कलम निकली पिस्तौल, जिन्ना हाथ मलते रह गए!
भारत के दिल में खंजर गाड़ने का जिन्ना का प्लान क्या था. जोधपुर को कैसे बचाया सरदार पटेल ने?
नीचे आपको एक कलम की तस्वीर दिखेगी. वो कहावत सुनी होगी आपने, कलम की ताकत तलवार से ज्यादा वाली. इस कलम के मामले में ये कहावत एकदम खरी उतरती है. काहे कि ये कलम तो है लेकिन साथ ही एक पिस्तौल भी है. और इस कलम/पिस्तौल का एक गहरा नाता है भारत की आजादी और बंटवारे से. इस कलम से हस्ताक्षर हुए एक विलय पत्र में. और हस्ताक्षर होते ही ये तान दी गई हस्ताक्षर करवाने वाले पर. ये कलम/ पिस्तौल न होती तो भारत की एक बड़ी रियासत पकिस्तान में जा सकती थी.
खेल खतरनाक था. चुनौती थी तमाम रियासतों को एकजुट करके हिंदुस्तान में मिलाना. क़ायद-ए-आजम मुहम्मद अली जिन्ना (Jinnah) चाहते थे पाकिस्तान (Pakistan) को ज़्यादा से ज़्यादा इलाक़े मिलें. और लौह पुरुष सरदार पटेल (Sardar Patel) भारत की एकजुटता के लिए कटिबद्ध थे. तो फिर इसमें वो क़लम कैसे आई जो पिस्तौल भी थी. क्या थी पूरी कहानी, चलिए जानते हैं. (Jodhpur Accession)
कलम बनी पिस्तौलVP मेनन अपनी किताब, द स्टोरी ऑफ इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स में एक किस्से का जिक्र करते हैं. आजादी की घोषणा महज कुछ हफ्ते पहले की बात है. VP मेनन तब वाइसरॉय के सचिव के रूप में काम कर रहे थे. वाइसरॉय यानी लार्ड माउंटबेटन. बाद में मेनन सरदार पटेल के सचिव बने. और इन दोनों पदों पर रहते हुए उनके कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी थी. रियासतों का भारत में विलय. ऐसी ही एक रियासत थी जोधपुर. मेनन वहां के महाराजा हनवंत सिंह से विलय पत्र पर साइन करवाने के लिए पहुंचे. ये काम तुरंत होना बहुत जरूरी था. क्योंकि मेनन को पता चला था कि कुछ रोज़ पहले महराजा की मुलाक़ात मुहम्मद अली जिन्ना से हुई थी. मेनन ने समझाया कि पाकिस्तान में शामिल होना जोधपुर के लिए घाटे का सौदा होगा. महाराजा तैयार हो गए. उन्होंने विलय पत्र पर दस्तखत कर दिए. काम पूरा हो चुका था. लेकिन फिर वहां कुछ अजीब हुआ. मेनन लिखते हैं,
हस्ताक्षर के बाद महाराजा ने अपनी कलम की कैप खोली और मेनन की ओर तान दी. तब मेनन को पता चला कि वो कलम होने के साथ साथ एक पिस्तौल भी थी. महाराजा ने मेनन से कहा, ‘मैं आपका हुक्म मानने से इनकार करता हूं’.
‘बच्चों जैसी हरकतें मत करो’, मेनन ने जवाब दिया. मामला आगे बढ़ता, तभी कमरे में लार्ड माउंटबेटन दाखिल हुए और उन्होंने इस बात को मजाक में उड़ा दिया. बाद में महाराजा ने कलम वाली पिस्तौल माउंटबेटन को तोहफे में भेंट की. और माउंटबेटन उसे अपने साथ ले गए. इस घटना के बाद मेनन को महाराजा के प्लेन में दिल्ली भेजा गया. वो गिरते पड़ते प्लेन से निकले. तब उनके हाथ में दस्तखत किया हुआ विलय पत्र था. जिसकी बदौलत राजपूताना की सबसे बड़ी रियासत का भारत में विलय हो गया. ये आपने एक दिन का ब्यौरा सुना. लेकिन जोधपुर का भारत में विलय इतना आसान काम नहीं था. पाकिस्तान इस पर अपनी गिद्ध दृष्टि बनाए हुए था. जिन्ना हर कीमत पर जोधपुर को हासिल करना चाहते थे. मगर जोधपुर को क्यों?
भारत के सीने में खंजरदरअसल जिन्ना को भोपाल के नवाब से आश्वासन मिला था कि वो अपनी रियासत का विलय पाकिस्तान में करेंगे. सरदार पटेल के शब्दों में, कराची -जोधपुर और भोपाल को मिलाकर जिन्ना भारत के दिल में एक खंजर उतार देना चाहते थे.
जोधपुर के भारत में विलय को लेकर शुरुआत में कोई सवाल नहीं था. यहां हिन्दू बहुसंख्यक थे. और जोधपुर के महाराजा की सरदार पटेल से काफी अच्छी दोस्ती थी. बाकायदा माउंटबेटन के वाइसरॉय बनते ही जोधपुर संविधान सभा में शामिल हो गया था. ये बात है अप्रैल 1947 की. इसके दो महीने बाद एक घटना हुई. जोधपुर के महाराजा उमेद सिंह की मौत हो गई. 21 जून के रोज़ हनवंत सिंह नए महाराजा बने. 24 साल की उम्र में नए महाराजा के सामने बड़ी चुनौतियां थी. जोधपुर अकाल से गुजर रहा था. आजादी के बाद जोधपुर के भविष्य का सवाल था.
निजी जिंदगी में भी महाराजा दिक्क्तों से जूझ रहे थे. महाराजा ने 19 साल की एक स्कॉटिश नर्स से दूसरी शादी कर ली थी. जिसके कारण उनके अपने परिवार वाले ही उनसे नाराज चल रहे थे. इसके अलावा एक बड़ी समस्या थी पलायन की. बड़ी संख्या में लोग जोधपुर आ रहे थे. जिनके रहने खाने इंतज़ाम करना था. जोधपुर रियासत की सीमा पाकिस्तान से लगती थी. इस कारण जोधपुर को इस समस्या का विशेष रूप से सामना करना पड़ रहा था. जैसा कि अक्सर होता है, एक व्यक्ति की मुसीबत दूसरे के लिए मौका बन जाती है. जोधपुर के मामले में ये दूसरे व्यक्ति थे, मुहम्मद अली जिन्ना. जिन्ना फिराक में थे कि किसी तरह उन्हें जोधपुर में एंट्री मिले. ये मौका उन्हें जल्द ही मिल भी गया.
जिन्ना और जोधपुर के महाराजा की मुलाक़ातनिकोलस मैनसर्ग की किताब द ट्रांसफर ऑफ पावर के अनुसार,
छह अगस्त के रोज़ भोपाल के नवाब हमीदुल्ला को खबर मिली कि हनवंत सिंह जिन्ना से मुलाक़ात करना चाहते हैं. हमीदुल्ला हनवंत को लेकर जिन्ना के घर गए. यहां हनवंत से जिन्ना से पूछा, ‘जो राज्य पाकिस्तान से रिश्ता बनाना चाहते हैं, उन्हें आप क्या ऑफर कर रहे हैं’.
जिन्ना ने जवाब दिया, हम एक ट्रीटी करेंगे और हर राज्य को स्वायत्त होने की छूट देंगे. आगे जिन्ना ने कुछ और लुभावने वादे किए. मसलन अगर जोधपुर पाकिस्तान के साथ समझौता करता है तो उन्हें कराची बंदरगाह को इस्तेमाल की इजाजत मिलेगी. वो अपने लिए हथियार इम्पोर्ट कर पाएंगे. और अकाल ग्रस्त इलाक़ों को पाकिस्तान की तरफ से राशन भेजा जाएगा. हनवंत इतने में संतुष्ट नहीं हुए. तो जिन्ना ने उन्हें एक कोरा कागज़ देते हुए कहा कि वो जो शर्तें चाहेंगे उन पर जिन्ना अभी दस्तखत करने को तैयार हैं. हालांकि इसके बाद भी उस रोज़ कोई डील नहीं हुई. और हनवंत ये कहते हुए लौट आए कि कुछ रोज़ बाद दुबारा मुलाकात करेंगे. बातचीत आगे बढ़ती उससे पहले ही इस ड्रामे में एक और व्यक्ति की एंट्री हो गई.
सरदार पटेल तय मानकर चल रहे थे कि जोधपुर समेत राजपूताना की बाकी रियासतें भारत में विलय को तैयार हैं. VP मेनन ने जुलाई और अगस्त में इस बाबत दो खत भी लिखे थे. जिनके अनुसार इन रियासतों ने वाइसरॉय माउंटबेटन से मिलकर विलय की सहमति जताई थी. ऐसे में जब पटेल को जिन्ना और हनवंत की मुलाक़ात की खबर हुई, वो चौकन्ने हो गए. बड़ा खतरा ये था कि अगर जोधपुर पाकिस्तान में चला गया तो जैसलमेर बाड़मेर जैसी रियासतें भी आंख दिखाने लगेंगी. पटेल तुरंत हरकत में आए. और हनवंत को मुलाक़ात के लिए बुलाया.
जोधपुर का भारत में विलयपटेल ने हनवंत से जिन्ना से हुई मुलाकात के बारे में पूछा. हनवंत ने बताया कि जिन्ना ने उन्हें कई सुविधाओं का वादा किया है. खासकर कराची बंदरगाह तक पहुंच, उनके लिए बहुत मायने रखती थी. क्योंकि जोधपुर के लिए ट्रेड का ये एकमात्र रास्ता था. साथ ही अकाल के चलते जोधपुर को अतिरिक्त राशन की जरुरत थी. जिसका वादा जिन्ना ने उन्हें किया था.
ये सुनकर पटेल ने उन्हें समझाया कि जोधपुर की बेहतरी भारत से विलय में है न कि पाकिस्तान से. पटेल ने उन्हें वादा किया कि उन्हें जितनी जरुरत होगी, भारत उतना राशन देगा. साथ ही ट्रेड के लिए जोधपुर से गुजरात के बंदरगाह तक रेल मार्ग तैयार किया जाएगा. हनवंत के लिए इतना काफी था. वो भारत में विलय के लिए तैयार हो गए और विलय पत्र में साइन भी कर दिया. मेनन ने अपनी किताब में विलय की तारीख 9 अगस्त बताई है. लेकिन कुछ लोग इस तारीख पर शंका जताते हैं क्योंकि विलय पत्र पर 11 अगस्त की तारीख दर्ज़ है. उस रोज़ कलम और पिस्तौल का जो ड्रामा हुआ था वो हम आपको शुरुआत में बता चुके हैं.
जोधपुर आगे जाकर राजस्थान राज्य का हिस्सा बना. राजस्थान का गठन आज ही रोज़, यानी 30 मार्च 1949 को हुआ था. जहां तक महाराजा हनवंत सिंह की बात है, आजादी के बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई. लेकिन 1952 में एक विमान हादसे में उनकी मृत्यु हो गई. साल 1950 में उन्होंने ज़ुबैदा नाम की एक फिल्म अभिनेत्री से शादी की थी. जिन्होंने शादी के बाद अपना नाम विद्या रानी रख लिया था. हादसे के रोज़ वो भी महाराजा के साथ विमान में सवार थी. ज़ुबैदा की कहानी पर साल 2001 में श्याम बेनेगल ने एक फिल्म भी बनाई थी. इसी नाम से.
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