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मलेशिया का वो कांड जिसने प्रधानमंत्री को तबाह कर दिया

नाज़िब रज़ाक की कहानी क्या है? वो जेल तक कैसे पहुंचे?

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नाज़िब रज़ाक की कहानी क्या है? वो जेल तक कैसे पहुंचे?
नाज़िब रज़ाक की कहानी क्या है? वो जेल तक कैसे पहुंचे?
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अभिषेक
24 अगस्त 2022 (Updated: 25 अगस्त 2022, 23:50 IST)
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मलेशिया में एक ऐतिहासिक घटना घटी है. 23 अगस्त को मलेशिया की एक अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री नजीब रज़ाक की अंतिम अपील ठुकरा दी. रज़ाक ने गुज़ारिश की थी कि अगर सज़ा कम नहीं कर सकते तो थोड़ी देर कर दीजिए. थोड़ी सी मोहलत दीजिए. अदालत ने कहा, नो मीन्स नो.

मलेशिया जिस इलाके में पड़ता है, उधर की तरफ़ इतने ऊंचे कद के नेता आमतौर पर जेल नहीं जाते. वे गंभीरतम आरोपों के बावजूद पद पर टिके रहते हैं या कहीं बाहर भाग जाते हैं. लेकिन नजीब रज़ाक ना तो पद पर रहे और ना ही बाहर भाग पाए. और तो और, उनकी करतूतों के कारण 61 सालों से राज कर रही उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई. रज़ाक ने किया क्या था? उन्होंने लगभग 35 हज़ार करोड़ रुपये के ग़बन में हिस्सेदारी निभाई थी. इस घोटाले को 1 MDB स्कैंडल के नाम से जाना जाता है. कहा तो ये भी जाता है कि ये अब तक के इतिहास में हुई सबसे बड़ी वित्तीय लूट है.

नाज़िब रज़ाक के पिता अब्दुल रज़ाक 1970 के दशक में मलेशिया के प्रधानमंत्री थे. उन्हें आधुनिक मलेशिया का जनक माना जाता है. ख़ुद नजीब 2009 से 2018 तक प्रधानमंत्री रहे. प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने आलीशान ज़िंदगी जी. बेपनाह पैसे उड़ाए. जैसे ही वो चुनाव हारे. उनके घर पर रेड हुई. इस छापेमारी में लगभग ढाई हज़ार करोड़ रुपये की नगदी और लग्ज़री सामान ज़ब्त किए गए थे. अगर सब नियम के हिसाब से चला तो, मलेशिया की राजनीति में अजेय छवि जीने वाले नजीब रज़ाक की बेफ़िक्री के दिन बीत चुके हैं. रज़ाक की आलीशान ज़िंदगी छह बाय छह के जेल के कमरे में सिमट जाएगी.

तो, आज हम जानेंगे,
- नाज़िब रज़ाक की कहानी क्या है? वो जेल तक कैसे पहुंचे?
- 1 MDB स्कैंडल क्या है?
- और, इस पूरे घटनाक्रम में लियोनार्डो डि कैप्रियो की फ़िल्म ‘द वुल्फ़ ऑफ़ वॉल स्ट्रीट’ का नाम क्यों आता है?

आज हम मलेशिया के उस स्कैंडल की कहानी सुनाएंगे, जिसकी जांच की आंच दुनिया के छह देशों तक पहुंची. जिसने मलेशिया की सबसे ताक़तवर पोलिटिकल पार्टी को रेंगने पर मजबूर कर दिया. और, अंतत: इस स्कैंडल ने एक प्रधानमंत्री को जेल की सलाखों के पीछे भिजवा दिया.
कैसे? सब विस्तार से बताएंगे.

पहले मलेशिया का भूगोल और इतिहास समझ लेते हैं.

भारत की पूर्वोत्तर सीमा से सटा देश है, म्यांमार. म्यांमार का पड़ोसी है, थाईलैंड. नक़्शा देखेंगे तो थाईलैंड के साउथ की तरफ़ एक पूंछ निकलती दिखेगी. यही मलेशिया है. मलेशिया का एक हिस्सा बोर्नियो आईलैंड पर भी है. इसकी ज़मीनी सीमा थाईलैंड, इंडोनेशिया और ब्रुनेई से लगती है. समुद्री सीमा वियतनाम और फ़िलिपींस के साथ लगती है. और, ये सिंगापुर से जोहर स्ट्रेट से जुड़ा हुआ है.

राजधानी कुआलालमपुर मलेशिया का सबसे बड़ा शहर भी है. सरकार भी यहीं से चलती है. इपोह, जोहोर बहरु, मलक्का सिटी मलेशिया के दूसरे बड़े शहर हैं.

मलेशिया की कुल आबादी सवा तीन करोड़ की है. 61 प्रतिशत लोग इस्लाम को मानते हैं. इस्लाम यहां का राजकीय धर्म भी है. लगभग 20 प्रतिशत आबादी बौद्ध है. 09 प्रतिशत ईसाई और 06 प्रतिशत लोग हिंदू हैं. लगभग डेढ़ प्रतिशत लोग कन्फ़्युसियस के दर्शन को मानते हैं. बाकी लोग या तो मलेशिया के मूलनिवासी हैं या किसी धर्म को नहीं मानते.

इन सबके अलावा, मलेशिया आसियान, ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन (OIC), ईस्ट एशिया समिट (EAS), कॉमनेवल्थ और गुट-निरपेक्ष आंदोलन जैसे संगठनों का संस्थापक सदस्य भी है.

ये तो हुआ भूगोल. अब इतिहास भी जान लेते हैं.

आज के समय में जो मलेशिया का इलाका है, वहां इंसान 50 हज़ार साल पहले से रह रहे हैं. 20 हज़ार ईसापूर्व में चीन और कम्बोडिया से लोगों का विस्थापन हुआ. वे अपने साथ खेती और धातु बनाने की तकनीक साथ लाए थे. तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में इस इलाके से भारत के व्यापारियों का नाता जुड़ा. फिर चाइनीज़ आए. उनके साथ हिंदू और बौद्ध धर्म का आगमन हुआ.
छठी शताब्दी तक मलय पठार पर अलग-अलग राजवंशों का क़ब्ज़ा था. उसी समय बगल के सुमात्रा आईलैंड पर श्रीविजय साम्राज्य का राज चल रहा था. इस साम्राज्य ने मलय पर्वत के अधिकतर हिस्सों को अपने अधिकार-क्षेत्र में मिला लिया. साम्राज्य की ताक़त का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि हिंद महासागर के दो महत्वपूर्ण जलमार्ग इनके क़ब्ज़े में थे. इसी रास्ते से साउथ-ईस्ट एशिया का मिडिल-ईस्ट से कारोबार होता था.

13वीं सदी के आख़िर में सिंहश्री के आक्रमणकारियों ने श्रीविजय साम्राज्य को गद्दी से हटा दिया. 1402 ईसवी में श्रीविजय साम्राज्य में परमेश्वर नाम के एक राजा हुए. उन्होंने मलय पठार पर मलक्का शहर की स्थापना की. कालांतर में ये शहर मलेशिया की सत्ता को लेकर चल रहे संघर्ष का केंद्र बन गया. परमेश्वर ने बाद में इस्लाम कबूल कर लिया. मुस्लिम बनने के बाद उन्होंने नया नाम धारण किया. सुल्तान इस्कंदर शाह. उनकी देखा-देखी जनता ने भी धर्म-परिवर्तन शुरू किया. मलेशिया में इस्लाम का प्रभाव यहीं से शुरू होता है.

1511 में पुर्तगाल आया. तब स्थानीय शासक भागकर जोहोर चले गए. 1641 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने जोहोर के राजा के साथ मिलकर पुर्तगाल को हरा दिया. कुछ समय बाद डच ख़ुद ही लौट गए. 19वीं सदी की शुरुआत में मलय पर अंग्रेज़ों की नज़र पड़ी. यहां सोना, काली मिर्च और टिन का प्रोडक्शन होता था. उन्हें ये जगह फायदेमंद लगी.

1824 में एंग्लो-डच ट्रीटी हुई. इसके तहत, मलय पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हुआ. 1857 में भारत में सिपाही विद्रोह के बाद ब्रिटिश क्राउन ने शासन की बागडोर संभाल ली. उन्होंने मलय को भी अपने कंट्रोल में ले लिया. ब्रिटिश क्राउन का शासन 1942 तक चला. जापान ने ब्रिटिश एम्पायर को कुर्सी से हटा दिया. जापान के सरेंडर के बाद ब्रिटेन वापास आया. लेकिन तब तक मलय पठार पर राष्ट्रवादी आंदोलन शुरू हो चुका था. वे ब्रिटेन से अपनी आज़ादी के लिए कमर कस चुके थे.

1946 में कई छोटी-मोटी पार्टियों को मिलाकर यूनाइटेड मलयाज़ नेशनल ऑर्गेनाइज़ेशन (UNMO) की स्थापना हुई. 1957 में ब्रिटेन ने मलय को आज़ाद कर दिया. सत्ता UNMO के पास आई. 1963 में मलय, सबाह, सरावाक और सिंगापुर को मिलाकर मलेशिया बना. 1965 में सिंगापुर को अलग कर दिया गया. फिर सिंगापुर अलग देश के रूप में सामने आया.
UNMO को मलेशिया में ग्रैंड ओल्ड पार्टी का दर्ज़ा मिला हुआ है. जैसे कि भारत में कांग्रेस. UNMO ने 1957 से 2018 तक मलेशिया की सत्ता पर राज किया. 61 सालों तक ये परंपरा कायम रही कि मलेशिया का प्रधानमंत्री ही UNMO का अध्यक्ष होता था.

फिर क्या हुआ?

हुआ ये कि मलेशिया में 2018 में आम चुनाव हुए. इसमें UNMO हार गई. नजीब रज़ाक को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. ये अभूतपूर्व था. मलेशिया के इतिहास में पहली बार किसी UNMO को हार का सामना करना पड़ा था.

ये हुआ कैसे?

इसके पीछे था, एक कांड. 1MDB स्कैंडल. फ़ुल फ़ॉर्म, वन मलेशिया डेवलपमेंट बहाड. ये एक सरकारी फ़ंड था. इसकी स्थापना 2009 में की गई थी. ये वही समय था, जब नजीब रज़ाक देश के छठे प्रधानमंत्री बने थे. उससे पहले वो डिप्टी प्राइम मिनिस्टर समेत कैबिनेट में कई अहम पदों पर काम कर चुके थे.

1MDB फ़ंड का मकसद क्या था?

इसका मकसद था, विदेश से मिलने वाली वित्तीय मदद, लोन और दूसरे पैसों को जमा करना और फिर उस पैसे को राजधानी कुआलालमपुर के विकास में लगाना. बाकी ज़रूरी चीज़ों में निवेश करना. कुल जमा बात ये कि पूरा पैसा मलेशिया और वहां के लोगों की भलाई में इस्तेमाल होना था. शुरुआत में तो सब ठीक चला. लेकिन फिर बात बिगड़ने लगी.

फिर आया साल 2013. लगभग 800 करोड़ रुपये की लागत से एक अंग्रेज़ी फ़िल्म बनी. इसके डायरेक्टर थे, मार्टिन स्कोरसेसे. फ़िल्म में लीड रोल निभाया था, लियोनार्डो डि कैप्रियो ने. फ़िल्म का नाम, द वुल्फ़ ऑफ़ वॉल स्ट्रीट. इस फ़िल्म की क्रेडिट स्क्रीन में दो नामों ने कई खोजी पत्रकारों को चौंका दिया. एक नाम था, रिज़ा अज़ीज़. दूसरा नाम था, जो लो. जब डि कैप्रियो को इस फ़िल्म के लिए गोल्डन ग्लोब में बेस्ट ऐक्टर का अवार्ड मिला, उस समय उन्होंने भी अज़ीज़ और जो लो को थैंक्यू कहा था.

नजीब रज़ाक (AFP)

दरअसल, रिज़ा अज़ीज़ फ़िल्म को को-प्रोड्यूसर था. उसका सबसे बड़ा परिचय ये था कि वो नजीब रज़ाक का सौतेला बेटा था. रिज़ा अज़ीज़ के पास पैसे कहां से आए, ये बड़ा आश्चर्य था. दूसरा जो लो 1MDB में सलाहकार के तौर पर काम कर रहा था. बाद के सालों में जब जांच हुई, तब जो लो सबसे बड़ा मास्टरमाइंड बनकर सामने आया. वही पैसों को ठिकाने लगा रहा था.

यहां तक भी कोई बड़ा हंगामा नहीं हुआ था. लेकिन 2015 में 1MDB के बॉन्ड्स के दाम अचानक से घटने लगे. सरकार लोन चुकाने में भी नाकाम रही. फिर चर्चा चली कि फ़ंड का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया जा रहा है. फ़ंड में आने वाले पैसों को प्राइवेट अकाउंट्स में भी ट्रांसफ़र किया जा रहा था. इनमें से बड़ी रकम नजीब रज़ाक और जो लो के अकाउंट में भी पहुंची थी. इन पैसों से पूरी दुनिया में लग्ज़री याट, होटल, पेंटिग्स, जूलरी और दूसरी ऐशो-आराम की चीज़ें खरीदीं जा रही थी.

2015 में जब ये ख़बर फैली, तब मलेशिया के अटॉर्नी-जनरल ने फ़ंड की जांच शुरू की. जब आंच रज़ाक तक पहुंची, तब रज़ाक ने अटॉर्नी-जनरल को बर्ख़ास्त कर दिया. उन्होंने अपने डिप्टी पीएम समेत कैबिनेट के कई मंत्रियों को भी बदल दिया. इस तरह उन्होंने कुछ समय के लिए मामले को दबा दिया. लेकिन ये मामला इतना बड़ा था कि दबाने से ये और अधिक फैल गया.

2016 में यूएस डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस ने 1MDB की फ़ाइल खोली. शुरुआती जांच में पता चला कि कम-से-कम 35 हज़ार करोड़ रुपये का हेर-फेर हुआ है. इनमें से लगभग छह हज़ार करोड़ रुपये नजीब रज़ाक के पर्सनल अकाउंट में पहुंचे थे. रज़ाक ये कहते रहे कि ये पैसा गिफ़्ट में मिला था. ये भी कि उन्होंने अधिकतर पैसा वापस लौटा दिया है. लेकिन तब तक खेल हो चुका था.

मलेशिया में उनके ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट शुरू हो चुका था. एक समय तक उनके मार्गदर्शक रहे महातिर मोहम्मद ने उनकी पार्टी छोड़ दी. उन्होंने विपक्ष को जॉइन कर लिया. 2018 में चुनाव हुए तो UNMO गठबंधन बहुमत से दूर रह गया.

नई सरकार ने चुनाव के महीने भर बाद ही स्पेशल जांच का आदेश दे दिया. रज़ाक के घर पर छापा पड़ा. इस छापे में उनके घर से लगभग ढाई हज़ार करोड़ रुपये की संपत्ति ज़ब्त हुई. इसके बाद उनके ऊपर मुकदमा चला. जुलाई 2020 में मलेशिया की एक अदालत ने उन्हें 12 साल क़ैद की सज़ा सुनाई. रज़ाक ने इस सज़ा के ख़िलाफ़ अपील की. लेकिन अब उनकी अपील खारिज कर दी गई है.

नजीब रज़ाक के पास आगे क्या रास्ता है?

रज़ाक की पार्टी अभी भी मलेशिया की राजनीति में प्रभावशाली है. और, रज़ाक UNMO में ताक़तवर बने हुए हैं. अगले साल मलेशिया में आम चुनाव होने वाले हैं. अगर UNMO चुनाव जीतती है तो उन्हें रॉयल पार्डन यानी राजा की तरफ़ से मिलने वाला क्षमादान मिल सकता है. उनके पास यही रास्ता बचा है. ये जब होगा तब होगा, लेकिन फिलहाल के लिए मलेशिया की राजनीति का सबसे ताक़तवर शख़्स जेल की कोठरी में असहाय पड़ा रहेगा.
भ्रष्टाचारियों की यही गत होनी चाहिए.

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