देवी सती दक्ष और प्रसूति की बेटी, मतलब ब्रह्मा जी की पोती थीं. शिव जी से शादीकरने के लिए उन्होंने बहुत कठिन तपस्या की थी. वो शिव की पहली पत्नी थीं और शिवउनसे बहुत प्यार करते थे. एक बार सती के पापा ने घर में बहुत भारी यज्ञ किया. उसमेंउन्होंने शिव को इनवाइट नहीं किया. सती को जब इस बारे में पता चला तो बहुत अपसेट होगईं. उन्होंने भगवान शिव से चलने की रिक्वेस्ट की पर सेल्फ-रेस्पेक्ट के चक्कर मेंशिव नहीं गए. वो ज़िद करती रहीं और शंकर जी मना करते रहे. पार्वती जी भी गुस्से मेंअकेली ही निकल लीं. उनको अकेले जाता देख शंकर जी भी चेले-चपाटी के साथ चल दिए.मायके पहुंचकर भी सती को बहुत कुछ झेलना पड़ा. उनके मायके वाले शंकर जी के खूबउल्टा-सीधा बक रहे थे. जब बात बर्दाश्त के बाहर हो गई तो सती अपने पापा से बोलीं किमुझे आपकी बेटी होते हुए आज शर्म आ रही है क्योंकि आपने भगवान की इज्जत करना नहींसीखा. आगे कभी लोग आपके नाम से मेरा नाम जोड़ेंगे जो मुझे बहुत दुख होगा. ऐसे मेंअच्छा यही है कि में अपनी जान ले लूं. फिर पापा दक्ष और सभी लोगों के सामने सती नेपीला कपड़ा ओढ़ा और यज्ञ में जा बैठीं. सती के नाम से आज सती प्रथा को जोड़ा जाता है.ये तो आपको पता ही होगा कि यह एक ऐसा रिवाज था जिसमें औरतें खुद को पति की जलतीचिता में झोंक देती थीं. सती के सबसे पुरानी घटनाओं के सबूत चौथी सदी से मिलते हैं.पर यह प्रैक्टिस कैसे और क्यों शुरू हुई इसके पीछे की सही-सही कहानी का पता लगानामुश्किल है. जानकार मानते हैं कि यह प्रथा क्षत्रियों में पहले शुरू हुई. लड़ाइयोंमें जब क्षत्रिय हार जाते थे, तब उनकी पत्नियों पर हमेशा दुश्मनो से सताए जाने औरबलात्कार का खतरा रहता था. तब अपना 'मान बचाने' के लिए औरतें सुसाइड करना ही सहीसमझती थीं. तब इस प्रथा को 'सहगमन' मल्लब कि पति के साथ जाना, या फिर 'सहमरण' यानीपति के साथ मरना कहते थे. राजपूतों में इसी को जौहर कहा गया है. युद्ध के टाइम जबकई सैनिक एक साथ मारे जाते थे, तो उनकी पत्नियां एक साथ जलती हुई आग में कूद जातीथीं. सती की कहानी से सती प्रथा को जोड़ा जाता है. बाद के दिनों में 'सती हो जाना'विधवा की पवित्रता का प्रूफ हो गया था. बात औरतों के मान से शिफ्ट होकर आदमियों,फिर जाति और फिर कुल के मान की हो गई थी. लेकिन औरत सिर्फ शिकार बनी रही. सिर्फहिंदुओं, जैनों और सिखों में ही नहीं, साउथ-ईस्ट एशिया और इंडोनेशिया तक में सती कीघटनाएं देखी गईं. हालांकि 1857 की लड़ाई के कुछ साल बाद ही यह प्रथा बैन कर दी गई.फिर भी कुछ कमदिमाग़ लोगों ने उसे ज़िंदा रखा और कुछ साल पहले तक ऐसे केस सामने आतेरहे. रिकॉर्ड्स के मुताबिक सती का लेटेस्ट केस 1987 में राजस्थान के सीकर जिले मेंदेवराला गांव से आया. शादी के 8 महीने बाद ही जब पति मर गया तो 18 साल की रूप कंवरभी उसकी चिता के साथ जल गई. कुछ लोगों ने कहा कि उसके साथ ज़बरदस्ती की गई. कुछ कामानना था कि ऐसा उसने अपनी इच्छा से किया. अगर औरत अपनी इच्छा से भी सती जैसी प्रथामें भाग ले, तब भी इस पर विचारना चाहिए कि वह अपनी मर्जी से जान देने को क्यों आतुरहोती है? इसकी जड़ें आपको पुरुष सत्ता के चरित्र में मिलेंगी. भले ही सती जैसी चीज़खत्म हो गयी है, पर अब भी औरत को उसके शरीर और उसकी सेक्स लाइफ के आधार पर जज कियाजाता है. पवित्रता और उसके प्रमाण का बोझ ढोती हुई औरत आज भी मानसिक तौर पर तो सतीहोती ही है. (श्रीमद्भगवत महापुराण)