17वीं शताब्दी में मुग़ल और उनकी भव्यता, भारत आए कई यात्रियों को अपनी कल्पना सेपरे लगते थे. इन यात्रियों में अंग्रेज़ भी शामिल थे. यही कारण था कि उन्होंने यहांआकर व्यापार करना शुरू किया.जॉन मिल्टन लंदन में पैदा हुए एक अंग्रेज़ी कवि थे. उनकी बहुत फ़ेमस कविता है''Paradise Lost". हम जानते हैं कि ईसाई धर्म में दुनिया के पहले आदमी और औरत कोएडम और ईव का नाम दिया गया है . जॉन मिल्टन की इस कविता में लिखा है कि एडम को आगराशहर इस तरह से दिखाया गया कि आने वाले टाइम में ये शहर दुनिया का एक अजूबा होगा.ताजमहल देखने के लिए औसतन हर साल 21 करोड़ रुपए के टिकट बिकते हैं.मुग़लों को बगीचे और भव्य इमारतें बनवाने का बहुत शौक था. इसलिए इस बात में कोई दोराय नहीं है कि उनके बनाए शहर अद्भुत दिखते थे. मुग़लों के समय में आगरा भी नदीकिनारे बसे एक ऐसे शहर की तरह विकसित हुआ, जिसमें बहुत से सुंदर बगीचे थे. शहर केजितने भी नामी गिरामी लोग थे उन सभी के बड़े आलीशान मकान और बगीचे थे. एब्बा कोच एकइतिहासकार हैं, उन्होंने अपनी किताब ''The Complete Taj Mahal" में शहर के इन सारेनामी गिरामी लोगों के नाम मैप के साथ लिख रखे हैं. कुछ लोगों के मकान नदी किनारे,किले के पास थे, उनमें महाबत ख़ान, असफ़ ख़ान, मुकीम खान, दारा सुकोह और मान सिंहका नाम शामिल है.जब मुमताज़ महल ये दुनिया छोड़कर गईं, तब तय किया गया कि उन्हें अकबराबाद मेंदफ़नाया जाएगा. उस समय आगरा को अकबराबाद कहा जाता था. मकबरा बनाने के लिए सही जगहकी तलाश शुरू हुई. मुमताज़ के पति ने तय कर लिया था कि वो अपनी पत्नी का मकबरास्वर्ग जितना सुंदर बनाएंगे.16वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक, मुग़ल साम्राज्य दुनिया का सबसे अमीर औरसबसे शक्तिशाली साम्राज्य था.एक भव्य और विशाल मकबरे का निर्माण किया जाना था. चूंकि मकबरे का स्ट्रक्चर बहुतभारी होना था, इसलिए आर्किटेक्ट्स ने तय किया कि स्ट्रक्चर को सहारा देने के लिएगहरे गड्ढों के ऊपर लकड़ी के मोटे तख्ते लगाए जाएंगे. तय किया गया कि मकबरा यमुनानदी के पास बनेगा. ये सबसे सही जगह लग रही थी. ये ज़मीन राजा मान सिंह के नाम थी,जो कि अकबर के सेनाध्यक्ष थे. चूंकि राजा मान सिंह और मुग़लों के परिवारों मेंशादियां तक हुई थीं, इसलिए उनके बीच संबंध अच्छे होना लाज़िमी है.1631 में जब मुमताज़ महल की मौत हुई, तब उस ज़मीन के हकदार थे राजा जय सिंह, जो किमान सिंह के पोते थे. हालांकि शाहजहां और राजा जय सिंह ने कभी नहीं सोचा होगा कि एकदिन उनकी प्रोपर्टी की ऐसे जांच की जाएगी. फिर भी शुक्र है, मुग़ल प्रशासन ने नसिर्फ़ हज़ारों दस्तावेज़ तैयार किए बल्कि उन्हें संरक्षित करके भी रखा. इनदस्तावेज़ों में से ज़्यादातर दस्तावेज़ तो खो गए, फ़िर भी कुछ तो बचे ही हैं.राजा जय सिंह. Source: Wikipediaबाबर और जहांगीर जैसे मुग़लों ने तो खुद ही अपने संस्मरण लिखे. बाकियों के संस्मरणउनके सरकारी इतिहासकारों ने लिखे. इनके अलावा और भी कई दस्तावेज़ लिखे गए, जिनसेहमें उस काल की हर जानकारी मिलती है. शाहजहां के समय भी सरकारी इतिहासकारों ने ऐसेही दस्तावेज़ तैयार किए. ये दस्तावेज़ थे क़ाज़विनी, अब्दुल हमीद लाहौरी, मोहम्मदवारिस और मोहम्मद सालेह कान्बो के पादशाह नामे.इन सबसे शाहजहां के शासनकाल के बारे में काफ़ी कुछ पता चलता है. 19वीं और 20वींशताब्दी में भी शाहजहां के शासनकाल पर बहुत लिखा गया, लेकिन उन दस्तावेज़ों मेंलिखे फ़ैक्ट्स सही हैं, इसकी कोई गारंटी नहीं है.वेन एडिसन बैगली, ज़ियाउद्दीन.ए देसाई ने अपनी किताब 'Taj Mahal: The IlluminedTomb' में शाहजहां के समय लिखे गए सारे दस्तावेज़ों का संकलन किया है. इन सारीकिताबों से मुझे पता चला कि इस मकबरे को बनाते समय कितने ध्यान से सारी बातों कोदस्तावेज़ों में उतारा गया था.'Taj Mahal: The Illumined Tomb' किताब का कवरइनमें लिखा है कि राजा जय सिंह इस नेक काम के लिए अपनी ज़मीन मुफ़्त में देना चाहतेथे लेकिन बादशाह तैयार नहीं थे. उन्होंने मकबरा बनाने के लिए मिली जगह के मुकाबलेऔर भी विशाल हवेली राजा को दे दी.दो किताबों से मिली जानकारी और एक राजसी 'फ़रमान' के ट्रांसलेशन से पता चलता है किराजा जय सिंह की हवेली के बदले उन्हें चार हवेलियां दी गई थीं.लाहौरी और काज़विनी में बताया गया है कि आगरा के दक्षिणी हिस्से की ज़मीन में वो हरबात थी जो उस जगह को रानी के मकबरे के लिए स्वर्ग का फ़ील देती. काज़विनी में ये भीलिखा है कि वो जगह राजा जय सिंह की थी.उसमें ये भी लिखा हुआ है कि राजा उसे फ्री में देने को तैयार था, फिर भी शाहजहां नेइसके बदले में उन्हें आलीशान महल दिए. मोहम्मद सालेह कान्बो में भी यही बात लिखीहुई है.जयपुर के सिटी पैलेस में इस फ़रमान की सर्टिफ़ाइड कॉपी रखी हुई है. फ़रमान केमुताबिक 1631 में जब तय हुआ था कि उसी जगह मुमताज़ का मकबरा बनेगा, उसी समय राजा जयसिंह ने वो जगह उन्हें दे दी थी. लेकिन इसके बदले में शाहजहां ने 28 दिसंबर, 1633को उन्हें चार हवेलियां दीं.--------------------------------------------------------------------------------ये आर्टिकल राना सफवी ने डेली ओ के लिए लिखा था. इसे रुचिका ने दी लल्लनटॉप के लिएट्रांसलेट किया है. सफवी एक इतिहासकार हैं. साथ ही एक ब्लॉगर और लेखिका भी. आर्टिकलमें लिखे हुए विचार लेखिका के निजी विचार हैं और दी लल्लनटॉप इससे सहमत या असहमत होसकता है. -------------------------------------------------------------------------------- ये भी पढ़ें:'मुग़लों के बारे में वो झूठ, जिसे बार-बार दोहराकर आपको रटाया जा रहा है'मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद उसके वंशज गलियों में भीख मांगते थेमुगलों की वो 5 उपलब्धियां, जो झूठ हैंजोधाबाई का चौंकाने वाला सच सामने आया, राजपूत हो सकते हैं नाराजकोहिनूर ले जाने वाले नादिर शाह के संग जाने से एक तवायफ ने क्यों इनकार किया था?--------------------------------------------------------------------------------वीडियो देखें: