गांव में कस्टम ऑफिसर का पद बहुत बड़ा था. और वो इसे अपने परिवार के नाम से जोड़ना चाहते थे. इसके लिए तीन गवाह नोटरी दफ्तर पहुंचे, और झूठी गवाही दी कि एलॉयस, जॉर्ज हीडलर का ही बेटा था. जो कि नाजायज था. पर मरने से पहले, जॉर्ज वसीयत में उसे अपना जायज बेटा और उम्मीदवार बनाना चाहता था. 

बहरहाल इस सब के बाद एलॉयस ने हीडलर नाम ले लिया, पर इसकी स्पेलिंग H i t l e r  करवा दी गई. शायद उस वक्त स्पेलिंग पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता रहा हो. पर ऐसे हिटलर को उसका सरनेम मिला. कहा जाता है कि नाजायज होने का दाग एलॉयस के जहन में था, जिसके चलते वो अपना नाम बदलने को तैयार हो गया.  

इतिहासकार जॉन टॉलंड इस किस्से का एक मजाकिया पहलू बताते हैं. वो अपनी किताब एडॉल्फ हिटरल- द डिफिनेटिव बायॉग्रफी में लिखते हैं,

"किसी भी सूरत में एलॉयस का हिटलर नाम चुनना महत्वपूर्ण था. इस बात की कल्पना करना मुश्किल है कि लाखों जर्मन भीड़ ‘हेल स्किल-ग्रुबर’ चिल्ला रही हो."

इस किस्से से ये तो पता चलता है कि हिटलर के पिता एलॉयस का बचपन भी आसान ना था. पर सवाल ये कि इसका बेटे हिटलर के बचपन पर क्या असर पड़ा? इसे समझने के लिए चलते हैं, एक तानाशाह के बचपन में.

तानाशाह का बचपन

हिटलर के पिता एलॉयस के भी कई नाजायज बच्चे थे. हिटलर की मां क्लारा से शादी से पहले उनकी दो शादियां हो चुकी थीं. वो अपनी वर्दी पर गर्व करते थे और उसमें फोटो खिंचवाना पसंद करते थे. पैरेंटिंग के मामले में वो एक स्ट्रिक्ट पिता थे. इतने कि इनकी मार और अनुशासन से परेशान होकर बड़ा बेटा एलॉयस जूनियर यानी एडॉल्फ हिटलर का सौतेला भाई घर से भाग गया था. वो शिकायत करता था कि उसके पिता उसे दरियाई घोड़े की खाल से बने चाबुक से मारते थे. वो भी बेहद बुरी तरह. हालांकि उस वक्त ऐसी पिटाई ऑस्ट्रिया में आम बात थी. ये आत्मा के लिए अच्छी चीज मानी जाती थी.

एक बार छोटा एलॉयस जूनियर नाव का खिलौना बनाने के लिए, तीन दिन तक स्कूल नहीं गया. इस बात के लिए, उसे तब तक कोड़े मारे गए जब तक वो बेहोश नहीं हो गया. एलॉयस जूनियर के मुताबिक यह हिंसा मां क्लारा तक भी पहुंचती थी. अगर ऐसा है, तो बच्चे हिटलर पर इसके असर को समझा जा सकता है. 1948 को दिए एक इंटरव्यू में एलॉयस जूनियर बताते हैं,

“वह बचपन से ही गुस्सैल था और किसी की नहीं सुनता था. मेरी सौतेली मां हमेशा उसका साथ देती थी. वह किसी भी तरह की बात से बचकर निकल जाता था. अगर उसके मन की ना की जाए तो वो बेहद गुस्सा हो जाता था. उसके कोई दोस्त नहीं थे, ना उसने बनाए. वो कई बार बेदिल हो सकता था. मामूली सी बात पे आग बबूला हो जाता था.”

खैर सौतेले भाई के भागने के बाद, एडॉल्फ ही अपने पिता के गुस्से का निशाना बनता. उसे तमाम काम लाद दिए जाते. और उम्मीदों पर खरा ना उतने के लिए खूब सुनाया जाता. शुरुआत में हिटलर ने पढ़ाई पर ध्यान भी दिया. इसके नंबर भी बेहतरीन रहते थे और इसे सबसे अच्छा ग्रेड मिलता. वो गाने में भी रुचि रखता और नेचुरल आवाज के चलते कई बार स्कूल की प्रार्थना सभा में गाता भी था. सभा के रास्ते में उसे मॉनेस्ट्री का निशान दिखता, जिसमें स्वास्तिक का निशान भी शामिल  था. बचपन में हिटलर को प्रीस्ट बनने का बड़ा शौक था. वो किचन में काम करने वाली की ड्रेस किसी पपादरी की तरह पहनता. और प्रवचन देने की नकल करता. उसकी धार्मिक मां को ये करियर भाता भी. पर एडॉल्फ को जितनी जल्दी चीजों का शौक चढ़ता, उतनी ही जल्दी उतर भी जाता है. एक दिन तो वो सिगरेट पीते हुए पकड़ा गया था.

पिता का सुलूक

सौतेले भाई की तरह, एडॉल्फ हिटलर को भी पिता की मार सहनी पड़ी. उसकी बहन, पाउला के मुताबिक ‘हिटलर’ को रोज़ अपने हिस्से की मार मिलती थी. परेशान होकर एक रात उसने ऊपर की खिड़की से भागने की भी सोची. इस बारे में जॉन टॉलंड लिखते हैं,

“पिता के उत्पीड़न के चलते एडॉल्फ हिटलर ने घर से भागने का फैसला किया. लेकिन किसी तरह उसके पिता को इसकी भनक लग गई. उसे ऊपर के कमरे में बंद कर दिया गया. रात में इसी कमरे की संकरी खिड़की से एडॉल्फ ने आजादी का रास्ता देखा. उसने अपने कपड़े उतारे. जैसे ही वो बाहर निकलने वाला था, उसने अपने पिता के पैरों की आवाज सुनी. और वापस कमरे में आकर, एक चादर से अपने नग्न शरीर को ढका. इस बार पिता ने उस पर चाबुक नहीं चलाए. बल्कि उसकी मां क्लारा को बुलाकर कहा, ‘देखों चोगा पहने लड़के को’. और उसका मजाक बनाया. इस घटना से उबरने में हिटलर को लंबा वक्त लगा.”

स्कूल का सफर

पिता से इतर हिटलर की मां सरल स्वभाव की थीं और उसे प्रेम करती थीं. छोटा एडॉल्फ मां से करीब भी रहता था. पर छह साल की उम्र में एडॉल्फ हिटलर को उसकी मां से अलग कर दिया गया और कई किलोमीटर दूर एक प्राइमरी स्कूल में भर्ती करवा दिया गया. यहां उसकी शिक्षा का दामोरदार उसके सख्त पिता पर था. जो चालीस साल की नौकरी के बाद हाल ही में रिटायर हुए थे. एडॉल्फ को अपनी बहन के साथ, एक घंटे सफर करके स्कूल जाना पड़ता था. स्कूल दो हिस्सों में बंटा था, जिसमें एक हिस्सा लड़कियों के लिए और एक हिस्सा लड़कों का होता था. वहीं नन्हें हिटलर ने अपने टीचर पर भी अच्छा प्रभाव छोड़ा था. जो उसे मेंटली एलर्ट, बात मानने वाला और खुशमिजाज बताते थे. टीचर के मुताबिक दोनों ही भाई बहन स्कूल में अपना बस्ता एकदम व्यवस्थित रखते थे.

सवाल ये कि इस सब का हिटलर के बाद के जीवन पर क्या असर पड़ा? इस बारे में स्विस मनोवैज्ञानिक एलिस मिलर, अपनी किताब ‘फॉर योर ऑन गुड’ में जिक्र करती हैं, 

“हिटलर के पास कभी कोई दूसरा ऐसा इंसान नहीं था, जिसके साथ वो अपनी असल भावनाओं को बांट सकेे. ना सिर्फ असके साथ बुरा बर्ताव होता था, बल्कि उसेे अपना दर्द महसूस और बयां करनेे से भी रोका गया. उसके कोई बच्चे भी नहीं थेे, जिन पर वो अपनी नफरत निकालता. और शिक्षा की कमी के चलतेे वो अपनेे भीतर की घृणा का बौद्धिकरण भी नहीं कर पाया. अगर इनमें से एक भी वजह कम होती, तो शायद हिटलर कभी वो अपराधी नहीं बन पाता, जो वो बना.”

बकौल एलिस, हिटलर अकेला नहीं था. वो कभी ऐसा ना बन पाता, अगर उसकेे लाखों अनुयायियों ने उसके जैसा बचपन नहीं देखा होता.

खैर हिटलर के पिता ज्यादा दिन नहीं रहे. साल 1903 में एक रोज वो अपनी सुबह की ड्रिंक के लिए गए. कुछ ठीक ना लगने की शिकायत की और कुछ ही देर बाद फेफड़ों में पानी भरने के चलते मर गए. कुछ वक्त बाद परिवार लिंज के एक अपार्टमेंट में रहने आ गया. पिता की गैरमौजूदगी में हिटलर ने पढ़ाई में बुरा प्रदर्शन किया और हाई स्कूल पास नहीं कर सका.

साल 1908 में वो अपने दोस्त गस्टल के साथ विएना आ गया. गस्टल ने संगीत अकादमी में दाखिला लिया. लेकिन हिटलर कला अकादमी में एडमिशन ना ले सका और कुंठित हो गया. शुरुआत में दोनों के पास पैसे कम होते थे, पर दोनों साथ में ओपेरा और म्यूजियम घूमने जाया करते थे. खाली वक्त में हिटलर कहानियां लिखता और स्केच भी बनाता. कुछ वक्त ऐसे ही बीता. फिर वो एक बार और, कला अकादमी में दाखिले का प्रयास करता है. पर फिर फेल हो जाता है.

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1912 में हिटलर द्वारा बनाई गई पेंटिंग (PHOTO-WIKIPEDIA)

पैसों की तंगी के चलते उसे यहां वहां सिर छिपाने की जगह खोजनी पड़ती हैं. वहीं कुछ वक्त बाद ही, साल 1914 में जर्मनी पहले विश्व युद्ध में शामिल होता है. चार साल बाद, साल 1918 के पतझड़ में एक तरफ जर्मनी हार के नजदीक था. दूसरी तरफ देश में हड़ताल के हालात थे. ऐसे दौर में हिटलर भी उन युवकों में था जिन्हें इस बात का यकीन था कि रईस यहूदियों ने देश को धोखा दिया. और फादरलैंड यानी जर्मनी की पीठ पर छुरा भोंका. इसके बाद नाज़ी पार्टी को खड़ा किया जाता है, और हिटलर दूसरे विश्व युद्ध की जमीन तैयार करता है, जो किसी त्रासदी से कम नहीं था.

वीडियो: तारीख: हिटलर तानाशाह कैसे बना? उसके पिता के पास चमड़े का चाबुक क्यों था?

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