The Lallantop
Advertisement

इस हिंदुस्तानी पहलवान से इंस्पायर होकर ब्रूस ली ने शुरू की थी बॉडी बिल्डिंग

दतिया का वो गामा पहलवान, जो अपने 50 साल के कुश्ती करियर में कभी किसी से नहीं हारा.

Advertisement
Img The Lallantop
Credit: Facebook
pic
श्री श्री मौलश्री
22 मई 2018 (Updated: 22 मई 2018, 12:38 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
1905 के आस-पास का दौर था. उस वक्त राजा-महराजा हुआ करते थे. अखाड़े होते थे. दंड पेलते एक से एक हैवी पहलवान होते थे. कुश्ती के मुकाबले हुआ करते थे. जब 7 फीट का कोई पहलवान अपने शरीर पर तेल मल कर अखाड़े में उतरता था. अपनी लंगोट चढ़ाता था. झुककर मट्टी
  उठा कर हाथ झाड़ता था. और हाथ से अपनी जांघ को ठोककर ताव देता था. अखाड़े के बाहर बैठे लोगों के शरीर में करंट दौड़ जाता था.
रुस्तम-ए-हिन्द रहीम बक्श, दतिया के गुलाम मोहिउद्दीन, भोपाल के प्रताब सिंह, इंदौर के अली बाबासेन, मुल्तान के हसन बक्श. ये सब उस दौर के सबसे मशहूर और ताकतवर पहलवान थे. ऊंचे-लम्बे, तगड़े पहलवान.
फिर एक और पहलवान आया. अपवाद जैसा. मध्य प्रदेश के दतिया डिस्ट्रिक्ट से. छोटी हाइट का. बस 5 फुट 7 इंच. पहलवानों के खानदान का छुटका
  सा बच्चा. लेकिनलप्पुझन्ना  टाइप का नहीं था वो. बॉडी गठी हुई. बाजुओं में ऐसी ताकत कि एक-एक करके इन सारे खतरनाक पहलवानों को उसने सही में धूल चटा दी. खलबली मच गई. अपने जैसा वो एक ही पीस था. जो अपने से डेढ़ फुट ऊंचे पहलवान को भी उठा के पटक दे तो सही में हड्डी पसली और दांत अट्ठन्नी-चवन्नी की तरह बिखर जाते थे.

 
Credit: facebook
गामा पहलवान     Credit: facebook
वो पंजाब का लड़का था. मध्य प्रदेश के दतिया डिस्ट्रिक्ट के पहलवानों के घराने का. दुलार में घर और गांव वाले 'गामा' बुलाते थे. बाहर का नाम था, गुलाम मोहम्मद बक्श. भाई था इमाम बक्श. पापा मोहम्मद अजीज बक्श भी पहलवान थे. चाचा-मामा-ताऊ सब वर्जिश किया करते थे. पहलवानी खून और परवरिश दोनों में आ गई. पापा ने बचपन से दंड-बैठक करना सिखाया. छुटपन में ही दोनों भाई पंजाब के फेमस पहलवान माधोसिंह के साथ कुश्ती लड़ते थे. खेल के दांव-पेंच सीखते थे.
जब गामा 5 साल का हुआ. उसके पापा की मौत हो गयी. उस समय दतिया के राजा थे भवानीसिंह. वो गामा के पापा को बहुत अच्छे से जानते थे. उन्होंने गामा और उसके भाई की आगे की ट्रेनिंग की ज़िम्मेदारी उठा ली. उस दौर में राजाओं के दरबारों में कुश्तियां हुआ करती थीं. कुश्ती लोगों के एंटरटेनमेंट का एक जरिया थी. साथ ही में लोगों को वर्जिश, योग वगैरह के फायदे भी समझ आते थे. राजाओं के अपने पहलवान होते थे. जिनके खाने, रहने और ट्रेनिंग का खर्चा राजा लोग उठाया करते थे. दतिया के राजा गामा को अपने दरबार का पहलवान बनाना चाहते थे.
गामा पहलवान ने दतिया में अपनी ट्रेनिंग पर खूब ध्यान लगाया. एक दिन में 5000 दंड और 3000 पुश-अप्स करता था. अब इतनी कसरत के बाद तो हम पूरा आदमी खा जाएं. गामा भी एक साथ छः देशी चिकन खाता था. उसके साथ 10 लीटर दूध और आधा किलो घी पीता था. ऊपर से बादाम का टॉनिक, चुस्ती और दिमागी ताकत के लिए.
Credit: facebook
Credit: facebook
गामा ने कुल 50 साल प्रोफेशनल कुश्ती लड़ी. लेकिन उसका रिकॉर्ड है कि वो एक बार भी नहीं हारा. दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई. दुनिया भर के पहलवानों को हराया. एक बार नहीं. कई-कई बार. लेकिन वो खुद मरते समय तक अनडिफीटेड रहा.

पहली कुश्ती में 400 से ज्यादा पहलवानों को हराया

कसरत और कुश्ती खून में थी ही. कुल जमा 10 साल की उम्र रही होगी. जोधपुर के राजा एक कम्पटीशन करवा रहे थे. 'सबसे ताकतवर आदमी'. इसी तरह का कुछ. जैसे आजकल मिस्टर इंडिया या मैन-हंट जैसे कम्पटीशन होते हैं. इसमें हर किसी को अपनी ताकत दिखानी थी. हर मैच के बाद जो हार जाता वो बाहर हो जाता. पूरे देश से 400 से ज्यादा पहलवान आए थे. सब उम्र, हाइट और एक्सपीरियंस में गामा से बहुत बड़े थे. एक से एक मुश्किल कसरत करनी थी. नॉक-आउट राउंड थे. जो पहलवान वो कसरत या आसन ना कर पाता, बाहर हो जाता. आखिर में बचे टॉप 15. उन टॉप 15 में गामा भी था. जोधपुर के राजा गामा से बहुत इम्प्रेस हुए. 10 साल का बच्चा. इतने बड़े-बड़े पहलवानों के बीच आता है. और पूरे कम्पटीशन में छा जाता है. राजा ने गामा को विनर घोषित कर दिया. इस कम्पटीशन के बाद देशभर के लोग गामा के बारे में जानने लगे.


तीन मुकाबले और रुस्तम-ए-हिन्द 

जोधपुर में अपनी ताकत दिखाने वाले कम्पटीशन के बाद गामा काफी समय तक अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान देता रहा. जब वो 19 साल का था, उस वक़्त पहलवानी का 'रुस्तम-ए-हिन्द' था, पहलवान रहीमबख़्श सुल्तानीवाला. पंजाब के गुजरांवाला में रहने वाला कश्मीरी 'बट'. गामा से 2 फीट ज्यादा उसकी हाइट थी.
बार-बार हाइट का ज़िक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कुश्ती या इस तरह के खेलों में हाइट ज्यादा होना फायदेमंद हो जाता है. खिलाड़ी को अपने विरोधी के ऊपर एक प्लस पॉइंट मिल जाता है.

हां तो गामा की ट्रेनिंग दतिया में चल रही थी. उसने 'रुस्तम-ए-हिन्द' को चुनौती दे डाली. रुस्तम-ए-हिन्द रहीम बक्श अब अपने करियर के एकदम आखिरी दौर में था. गामा उससे ज्यादा जवान और चुस्त था. लेकिन रहीम के पास हाइट ज्यादा होने का एडवांटेज था. गामा और रहीम बक्श के बीच कुल 3 बार कुश्ती के मुकाबले हुए.
Credit Facebook
Credit Facebook

पहला मुकाबला: ऐतिहसिक मैच

जब 19 साल की उम्र में गामा ने रहीम बक्श को चैलेंज किया था. लोगों को लगा था, गामा पगला गया है. रहीम बक्श बहुत आसानी से गामा को हरा देगा. कुछ लोग कह रहे थे कि रहीम बक्श अब बूढ़ा हो चुका है. ये नया लड़का उसको आराम से हरा देगा. मुकाबला शुरू हुआ. एक के बाद एक दांव खेले जाने लगे. इधर पकड़, उधर पटक. कई घंटों तक मुकाबला चला. ना कोई जीत रहा था, ना कोई हार रहा था. कई घंटों बाद जब दोनों पहलवान लड़ते लड़ते चूर हो गए. इस मुकाबले को ड्रा करार दे दिया गया.
गामा जीत तो नहीं पाया लेकिन  रुस्तम-ए-हिन्द के साथ मुकाबला ड्रा करवाना भी कोई छोटी बात नहीं थी. रातों-रात वो स्टार बन गया. ये मुकाबला कुश्ती के इतिहास के कुछ ऐतिहासिक मुकाबलों में से एक था.
दूसरा मुकाबला
दूसरी बार गामा बहुत तैयारी के साथ आया था. अखाड़े में उतरते ही उसने एग्रेसिव दांव खेलने शुरू कर दिए. कुश्ती के दौरान गामा की नाक से खून बहने लगा. उसका एक कान भी कट गया. लेकिन इस बार वो सिर्फ जीतने आया था. और जीता भी. रुस्तम-ए-हिन्द रहीम गामा से हार गया.
Credit: facebook
Credit: facebook

आखिरी मुकाबला: रुस्तम-ए-हिन्द
ये मुकाबला था रुस्तम-ए-हिन्द के टाइटल का. साल था 1911. इलाहाबाद में घंटों तक चला ये मुकाबला. रहीम को अपना रुस्तम-ए-हिन्द का टाइटल बचाए रखना था. गामा को वो टाइटल जीतना था. उस वक़्त तक गामा पूरी दुनिया में एक बहुत बड़ा नाम बन चुका था. ऐसा पहलवान जो एक भी मुकाबला नहीं हारा था. मुकाबला शुरू हुआ. पिछली बार की तरह इस बार भी गामा बहुत एग्रेसिव था. जब उसने एक दांव चलते हुए रहीम को मिट्टी में पटक दिया. रहीम जोर जोर से चिल्लाने लगा. आयोजक अखाड़े में पहुंच गए. रहीम चिल्लाए जा रहा था कि उसकी पसली टूट गई है. वो हिल भी नहीं पा रहा था. डॉक्टर्स भी वहां मौजूद थे. उन्होंने जांच की. पसली की कोई हड्डी नहीं टूटी थी. लेकिन रहीम से दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा था. इस वजह से अब उसके लिए लड़ पाना नामुमकिन था. ऐसे में गामा पहलवान को विनर मान लिया गया और उसको रुस्तम-ए-हिन्द का टाइटल मिल गया. इस मुकाबले में भी गामा ने अपना 'कभी ना हारने का' रिकॉर्ड टूटने नहीं दिया.
एक इंटरव्यू में गामा से पूछा गया था कि उसके लिए सबसे तगड़ा प्रतिद्वंदी कौन रहा था. गामा ने रहीम बक्श का ज़िक्र किया. कहा,
"हमारे खेल में अपने से बड़े और ज़्यादा क़ाबिल खिलाड़ी को गुरु माना जाता है. मैंने उन्हें दो बार हराया ज़रूर, पर दोनों मुकाबलों के बाद उनके पैरों की धूल अपने माथे से लगाना नहीं भूला."



वेस्टर्न रेसलिंग और 'जॉन बुल बेल्ट': जब गामा के डर से वर्ल्ड चैंपियन पहलवान की फूंक सरक गई थी

1898 से 1907 तक गामा पहलवान ने इंडिया के सारे पहलवानों को कम से कम एक बार तो हरा ही दिया था. अब वो लंदन जा कर वहां के पहलवानों को चैलेंज करना चाहता था. वेस्ट के पहलवानों से लड़ना चाहता था. इसलिए 1910 में अपने भाई के साथ गामा लंदन पहुंच गया. हैवी वेट चैंपियनशिप थी. लेकिन वहां जा कर एक मैटर फंस गया. कुश्ती में हिस्सा लेने के कुछ नियम थे. जिनके हिसाब से गामा के हाइट और वेट हिस्सा लेने के लिए ज़रूरी हाइट और वेट से कम थे. गामा का इस बात पर दिमाग खराब हो गया. इतनी दूर वो इसलिए तो नहीं आया था कि उसको कुश्ती लड़ने का मौका ही ना मिले.

Credit: facebook
Credit: facebook

उसने वेस्टर्न रेसलिंग के सभी पहलवानों को खुला चैलेंज दिया. कहा कि वो तीन पहलवानों से एक साथ कुश्ती लड़ेगा. और सिर्फ 30 मिनट में तीनों पहलवानों को रिंग से बाहर फेंक देगा. चाहे वो पहलवान कित्ता
भी भारी हो. वो तीनों को एक साथ हरा देगा.
लंदन के पहलवानों ने गामा के चैलेंज को कोई भाव नहीं दिया. उसकी बात को सीरियसली लिया ही नहीं. कोई गामा से कुश्ती का मुकाबला करने नहीं आया. फिर गामा ने उन पहलवानों को ललचाने की कोशिश की. कहा कि अगर लंदन का कोई भी पहलवान उसको हरा देगा तो वो उस पहलवान को ईनाम वाले 5 पाउंड खुद अपनी जेब से देगा. और चुपचाप इंडिया वापस चला जाएगा. अभी भी कोई उससे कुश्ती करने के लिए तैयार नहीं हुआ.
तब गामा ने सोचा ऐसे हवा में बोल देने से कुछ नहीं होगा. उसने उस वक़्त के सबसे बड़े पहलवानों स्टेनिस्लास जबिस्को और फ्रेंक गॉच का नाम लेकर उनको चैलेंज किया. लेकिन सबसे पहले उसके चैलेंज को एक्सेप्ट किया अमेरिका के बेंजामिन रोलर ने. मुकाबला शुरू हुआ. अभी सिर्फ 1 मिनट 40 सेकंड हुए थे. रोलर चारों खाने चित्त पड़ा था. करीब 9 मिनट और 10 सेकंड ये मुकाबला चला. आखिर में गामा ने रोलर को दे पटका. और मुकाबला जीत लिया. फिर अगले दिन गामा ने कुल 12 पहलवानों को हरा दिया. अब तो वेस्टर्न रेसलर टूर्नामेंट के लोग हाथ जोड़ कर उसको अपने टूर्नामेंट में बुला रहे थे. उस 'अपवाद से पहलवान' ने दो दिनों में 15 पहलवानों को हरा कर टूर्नामेंट में अपनी जगह बना ली थी.
Credit: youtube
Credit: youtube

फिर स्टेनिस्लास जबिस्को ने गामा का चैलेंज एक्सेप्ट कर लिया. ये बहुत बड़ा मुकाबला होने वाला था. ना तो लंदन के लोगों ने, ना ही वहां के पहलवानों ने ऐसा ढीठ इंडियन पहलवान पहले कभी देखा था. मुकाबले की तारीख निकली 10 सितंबर 1910. इस मुकाबले के वज़न को देखते हुए इनाम भी बढ़ा दिया गया. अब जीतने वाले को 250 पाउंड्स के साथ 'जॉन बुल बेल्ट' भी मिलने वाली थी. ये बेल्ट मिलने का मतलब था वर्ल्ड चैंपियन बन जाना.
मैच शुरू हुआ. जबिस्को का वज़न बहुत ज्यादा था. लेकिन सिर्फ एक मिनट में गामा ने जबिस्को को उठा कर ऐसे नीचे पटक दिया कि वो बहुत देर तक उठ ही नहीं पाया. बहुत देर तक जब वो नहीं उठा, मैच को ड्रा मान लिया गया.
Credit: Facebook
Facebook  मुकाबले से पहले गामा पहलवान और जबिस्को

लेकिन बेल्ट किसी को तो मिलनी ही थी. इसलिए मुकाबला फिर से होना था. अगला मैच ठीक एक हफ्ते बाद होना था. 17 सितम्बर 1910 को गामा जब अखाड़े में मैच के लिए पहुंचा तो देखा जबिस्को आया ही नहीं. गामा से हारने की सोच कर ही उसको बेईज्ज़ती लग रही होगी. और पिछले मुकाबले के बेहोश होकर वो ये तो समझ गया होगा कि जीतना इम्पॉसिबल है. बहुत देर तक जब जबिस्को नहीं आया. गामा को विनर मान लिया गया. उसको 'जॉन बुल बेल्ट' मिल गई. अब गामा 'रुस्तम-ए-जमाना' बन गया था. मतलब वर्ल्ड चैंपियन.


गामा पहलवान और मैथिलीशरण गुप्त की तिजोरी

मैथिलीशरण गुप्त की ससुराल दतिया में थी. और गामा दतिया में रहता था. 1901-02 में भयंकर प्लेग फ़ैल गया था. उस वक़्त तक मैथिलीशरण गुप्त अपने परिवार के साथ झांसी के पास चिरगांव में रहते थे. जब प्लेग उनके आस पास के इलाकों में फैलने लगा. पूरा गुप्त परिवार सारा सामान बैलगाड़ी में लादकर दतिया चला आया. उनके साथ लोहे की एक तिजोरी थी. बहुत भारी.  8 लोगों ने मिलकर वो तिजोरी बैलगाड़ी पर लदवाई थी. किसी तरह वो लोग दतिया पहुंचे. मैथिलीशरण गुप्त की ससुराल में गामा पहलवान का आना जाना था. जिस वक़्त बैलगाड़ियां पहुंचीं, गामा वहीँ था. तिजोरी उतारने के लिए कई लोग आगे आए. लेकिन उस भारी तिजोरी को गामा ने अकेले ही उठाकर जगह पर रख दिया. जैसे वो कोई कार्डबोर्ड का डब्बा हो. जो आदमी 300 किलो के पहलवानों को उठा कर पटक देता हो, उसके लिए तिजोरी उठाना कौन बड़ी बात रही होगी.


पूरे पचास साल तक कुश्ती लड़ने के बाद 1952 में गामा पहलवान उर्फ़ गुलाम मोहम्मद ने इस खेल से संन्यास ले लिया. इसके बाद उसने किसी को चैलेंज नहीं किया. 1947 में इंडिया-पाकिस्तान बंटवारे के वक़्त गामा पहलवान पाकिस्तान चला गया.
लेकिन आखिरी के दिन बहुत मुश्किल में बिताए. रावी नदी के किनारे एक झोपड़ी बना कर रहना पड़ा. एक के बाद एक बीमारियां होने लगीं. इलाज के लिए अपने सोने और चांदी की ट्रॉफियां बेचनी पड़ीं.
Credit: Facebook
Credit: Facebook

ऐसा कहा जाता है कि जब भारत सरकार को ये बात पता चली थी. सरकार गामा के इलाज और रहने के लिए पैसे भेजने के लिए तैयार थी. पटियाला के राजा और बिड़ला ग्रुप ने भी गामा की मदद करने के लिए पैसे भेजने की बात कही थी. लेकिन तब तक गामा की हालत बहुत बिगड़ गई थी.
22 मई 1960 को गरीबी और बीमारी से जूझते गामा पहलवान उर्फ़ गुलाम मोहम्मद वल्द मोहम्मद अजीज बक्श की लाहौर में मौत हो गयी.
https://www.youtube.com/watch?v=9UX1Z13_c8A

छोटी-छोटी मगर मोटी बातें

गामा पहलवान का ट्रेनिंग रूटीन अपने आप में एक रीसर्च का टॉपिक है. ब्रूस ली गामा का बहुत बड़ा फैन था. उसने गामा के ट्रेनिंग रूटीन के हिसाब से अपना खुद का रूटीन बनाया था. गामा ने ब्रूस ली को दंड बैठक और योग के कुछ आसन सिखाए थे. जिनको ब्रूस ली ने ज़िन्दगी भर फॉलो किया.
यहां हमने एक हफ्ते जिम में 8-8 किलो वज़न उठा लिए और हमारी पीठ अकड़ गई. गामा पहलवान जब दंड लगाया करता था, अपने गले में एक वेट डिस्क डाल कर करता था. उस वेट डिस्क का वज़न 95 किलो है.  और ये डिस्क पहन कर वो 5000 दंड बैठक करता था.
1902 में गामा पहलवान किसी कुश्ती के लिए वड़ोदरा गया था. वहां उसने एक पत्थर उठाया और लोग शॉक रह गये. क्यों? क्योंकि उस पत्थर का वज़न 1200 किलो से भी ज्यादा था. किसी मशीन ने नहीं, बल्कि एक हाड़-मांस के आदमी ने उसको उठा लिया था. अब वो पत्थर वड़ोदरा के म्यूजियम में रखा हुआ है. उस पत्थर पर खुदा है, 'ये पत्थर 23 दिसम्बर 1902 के दिन गुलाम मोहम्मद ने उठाया था.'
गामा की परपोती हैं कुलसुम शरीफ. जो पाकिस्तान के बारहवें प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पत्नी हैं.  
गामा पहलवान के कैरेक्टर पर एक वीडिओ गेम कैरेक्टर  बना है. दारुन मिस्टर. जो Street Fighter EX वीडिओ गेम की सीरीज में आता है. वो भी गामा की तरह बहुत ही ताकतवर है. 
darunhr2
दारुन मिस्टर


परमीत सेठी जॉन अब्राहम को ले कर गामा पहलवान पर एक बायोपिक बना रहे थे. लेकिन फिलहाल इस फिल्म का काम रुका पड़ा है.
 

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement