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अंतरिक्ष में भेजे गए पहले कुत्ते का राज 45 साल बाद खुला!

इंसान से पहले अंतरिक्ष में जानवर भेजे गए. जानिए क्या हश्र हुआ उस पहले कुत्ता का जिसे स्पेस में भेजा गया था.

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अंतरिक्ष में भेजी गई पहली कुतिया लाइका जिसका सच 45 साल तक छुपाया गया (तस्वीर: Wikimedia Commons/ सांकेतिक)
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कमल
14 अप्रैल 2023 (Updated: 14 अप्रैल 2023, 08:32 IST)
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लाइका की ज़िंदगी अब तक यूं ही सड़कों पर घूमते फिरते कट रही थी. लेकिन ये सब जल्दी ही बदलने वाला था. बात है 1950 के दशक की. इंसान जब भी आकाश की ओर देखता, एक हुलस उठती थी. अंतरिक्ष की अतल गहराइयों को हम कब नाप पाएंगे. लिहाजा रॉकेट बनाए गए. जिनमें बैठकर इंसान अब आकाश गंगाओं का रुख करने वाला था. इसे किस्मत ही कहेंगे कि वैज्ञानिकों ने इस मिशन के लिए लाइका को चुना. वैज्ञानिक ये जानना चाहते थे कि स्पेस फ्लाइट का किसी जीवित प्राणी पर क्या असर होता है. रॉकेट की मदद से स्पेस क्राफ्ट ने टेक ऑफ किया और 162 दिन बाद धरती पर लौटा. धरती के 2570 चक्कर लगाने के बाद. लेकिन लाइका न लौटी. उसकी मौत हो चुकी थी.

इसके एक दशक बाद नील आर्मस्ट्रोंग ने चांद पर कदम रखा, और घोषणा की, 

'इंसान का छोटा सा कदम, इंसानियत के लिए लम्बी छलांग.'

बात वाजिब थी लेकिन पूरी नहीं. असलियत में ये छोटा सा कदम सिर्फ इंसान का नहीं था. एक छोटा पंजा भी इसमें शामिल था. एक कुत्ते का. जिसका नाम था लाइका. (Laika Space Dog)

अंतरिक्ष की दौड़ 

शुरुआत एक तारीख से. 4 अक्टूबर 1957. अमेरिकी राष्ट्रपति आइज़नहावर के दफ्तर में गहमागहमी और दिनों से कुछ ज्यादा थी. लोग फाइलें लिए इधर उधर दौड़ रहे थे. प्रेस रूम में पत्रकार अपने तीखे सवालों के साथ तैयार खड़े थे. टीवी पर हेडलाइंस चल रही थीं. सोवियत रूस के हार गया अमेरिका. लानत हो, वाले लहजे में एंकर फिकरे बरसा रहे थे. ये सब हो रहा था एक छोटे से चमकते गोले के कारण. महज 23 इंच व्यास था जिसका. लेकिन आइजनहावर के लिए मुसीबत का सबब बन गया था, क्योंकि ये गोला अंतरिक्ष में था. और धरती के चक्कर लगा रहा था. 

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स्पूतनिक वन और टू का लॉन्च क्रमशः 4 अक्टूबर 1957 और 3 नवंबर 1957 को हुआ था (तस्वीर: Wikimedia Commons)

स्पेस रेस में सोवियत रूस ने पहली बाजी मार ली थी. स्पूतनिक-1, ये नाम था दुनिया की पहली आर्टिफिशियल सैटेलाइट का. स्पूतनिक- रूसी भाषा के इस शब्द का मतलब होता है हमसफर. सफर जो अनंत आकाश में चल रहा रहा लेकिन इस यात्रा में हमसफ़र बनने की होड़ में एक और देश लगा हुआ था. - अमेरिका.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने चुपके से नाज़ी जर्मन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों अपने यहां भर्ती किया. इनमें से एक का नाम था वर्नर वॉन ब्रॉन. ब्रॉन ने WW2 के दौरान V2 नाम की एक उन्नत तकनीक वाली मिसाइल बनाई थी. उनकी इसी योग्यता के चलते अमेरिका ने अपने इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम की कमान उसके हाथ में सौंप दी. हालांकि तब राकेट और मिसाइल का मतलब एक ही था. इसलिए यही स्पेस प्रोग्राम का शुरुआती चरण भी बन गया. ब्रॉन खुद भी स्पेस प्रोग्राम में बहुत रूचि रखता था. बल्कि युद्ध के दौरान जब उसकी मिसाइलें लन्दन पर कहर बरसा रही थीं, वो कहता था, ये राकेट काम तो ठीक से कर रहे है लेकिन इनकी लैंडिंग बस गलत ग्रह पर हो रही है. ब्रान धरती दरअसल अपने रॉकेटों को धरती के पार सुदूर अंतरिक्ष में पहुंचाना चाहता था. जल्द ही उसका ये मंसूबा भी पूरा हो गया.

स्पेस में जाने के लिए कुतिया को क्यों चुना गया? 

1955 में आइजनहावर ने घोषणा की अमेरिका जल्द ही अपनी पहली आर्टफिशियल सैटेलाइट लॉन्च करेगा. चार दिन बाद रूस ने भी ऐसा ही ऐलान किया और दोनों देश स्पेस रेस की स्टार्टिंग लाइन पर आकर खड़े हो गए. अमेरिका तैयारी में लगा था लेकिन रूस ने पहली बाजी मारते हुए अक्टूबर 1957 में पहली सैटेलाइट लॉन्च भी कर दिया. इससे पहले कि अमेरिका रियेक्ट कर पाता, रूस ने स्पूतनिक टू के लॉन्च की तैयारी भी पूरी कर ली और 30 दिन के भीतर उसे भी लॉन्च कर दिया. हालांकि स्पूतनिक वन और टू में एक अंतर था. इस बार ये सैटेलाइट अकेले नहीं जा रहा था. एक जीवित हमसफ़र भी इसके साथ था. यहां से इस कहानी में एंट्री होती है लाइका की.

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ऑपरेशन पेपर क्लिप के तहत वर्नर वॉन ब्रॉन जैसे कई नाजी वैज्ञानिक अमेरिका में भर्ती किए गए (तस्वीर: Wikimedia Commons)

स्पेस रेस का आख़िरी लक्ष्य इंसान को स्पेस में भेजना था. इसलिए अमेरिका और सोवियत रूस शुरुआत से टेस्टिंग में लगे थे. स्पेस मिशन का इंसानी शरीर पर क्या प्रभाव होगा, ये जानने के लिए पहले जानवरों पर टेस्टिंग जरूरी थी. पहले पहल राकेट के साथ कीड़ों मकोड़ों और चिंपांज़ी को अंतरिक्ष में भेजा गया. हालांकि ये सब सब-ऑर्बिटल मिशन थे. यानी इन्हें स्पेस में रुकना न था, बस छूकर वापिस लौटना था. स्पूतनिक -वन की सफलता से जब तय हो गया कि सैटेलाइट अंतरिक्ष में ठहर सकता है, रूस ने अपने अगले मिशन के साथ किसी जानवर को भी भेजने की ठान ली. तय हुआ कि किसी कुत्ते को साथ में भेजा जाएगा.

मास्को के गलियों में घूमने वाले कुत्ते भूख और भारी ठण्ड का सामना करने के आदि थे. इसलिए सोवियत वैज्ञानिकों ने तय किया कि ऐसे आवारा कुत्ते ही इस मिशन के लिए बेहतर होंगे. सैड़कों कुत्तों में तीन चुने गए. ट्रेनिंग शुरू हुई तो पता चला कि उनमें से एक गर्भवती है, उसे रिजेक्ट कर दिया गया. आखिर में कुद्रव्यका नाम की एक फीमेल डॉग इस मिशन के लिए चुनी गई. ख़ास तौर पर मादा को इसलिए चुना गया क्योंकि मेल डॉग टांग उठाकर पेशाब करता है. इस वजह से स्पेस क्राफ्ट का आकार बड़ा बनाना पड़ता. जिससे भार बढ़ता. और साथ ही बढ़तीं तकनीकी दिक्कतें.

लाइका वापिस नहीं लौटने वाली थी? 

3 साल उम्र की कुद्रव्यका के साथ ये दिक्कत न थी. पांच किलो वजन था और आकार एकदम छोटा. उसका रंग सफ़ेद और भूरे का मिश्रण था. और टेस्ट में उसने सबसे बेहतर प्रदर्शन किया था. सोवियत अधिकारियों ने बाकायदा उसे प्रेस से भी रूबरू करवाया. यहां जब उसने भौंकना शुरू किया तो प्रेस ने एक और नामकरण करते हुए उसका नाम लाइका रख दिया. रूसी भाषा के इस शब्द का अर्थ होता है - भौंकने वाला. तब लाइका की चर्चा सिर्फ सोवियत रूस ही नहीं अमेरिका में भी थी. अमेरिकी प्रेस ने उसे एक और नाम दिया, मटनिक, स्पूतनिक नाम का बिगड़ा हुआ स्वरूप.

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लाइका से पहले और भी जीव अंतरिक्ष में जा चुके थे लेकिन वे सब सब ऑर्बिटल मिशन थे (तस्वीर: icarus films)

इस मिशन की देखरेख करने वाले एक वैज्ञानिक डॉक्टर व्लादिमीर याज़ड्वोस्की ने सोवियत स्पेस मिशन पर लिखी एक किताब में लाइका का जिक्र किया हैं. वो लिखते हैं कि लॉन्च के एक रोज़ पहले वो लाइका को अपने घर ले गए थे. ताकि वो उन आख़िरी कुछ घंटों में आराम से रह सके. इस करुणा का एक कारण ये भी था कि लाइका के लिए ये धरती पर उसका आख़िरी वक्त था. स्पूतनिक टू में वो तकनीक नहीं थी कि उसे वापिस लाया जा सके. लौटने की यात्रा में धरती के वातावरण में दाखिल होते ही सैटेलाइट भस्म हो जाने वाला था. हालांकि लाइका इतनी यात्रा भी नहीं करने वाली थी. 

वैज्ञानिकों को इल्म था कि कुछ दिन के अंदर की स्पेस में उसकी मौत हो जाएगी. इसलिए उसकी खुराक में एक धीमा ज़हर मिलाया गया था. ताकि बिना तकलीफ के वो शांति से मर सके. मरने से पहले उसके शरीर से मिलने वाला डेटा इकठ्ठा किया जाना था. इसलिए ऑपरेशन के जरिए धड़कन, BP और सांस मापने वाले सेंसर उसके शरीर में लगाए गए. इसके बाद स्पूतनिक लॉन्च के लिए तैयार था.

अंतरिक्ष में लाइका 

3 नवंबर 1957 की तारीख. लाइका के शरीर पर आयोडीन का घोल लगाया गया. टेक्नीशियन ने उसके लिए बनाए हुए चेंबर में उसे बिठाया और शाम 7 बजकर 22 मिनट पर रॉकेट ने उड़ान ले ली. कुछ मिनटों के अंदर ही लाइका अंतरिक्ष में दाखिल हुई. और पूरी सोवियत संघ के लिए हीरो बन गई. हालांकि सोवियत रूस से बाहर कई लोगों ने इसका विरोध भी किया. ब्रिटेन में लोगों ने एक घंटे का मौन रखा. सबको पता था कि अब वो कभी नहीं लौटेगी. सोवियत वैज्ञानिकों के अनुसार लाइका से शरीर से उन्हें अगले 10 दिन तक काफी जरूरी डेटा मिला.इसके बाद धीमे जहर से उसकी मौत हो गई.

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लाइका के बाद 1960 में दो और कुत्तों को स्पेस में भेजा गया लेकिन वो दोनों सकुशल लौट आए (तस्वीर: Icarus Films )

 स्पूतनिक-टू, 162 दिनों तक धरती के चक्कर लगाता रहा और 1968 में उसने दुबारा धरती के वातावरण में एंटर किया. तारीख थी-14 अप्रैल. इस दौरान घर्षण से पैदा हुई गर्मी ने स्पूतनिक को पूरी तरह नष्ट कर डाला और उसके महज कुछ टुकड़े ही जमीन पर गिरे. स्पूतनिक के बाद अगले के सालों में कुछ और अंतरिक्ष यान लॉन्च किए गए. और इनकी बदौलत 1961 में रूस पहले मानव युक्त अंतरिक्ष अभियान में सफल हो पाया. लाइका के स्टेचू पूरे सोवियत रूस में लगाए गए. उसके नाम के सिगरेट ब्रांड बाजार में निकाले गए. और फर्स्ट डॉग इन स्पेस के नाम से लाइका हमेशा के लिए महशूर हो गई. सोवियत अधिकारियों के अनुसार उसकी की कुर्बानी ने स्पेस टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.

लेकिन न तो कुर्बानी लाइका ने अपनी मर्जी से दी थी और न ही ये महत्वपूर्ण योगदान वाली बात पूरी से तरह सही थी. इस मिशन की पूरी असलियत 1991 के बाद उजागर हुई जब सोवियत संघ के विघटन के बाद ख़ुफ़िया दस्तावेज़ खंगाले गए.

लाइका की हुई थी दर्दनाक मौत 

इनसे जो पता चला वो कुछ यूं था. सोवियत वैज्ञानिक 10 दिन तक लाइका के शरीर से मिले डेटा को पब्लिश करते रहे लेकिन ये डेटा जाली था. असल में टेकऑफ के दौरान तकनीकी खामियों के चलते लाइका के चैंबर का तापमान बहुत बड़ गया था. सेंसर से मिले डेटा के अनुसार उसकी दिल की धड़कन 240 बीट प्रति मिनट हो गई थी. यानी सामान्य से दो गुनी. 4 घंटे के भीतर डेटा आना बंद हो गया जिसका एक ही मतलब था. लाइका मर चुकी थी. इस मिशन की देखरेख करनेवालों में एक वैज्ञानिक ओलेग गैजेंको ने काफी साल इस बारे में बताया,

“लाइका की मौत का मुझे बहुत दुःख है. असलियत में हमें उस मिशन के कुछ खास डेटा भी नहीं मिला कि हम उसकी मौत को जस्टिफाई कर सकें”

लाइका वो आख़िरी जानवर नहीं थी जिसने स्पेस रेस की कीमत चुकाई हो. आने वाले सालों में कई चिम्पांज़ी, कुत्ते खरगोश आदि स्पेस में भेजे गए. 70 में चीन ने अपने स्पेस मिशन में सुअरों का इस्तेमाल किया. 21 वीं सदी में स्पेस एक्स आदि कंपनियां स्पेस कार्यक्रम के लिए जानवरों का इस्तेमाल करती हैं. और जहां तक कि भारत की बात है, साल 2007 से इसरो ने गगनयान मिशन के शुरुआत कर दी थी. जिसका पहला स्टेज इसी साल यानी 2023 में शुरू होने की उम्मीद है. हालांकि इसरो के अनुसार इस मिशन में टेस्टिंग के लिए भी किसी जानवर का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. 

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