1963 में गणतंत्र दिवस के जस्ट अगले दिन, यानी, 27 जनवरी को लता मंगेशकर ने दिल्लीके नेशनल स्टेडियम में एक गाना गाया. रामचंद्र नाराणयजी द्विवेदी का लिखा हुआ.रामचंद्र नाराणयजी द्विवेदी, जिन्हें हम सब कवि प्रदीप के नाम से जानते हैं. इस गीतको सुनने के लिए काफ़ी हाई प्रोफ़ाइल गेस्ट मौजूद थे. कितने हाई प्रोफ़ाइल?तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन जितनेहाई प्रोफ़ाइल.लता ने पहले इसे गाने से मना कर दिया था. उन्होंने बाद में बताया- रिहर्सल करने कासमय नहीं था. उस समय मैं चौबीसों घंटे काम कर रही थी. किसी एक गाने पर ख़ास ध्यानदेना नामुमकिन सा लग रहा था. फिर प्रदीप जी ने जोर दिया. बोले- लता तुम देखना येगाना बहुत चलेगा. लोग हमेशा के लिए इसे याद रखेंगे. ख़ैर, बिना रिहर्सल के लतापरफ़ॉर्मेंस से पहले बहुत घबराई हुई थी. लेकिन परफ़ॉर्मेंस के बाद प्रदीप का येलिखा गीत वाकई कालजयी हो गया. गीत था. – “ऐ मेरे वतन के लोगों.” इसी गीत की दोलाइनें थीं: जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होलीजब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली क्या ये गीत किसी सत्य घटना सेइंस्पायर्ड था? अगर हां, तो ये दिवाली के दिनों में कौन थे जो गोलियां झेल रहे थे,खून की होलियां खेल रहे थे? और जैसा कि कहा जाता है, इस गीत को सुनकर क्या वाकईजवाहर लाल नेहरू की आंखें नम हो गई थीं?ये सब जानने के लिए हमें इस कॉन्सर्ट से दो-तीन महीने पीछे चलना होगा.आज 20 अक्टूबर है और आज ही के दिन शुरू हुआ था भारत और चीन (China) के बीच युद्ध.जब 20 अक्टूबर, 1962 को चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेशपर एक साथ आक्रमण कर दिया. अरुणाचल प्रदेश को तब नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी के रूपमें जाना जाता था.इस युद्ध के कारणों की शुरुआत कई साल पहले शायद तभी हो गई थी, जब भारत और चीन कोअलग करने वाली मैकमोहन लाइन को चीन ने मानने से इनकार कर दिया. साथ ही उसनेजम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों पर भी दावा करना शुरू कर दिया. लेकिन फिर चीन केपीकिंग शहर में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. 29 अप्रैल, 1954 को. इस समझौते कानाम था ‘पंचशील समझौता’. समझौते में चीन और भारत के बीच के विवादों को बातचीत से हलकरने की बात कही गई थी. इसमें कुछ व्यापारिक समझौते भी किए गए थे. साथ ही समझौतेमें भारत ने तिब्बत में चीनी शासन को स्वीकार कर लिया. इस समझौते के बादप्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे को भी बढ़ावा देनाशुरू कर दिया था.कुल मिलाकर 1954 में भारत और चीन के संबंध ऐसे हो चुके थे कि शायद ही कोई युद्ध कीआशंका करता.इंडिया टुडे की एक स्टोरी के अनुसार, इसके बाद 1 जुलाई, 1954 को पूर्व प्रधानमंत्रीजवाहरलाल नेहरू ने कहा कि- सभी पुराने नक्शों की सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए.और जहां आवश्यक हो पुरानी सीमा रेखाओं को बदला जाना चाहिए. नए नक्शे प्रिंट किएजाने चाहिए और उनमें किसी 'रेखा' का संदर्भ नहीं आना चाहिए. इनमें हमारी उत्तरी औरपूर्वोत्तर सीमाओं को दिखाया जाना चाहिए. इन नए मानचित्रों में यह भी नहीं बतायाजाना चाहिए कि कोई ‘अनिर्धारित’ या अनडिमार्केटेड क्षेत्र अस्तित्व में है. चीन केसाथ हुए हमारे समझौते के बाद इस सीमा को दृढ़ और निश्चित माना जाना चाहिए और इसमेंकिसी के साथ चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. दूसरी ओर, चीन ने जो अपनेऑफ़िशियल नक़्शे प्रिंट किए उसमें अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश पर दावा दिखाया गयाथा. हालांकि तत्कालीन चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई कहा कि इन नक्शों में त्रुटियां थींऔर चीन का भारत-नियंत्रित क्षेत्रों पर कोई दावा नहीं है. ये 1956 की बात थी.इसके दो साल बाद, 1958 में, भारत ने आधिकारिक तौर पर कहा कि अक्साई चिन उसकाक्षेत्र है. ये वो दौर था जब तिब्बत भी विद्रोह की आग में जल रहा था. PLA, माओत्सेतुंग के नेतृत्व वाली चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ किसी भी आवाज को कुचलनेमें लगी थी. 1959 में दलाई लामा तिब्बत से भाग कर भारत आ गए और यहां उनका ख़ूबस्वागत-सत्कार किया गया. भारत की सरकार ने उन्हें शरण देने का फैसला किया और दलाईलामा ने भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार का गठन किया. इससे चीन का थिंक टैंक,ख़ास तौर पर माओत्से तुंग, भारत से चिढ़ गया. उसी वर्ष, अगस्त से अक्टूबर के बीचभारतीय और चीनी सेनाएं कई चौकियों पर भिड़ गईं.तस्वीर: AFPयूं, 1959 तक भारत और चीन के बीच संबंध उस वक्त तक के अपने सबसे ख़राब दौर मेंपहुंच चुके थे. लेकिन, जैसा न्यूज़ एंकर कहते हैं: स्थिति तनावपूर्ण किंतु नियंत्रणमें थी. इसी बीच झोउ एनलाई ने प्रस्ताव रखा कि अगर भारत अक्साई चिन पर अपना दावाछोड़ देता है तो बदले में चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा छोड़ देगा. नेहरू ने इसप्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चीन के पास इन क्षेत्रों पर दावा करने काकोई भी वैध कारण नहीं है. इसके जवाब में चीन ने भारत पर आरोप लगाया कि भारत तिब्बतको लेकर कोई ‘बड़ी योजना’ बना रहा है.भारत ने 1961 में अपनी ‘फ़ॉरवर्ड पॉलिसी’ लॉन्च कर दी थी. इस पॉलिसी का उद्देश्यचीनी सैनिकों को डिमार्केशन लाइन के पीछे खदेड़ना था. 1962 तक छिटपुट झड़पें ज़ारीरहीं. 10 जुलाई, 1962 को, लगभग 350 चीनी सैनिकों ने चुशुल में एक भारतीय चौकी कोघेर लिया और लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करके गोरखा सैनिकों को समझाने लगे कि उन्हेंभारत की तरफ़ से नहीं लड़ना चाहिए.इस सबके बावज़ूद भारत लगभग पूरी तरह आश्वस्त था कि चीन भारत के साथ सीधे युद्ध मेंकभी शामिल न होगा.लेकिन फिर आया आज का दिन. यानी 20 अक्टूबर, 1962. जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश औरलद्दाख में भारतीय चौकियों पर एक साथ हमले कर दिए. इन हमलों का उद्देश्य पश्चिमीक्षेत्र में चिप चाप घाटी और पूर्वी क्षेत्र में नमका चू नदी के पार के क्षेत्रोंपर कब्जा करना था. चीनियों ने शुरू में ही भारत की टेलीफोन लाइनों को काट दिया था,जिससे सैनिक मुख्यालयों से संपर्क करने में अक्षम थे. युद्ध के पहले दिन चीनी सेनाने पीछे से भी हमला किया. सिर्फ़ 4 दिनों में यानी 24 अक्टूबर तक चीनी सैनिक भारतके 15 किलोमीटर भीतर तक घुस गए थे. चीन भारत पर हमला नहीं करेगा, यही वो अतिविश्वासथा कि भारत अपने को पूरी तरह तैयार न कर पाया और इसी अतिविश्वास के चलते जहां भारतने सैनिकों के केवल दो डिवीजनों को तैनात किया था वहीं चीन की तीन रेजिमेंट युद्धमें इन्वॉल्व थीं. और इसी वजह से दस-बीस हज़ार के क़रीब भारतीय सैनिकों को 80,000चीनी सैनिकों का सामना करना पड़ा था.बहरहाल युद्ध के कुछ दिनों के भीतर ही झोउ एनलाई ने नेहरू को एक पत्र लिखकर युद्धविराम का प्रस्ताव रखा. एनलाई ने बातचीत से हल निकालने की पेशकश की. एनलाई ने सुझावदिया कि भारत और चीन दोनों अपने सैनिकों को लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल से 20 किमीपीछे ले लें. साथ ही अपने पुराने प्रस्ताव को भी दोहराया कि भारत अक्साई चिन सेअपना दावा छोड़ दे तो चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा छोड़ देगा. लेकिन नेहरू नेभी दोबारा वही बात कहते हुए प्रस्तावों को खारिज कर दिया कि अक्साई चीन पर चिन दावाअवैध है.झोऊ एनलाई और नेहरु. फोटो सोर्स - इंडिया टुडेइस बीच, सोवियत संघ, जो भारत समर्थक हुआ करता था, ने भी अपना रुख बदलते हुए वही कहदिया जो चीन कहता आया था. कि ‘मैकमोहन लाइन’ ब्रिटिश साम्राज्यवाद का परिणाम है.तू-तू मैं-मैं और बयानों वाली इस कुछ दिनों की शांति के बाद नेहरू के जन्मदिन पर,यानी 14 नवंबर, 1962 को, युद्ध फिर से शुरू हो गया था. और एक हफ़्ता और चला. जिसकेबाद चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा करके एकतरफा युद्धविराम की घोषणा कर दी औरपूर्वोत्तर क्षेत्रों से वापस हट गया. तब तक उसकी सेना असम के तेजपुर तक पहुंच चुकीथी. युद्ध 21 नवंबर तक चला. लगभग 3,250 भारतीय सैनिक मारे गए. भारत ने अक्साई चिनकी लगभग 43,000 वर्ग किलोमीटर भूमि खो दी.जिस कॉन्सर्ट की बात हमें शुरू में की थी उसका आयोजन ‘मदर इंडिया’ फेम डायरेक्टरमेहबूब खान ने किया था. युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के लिए ये एक फंड रेज़रप्रोग्राम था. गीत पूरा होने के बाद महबूब खान लता के पास आए और कहा कि उन्हेंपंडित जी बुला रहे हैं. लता नेहरू के पास पहुंचीं और देखा नेहरू आंखों में आंसू लिएखड़े थे. उन्होंने कहा ‘लता, तुमने आज मुझे रुला दिया’.दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाना गातीं लता मंगेशकर, साथ में नेहरु (फोटो सोर्सइंडिया टुडे)इस गीत का उस वक्त मौजूद श्रोताओं में क्या प्रभाव पड़ा इस बारे में लता बताती हैं-मुझे खेद है कि प्रदीप जी को गणतंत्र दिवस समारोह के लिए नहीं बुलाया गया. अगर वोवहां होते तो अपनी आंखों से देख लेते कि 'ऐ मेरे वतन के लोगो' का क्या असर होता है.क्या लोग थे वो अभिमानी. तुम भूल न जाओ उनको, इसलिए कही ये कहानी. आज के लिए विदा.शुक्रिया.