The Lallantop
X
Advertisement

वो वकील जिसने इंदिरा सरकार को घुटने पर ला दिया!

कहानी केसवानंद भारती केस और इस केस को लड़ने वाले दिग्गज वकील नानी पालकीवाला की.

Advertisement
Palakiwala
1970 के दशक में तत्कालीन कानून मंत्री पी गोविंद मेनन ने नानी पालकीवाला को अटॉर्नी जनरल बनने की पेशकश की पर उन्होंने सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. (तस्वीर: Tata Group/ Getty)
pic
कमल
16 जनवरी 2023 (Updated: 13 जनवरी 2023, 21:57 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

शुरुआत UPSC से एक सवाल से. गणतंत्र और लोकतंत्र में क्या अंतर है?
मोटामोटी कहा जाए, तो लोकतंत्र में बहुमत के हाथ में ताकत होती है कि वो कोई भी क़ानून बना या मिटा सकता है. इसके बरअक्स गणतंत्र में इस ताकत में एक लगाम लगा दी जाती है. ये लगाम लगाने वाले दस्तावेज़ है, संविधान. हालांकि संविधान चाहे कितना महान हो. वक्त की बंदिशे इस पर भी लागू होती है. इसलिए समय समय पर संविधान में संशोधन किए जाते हैं. संविधान निर्माताओं को ये बात पता थी. इसलिए उन्होंने भारत की संसद को ये अधिकार दिए कि जरुरत पड़ने पर संविधान में परिवर्तन किए जा सकते हैं. लेकिन यहां एक पेंच है. 

अगर संविधान बदला जा सकता है, तो क्या संभव नहीं कि एक दिन ये पूरा का पूरा बदल दिया जाए. और अगर ऐसा हुआ तो संविधान के मायने क्या कुछ कमजोर नहीं हो जाते?
साल 1973 में एक केस के दौरान भारत के सुप्रीम कोर्ट में ये सवाल उठा. ये केस था केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य. (Kesavananda Bharati vs Kerala state)

केस के दौरान सरकार की तरफ से दलील दी गई कि संसद चाहे तो संविधान में कितने भी बदलाव कर सकती है. और संविधान में ही ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि ऐसा नहीं किया जा सकता. दलील ताकतवर थी. अगर सरकार जीत जाती तो शायद ये देश गणतंत्र न होकर सिर्फ लोकतंत्र रह जाता. लेकिन एक शख्स ने ये होने नहीं दिया. इस शख्स का नाम था नानी पालकीवाला. भारतीय वकीलों की परंपरा में एक ऐसा नाम जिसने सरकार को घुटनों पर ला दिया. और हमें मिली संविधान की आत्मा. नानी पालकीवाला (Nani Palkhivala) ने अपनी दलीलों से साबित कर दिया कि संविधान सिर्फ एक निर्जीव दस्तावेज़ नहीं है. बल्कि उसकी आत्मा भी है. इस आत्मा को हम बेसिक स्ट्रक्चर (Basic Structure Doctorine) के नाम से जानते हैं. यानी संविधान की वो मूल आत्मा जिससे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. 16 जनवरी को नानी पालकीवाला का जन्मदिन होता है. चलिए जानते हैं, इस महान न्यायविद की कहानी, और उस केस के बारे में जिसने नानी पालकीवाला का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा दिया.

बचपन में हकलाने वाले बने दिग्गज वकील 

साल 1920 में नानी पालकीवाला की पैदाइश हुई. पारसी परिवार से आने वाले नानी के पूर्वज पालकी बनाने का काम करते थे. जिसके चलते उनके परिवार के साथ पालकीवाला नाम जुड़ गया. cसुप्रीम कोर्ट में दूसरे वकीलों की बोलती बंद करने वाले नानी बचपन में हकलाकर बोलते थे. मुंबई के सेंट ज़ेवियर कॉलेज से उन्होंने इंग्लिश में MA की डिग्री ली. आगे लेक्चरर बनाना चाहते थे. लेकिन किस्मत से उनकी जगह एक दूसरी लड़की को ले लिया गया. इसके बड़ा उन्होंने वकालत की पढ़ाई शुरू कर दी. किस्सा मशहूर है कि जब पालकीवाला आगे वकील के तौर पर मशहूर हुए, वो सालों तक उस लेक्चरर को डिनर पर ले जाते रहे. शुक्रिया अदा करने के लिए अगर उस दिन उस लड़की ने उनकी जगह न ली होती तो नानी वकील न बन पाते. 

nani palkhivala
नानाभोय ‘नानी’ अर्देशिर पालकीवाला (तस्वीर: Getty)

1944 में नानी पालकीवाला ने मुम्बई की एक लॉ फर्म ज्वाइन की. 1954 में उन्होंने अपना अपना पहल केस लड़ा. जिसमें उन्होंने एंग्लो-इंडियन स्कूल बनाम महाराष्ट्र सरकार केस में स्कूल की तरफ से अदालत में पैरवी की. ये केस अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा से जुड़ा था. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. नानी वहां भी ये केस जीतने में कामयाब रहे. हालांकि ये सिर्फ आने वाले दिनों की झलकी थी. जल्द ही इस युवा वकील की दलीलें सुनने के लिए कोर्ट में भीड़ लगने वाली थी.  साल 1970 में पालकीवाला ने एक बड़ा केस लड़ा. ये केस ‘आरसी कूपर बनाम केंद्र सरकार’ के नाम से फेमस है. केस कुछ यूं था कि इंदिरा गांधी सरकार ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. इसी के खिलाफ पालकीवाला दलील कर रहे थे. जिसमें वो कामयाब भी रहे. लेकिन अंत में इंदिरा ने संविधान संशोधन कर अदालत के फैसले को पलट दिया. 

इसके बाद उनका सामना सरकार से प्रिवी पर्स मामले में हुआ. सरकार ने रजवाड़ों को मिलने वाले सरकारी भत्ते पर रोक लगा दी थी. इस केस में भी नानी को जीत मिली. प्रिवी पर्स के केस में अक्सर माना जाता है कि ये सही कदम था. लेकिन नानी पालकीवाला संविधान में निहित वादों की अनदेखी के खिलाफ दलील दे रहे थे. अदालत में अपनी दलील में उन्होंने कहा, 
“संवैधानिक वैधता से ज़्यादा बड़ी संवैधानिक नैतिकता है.” 

इस केस में भी उन्हें जीत मिली. हालांकि सरकार ने फिर संविधान संसोधन करके अदालत के फैसले को पलट दिया. और प्रिवी पर्स ख़त्म कर दिया गया. अब बात उस केस की जिसने नानी पालकीवाला का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज़ करवा दिया. 

केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य

हुआ यूं कि 1972 में केरल सरकार ने दो भूमि सुधार कानून बनाए. इनकी मदद से सरकार केसवानंद भारती के इडनीर मठ के मैनेजमेंट पर कई सारी पाबंदियां लगाने की कोशिश कर रही थी. केसवानंद भारती ने सरकार की इन कोशिशों को अदालत में चुनौती दी. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 26 का हवाला दिया. आर्टिकल 26 भारत के हर नागरिक को धर्म-कर्म के लिए संस्था बनाने, उनका मैनेजमेंट करने, इस सिलसिले में चल और अचल संपत्ति जोड़ने का अधिकार देता है. केसवानंद भारती का कहना था कि सरकार का बनाया कानून उनके संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है. केसवानंद को बस केरल सरकार से नहीं लड़ना था. उनका मुकाबला केंद्र सरकार से था. ये मामला केरल हाई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. जहां इसकी पैरवी कर रहे थे नानी पालकीवाला. इस केस में संविधान में हुए चार संसाधनों पर सवाल उठाया गया था. 24 वां, 25 वां 26 वां और 29 वां. 

nani Palkhivala
बतौर असिस्टेंट नानी पालकीवाला का पहला केस ‘नुसरवान जी बलसारा बनाम स्टेट ऑफ़ बॉम्बे’ था जिसमें बॉम्बे शराबबंदी कानून को चुनौती दी गयी थी. (तस्वीर: Getty)

संविधान का आर्टिकल 368 संसद को ये ताकत देता है कि वो संविधान में संसोधन कर सके. लेकिन केसवानंद केस में संविधान संसोधन, संविधान के आर्टिकल 26 के आड़े आ रहे थे. आर्टिकल 26 भारत के हर नागरिक को धर्म-कर्म के लिए संस्था बनाने, उनका मैनेजमेंट करने, इस सिलसिले में चल और अचल संपत्ति जोड़ने का अधिकार देता है.
चूंकि इस केस में संविधान संसोधन और मौलिक अधिकारों से जुड़ी बातें थीं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक 13 जजों की बैंच गठित की. भारतीय इतिहास में ये अब तक की सबसे बड़ी बेंच थी. 68 दिनों तक सुनवाई हुई. 703 पन्नों का फैसला सुनाया गया. ये सभी बातें अपने आप में रिकॉर्ड थी. एक कमाल बात ये भी थी कि इस केस को दायर करने वाले केसवानंद और नानी पालकीवाला की कभी मुलाकात नहीं हुई. केस से जुड़ा एक किस्सा पढ़िए, 

एक रोज़ जब पालकीवाला अपनी दलील शुरू करने वाले थे, उन्होंने अपने साथी सोली सोराबजी, जो आगे जाकर अटॉर्नी जनरल बने, उनसे कुछ पेपर तैयार रखने को कहा. सोराबजी ने DM पोपट से पूछा. पता चला कि पेपर होटल में ही छूट गए हैं. पोपट बाहर आए और पाया कि उनकी गाड़ी और ड्राइवर गायब हैं. तभी उन्होंने देखा कि वहां एक टैक्सी खड़ी है, जिसमें चाभी लगी हुई है. उसका ड्राइवर भी कहीं आसपास न था. मरता क्या न करता, पोपट ने टैक्सी स्टार्ट की और होटल पहुचंकर पेपर उठाए. जल्दी-जल्दी में वापिस कोर्ट पहुंचे, और टैक्सी जहां पहले थी, वहीं खड़ी कर दी. इसके बाद कोर्ट पहुंचे और बिलकुल ऐन मौके पर पालकीवाला तक पेपर पहुंचा दिए. 

पालकीवाला ने विपक्ष की ही दलीलों से उन्हें चित किया 

ऐसा ही एक और किस्सा है.  एक रोज़ अपनी दलील देते हुए पालकीवाला ने कहा कि वो एक प्रसिद्द न्यायविद को क्वोट करते हुए अपना पक्ष रहे हैं. क्वोट ये था  “संविधान आम कानूनों की तरह नहीं हैं. जिनमें आमूल चूल बदलाव किया जा सकता है. अगर सरकार जब चाहे संविधान बदल सकती है तो मूल अधिकारों का कोई महत्त्व ही नहीं रह जाता है”. पालकीवाला की दलील सुनकर जज कुछ संतुष्ट हुए. आखिर में उन्होंने पूछा, आप किस प्रसिद्द न्यायविद की बात कर रहे हैं. इस पर पालकीवाला ने जवाब दिया, ‘ये HM सेर्वई के कथन हैं’. ये सुनकर पूरे कोर्ट में सन्नाटा छा गया. पूछिए क्यों? दरअसल HM सेर्वई इसी केस में कोर्ट में सरकार के पक्ष में दलील कर रहे थे. 

केशवानंद भारती इडनीर मठ के प्रमुख थे. साल 2020 में उनका निधन हुआ (तस्वीर: इंडिया टुडे )

सेर्वई ने ये सुना तो उनका पारा चढ़ गया. पालकीवाला ने उन्हीं की दलील से उन्हें निरुत्तर कर दिया था. सेर्वई अगर इस दलील से सहमत होते तो उनका केस कमजोर होता, और अगर विरोध करते तो वो अपनी ही बात के विरोध में जाते दिखाई देते. इस घटना से सेर्वई इतने शर्मिंदा हुए कि दोनों वकील, जिन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत साथ-साथ की थी. उनकी दोस्ती में दरार आ गई. 

इस केस के और भी कई दिलचस्प पहलू हैं. मसलन जस्टिस MH बेग को सुनवाई के दौरान तीन बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. वहीं चीफ जस्टिस SM सीकरी का रिटायरमेंट भी नजदीक आ रहा था. अगर इनमें से कोई भी पेंच फंसता तो दुबारा केस की सुनवाई होती और तब केस का रिजल्ट बदल भी सकता था. जैसा कि बाद में इंदिरा ने कोशिश की भी थी. जिस दिन केस का फैसला आया, चीफ जस्टिस के कार्यकाल का आख़िरी दिन था. 

केसवानंद भारती केस का फैसला 

इस केस में जब फैसला आया, तो जज बंटे हुए थे. सात एक तरफ. छह एक तरफ. फैसला सरकार के खिलाफ था. जिधर बहुमत था, उसका पक्ष फैसला बना. कि संविधान का बुनियादी ढांचा नहीं बदला जा सकता है. संसद इसे किसी भी संशोधन से नहीं बदल सकती. बुनियादी ढांचे का मतलब है संविधान का सबसे ऊपर होना, कानून का शासन, न्यायपालिका की आजादी, संघ और राज्य की शक्तियों का बंटवारा, संप्रभुता, गणतंत्रीय ढांचा, सरकार का संसदीय तंत्र, निष्पक्ष चुनाव आदि. इसे 'बेसिक स्ट्रक्चर' थिअरी कहते हैं. 

इत्तेफ़ाक़ देखिए कि इंदिरा सरकार को धराशायी करने वाले पालकीवाला कुछ साल बाद इंदिरा की तरफ से केस लड़ने को तैयार हो गए थे. 1975 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य केस में इंदिरा के खिलाफ फैसला सुनाया. इल्जाम था कि इंदिरा के चुनाव प्रभारी ने सरकारी नौकरी में रहते हुए इंदिरा का चुनाव संभाला था. जिसके चलते हाई कोर्ट ने इंदिरा के चुनाव को निरस्त कर दिया. ये केस सुप्रीम कोर्ट में गया, जहां नानी पालकीवाला इस केस की पैरवी करने को तैयार थे. लेकिन उससे पहले ही देश में इमरजेंसी लगा दी गई. और नानी पालकीवाला ने केस छोड़ दिया. 

इमरजेंसी के दौरान इंदिरा ने केसवानंद केस का फैसला पलटने की कोशिश की. उनके अटॉर्नी जनरल नीरेन डे 'बेसिक स्ट्रक्चर' वाले फैसले पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. CJI मास्टर ऑफ द रोस्टर होता है. यानी कौन सा केस कौन सा जज सुनेगा, ये तय करने का सबसे अहम अधिकार CJI के पास होता है. इसी का फायदा उठाकर ए एन रे ने इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए एक 13 जजों की बेंच बनाई.

HM servei and HR khanna
HM सेर्वई और जस्टिस HR खन्ना (तस्वीर: Wikimedia Commons)

साफ था कि CJI इंदिरा सरकार का अजेंडा पूरा कर रहे थे. एक बार फिर पालकीवाला सामने आए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक दलील दी. कहते हैं कि पालकीवाला की ये बहस सुप्रीम कोर्ट के इतिहास की सबसे प्रभावी, सबसे बेहतरीन दलीलों में से एक थी.
पता चला कि इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए सरकार की ओर से कोई रिव्यू पिटिशन दायर ही नहीं की गई थी. बिना रिव्यू पिटिशन के CJI ने बेंच कैसे बना दी? ये बहुत बड़ा स्कैंडल था. बेंच के बाकी जजों ने सवाल उठाया. CJI के ऊपर अपने साथी जजों का काफी दबाव था. इसी दबाव के कारण 12 नवंबर, 1975 को CJI को बेंच भंग करनी पड़ी.

अमेरिकी राष्ट्रपति  की मां को जूता पहनाया 

केसवानंद भारती केस के अलावा पालकीवाला अपनी बजट स्पीच के लिए भी फेसम थे. ये स्पीच बजट के एक दिन बाद दी जाती थी. जिसमें इतनी भीड़ जमती थी कि मुम्बई में स्टेडियम बुक करना पड़ता था. साल 1977 से 1979 के पालकीवाला अमेरिका में भारतीय राजदूत रहे. उस दौरान का एक किस्सा है. जिमी कार्टर तब अमेरिका के राष्ट्रपति हुआ करते थे. उनकी मां का नाम लिलियन कार्टर था. एक रोज़ अमेरिकी अखबार में पालकीवाला की एक तस्वीर छपी. इस तस्वीर में पालकीवाला लिलियन कार्टर को जूते पहना रहे थे. इस तस्वीर से इतना हंगामा हुआ कि पालकीवाला को वापस बुला लिया गया. पालकीवाला ने कहा, “ये हमारे संस्कार हैं. मैं दुबारा ये करने से हिचकूंगा नहीं.” इस किस्से का एक पहलू ये भी है कि विश्व युद्ध के दौरान लिलियन ने मुम्बई में नर्स का काम किया था. इसलिए भारत से उनका खास लगाव था. उन्होंने पालकीवाला से कहा कि वो उन्हें एक जोड़ी कोल्हापुरी चप्पल दिला दें. इसलिए पालकीवाला लिलियन के पैर का माप लेने के लिए नीचे झुके और वहीं से ये सारा हंगामा खड़ा हुआ. 

नानी पालकीवाला से जुड़ा एक किस्सा और सुनिए,  1979 की बात है. चेन्नई के एक डॉक्टर बद्रीनाथ ने शंकर नेत्रालय नाम से एक हॉस्पिटल की शुरुआत की. और पालकीवाला को इस मौके पर आमंत्रित किया. लौटते वक्त पालकीवाला ने डॉक्टर बद्रीनाथ के हाथ में एक लिफाफा थमाया. बाद में डॉक्टर उसमें 2 करोड़ का चेक था जो हॉस्पिटल के लिए दिया गया था. बाद में जब पालकीवाला को पता चला कि उनके नाम की एक तख्ती हॉस्पिटल में लगाई जा रही है, उन्होंने वो भी अस्पताल से हटवा दी. 
 
जस्टिस HR खन्ना का नाम आपने सुना होगा. ADM जबलपुर केस में उन्होंने बहुतमत के खिलाफ जाकर सरकार के खिलाफ अपना वर्डिक्ट दिया था. जिस कारण इंदिरा सरकार ने वरीयता में ऊपर होने के बावजूद उनके बदले जस्टिस MH बेग को चीफ जस्टिस बनाया गया. इसके बाद जस्टिस खन्ना ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. नानी पालकीवाला के बारे में उनका कहना था ”अगर दुनिया सर्वश्रेष्ठ वकीलों की लिस्ट बनाई गई तो उसमें नानी पालकीवाला का नाम जरूर होगा”. वहीं एक दूसरे जस्टिस कृष्ण अय्यर ने नानी के लिए कहा था ”पालकीवाला की तारीफ़ करना मानों ऐसा है जैसे लिली के फूल को पेंट करने की कोशिश करना, जैसे शुद्ध सोने के ऊपर कई और धातु का पानी चढ़ाना और जैसे जैस्मिन के पेड़ पर परफ्यूम डालना”.

वीडियो: तारीख: कैंसर की दवा खोजने वाला भारतीय साइंटिस्ट गुमनाम क्यों रहा?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement