भारत में पुनर्जन्म का सबसे फेमस केस!
1935 में महात्मा गांधी को शांति देवी केस का पता चला, एक ९ साल की बच्ची जो अपने पिछले जन्म के बारे में बता रही थी.
साल 1935 के आसपास की बात है. कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच तनातनी दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी. जिन्ना चार साल लन्दन में निर्वास में बिताने के दोबारा भारत लौट आए थे. वहीं ये ही वो साल भी था जब डॉक्टर आम्बेडकर ने हिन्दू धर्म छोड़ने का ऐलान किया था. शंकर घोष लिखते हैं कि गांधी, जो पहले ही हिन्दू मुस्लिम के बीच बढ़ते तनाव को लेकर परेशान थे, उन पर आम्बेडकर की घोषणा का गहरा असर हुआ. गांधी ने इस दौरान जाति, अंतर्जातीय विवाह समेत कई पक्षों पर लेख लिखे, और अपने विचारों को गाढ़ा किया. फिर उसी साल गांधी को एक और खबर मिली, जिसने धर्म को लेकर उनके विचारों में खलबली पैदा की.
दिल्ली में कुछ साल पहले पैदा हुई एक लड़की बता रही थी कि उनसे पुनर्जन्म लिया है. और उसकी बातें इतनी पुख्ता थीं कि कई लोग इस पर विश्वास किए बिना नहीं रह पा रहे थे.
गांधी इस खबर से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने पहले तो खुद शांति से मुलाक़ात की. और फिर एक 15 सदस्यीय कमीशन नियुक्त किया, जो इस पूरे मामले की छानबीन कर सके. अंत में गांधी को जो रिपोर्ट मिली, उसके आधार पर उन्होंने माना कि सच में ये पुनर्जन्म का केस था. गांधी का नाम जुड़ने के कारण ये केस तब पूरे भारत में फेमस हुआ था. और देश-विदेश से पुनर्जन्म पर अनुसंधान करने वाले रिसर्चर इस केस की छानबीन करने पहुंचे थे. जिनमें से कइयों से इसे पूरी तरह सच भी मान लिया था.
पुनर्जन्म होता क्या है, यानी कि कांसेप्ट क्या है ?
शांति देवी पुनर्जन्म केस क्या था?
शांति देवी के पुनर्जन्म के समर्थन में क्या दावे किए गए?
और साथ ही जानेंगे कि आधुनिक विज्ञान का पुनर्जन्म पर क्या कहना है?
18 जनवरी, 1902 की बात है. चतुर्भुज नाम के मथुरा के एक निवासी के यहां एक बेटी का जन्म हुआ. नाम पड़ा लुग्दी. 10 साल की उम्र में लुग्दी का ब्याह केदारनाथ चौबे के साथ हुआ. केदारनाथ मथुरा में एक कपड़े की दुकान चलाते थे और ये उनकी दूसरी शादी थी. लुग्दी जल्द ही प्रेग्नेंट हो गई लेकिन ऑपरेशन के बाद उसे एक मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ. अगली बार लुग्दी मां बनी 1925 में. इस बार भी ऑपरेशन करना पड़ा. बच्चे की जान तो बच गई लेकिन लुग्दी नहीं बच पाई. तारीख थी 4 अक्टूबर, 10 बजे.
इसके ठीक 10 महीने 7 दिन बाद दिल्ली में एक बच्ची पैदा हुई. बाबू रंग बहादुर ने प्यार से उसका नाम शांति रखा. शांति भी बाकी बच्चों जैसी ही थी. लेकिन 4 साल की उम्र तक उसने बोलना शुरू नहीं किया था. जैसे ही बोलना शुरू किया, वो कुछ अजीब सी बातें करने लगी. मसलन वो अक्सर पूछती थी, उसका पति कहां है, बच्चे कहां हैं. जब पूछा गया तो उसने बताया कि उसका पति मथुरा में एक कपड़े की दुकान चलाता है. शुरुआत में रंग बहादुर ने इसे बच्ची के मन का फितूर समझ कर जाने दिया, लेकिन जैसे-जैसे शांति बड़ी होती गई, वो मथुरा की और ज्यादा बातें करने लगी. 6 साल की उम्र में उसने बताया कि उसकी मौत ऑपरेशन के बाद हुई थी. परिवार ने परेशान होकर डॉक्टर को दिखाया. वो भी कुछ समझ न पाए.
शांति जब 9 साल की हुई, उसने अपने पिता से मथुरा जाने की इच्छा जाहिर की. हालांकि अब तक उसने कभी ये नहीं कहा था कि उसके पति का नाम क्या है. वो खुद को बस चौबेन कहकर बुलाती थी. एक रोज़ रंग बहादुर के एक रिश्तेदार, बाबू बिशन चंद उनके घर आए. बिशन चन्द दरियागंज स्कूल में अध्यापक थे. उन्होंने शांति से कहा कि वो उसे मथुरा ले जाएंगे, अगर वो उसे अपने पति का नाम बता दे. शांति ने बिशन चंद के कान में कहा, “पंडित केदारनाथ चौबे”.
शांति देवी केस की पड़तालबिशन चंद ने ये सुनकर पहले तो पंडित केदारनाथ चौबे की खोज खबर ली और फिर उन्हें लिखा एक खत. जिसमें उन्होंने शांति की बताई तमाम बातें भी लिख दीं. केदारनाथ ने खत पढ़ा और हक्के बक्के रह गए. उन्होंने अपने एक रिश्तेदार पंडित कांजीमल, जो दिल्ली में रहते थे, उनसे शांति से मिलने को कहा. कांजीमल शांति से मिले, उसने न सिर्फ उन्हें पहचाना बल्कि केदारनाथ के मथुरा वाले घर की कुछ डीटेल्स भी बता दें. उसने घर के एक कोने के बारे में भी बताया जहां उसने पिछले जन्म में कुछ रूपये छुपाए थे.
कांजीमल ने ये सब बातें तुरंत केदारनाथ तक पहुंचाई. कौतुहलवश केदारनाथ भी शांति से मिलने पहुंचे. लेकिन इस दौरान कांजीमल ने केदारनाथ का ये कहते हुए परिचय करवाया कि ये केदारनाथ के भाई है. लेकिन शांति तुरंत केदारनाथ को पहचान गई. इसके बाद केदारनाथ ने शांति से कई सवाल पूछे. शांति ने बताया कि मथुरा के उनके घर के आंगन में एक कुआं हुआ करता था. साथ ही शांति ने केदारनाथ के बेटे को ये कहते हुए गले लगा लिया कि ये उसका बेटा है.
दिल्ली में रहते हुए केदारनाथ ने एक रात शांति से अकेले में बात की, जिसके बाद उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि शांति ही लुग्दी है. जल्द ही ये बात पूरे देश में फैल गई. और महात्मा गांधी के कानों तक पहुंची. महात्मा गांधी ने इस केस की पड़ताल के लिए 15 लोगों का एक कमीशन बनाया. ये कमीशन शांति को लेकर मथुरा लेकर गया. जहां न केवल शांति ने केदारनाथ के परिवार को पहचाना बल्कि घर के बारे में बहुत सी बातें बताई, मसलन उसने घर की वो जगह दिखाई, जहां वो पैसे छुपाया करती थी.
इसके बाद शांति को लुग्दी देवी के घर और मथुरा की तमाम जगहें ले जाया गया, जिसके बाद कमीशन ने अपनी रिपोर्ट छापी. कमीशन की इस रिपोर्ट से पूरी दुनिया में तब काफी हो हल्ला मचा था. शांति देवी से मिलने कई विदेशी रिसर्चर आए और कई किताबें भी आईं. एक रिसर्चर बाल चंद्र नहाता ने शांति देवी पर एक हिंदी पत्रिका छापी, पुनर्जन्म की पर्यालोचना. जिसका निष्कर्ष देते हुए उन्होंने लिखा, “शांति देवी पर जितना भी मैटेरियल मौजूद है, उससे ये कतई साबित नहीं होता कि पुनर्जन्म की बात सच है”.
शांति देवी केस दुनिया में फेमसश्री अरबिंदो के शिष्य इंदरलाल ने तब इसके जवाब में अपना लेख लिखा. इसी तरह 1952 और 1986 में शांति देवी की कहानी सुर्ख़ियों में आई, जब अमेरिकी रिसर्चर इयान स्टीवनसन और डॉ. कीर्तिस्वरूप रावत ने शांति देवी का इंटरव्यू लिया था. इयान स्टीवनसन पुनर्जन्म के मामलों में पर सालों से शोध कर रहे थे, और इस मामले में उनकी एक किताब, 'ट्वेंटी केसेस सजेस्टिव ऑफ रीइंकार्नेशन' काफी फेमस भी हुई थी. शांति देवी ने जिंदगी भर शादी नहीं की और 61 साल की उम्र में 27 दिसंबर को उनका निधन हो गया.
स्टीवनसन सहित पुनर्जन्म पर विश्वास करने वाले तमाम लोग मानते हैं कि शांति देवी की कहानी पुनर्जन्म का सबसे प्रामाणिक केस है. तार्किक रूप से कुछ चीजें गौर करने लायक है. इस बात में कतई शक नहीं कि शांति देवी की बताई कई बातें इस ओर इशारा करती थी कि वो लुग्दी देवी के जीवन के बारे में जानती थीं. लेकिन फिर भी ऐसी कई बातें हैं जिन्हें इस केस में ध्यान दिया जाना चाहिए.
शांति देवी का इंटरव्यू लेने वाले डॉ. कीर्तिस्वरूप रावत लिखते हैं कि इस केस को इतनी पब्लिसीसीटी मिल चुकी थी कि इस बात का पता करना मुश्किल है कि कौन सी बातें शांति देवी की अपनी हैं, और कौन सी उन्होंने दूसरों से सुनी हैं. वहीं एक बात जो शांति देवी की मृत्यु के बाद बाहर आई- शांति जब छोटी थी, केदारनाथ काम के सिलसिले में दिल्ली जाते थे. और जिन दुकानों में वो जाते थे, वे शांति के घर के सामने पड़ती थी. जिसका जिक्र स्टीवनसन ने भी अपनी रिसर्च में किया है. इसलिए स्टीवनसन लिखते हैं कि ये बात गारंटी से नहीं कही जा सकती कि ये पुनर्जन्म को प्रूव करता है, लेकिन शांति देवी की 24 बातें ऐसी हैं जो पुनर्जन्म की ओर इशारा करती हैं. इस केस के बारे में जानने के बाद अब थोड़ा पुनर्जन्म के कांसेप्ट को भी समझ लेते हैं.
अलग-अलग धर्मों में पुनर्जन्मएकेडेमिक्स में पुनर्जन्म जिस क्षेत्र के अंतर्गत आता है, उसे मेटाफिजिक्स या तत्वमीमांसा कहते हैं. दार्शनिकों की मानें तो पुनर्जन्म का विचार एक बहुत पुराने सवाल के रूप में उपजा था. सवाल ये कि मृत्यु के बाद होता क्या है. यूं तो इसका जवाब ये भी हो सकता है कि कुछ नहीं होता लेकिन फिर इस उत्तर से और कई सवाल उपजते हैं. मसलन ये कैसे तय होता है कि आप कहां पैदा हुए , कैसे तय होता है कि एक आदमी अमीर घर में पैदा होता है, एक गरीब. एक अगड़ी समझी जाने वाली जाति में तो एक पिछड़ी समझे जाने वाली जाति में.
इस सवाल के जवाब में अलग अलग परम्पराओं से अलग-अलग जवाब दिए.
मसलन भारत में शुरू हुए धर्म, सनातन धर्म, जैन धर्म और बुद्ध धर्म में मान्यता है कि मनुष्य मरता है, और दोबारा पैदा होता है. और पिछले जन्मों के कर्मों के हिसाब से तय होता है कि आपको अगला जन्म कैसे मिलेगा. हालांकि इनमें भी आपस में मतभेद हैं. जैसे बुद्ध धर्म पुनर्जन्म को तो मानता है, लेकिन आत्मा को नहीं मानता. बुद्ध धर्म के अनुसार चेतना की धारा बार-बार जन्म लेती, लेकिन कोई भी एक धारा दोबारा नहीं जन्मती.
इसके बरअक्स अब्राहमिक परंपरा में शुरू हुए धर्म, इस्लाम, ईसाई, और यहूदी धर्म पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते. इन धर्मों के अनुसार आदमी एक ही बार जीता है, और मरने के बाद या तो उसे स्वर्ग मिलता है या नर्क. हालांकि इनमें भी छोटे-छोटे सेक्ट हैं, जो पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं. दर्शन की बात करें तो पश्चिम के कई दार्शनिक पुनर्जन्म में विश्वास रखते दिखाई देते हैं. मसलन ऐलेगोरी ऑफ केव में प्लेटो पुनर्जन्म की अवधारणा रखते हैं. वहीं प्लेटो की किताब में सुकरात भी एक जगह पुनर्जन्म में विश्वास जताते हैं. इसके अलावा भी कई आदिवासी समूहों में मान्यता है कि पुनर्जन्म होता है.
विज्ञान के हिसाब से पुनर्जन्मपुनर्जन्म का सवाल मूलतः कारण और प्रभाव के सिद्धांत से निकलता है. चूंकि दुनियावी मामलों में हमें दिखाई देता है कि हर चीज का कोई न कोई कारण होता है, और हर कारण का कोई न कोई प्रभाव होता है. इसलिए सामान्य बुद्धि में ये सवाल जाहिर मालूम पड़ता है कि मृत्यु के बाद क्या होता है. और ये कैसे तय होता है कि आदमी कहां और किस रूप में जन्म ले.
कुछ धर्मों में इसका जवाब ये दिया गया कि आपके कर्म इसका निर्धारण करते हैं कि आप कहां कैसे जन्म लेंगे. इसी विचार से पुनर्जन्म की अवधारणा निकली. अब सवाल पूछा जाए कि इसका प्रूफ क्या है. तो उत्तर होगा कि इन अवधारणाओं का कोई सही-सही प्रूफ नहीं हो सकता.
विज्ञान में ऐसी मान्यताओं को नाम दिया गया है, अनफाल्सिफाएबल हाइपोथिसिस. यानी ऐसी परिकल्पनाएं, जिन्हें गलत नहीं साबित किया जा सकता. हालांकि कई दार्शनिकों ने अपने अपने ढंग से इस पर अपने विचार रखें हैं. मसलन लामोंट कोर्लिस अपनी किताब, “द इल्यूजन ऑफ इम्मोर्टलिटी” में तर्क देते हैं,
”अगर मनुष्य के दिमाग में चोट भर लग जाने से कई बार वो अपने पहचान भूल जाता है, लोगों को पहचान नहीं पाता. फिर ये किस तरह संभव है कि मृत्यु के वक्त मनुष्य का पूरा दिमाग नष्ट हो जाए, और उसे फिर भी अपनी पहचान याद रहे”
वैज्ञानिक परिक्षण से परे होने के बावजूद, काफी रिसर्चर्स पुनर्जन्म पर शोध करते हैं, और खासकर साइकोलॉजी के क्षेत्र में इसका काफी महत्त्व है. क्योंकि ऐसे केस वैज्ञानिकों को मानव दिमाग पर शोध करने का मौका प्रदान करते हैं.
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