इजरायल ने कारगिल युद्ध जीतने में कैसे मदद की?
कारगिल युद्ध जीतने में इजरायल के इंजिनीयर्स ने भारतीय वायुसेना रोल रहा था.
शम्मी कपूर का एक गाना सुना होगा आपने. मुखड़े की लाइंस हैं,
बार-बार देखो, हजार बार देखो,
ये देखने की चीज है, हमारा दिलरुबा. टैली हो.
इसमें ये जो ‘टैली हो’ है, इस फ्रेज़ की उत्पत्ति हुई है ब्रिटिश शिकारियों से. पुराने जमाने में जब शिकारी शिकार पर निकलते थे, तो निशाना मिलते ही एक शिकारी ‘ टैली हो’ बोलता था, यानी शिकार दिख गया है. बाद में सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरां रॉयल एयर फ़ोर्स के पायलट भी निशाना दिखते ही बोलते थे, “टैली हो”
बहरहाल ‘टैली हो’ की बात हम क्यों कर रहे हैं?
24 जून 1999 की तारीख. (Kargil War) एयर चीफ मार्शल AY टिपनिस मिराज ने 2000 में टाइगर हिल के ऊपर उड़ रहे थे. जब उन्हें टैली हो’ सुनाई दिया. आगे उड़ रहे मिराज को टाइगर हिल के ऊपर बने 7 सफ़ेद टेंट दिखाई दे गए थे. टिपनिस फ़ॉर्मेशन में सबसे पीछे चल रहे एक टू सीटर मिराज में सवार थे. तीसरे मिराज का काम अटैक करना नहीं था. बल्कि उसे खास तौर पर एयर चीफ मार्शल के लिए मंगाया गया था. ताकि वो इस हमले का खुद मुआयना कर सकें.
24 तारीख से एक रोज़ पहले भी दो मिराज टाइगर हिल तक पहुंचे थे लेकिन उस दिन पाकिस्तान की किस्मत अच्छी थी. ऐन मौके पर बादलों ने निशाना धुंधला कर दिया. लेकिन 24 को क़िस्मत और हिम्मत दोनों इंडियन एयर फ़ोर्स के साथ थी. जब तक धुआं हटा, टाइगर हिल के ऊपर से सातों टेंटों का सफ़ाया हो चुका था. ऑपरेशन यहीं खत्म नहीं हुआ. टाइगर हिल पर कब्जे के ऑपरेशन को पूरा किया आर्मी ने. लेकिन वायु सेना के बिना ये सम्भव नहीं था. कारगिल युद्ध के दौरान IAF के ऑपरेशन का नाम था ऑपरेशन “सफ़ेद सागर”.(Operation White Sea)
कारगिल युद्ध की शुरूआत8 मई की तारीख. एयर चीफ़ मार्शल AY टिपनिस अपने ऑफिस में बैठे थे. शाम को उनके दफ़्तर में एयर मार्शल बेन ब्रार एंटर करते हैं. ब्रार तब एयर फ़ोर्स वाइस चीफ़ थे. और दोनों शाम को साथ बैठकर चाय पिया करते थे. उस रोज़ ब्रार आए तो भौहें तनी हुई, चहरे पर शिकन थी. बैठते ही बोले, “सर कारगिल से कुछ दिक्कतों की खबर आ रही है”. चीफ़ मार्शल टिपनिस पूछते हैं, वेस्टर्न कमांड या आर्मी स्टाफ़ से कोई खबर?
तीनों सेनाओं के बीच अगले कुछ दिनों में एक संयुक्त ड्रिल होने वाली थी, नाम था ब्रह्मास्त्र, जो काफ़ी पेचीदगी वाला अभ्यास था. टिपनिस मानकर चल रहे थे कि अगर कारगिल में दिक्कत ज़्यादा होती तो अब तक ड्रिल कैंसिल होने की खबर उन तक आ जाती.
अगले दिन यानी 9 तारीख को कारगिल से सीरियस सिचुएशन की खबर आने लगी थी. आर्मी चीफ़ वेद मालिक देश से बाहर थे. इसलिए टिपनिस ब्रार को वाइस चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ से मिलकर हालात के बारे में पता करने को कहते हैं. लेफ़्टिनेंट जनरल चंद्रशेखर तब वाइस चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ हुआ करते थे. चंद्रशेखर, ब्रार को बताते हैं कि आर्मी घुसपैठियों से निपट रही है. इसके बाद चंद्रशेखर अपनी एक शिकायत भी दर्ज कराते हैं.
चंद्रशेखर बताते हैं कि उन्होंने जम्मू कश्मीर, एयर ऑफ़िसर कमांडिंग इन चीफ़ (AOC-in-C) से फ़ायर सपोर्ट मांगा लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. चंद्रशेखर चाहते थे कि आर्मी को MI-25/35 हेलिकॉप्टर दिए जाएं. लेकिन AOC-in-C, जम्मू कश्मीर का कहना था कि इतनी ऊंचाई पर MI-25 काम को सही से अंजाम नहीं दे पाएंगे. ब्रार, चंद्रशेखर को बताते हैं कि जम्मू कश्मीर AOC-in-C के पास वैसे भी अथॉरिटी नहीं है. और इसके लिए उन्हें एयर चीफ़ मार्शल से बात करनी चाहिए. लेफ़्टिनेंट जनरल चंद्रशेखर फ़िलहाल के लिए बात टाल देते हैं. इधर एयर चीफ़ मार्शल टिपनिस के पास खबर आती है कि आर्मी चीता हेलिकॉप्टर को अटैक के लिए तैयार कर रही है.
IAF और आर्मीये सुनते ही टिपनिस समझ जाते हैं कि सिचुएशन बहुत सीरीयस है. 2006 में छपे एक आर्टिकल में टिपनिस लिखते हैं, अंडों के खोल के बराबर मज़बूत चीता को ऑफ़ेन्सिव पर लगाना ऐसा था मानो मुर्गी को हलाल करने के लिए भेजा जा रहा हो.
इसके बाद कहानी पहुंचती है 24 मई को. एयरफ़ोर्स अभी तक अटैक में शामिल नहीं हुई थी. 24 मई को तीनों सेनाध्यक्षों की मीटिंग हुई. आर्मी चीफ़ वेद मलिक वायुसेना से अटैक हेलिकॉप्टर की मांग कर रहे थे. लेकिन एयर चीफ़ मार्शल AY टिपनिस इसके लिए तैयार नहीं थे. वजहें दो थीं. टिपनिस का मानना था कि वायुसेना के इस्तेमाल से एक बड़ी वॉर की शुरुआत हो सकती थी. और बिना सरकार की पर्मिशन के ऐसा करना सही नहीं था. दूसरा टिपनिस मालिक को समझा रहे थे कि इतनी ऊंचाई पर आते हुए हेलिकॉप्टर स्ट्रिंगर मिसाइल के लिए आसान शिकार होंगे.
इस बीच IAF के पाइलट लगातार अटैक की प्रैक्टिस में लगे हुए थे. लेकिन युद्ध के इस चरण तक एयर फ़ोर्स का इस्तेमाल सिर्फ़ लॉजिस्टिक्स, फोटो खींचने, रेकी आदी के लिए हुआ था.
ऐसे ही मिशन के दौरान एक कैनबेरा विमान को स्ट्रिंगर का निशाना होना पड़ा था. इसलिए टिपनिस चाहते थे कि अटैक की नौबत आए तो IAF पूरी तैयारी के साथ उतरे, और इसके लिए सरकार की पर्मिशन की ज़रूरत थी. लेकिन आर्मी चीफ़ मालिक कोई दलील सुनने को तैयार नहीं थे. उन्हें जल्द से जल्द अटैक हेलिकॉप्टर चाहिए थे. उन्होंने सवाल दागा, “क्या तुम्हें लगता है 40 साल के करियर में मैंने हेलिकॉप्टर ऑपरेशन के बारे में कुछ नहीं सीखा.”
सिचुएशन सम्भालने के इरादे से टिपनिस मलिक से कहते हैं कि उन्हें खुद हेलिकॉप्टर के बारे में सब कुछ नहीं पता है. लेकिन मामला इससे भी ठंडा नहीं होता. “अगर तुम ऐसा ही चाहते हो तो ऐसा ही सही, मैं खुद ही इससे निपट लूंगा”, ये कहते हुए आर्मी चीफ़ कमरे से बाहर निकल जाते हैं. एयर चीफ़ मार्शल के लिए ये पशोपेश में डाल देने वाली बात थी. टिपनिस लिखते हैं कि आर्मी और एयर फ़ोर्स का रिश्ता ख़राब ना हो, ये सोचकर वो दुबारा आर्मी चीफ़ से मिले और कहा कि उन्हें उनके हेलिकॉप्टर मिल जाएंगे.
PM वाजपेयी ने IAF को इजाजत दीएयर फ़ोर्स को तैयारी के लिए 24 घंटे का वक्त चाहिए थे. डिफ़ेंस मीटिंग के दौरान टिपनिस कहते हैं, अगर ज़रूरी हुआ तो हम 12 घंटे में तैयार हो जाएंगे. 25 मई को एक और मीटिंग हुई. अबकी प्रधानमंत्री अटल बिहारी भी मीटिंग में मौजूद थे. अपने चिर परिचित लहजे में अटल कहते हैं, “ठीक है, कल से शुरू करो”. इसके बाद अपनी कुर्सी पीछे करते हुए अटल एक और बात जोड़ते हैं, चाहे कुछ भी LOC पार नहीं होनी चाहिए.
26 की सुबह ऑपरेशन सफ़ेद सागर की शुरुआत हो चुकी थी. पहले दिन का ऑपरेशन सफल रहा. मिग 21 और MI-17 एक के बाद एक रॉकेट बरसा रहे थे. एक हेलीकॉप्टर से 192 रॉकेट दागे जा रहे थे और वहां ऐसे चार थे. टिपनिस लिखते हैं, मेरा एंटीना बार-बार खड़ा हो रहा था. मैं चाहता था कि कमांड को बताऊं कि अति उत्साहित ना हों, वरना गलती हो सकती है.
टिपनिस लिखते हैं कि उन्होंने ऐसा नहीं किया. ये काम उनका नहीं था. उन्हें सिर्फ़ ब्रॉड निर्देश देने थे. ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी ग्रांड पर मौजूद अफ़सरों की थी. और इस दौरान गलती होती तो यही उनके सीखने का तरीक़ा था. एयर चीफ़ मार्शल का एंटीना ठीक सिग्नल दे रहा था. ऑपरेशन के दूसरे ही दिन बड़ी गलती हो गई.
IAF ने दो हेलिकॉप्टर खोए27 मई को स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा ने मिग-21 विमान संख्या C-1539 से उड़ान भरी. उनके बगल में थे 26 साल के फ्लाइट लेफ्टिनेंट कमबमपति नचिकेता. तीन विमान के इस स्क्वॉड्रन ने हायना फॉर्मेशन उड़ान भरना शुरू किया. सुबह के करीब 10.45 का समय था और यह स्क्वॉड्रन दुश्मन पर मौत बरसा रहा था. 80mm की तोप से लैश तीनों विमान दुश्मन पर भीषण बमबारी कर रहे थे.
ठीक 11 बजे इस स्क्वॉड्रन ने दुश्मन पर फिर से हमला बोल दिया. 80mm के गोले खत्म होने के बाद 30mm के बम बरसाए जा रहे थे. बटालिक सीमा से एकदम सटा हुआ इलाका था. इन लोगों को साफ़ निर्देश था कि किसी भी हालत में सीमा रेखा को पार नहीं करना है. सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता के विमान के इंजन में गड़बड़ी आनी शुरू हो गई. स्पीड तेजी से गिर रही थी. कुछ ही सेकंड के भीतर नचिकेता के विमान की गति 450 किलोमीटर प्रति घंटे पर आ गई. यह खतरे की घंटी थी. पहाड़ियों से घिरे इस इलाके में नचिकेता के पास करने के लिए कुछ खास नहीं था. आखिरकार उन्होंने अपना पूरा साहस बटोरा. अपने स्क्वॉड्रन लीडर को जानकारी दी और विमान से इजेक्ट हो गए.
स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा के पास दो रास्ते थे. पहला सुरक्षित एयरबेस की तरफ लौटने का और दूसरा नचिकेता के पीछे जाने का. आहूजा ने दूसरा रास्ता चुना. वो नचिकेता के पीछे गए ताकि उनकी ठीक-ठीक लोकेशन हासिल कर सकें. यह जानकारी रेस्क्यू ऑपरेशन में बहुत मददगार साबित होती. नचिकेता की लोकेशन लेने के चक्कर में वो सतह के काफी करीब उड़ रहे थे. यह सीमा का इलाका था और अजय आहूजा दुश्मन के निशाने पर आ गए. पाकिस्तान की जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल अंज़ा मार्क-1 उनके विमान के पिछले हिस्से से टकराई. भारतीय एयरबेस में उनके मुंह से सुने गए आखिरी शब्द थे-"हर्कुलस, मेरे प्लेन से कुछ चीज टकराई है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यह एक मिसाइल हो. मैं प्लेन से इजेक्ट हो रहा हूं."
नचिकेता पकड़े गएबाद की रिपोर्ट में भारतीय वायुसेना ने दावा किया कि स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा ने भारतीय क्षेत्र में जिंदा लैंड किया. इसके बाद उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने पकड़ लिया. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने आहूजा को मार डाला. श्रीनगर बेस हॉस्पिटल में हुए पोस्टमार्टम में साफ़ हुआ कि उन्हें पॉइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी गई. इधर नचिकेता थे जो दुश्मन के इलाके में उतरे थे. नीचे की जमीन पर दूर तक नर्म बर्फ की चादर थी. नचिकेता को समझ में आ रहा था कि आखिर इस ऑपरेशन का नाम 'सफ़ेद सागर' क्यों रखा गया था.
पाकिस्तानी सेना को नचिकेता के पाकिस्तान में उतरने की खबर लग गई थी. पाकिस्तानी नॉर्दन लाइट इन्फेंट्री के जवान उनकी तलाश में भेजे जा चुके थे. नचिकेता ने दूर से एक बिंदु को आग के गोले में बदलते हुए देखा. यह स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान था. इसके बाद उन्होंने फायरिंग की आवाज सुनी. अब वो पाकिस्तानी सैनिकों से घिरे हुए थे. उनके पास हथियार के नाम पर महज एक पिस्टल थी जो 25 गज के दायरे से आगे बेअसर साबित होती थी. नचिकेता को पकड़ लिया गया. लेकिन उनकी जान बच गई और बाद में उन्हें भारत के हवाले कर दिया गया.
इधर एयर चीफ़ मार्शल टिपनिस को खबर मिली की दूसरे दिन भारत ने दो हेलिकॉप्टर खो दिए हैं. 28 मई को चार और हेलिकॉप्टर स्ट्रिंगर मिसाइल के निशाने पर आए. नुबरा-4 नाम का ये फ़ॉर्मेशन बिना फ़्लेयर डिस्पेंसर के उड़ा था. फ़्लेयर डिस्पेंसर तब काम आते हैं जब आपकी तरफ़ इंफ़्रारेड मिसाइल आ रही हो. इंफ़्रारेड मिसाइल हीट सिग्नेचर को फ़ॉलो करती है. ऐसे में पाइलट एक फ़्लेयर छोड़ता है, एक आग का गोला ताकि मिसाइल उसे निशाना समझ ले और हेलिकॉप्टर बच जाए.
हेलिकॉप्टर के साथ ये दिक्कत भी थी कि निश्चित ऊंचाई तक उड़ सकते थे और वहां ये मिसाइलों की रेंज में आ रहे थे. कारगिल में अब ज़रूरत थी फ़ाइटर जेट्स से बरसाए जाने वाले स्मार्ट बम की. लेज़र गाइडेड बम या LGB, जो घने कोहरे और बादलों के बीच निशाना लगा सके.
भारत के पास ऐसे बम थे भी, लेकिन एक पेच था. लड़ाई कितनी लम्बी चलेगी इसका अंदाज़ा नहीं था. अगर सीमा के आर पार युद्ध होता तो, ये सभी बम (कुल साठ) पाकिस्तान में एक खास टार्गेट के लिए काम आते (मसलन कोई पुल या रेल लाइन). इसलिए एयरफोर्स इन्हें कारगिल में नहीं चलाना चाहती थी. ताकि लड़ाई बढ़ने पर भारत की तैयारी पर असर ना पड़े.
मुश्किल के इस दौर में इज़रायल को याद किया गया. भारत ने इज़रायल से लाइटनिंग इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल टार्गेटिंग पॉड्स खरीदने के लिए 1997 में डील की थी. इन पॉड्स की खासियत ये थी कि इनमें लेज़र डेज़िग्नेटर के अलावा एक तगड़ा कैमरा भी लगा था जो टार्गेट की तस्वीर दिखाता था. इनसे काम बन सकता था. लेकिन कारगिल युद्ध छिड़ने तक इनकी डिलिवरी का समय नहीं आया था. बावजूद इसके इज़रायल ने अपने इंजीनियर भेजे. इज़रायलियों की मदद से पॉड्स एयरफोर्स के मिराज फाइटर जेट में लगाए गए.
टार्गेटिंग पॉड्स का इंतज़ाम होने के बाद सवाल उठा कि बम कौन सा चलाया जाए? इज़रायल के पॉड्स के साथ Paveway-II LGB बम इस्तेमाल होने थे. इनके आधे स्पेयर पार्ट अमरीका से आने थे, और आधे ब्रिटेन से. लेकिन 1998 में भारत ने न्यूक्लियर बम टेस्ट किए थे और इस वजह से हथियारों के इंपोर्ट पर बैन लगा हुआ था. तो एयरफोर्स ने तय किया कि उनकी जगह देसी बम चलाया जाए. देसी माने एयरफोर्स का पारंपरिक 1000 पाउंड का बम. तो एयरफोर्स ने फ्रांस में बने फाइटर जेट पर इज़रायल में बना टार्गेटिंग पॉड लगा कर उसमें एक देसी बम चलाने का प्लान बनाया.
कैसे पाकिस्तानी ऑपरेशन की कमर टूटी?इस कॉन्फिगरेशन के साथ इन फाइटर जेट्स को कभी टेस्ट नहीं किया गया था. 30 हज़ार फीट की उंचाई पर जाकर इज़रायली पॉड का सॉफ्टवेयर बंद पड़ जाता था, क्योंकि उसमें एक बग था. लेकिन एयरफोर्स ने रिस्क लिया और 25 जून की सुबह दो मिराज-2000 फाइटर जेट टाइगर हिल की ओर बढ़े. टाइगर हिल से 7 किलोमीटर दूर से पहले जेट ने जुगाड़ वाला बम चला दिया, वो जुगाड़, जो उस दिन से पहले कभी आज़माया नहीं गया था. लेकिन बम टाइगर हिल पर बने दुश्मन के बंकर पर लगा, तो वहां सिर्फ एक पाकिस्तानी फौजी ज़िंदा बचा. बम का वार अचूक था.
इस हमले को देखने पीछे वाले जेट में तब के एयर चीफ मार्शल AY टिपनिस खुद बैठे थे. इस हमले में पाकिस्तान आर्मी का कमांड एंड कंट्रोल सेंटर तबाह हो गया और कारगिल पर दोबारा अपना कब्जा करने में आर्मी को काफी सहूलियत हो गई. कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर कब्ज़ा टर्निंग पॉइंट कहा जाता है. हालांकि एयर चीफ़ मार्शल टिपनिस बताते हैं कि असली खेल कहीं और हुआ.
जून की तीसरे हफ़्ते में एक जगुआर रेकी पर निकला था. जब उसकी नज़र कारगिल के पूर्वी सेक्टर में स्थित मंथो धालो पर पड़ी. यहां पाकिस्तानी सेना का सप्लाई डम्प था. चार मिराज-2000 सॉर्टी पर निकले और एक सिंगल अटैक में 250 किलो के 6 बम गिराए. इस एक हमले में 300 पकिस्तानी फ़ौजी मारे गए. इस अटैक ने पकिस्तानी ऑपरेशन की कमर तोड़ कर रख दी. बाकी बचा काम आर्मी ने पूरा कर दिया और 26 जुलाई को युद्ध आधिकारिक रूप से खत्म हो गया.
वीडियो देखें- सिंधु घाटी सभ्यता की खोज, शुरूआत और अंत की कहानी