रेगिस्तान में फूल खिलाने वाला राजा
बीकानेर के महाराज गंगा सिंह ने 5 दिसंबर 1925 के दिन 'गंग नहर' की नींव रखी और अकाल की समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक सिंचाई प्रणाली भी स्थापित की.
भारत के उत्तर पश्चिम में पड़ता है एक राज्य. नाम है राजस्थान, यानी राजाओं का देश. राजस्थान में बीकानेर से श्रीगंगानगर या हनुमानगढ़ की तरफ जाएंगे तो आपके साथ-साथ एक विशाल रेगिस्तान चलेगा. थार की इस जमीन पर जिन्दा बच पाते हैं सिर्फ कुछ सांप कीड़े और कैक्टस के पेड़. और हां शायद बियर ग्रिल्स भी. गर्मियों में इस रेतीली जमीन पर आदमी का कुछ देर रुकना भी मुश्किल है. लेकिन बीकानेर से 250 किलोमीटर दूर पहुंचते ही आपको एक चमत्कार होता दिखाई देता है. खेजड़ी और बबूल के पेड़ो से गुजरता हुआ ये रास्ता अचानक खुलता है लहलहाते धान के खेतों में. ऐसी हरियाली कि आदमी को लगे वो राजस्थान के बजाय पंजाब पहुंच गया है. लेकिन ये राजस्थान ही है. और इन खेतों के पीछे हैं एक बड़ी ही रोचक कहानी.
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महाराज गंगा सिंहराजस्थान में श्रीगंगानगर का इलाका कभी हड़प्पा सभ्यता का हिस्सा हुआ करता था. यहां से पास में ही कलीबंगन, पिलीबंगन, भटनेर, और रंगमहल में हमारे आपके पूर्वज रहा करते थे. कुछ अनुमानों के अनुसार यहां से बहने वाली सरस्वती नदी इस इलाके को पानी देती थी. फिर कई हजार साल पहले नदी सूख गई. जमीन का वो हिस्सा जो कभी हरियाली से लहलहाया करता था. उसे रेगिस्तान ने अपने आगोश में ले लिया. मध्यकाल आते-आते ये इलाका जंगलदेश कहलाने लगा. जहां अधिकतर समय सूखा पड़ा रहता था. फिर इसकी किस्मत बदली बीकानेर महाराजा गंगा सिंह ने (Maharaja Ganga Singh).
बीकानेर(Bikaner) की कहानी शुरू होती है 1488 में. हुआ यूं कि जोधपुर की स्थापना करने वाला महाराज राव जोधा की अपने बड़े बेटे राव बीका से कुछ खटपट हो गई. राव बीका ने जोधपुर छोड़ा और अपने लिए एक नए शहर बनाया, जिसका नाम पड़ा बीकानेर. सैकड़ों सालों तक उनकी पीढ़ी ने बीकानेर पर राज किया. साल 1805 में बीकानेर रियासत ने हनुमानगढ़ को भी अपने राज में मिला लिया. बीकानेर इस दौर में ट्रेड का बड़ा सेंटर हुआ करता था. मुल्तान से दिल्ली जाने वाले कारवां यहां रुकते थे.
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बीकानेर में पड़ा भीषण अकाल1850 के आसपास बीकानेर और बाकी राजपुताना अंग्रेज़ों के अधीन आ गया और बीकानेर की पुराणी शान-ओ-शौकत ख़त्म हो गई. 1888 में बीकानेर की कमान संभाली 18 साल के महाराज गंगा सिंह ने. उनके गद्दी संभालते ही पश्चिम भारत में भयानक अकाल(Famine) पड़ा. बीकानेर की 20 % जनता इस अकाल की भेंट चढ़ गई. मौत का ऐसा तांडव देखकर युवा महाराज का दिल दहल उठा. उन्होंने निश्चय किया कि अब कभी उनकी जनता को ऐसी विपदा का सामना नहीं करना पड़ेगा. लेकिन ये काम बहुत मुश्किल था. क्योंकि बीकानेर का अधिकतर अनाज बाहर से आता था. उपजाऊ जमीन भी कम थी और सबसे बड़ी दिक्कत थी पानी की.
अकाल आदि पड़ने पर उनके लिए राशन हासिल करना कठिन था. लोगों को भरपूर अनाज मिले, इसका एक ही तरीका था कि बीकानेर अपना भोजन खुद उगाए. इसके लिए पानी की जरुरत थी. और रेगिस्तान के बीचों बीच पानी का कोई जरिया नहीं था. ऐसे में महाराज गंगा सिंह ने एक तरकीब सोची. उन्होंने तय किया कि वो पंजाब से सतलज का पानी बीकानेर तक लेकर आएंगे. इसके लिए लगभग 150 किलोमीटर नहर बनाने की जरुरत थी. ये काम अति दूभर तो था ही, साथ ही बहावलपुर रियासत से इस प्रोजेक्ट के लिए इजाजत लेना जरूरी था. जो इसके लिए हरगिज राजी नहीं थे. नहर बनाने एक ऐसी ही कोशिश पहले फेल भी हो चुकी थी.
सतलज नहर प्रोजेक्ट1885 में एक ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल डायस ने सर्वे कर इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया लेकिन पंजाब सरकार और बहावलपुर रियासत ने काम रुकवा दिया था. साल 1903 में महाराजा गंगा सिंह ने तय किया कि वो इस प्रोजेक्ट को दुबारा जिन्दा करेंगे. इसके लिए उन्होंने एक ब्रिटिश विशेषज्ञ AWE स्टैनले को चीफ इंजीनियर का काम सौंपा और उनसे सर्वे का काम पूरा करने को कहा.
इसके साथ ही उन्होंने पंजाब सरकार की लॉबिंग भी शुरू कर दी. कई साल तक कोशिश नाकाम रही. फिर 1913 में हालात बदले. प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई. बीकानेर की फौज ने युद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दिया. साथ ही महाराजा गंगा सिंह अंग्रेज़ों की बनाई इम्पीरियल वॉर कैबिनेट(Imperial War Cabinet,) का हिस्सा बने. इतना ही नहीं युद्ध के बाद जब वर्साय की संधि(Treaty of Versailles) हुई, तो इस संधि में हस्ताक्षर करने वालों में से एक महाराजा भी थे.
महाराजा के इन कामों से खुश होकर साल 1919 में पंजाब सरकार ने सतलज नहर प्रोजेक्ट के प्रस्ताव पर हामी भर दी. पंजाब सरकार, बहावलपुर रियासत और बीकानेर रियासत के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ. समझौते के तहत फ़िरोज़पुर में सतलज से बीकानेर तक 157 किलोमीटर नहर बनानी थी. नहर को ऐसे इलाकों से निकालना था, जहां निर्माण का सामान पहुंचाना कठिन था. इसलिए तय हुआ कि नहर के साथ-साथ एक रेलवे लाइन भी बनाई जाएगी.
भाखड़ा परियोजना पर काम5 दिसंबर 1925 को महाराजा ने जमीन पर हल चलाकर इस नहर की आधारशिला रखी. नहर का काम फ़िरोज़पुर से शुरू हुआ. नहर के साथ साथ फीडर कैनाल्स का एक पूरा नेटवर्क बनाया गया. जिससे लगभग 1200 मील के एरिया में 65 हजार एकड़ जमीन तक पानी पहुंचा. 1920 के हिसाब से इस प्रोजेक्ट की लागतन 5.5 करोड़ रूपये थी. जिसका पूरा बंदोबस्त महाराजा गंगा सिंह ने किया था. उन्होंने कलकत्ता और मुम्बई में काम करने वाले मारवाड़ी व्यापारियों से इस योजना के लिए लोन लिया. दो साल में नहर बनकर तैयार हुई और 26 अक्टूबर, 1927 को वाइसरॉय लार्ड इरविन ने इस नहर का उद्धघाटन किया. महाराजा के नाम पर इस नहर का नाम गंग नहर (Ganga Canal) या गंगा नहर पड़ा. नहर के बनाने के कुछ वक़्त के अंदर ही बीकानेर की काया पलट गई. तब के एक सरकारी अधिकारी MM सापट लिखते हैं,
“जहां तक नजरें जा सकती थीं, वहां पहले बंजर रेगिस्तान दिखाई देता था. अब लहलहाते हरे खेत दिखाई दे रहे हैं”
महाराजा यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने पंजाब के किसानों को इस इलाके में बसने का न्योता दिया. 1931 में एक नए शहर की नींव रखी गई. नाम पड़ा श्रीगंगानगर. यहां रेल लाइनों का जाल बिछा. स्कूल हॉस्पिटल और कॉलेज बनाए गए. महाराजा की अंतिम ख्वाहिश थी कि गंगानगर की तरह पूरे बीकानेर को पानी मिले. उन्होंने 1919 में भाखड़ा बांध परियोजना पर काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद ये प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया. भाखड़ा नांगल बांध(Bhakra-Nangal Dam) 1963 में बनकर पूरा हुआ. लेकिन तब तक महाराजा की मृत्यु हो चुकी थी. 2 फरवरी 1943 को गले के कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई. कहते हैं कि जब महराजा मृत्यु शय्या पर थे, तब उनके आख़िरी बोल थे,
पंजाब का बंटवारा“भाखड़ा प्रोजेक्ट की फ़ाइल लेकर आना”.
गंग नहर की एक खास बात ये भी है कि 1947 में बंटवारे के दौरान इस नहर ने भारत और पाकिस्तान के नक़्शे पर एक बड़ा असर डाला. हुआ यूं कि जब रैडक्लिफ कमीशन(Radcliffe Commission) ने पंजाब का बंटवारा किया, उन्होंने फ़िरोज़पुर पाकिस्तान को सौंपने का निर्णय कर लिया था. इसका मतलब था कि नहर का सिरा पाकिस्तान के हिस्से में चला जाता. महाराजा गंगा सिंह के बेटे सदुल सिंह अड़ गए. उन्होंने साफ़ शब्दों का कहा कि अगर फ़िरोज़पुर पाकिस्तान में गया तो बीकानेर भी पाकिस्तान में जाएगा. क्योंकि फ़िरोज़पुर के बिना बीकानेर प्यासा मर जाएगा.
अंत में नेहरू(Jawaharlal Nehru) ने भी माउंटबेटन से इस मामले पर बात की. और फ़िरोज़पुर भारत के हिस्से में दे दिया गया. महाराजा गंगा सिंह की एक कोशिश से न सिर्फ रेगिस्तान में फूल खिले, बल्कि फ़िरोज़पुर जैसा महत्वपूर्ण जिला भी भारत के हिस्से आया. इतना ही नहीं, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के जिस इलाके को कभी बंजर माना जाता था, वो राजस्थान के लिए धान का कटोरा बन गए.
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