1600 साल पहले भारत कैसा था?
चीनी यात्री ने भारत आकर क्या देखा?
राजेश रेड्डी जी की एक ग़ज़ल का मतला है,
घर से निकले थे हौसला करके,
लौट आए खुदा खुदा करके
इंस्टाग्राम के दिन हैं. हर कोई वांडरलस्ट का मरीज़ है. हर किसी को ट्रेवलर बनना है. लेकिन पुराने ज्ञानी बता गए हैं कि यात्री होना इतना आसान नहीं है. यात्री वो होता है, जो घर से निकलता है , ये जाने बिना कि वो वापस लौट भी पाएगा या नहीं. इसलिए यात्री कहा गया, कोलम्बस को, मार्को पोलो को, इब्नबतूता को और फाह्यान को. फाह्यान का दर्ज़ा खास इसलिए क्योंकि ये पहले चीनी थे जो चीन से चले और भारत आ गए. चीन पड़ोस में है लेकिन इतना पड़ोस में भी नहीं है कि जब मन किया चले आए. बीच में पहले पड़ता है हिमालय. और उससे पहले गोबी रेगिस्तान. (Faxian india visit)
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आज से हज़ार साल पहले भारत आना हो तो, पहले इन दोनों को पार करना होता था, और तब जाकर होते थे भारत भूमि के दर्शन. फाह्यान इसलिए भी स्पेशल है, क्योंकि भारत आने के पीछे उनका उद्देश्य व्यापार या पैसा कमाना नहीं था. फिर क्या था? आज जानेंगे भारत में फाह्यान ने क्या देखा? और उससे हमें 1600 साल पुराने भारत के बारे में क्या पता चलता है. (First Chinese traveller to India)
फाह्यान भारत क्यों आया?“इस रेगिस्तान में, कई दुष्ट आत्माएं रहती हैं. लू चलती है. जो किसी की भी जान ले सकती हैं. यहां आसमान में पक्षी नहीं उड़ते न ही जमीन पर जानवर घूमते हैं. जहां तक नज़र जाए सिर्फ बंजर जमीन है. कोई रास्ता नज़र नहीं आता. रास्ता बताने वाला भी कोई नहीं है. चारों तरफ़ इंसानी हड्डियां फैली हुई है.”
ये बयान है,फाह्यान की यात्रा की शुरुआत का. हालांकि यात्रा इससे भी पहले, बचपन से ही शुरू हो गई थी. दरअसल बचपन में फाह्यान की तबीयत खराब हो गई थी. लिहाज़ा घरवाले उसे एक बौद्ध मठ में छोड़ आए. तब तक बौद्ध धर्म चीन तक पहुंच गया था. और इसका श्रेय जाता था, कुषाण वंश के राजा कनिष्क को. जिन्होंने बौद्ध धर्म को चीन और मध्य एशिया तक फैलाया. फाह्यान को विरासत में बौद्ध धर्म मिला था. तबीयत खराब होने के चलते मठ में पहुंचे. तबीयत तो सही हो गई लेकिन फाह्यान ने घर वापस जाने से इंकार कर दिया. बौद्ध भिक्षु बन गए. तथागत की शिक्षाएं पहले खुद सीखीं और फिर दूसरों को सिखाने लगे.
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यूं ही ज़िंदगी के 63 बरस बीत गए. फिर एक रोज़ हुई एक घटना. धर्म की दीक्षा देते हुए फाह्यान एक शहर तक पहुंचे. यहां वो एक लाइब्रेरी में गए. वहां बौद्ध धर्म से जुड़े ग्रंथ रखे हुए थे विनय पिटक नाम का एक बौद्ध ग्रंथ होता है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं के जरूरी नियम होते हैं. फाह्यान ने देखा कि विनय पिटक बहुत खराब हालत में है. वो पूरी तरह ख़राब हो चुका था. उसकी हालत ऐसी नहीं थी कि कोई उसे पढ़ सके. ये ग्रंथ बहुत ज़रूरी था. और पूरे चीन में इसकी दूसरी प्रति मौजूद नहीं थी. ऐसे में क्या किया जाए?
ये सोचकर फाह्यान को ख़याल आया भारत का. बौद्ध धर्म का घर. बुद्ध का देश. भारत. जहां बौद्ध धर्म से जुड़े सारे ग्रंथ मिल सकते थे. इसलिए 63 साल के उस बूढ़े ने निश्चय किया कि वो भारत की यात्रा करेगा. फाह्यान ने चार और भिक्षुओं को तैयार किया और यात्रा पर निकल गए. आगे चलकर कुछ और भिक्षु उनके साथ जुड़े. यात्रा की शुरुआत हुई चांग-आन से. जो तब चीन के किन वंश का हिस्सा था. किन सम्राट की खास बात ये थी कि वो पहले चीनी राजा थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म को आश्रय दिया था. यहां से यात्रा शुरू कर फाह्यान खोतान पहुंचे.
खोतान तारिम घाटी में पड़ता था. और सिल्क रूट का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था. इसलिए खोतान का भारत से बहुत पुराना रिश्ता था. बाक़ायदा खोतान में फाह्यान जिस बौद्ध मठ में ठहरे थे, उसका नाम गोमती था. खोतान में फाह्यान ने तीन महीने का समय गुजारा. खोतान से आगे हिमालय के दर्रे को पार करते हुए वो पहुंचे किच्चा नाम की एक जगह तक. किच्चा यानी स्करदु जो गिलगित बाल्टिस्तान में पड़ता है. आगे वो पहुंचे स्वात घाटी. जहां से उनकी भारत की असली यात्रा शुरू हुई.
ड्रैगन और बुद्धइस यात्रा के दौरान उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया. भयानक ठंड, भयंकर गर्मी. साथ ही बंजर वीरान रास्तों का सफ़र. इन रास्तों में मिली परेशानियों के साथ साथ फाह्यान ने कुछ ऐसी चीजों का ज़िक्र किया है, जिससे पता चलता है कि शायद उन्होंने ये कहानियां स्थानीय लोगों से सुनी होंगी. मसलन एक जगह वो लिखते हैं,
"यहां ऐसे जहरीले ड्रैगन रहते हैं, जिनके मुंह से तूफ़ानी और बर्फीली हवाएं निकलती हैं".
अपने लिखे में, रास्ते की कई जगहों को उन्होंने बौद्ध जातक कथाओं के साथ भी जोड़ा है. मसलन स्वात घाटी के बारे में वो लिखते हैं कि यहां बुद्ध ने अपने कपड़े सुखाए थे. तक्षशिला के पास एक जगह बारे में लिखते हैं कि यहां बुद्ध ने एक भूखी बाघिन को देखा, और उसे अपना शरीर सौंप दिया. ये सभी जातक कथाएं थी जिनका इतिहास से कुछ लेना देना नहीं. लेकिन इनसे इतना पता चलता है कि तब गिलगित बाल्टिस्तान तक बौद्ध धर्म फैला हुआ था.
आगे की यात्रा में फाह्यान ने सिंधु नदी को पार किया. यात्रा इतनी कठिन थी कि उनका एक साथी बौद्ध भिक्षु यात्रा के दौरान थकावट के कारण रुका और फिर उठ ही नहीं पाया. उसकी मौत हो गई. फाह्यान लिखते हैं,
“मृत्यु से पहले उसने अपने साथी भिक्षुओं से कहा कि उन्हें वापिस लौट जाना चाहिए लेकिन हम आगे बढ़ते रहे.”
सिंधु पार करने के बाद फाह्यान यमुना नदी के किनारे किनारे चलते हुए मथुरा तक पहुंचे. उनके अनुसार तब इसका नाम मताऊला था. और इसके दक्षिण में मध्य प्रदेश पड़ता था. मथुरा के बारे में फाह्यान ने बहुत ही दिलचस्प बातें बताई हैं. मसलन फाह्यान के अनुसार मध्य भारत के तमाम जनपद में जितने राजा थे, सभी बौद्ध धर्म के अनुयायी थे. बौद्ध भिक्षुओं के लिए विहार बनाए गए थे. और इन विहारों को सरकारी आश्रय प्राप्त था.बौद्ध भिक्षुओं को राजा खुद खाना खिलाता था. और ऐसा करते हुए वो अपना मुकुट उतार देता था.
1600 साल पहले का भारतफाह्यान के अनुसार ये परंपरा बहुत पुरानी थी. बौद्ध विहारों को राजा से अनुदान मिलता था. और इसका पूरा लेखा-जोखा एक धातु की प्लेट पर लिखा रहता था. हर राजा अपने बाद अगले राजा को ये प्लेट देकर जाता था, ताकि विहारों को मिलने वाले अनुदान पर कोई रोक ना लगे. लोगों के बारे में फाह्यान ने क्या बताया?
-मध्य भारत के लोग खेती के काम करते थे. और राजा को टैक्स चुकाते थे.
-हर किसी को कहीं जाने और रहने की आजादी थी.
-मृत्यु दंड पर रोक थी. बौद्ध धर्म का प्रभाव ऐसा था कि किसी को शारीरिक दंड भी नहीं मिलता था. इसके बदले अपराधी को अर्थ दंड देना होता था.
- लोग अधिकतर शाकाहारी थे. और मांस मदिरा का सेवन नहीं करते थे. फाह्यान एक ख़ास बात ये बताते हैं कि बौद्ध धर्म के लोग, लहसुन और प्याज से भी परहेज रखते थे.
फाह्यान के बाद जो चीनी यात्री आए, जैसे ह्वेनसांग, उन्होंने भारत में वर्ण व्यवस्था का ज़िक्र किया है. लेकिन फाह्यान ने ऐसी किसी वर्ण व्यवस्था के बारे में नहीं लिखा है. हालांकि वो चांडाल लोगों के बारे में लिखते हैं, जो जंगलों में रहते थे. और मांस मदिरा का सेवन करते थे. चांडाल कोई अलग जाति थी या नहीं, इस बारे में फाह्यान ने साफ़ साफ़ नहीं लिखा, लेकिन ये बताया है कि वे लोग शहर में आने से पहले आवाज़ करते थे, ताकि लोग उन्हें छुएं नहीं. फाह्यान ने ये भी लिखा है की चांडाल दस्यु होते थे. दस्यु यानी डाकू.
फाह्यान की लिखी बातें जितनी दिलचस्प है, उतना ही दिलचस्प वो भी है जो उन्होंने नहीं लिखा. मसलन फाह्यान ने 399 ईस्वी से लेकर 412 के बीच भारत में 10 साल निवास किया. इस काल में भारत में गुप्त वंश का शासन था. और राजा चंद्रगुप्त द्वितीय शासन कर रहे थे. अचरज की बात ये है कि फाह्यान ने ना गुप्त वंश का ज़िक्र किया है, ना राजा चंद्रगुप्त का. इसका एक कारण ये हो सकता है कि फाह्यान राजसी दूत नहीं थे. ना ही व्यापार के सिलसिले में भारत आए थे. इसलिए शायद उन्होंने दरबार में जाना नहीं चुना हो. यूं भी भारत आने का उनका मक़सद विनय पिटक की खोज थी. इसकी खोज में उन्होंने श्रावस्ती, बोधगया, वैशाली, राजगीत, सारनाथ, यहां तक कि बुद्ध की जन्म भूमि कपिलवस्तु तक की यात्रा की. लेकिन विनय पिटक उन्हें नहीं मिली. उन्होंने पाया कि बौद्ध भिक्षु बोल कर बुद्ध की शिक्षाएं देते थे. इसलिए कहीं भी लिखित ग्रंथ नहीं मिला.
अंत में उनकी खोज पाटलिपुत्र में जाकर समाप्त हुई. पाटलिपुत्र में उन्हें लिखित ग्रंथ तो मिल गया. लेकिन यहां नई समस्या खड़ी हो गई. ग्रंथ संस्कृत में लिखा हुआ था. इसलिए फाह्यान तीन साल तक पाटलिपुत्र में ही रुके और वहां रहकर संस्कृत सीखी. जब ये काम पूरा हो गया. उन्होंने और बहुत से ग्रंथ इकट्ठा किए और आगे की यात्रा में निकल गए. आगे गंगा के किनारे-किनारे पूर्व की दिशा में चलते हुए वो पश्चिम बंगाल तक पहुंचे. और वहां से नाव पकड़कर समुद्र की यात्रा शुरू कर दी.14 दिन की यात्रा के बाद फाह्यान श्रीलंका पहुंचे. श्रीलंका के बारे में फाह्यान ने जो लिखा है, वो भी कही सुनी बातें मालूम पड़ती हैं. क्योंकि वो लिखते हैं,
“यहां कोई मनुष्य नहीं रहता. आत्माएं और नाग रहते हैं. जिनसे व्यापारी चीजें मोल लेते हैं. लेकिन वो नाग और आत्माएं किसी को दिखाई नहीं देती”
फाह्यान ने ये भी लिखा है कि बुद्ध श्रीलंका गए थे. लेकिन ये बात भी ऐतिहासिक रूप से ग़लत है. श्रीलंका में फाह्यान ने दो साल गुज़ारे और फिर अंत में एक नाव में बैठकर समुद्री मार्ग से वापस चीन लौट गए. इस समय तक फाह्यान की उम्र 73 वर्ष हो चुकी थी. हज़ार मील से ज़्यादा लम्बी यात्रा कर चुका ये शख़्स इसके बाद और 10 साल ज़िंदा रहा.इस दौरान उन्होंने तमाम संस्कृत बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषाओं में अनुवाद किया और उनका प्रचार प्रसार किया. फाह्यान का सफ़र पूरा हो चुका था लेकिन इसके बाद यात्राओं का एक लम्बा सिलसिला शुरू हुआ. फाह्यान के बाद कई चीनी यात्री भारत की यात्रा में आए. इनमें ह्वेनसांग और आइसिंग प्रमुख हैं. इन दोनों ने भी अपने यात्रा वृतांत दर्ज़ किए जो अपने आप में काफी दिलचस्प हैं.
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