एलोरा की गुफाओं में क्या एलियंस ने बनाया कैलाश मंदिर?
1200 साल पहले बने इस मंदिर का रहस्य, जो आज तक सुलझ नहीं पाया!
साल 1819 की बात है. जान स्मिथ नाम का एक ब्रिटिश आर्मी अफसर एक रोज़ शिकार के लिए निकला. महाराष्ट्र के औरंगाबाद से कुछ 100 किलोमीटर दूर सह्याद्री की पहाड़ियों पर मौजूद जंगल में उसे एक नदी दिखाई दी. जिसे स्थानीय लोग वाघोरा बुलाते थे. इस नदी के किनारे घूमते हुए स्मिथ शिकार की तलाश कर रहा था, जब नदी से ऊपर पहाड़ियों पर उसे एक गुफा का मुहाना दिखाई दिया. गुफा में बाघ हो सकता है, ये सोचकर स्मिथ गुफा के अंदर गया. रौशनी जलाकर जब उसने गुफा के अंदर देखा तो नजारा देखकर हैरान रह गया. ये अजंता की गुफाएं थीं. (Kailasa Temple, Ellora)
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स्मिथ ने इन गुफाओं की खोज नहीं की लेकिन वो पहला यूरोपियन शख्स था जो इन गुफाओं तक पहुंचा. अजंता और एलोरा (Ajanta Ellora Caves) ये दो नाम एक साथ लिए जाते हैं. लेकिन ये गुफाओं के दो अलग-अलग समूह है. जिन्हें लगभग 1500 साल पहले बनाया गया था. 1500 साल में इन गुफाओं के बारे में हम बहुत कुछ जान चुके हैं. लेकिन बहुत कुछ ऐसा है जो जानना बाकी है. मसलन एलोरा की गुफा नंबर 16 में बना कैलाश मंदिर. एक चट्टान को काटकर बना ये मंदिर भारतीय वास्तुकला का ऐतिहासिक नमूना भी है और अचरज का कारण भी. कोई कहता है, एलियन बना गए. कोई कहता इसके नीचे दिव्य अस्त्र छिपे हैं?
क्या है इस मंदिर की कहानी? कैसे बना, किसने बनाया और क्या हैं इससे जुड़े रहस्य? (Mysteries of Kailasa Temple)
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ऊपर से नीचे क्यों बना मंदिर?एलोरा में 100 से अधिक गुफाएं हैं. लेकिन इनमें से सिर्फ 34 ऐसी हैं जिन्हें पब्लिक के लिए खोला गया है. माना जाता है कि ये गुफाएं 500 ईस्वी से 1000 ईस्वी के बीच बनाई गई थी. क्या है इन गुफाओं में?इन गुफाओं में धार्मिक और पौराणिक कलाकृतियां बनी हुई हैं. जिनसे पता चलता है कि 1 से लेकर 12 नंबर की गुफा बौद्ध धर्म से सम्बंधित हैं. जिन्हें सम्भवतः बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाया गया होगा. 13 से 29 नंबर की गुफाएं, हिन्दू धर्म से सम्बंधित है. और 30 से 34 नंबर की गुफाओं का संबंध जैन धर्म के साथ है. (Ellora Caves Mystery)
इन गुफाओं की खास बात ये है कि ये चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं. चट्टान को काटकर उसमें निर्माण करना, ऐसे उदाहरण दुनिया भर में मिलते हैं. लेकिन एलोरा की गुफाएं कुछ अनूठी हैं. खासकर 16 नंबर गुफा. जिसमें बना है कैलाश मंदिर. 300 फ़ीट लम्बा, 175 फ़ीट चौड़ा और ऊंचाई 100 फ़ीट. खास बात ये है कि इस मंदिर को सिर्फ एक चट्टान को काटकर बनाया गया है. कुछ भी जोड़ा नहीं गया है. सारा काम नक्काशी के जरिए हुआ है. हालांकि इस मंदिर की एक और खासियत है जो इसे बिल्कुल अनूठा बनाती है.
जिस तरह ये मंदिर बनाया है, उससे पता चलता है कि इसे चट्टान को ऊपर से नीचे की ओर काटकर बनाया गया. जबकि दुनिया भर में ये सामान्य तरीका दिखाई देता है कि चट्टान को सामने या नीचे से ऊपर की ओर काटकर तराशा जाए. ऐसा क्यों किया गया? ठीक-ठीक तो नहीं बताया जा सकता लेकिन एक लोक कहानी है जो इस ओर इशारा करती है.
इस कहानी के अनुसार अलाजपुर नाम का राज्य हुआ करता था. जिसके राजा का नाम था एलु. एक बार एलु भयंकर बीमार पड़े. तब उनकी रानी ने जंगल में जाकर भगवान घृष्णेश्वर की पूजा की. और उनसे प्रार्थना की कि अगर राजा सही हो गए तो वो भगवान शिव का एक मंदिर बनाएगी. और तब तक खाना नहीं खाएगी जब तक वो उस मंदिर का शिखर बनते न देख ले. इसके कुछ समय बाद राजा की बीमारी ठीक हो गयी. और तब रानी ने राजा से कहकर एलोरा में एक शिव मंदिर का निर्माण शुरू करवाया.
दिक्कत ये थी कि मंदिर बनाने में सालों का वक्त लग सकता था. और तब तक रानी भूख से मर जाती. इसलिए राजा ने अपने कारीगरों से कहा कि वो मंदिर का निर्माण ऊपर से नीचे की ओर करें. ताक़ि सबसे पहले उसका शिखर बन सके. और शिखर देखकर रानी अपना व्रत तोड़ सकें. कहानी कहती है कि मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद उन्होंने इसका नाम मणिकेश्वर रखा और आसपास एलापुर नाम का एक शहर भी बसाया.
पुरातत्वविदों का क्या कहना है?उनके अनुसार इस मंदिर का निर्माण 800 से हजार ईस्वी के बीच हुआ था. पहले इस इलाके पर चालुक्य वंश का राज था. बाद में राष्ट्रकूट शासकों ने चालुक्यों को हटाकर यहां अपना शासन जमा लिया. राष्ट्रकूट राजवंश के अभिलेखों के अनुसार कैलाश मंदिर का निर्माण राजा कृष्ण प्रथम ने करवाया था. जिसे बनाने में 18 साल का समय लगा. कई पुरातत्व विद ये भी मानते हैं कि इस विशालकाय मंदिर का निर्माण एक चरण में नहीं किया गया होगा. बल्कि इसे कई सालों में अलग अलग राजाओं द्वारा बनाया गया होगा. शुरुआत में इस मंदिर को कृष्णेश्वर कहा जाता था. लेकिन फिर इसे कैलाश मंदिर कहा जाने लगा. क्योंकि इस पूरे मंदिर को सफ़ेद रंग से रंगा गया था. जो दिखने में एकदम कैलाश पर्वत की तरह दिखाई देता था. हिन्दू पुराणों के अनुसार कैलाश पर्वत शिवजी का निवास स्थान है. ये मंदिर दिखने में कैसा है?
यूं तो बिना विजिट किए इस मंदिर की वास्तुकला का बखान नहीं किया जा सकता लेकिन फिर भी आपको बताते हैं , इस मंदिर में क्या क्या है? मंदिर के आगे एक प्रवेश द्वार बना हुआ है. जिसके ऊपर दो मंजिला गोपुरम बना हुआ है. अगल-बगल शैव और वैष्णव परंपरा की मूर्तियां है. प्रवेश द्वार के अंदर घुसते ही आंगन पड़ता है जो U के शेप में बना हुआ है. सामने कमल के फूल पर बैठी गजलक्ष्मी की मूर्ति बनी है. जिसके ऊपर दो हाथी मटके से पानी डाल रहे हैं. इसके अलावा हाथियों की और भी कई तस्वीरें और मूर्तियां है. मंदिर के अंदर उत्तर और दक्षिण की तरफ दो विशालाय हाथी बने हैं. जिनसे पता चलता है कि हाथी राष्ट्रकूट राजाओं को काफी पसंद थे. इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि राष्ट्रकूट वंश के राजा युद्ध में हाथियों के इस्तेमाल के लिए जाने जाते थे.
मंदिर के गर्भगृह के ऊपर एक टावर बना हुआ है जिसे शिखर कहते हैं. ये आठ कोण में बना है. इसके अलावा मंदिर के अंदर भगवान शिव और उनके वाहन नंदी के मंडप बने हुए है जो आपस में पुल से जुड़े हुए हैं. मंदिर की दीवार पर पुराणों से जुड़ी तस्वीरें बनी हैं. मसलन एक दृश्य ऐसा है जिसमें रावण कैलाश पर्वत को हिला रहा है.इनके अलावा रावण द्वारा देवी सीता का अपहरण, भगवान राम का हनुमान से मिलना, ऐसे कई दृश्य इन दीवारों पर उकेरे गए हैं. रामायण के अलावा महाभारत के दृश्य भी दिखाई देते हैं.
क्या एलियंस ने बनाया?कैलाश मंदिर का इतिहास और इसकी वास्तुकला जितनी दिलचस्प है, उतने ही दिलचस्प हैं इससे जुड़े मिथ. ऐसे व्हाट्सप्प फोर्वर्ड्स की कमी नहीं जो दावा करते हैं कि इस मंदिर को एलियन ने बनाया है. वहीं ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर के नीचे एक पुरातन सभ्यता रहती थी. जिनके पास एक ऐसा दिव्य अस्त्र था, जो चट्टान को भाप में चेंज कर सकता है. ब्रिटिश लेखक क्रिस्टफर हिचेन्स एक जगह कहते हैं, what can be asserted without evidence can also be dismissed without evidence. यानी बिना सबूत किसी चीज का दावा किया जा सकता है तो बिना सबूत उसे खारिज भी किया जा सकता है. एलोरा के कैलाश मंदिर को लेकर जो मिथकीय दावे हैं, उनके बारे में कोई सबूत उपलब्ध नहीं है. इसलिए उन्हें टटोलने की जरूरत नहीं है. लेकिन इस मंदिर के बारे में ज़रूर कुछ दिलचस्प बातें है, जिनके चलते ये दावे किए जाते हैं.
मसलन कैलाश मंदिर का निर्माण जिस तरीके से हुआ, वो ऐसे कई सवाल पैदा करता है जिनके जवाब पुरातत्वविदों द्वारा खोजे जाने बाक़ी हैं. जैसा पहले बताया, ये मंदिर चट्टान को ऊपर से नीचे की ओर तराश कर बनाया गया था. बेसॉल्ट की बनी इन चट्टानों की बाहरी परत नरम थी. जिन पर नक़्क़ाशी कमोबेश आसान थी. लेकिन पूरा ढांचा बनाने के लिए चट्टान को भीतर तक खोदना पड़ा होगा. जिसके लिए चट्टान के बड़े बड़े टुकड़े निकाले गए होंगे. एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर को बनाने के दौरान करीब 2 लाख टन चट्टान काटकर बाहर निकाली गई होगी. लेकिन अचरज की बात ये है कि इतना मलबा कहां गया, इसका कोई साक्ष्य नहीं मिलता. मंदिर के आसपास दूर दूर तक कहीं चट्टान का मलबा नहीं मिलता. जाहिर है इस दौरान चट्टान के बड़े बड़े टुकड़े निकाले गए होंगे. लेकिन वो कहीं नहीं दिखाई देते.
इसके अलावा एक कमाल की बात ये है कि उस दौर में निर्माण कार्य के लिए हथौड़ी और छेनी का इस्तेमाल होता था. इन छोटे हथियारों से इतनी बड़ी चट्टान को काटना और एक विशालकाय मंदिर बना देना, ये बात भी अपने आप में काफी अचरज भरी है. कुछ दावे हैं जो बताते हैं कि इस मंदिर की बनावट बहुत हद तक पट्टडकल के विरुपाक्ष मंदिर से मिलती है. विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण चालुक्य वंश ने करवाया था, इसलिए बहुत संभावना है कि जिन कारीगरों ने विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण किया, शायद वही कैलाश मंदिर के इस्तेमाल में लाए गए. कारीगरों के पास चूंकि मंदिर का एक पुराना मॉडल उपलब्ध था, शायद इसी कारण इसे बनाने में कमोबेश कम वक्त लगा. या ये भी सच हो सकता है कि एक लम्बे अरसे में अलग अलग राजाओं के इसके अलग अलग हिस्से बनवाए.
सच जो भी हो, शायद आने वाले वक्त में हमें पता चले. लेकिन इतना तय है कि कैलाश मंदिर नक़्क़ाशी, वास्तुकला, का एक बेहतरीन नमूना है. जो प्रूव करता है कि भारत में हज़ारों साल से एक उन्नत सभ्यता का निवास रहा है.
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