सिक्किम का भारत में विलय कैसे कराया गया?
सिक्किम का भारत में विलय कराने में रॉ के हेड RN काओ की विशेष भूमिका थी
Advertisement
जून 1975 की बात है. पान सुपारी एक्सपोर्ट करने वाला एक बिज़नेसमैन ढाका में एंटर हुआ. यहां उसकी मुलाक़ात बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख़ मुजीबुर रहमान से हुई. मुजीब को लगा बिज़नेस पर बात होगी. लेकिन बीच मीटिंग में इस शख़्स ने राष्ट्रपति को एक ऐसी बात बताई, जो उनके पैरों से ज़मीन खिसका सकती थी. इस आदमी ने मुजीब को बताया कि उनका जल्द ही तख्तापलट होने वाला है. इतना ही नहीं तख्तापलट कौन करने वाला है ये भी उस शख़्स को पता था.
1 घंटे चली मीटिंग में राष्ट्रपति को समझाने की कई कोशिशें की गई. लेकिन सब फ़ेल. मुजीबुर रहमान नहीं माने. उन्हें इस पर यक़ीन ही नहीं हुआ. ठीक एक हफ़्ते बाद रहमान और उनके परिवार के 40 लोगों की हत्या हो गई. और इस काम को अंजाम दिया उसी मिलिट्री ऑफ़िसर ने जिसका नाम एक हफ़्ते पहले हुई मीटिंग में बताया गया था. RN काओ के संस्मरण पान सुपारी का व्यापारी बनकर मुजीबुर रहमान से मिलने वाला व्यक्ति और कोई नहीं RN काओ ही थे. आज ही के दिन यानी 20 जनवरी 2002 को काओ का निधन हुआ था. भारत की आज़ादी से लेकर IB के गठन, 71 युद्ध, RAW के गठन, इंदिरा गांधी की हत्या, इन सबको काओ ने बहुत नज़दीक से देखा था. और इन सब घटनाओं को लेकर उनका नज़रिया महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है.
आर एन काओ (बीच में) को इंदिरा गांधी ने 1968 में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की स्थापना के लिए चुना था (तस्वीर:विकिमीडिया कॉमन्स)
काओ ने आधिकारिक रूप से कोई आत्मकथा नहीं लिखी. उन्होंने अपने संस्मरण कुछ रिकॉर्डिंग्स के रूप में दर्ज़ किए थे. उनकी मृत्यु के बाद इन्हें ट्रांस्क्राइब करके 7 फ़ाइलों में बांटा गया. जिनमें से 4 फ़ाइल नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय, नई दिल्ली में रखे गए. इन चार फ़ाइलों में उनका बचपन , IB में उनका काम, घाना मिशन, और एयर इंडिया प्रिन्सेस विमान दुर्घटना की तहक़ीक़ात, ये सब दर्ज़ है.
7 में से 3 फ़ाइलें अभी भी गुप्त रखी गई हैं. काओ की इच्छानुसार इन्हें उनकी मृत्यु के 25 साल बाद खोला जाना है. यानी साल 2027 में. काओ के साथ काम कर चुके लोग मानते हैं कि इन फ़ाइलों में 71 का बांग्लादेश युद्ध, और इंदिरा गांधी की हत्या से सम्बंधित संस्मरण दर्ज़ हैं. इन्हीं संस्मरणों में एक और घटना दर्ज़ है. सिक्किम का भारत में विलय. जिसमें रॉ की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. जानकार तो ये तक कहते हैं कि इस पूरे मिशन को अकेले रॉ ने ही अंजाम दिया था. कैसे? चलिए जानते हैं. आजादी के बाद सिक्किम का स्टेटस आजादी के वक्त सिक्किम एक अलग रियासत हुआ करता था. वहां चोग्याल वंश का राज था. 1947 में सरदार पटेल चाहते थे कि बाकी रियासतों की तरह सिक्किम को भी भारत से जोड़ लिया जाए. लेकिन नेहरू को चीन की फ़िक्र थी. बाद में इंदिरा गांधी ने अपने सहायक PN धर को इस बारे में बताया था. उनके अनुसार नेहरू चीन को लेकर रिश्तों में सावधानी बरत रहे थे. उन्हें लगा कि अगर वो सिक्किम के मामले में रियायत देंगें तो चीन तिब्बत पर आक्रामक नहीं होगा.
इसके बाद 1950 में भारत और सिक्किम के बीच एक ट्रीटी साइन हुई. जिसके अनुसार सिक्किम भारत का प्रोटेक्टोरेट राज्य बन गया. यानी सिक्किम में राज्य राजा का होगा. लेकिन डिफ़ेंस और विदेश मामलों से जुड़े मुद्दे भारत सरकार देखेगी. 1964 तक ऐसा ही चला. फिर नेहरू की मृत्यु के बाद सिक्किम के राजा पलडेन नामग्याल स्टेटस क्वो में बदलाव की मांग करने लगे. उनका कहना था कि 1950 की ट्रीटी में बदलाव करते हुए सिक्किम को भूटान जैसा स्टेटस मिले. यानी एक अलग स्वतंत्र देश. 1967 में नामग्याल भारत आए और उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाक़ात की.
भारत की पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के साथ सिक्किम के बारहवें और अंतिम चोग्याल (राजा) पलदेन थोंडुप नामग्याल (तस्वीर: दिल्ली प्रेस आर्काइव)
1970 में भारत सरकार ने राजा चोग्याल को सिक्किम के लिए ‘परमानेंट एशोसिएशन' का स्टेटस ऑफ़र किया. जब मंत्रिमंडल में इस बात की चर्चा हुई तो आर्मी चीफ़ मानेकशॉ बोले,
“आपको जो करना है करो. लेकिन सिक्किम में अपने ट्रूप्स डिप्लॉय करने की पूरी आज़ादी मुझे चाहिए”मानेकशॉ के इस कथन से आप सिक्किम की स्ट्रेटेजिक इम्पोर्टेंस समझ सकते हैं. इस समय तक इंदिरा अपने पहले कार्यकाल में थीं. और इंटर्नल राजनीति से जूझ रही थीं. रॉ की एंट्री 71 का युद्ध निपटा तो इंदिरा ने इस तरफ़ ध्यान दिया. और एंट्री हुई रॉ की. रॉ को इस काम के लिए तलब करते हुए इंदिरा ने RN काओ से पूछा, क्या तुम सिक्किम का कुछ कर सकते हो? इंदिरा की मंशा थी कि सिक्किम का भारत में पूरी तरह से विलय करा लिया जाए.
अपनी किताब 'RN काओ: जेंटलमेन स्पायमास्टर' में नितिन गोखले लिखते हैं कि सिक्किम को लेकर तब एक योजना तैयार की गई. PN Banerjee, तब रॉ में जॉइंट डायरेक्टर के पद पर तैनात थे. सिर्फ़ चार दिनों में उन्होंने एक प्लान बनाया और RN काओ ने इसे इंदिरा के सामने पेश किया. इंदिरा ने प्लान पर मुहर लगा दी. प्लान ये था कि चोग्याल राजशाही को धीरे-धीरे कमजोर किया जाए. और इसके लिए सिक्किम की लोकल राजनीतिक पार्टियों की मदद ली जाए.
काज़ी लेंडुप दोर्जी (बाएं) और इंदिरा गांधी, जीबीएस सिद्धू को भारतीय पुलिस पदक देते हुए (तस्वीर: GBS सिधु)
तब सिक्किम नेशनल कांग्रेस के लीडर हुआ करते थे, क़ाज़ी लेनडुप दोरजी. इन लोगों ने पहले ही राजशाही के ख़िलाफ़ मुहीम छेड़ रखी थी. जनता भी लोकतंत्र के प्रति सहानुभूति रखती थी. सवाल था कि कैसे भी एक इलेक्शन कराया जाए. जिसमें क़ाज़ी की पार्टी की जीत हो. इसके बाद विधान सभा में प्रस्ताव पेश होता और सिक्किम का भारत में विलय हो जाता. ये सब कहने में जितना आसान लग रहा है. उतना था नहीं.
काओ ने अपने दो ऑफ़िसर इस काम में लगाए. एक PN बैनर्जी और दूसरे अजीत सिंह स्याली. स्याली तब गंगटोक में ऑफ़िसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के तौर पर तैनात थे. इसके अलावा एक और शख़्स था, जो इस पूरे ऑपरेशन पर नज़र रख रहा था. सिक्किम में रॉ के हेड, GBS सिधु. ऑपरेशन ट्वायलाइट 1973 की शुरुआत में दो ऑपरेशन एक साथ शुरू किए गए. नाम थे- जनमत और ट्वायलाइट. असल में ये नाम दिए गए थे सिक्किम नेशनल कांग्रेस के दो नेताओं को. क़ाज़ी और KC प्रधान. जिनके सहयोग से ही ये सारी योजना चलनी थी. फरवरी 1973 में PN बैनर्जी की टीम ने क़ाज़ी और प्रधान से मुलाक़ात की. और सिक्किम प्लान शुरू हो गया.
इसी दौरान बैनर्जी को एक CIA ऑपरेटिव का पता चला. जो कलकत्ता स्थित US दूतावास में तैनात था. इस आदमी का नाम था पीटर बरलेह. हुआ ये कि बरलेह को सिक्किम में आधिकारिक गेस्ट के तौर पर बुलाया गया. तब बैनर्जी के कान खटके कि एक US राजनयिक ऑफ़िसर सिक्किम में क्या कर रहा है. पता चला कि पीटर बरलेह सिर्फ़ चोग्याल राजा से ही नहीं सिक्किम नेशनल कांग्रेस के लीडर क़ाज़ी से भी मिला था.
बैनर्जी ने सीधे काओ को इस बात की जानकारी दी. दिल्ली में तुरंत रॉ की एक हाई लेवल मीटिंग बुलाई गई. तय हुआ कि इससे पहले कि ये अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बने सिक्किम ऑपरेशन को और तेज़ी दी जाए. और जनता का विरोध इस लेवल तक पहुंचाया जाए कि मजबूरी में चोग्याल को भारत से मदद मांगने के लिए आना ही पड़े. इसके अलावा ये भी तय हुआ कि सेना के सिक्किम में कुछ फ़्लैग मार्च कराए जाएं. ताकि लोकतंत्र समर्थक लोगों को ये संदेश जाए कि भारत उनके साथ है. ऐसा इसलिए भी ज़रूरी था कि 1949 में भी सिक्किम में ऐसे ही विद्रोह के स्वर उठे थे. लेकिन तब प्रधानमंत्री नेहरू पैसिव बने रहे. लोकतंत्र समर्थक संगठनों को रॉ के थ्रू जो भी मदद पहुंचाई जा सकती थी. पहुंचाई गई. राजा जी का बर्थडे 4 अप्रैल 1973 को एक खास घटना हुई. उस दिन चोग्याल राजा का 50th बर्थडे था. राजभवन में जश्न चल रहा था, वहीं सड़कों पर राजशाही के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन चल रहा था. इस दौरान चोग्याल राजा के बेटे टेंज़िंग राजभवन के रूट पर जा रहे थे. तब प्रदर्शनकारियों ने उन्हें बीच में ही रोक लिया. तब उनके गार्डों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चला दी. और दो लोगों की जान चली गई.
सिक्किम सरकार को बिल को मान्यता देते हुए चोग्याल. साथ में सिक्किम नेशनल कांग्रेस के लीडर क़ाज़ी (तस्वीर: बुक, सिक्किम: डॉन ऑफ़ डेमोक़्रेसी)
सिक्किम नेशनल कांग्रेस के लीडर क़ाज़ी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाते हुए पूरे सिक्किम में चक्का जाम कर दिया. अगले कुछ दिनों तक सिक्किम में भारी लूट-पाट मची. और मजबूरी में चोग्याल को भारत से मदद मांगनी पड़ी. 8 अप्रैल के दिन सिक्किम और भारत के बीच एक लिखित समझौता हुआ. जिसके अनुसार भारत सिक्किम के एडमिनिस्ट्रेशन को अपने हाथ में लेगा और सिक्किम पुलिस भारतीय सेना के अंडर काम करेगी.
इसके बाद सिक्किम नेशनल पार्टी ने बंद वापस ले लिया. 8 मई को एक और समझौता हुआ. जिसके तहत चोग्याल राजा के पास सिर्फ़ राजभवन और वहां के गार्डस का नियंत्रण रह गया.मामला काफ़ी हद तक सुलट चुका था. लेकिन काओ के सामने एक और परेशानी थी. इंदिरा ने काओ से कहा था कि सिक्किम का भारत में पूर्ण विलय कराना है. इससे कम में वो किसी भी सूरत पर राज़ी नहीं थी. यानी राजभवन और वहां के गार्ड भी भारत के नियंत्रण में आने थे.
इसके अलावा एक और मुद्दा था जिस पर पेंच फ़ंस सकता था. सिक्किम में सिर्फ़ राजशाही ही एक पक्ष नहीं था. वहां भोटिया जनजाति, नेपाली कम्यूनिटी भी ताक़त रखती थी. चुनाव होने की स्थिति में अगर ये पक्ष ज़्यादा सीट अपने कब्जे में कर लेते तो भारत में विलय का प्लान खटाई में पड़ सकता था. इसलिए काओ ने PN बैनर्जी को एक और टास्क सौंपा. पूरे सिक्किम में प्रचारित किया गया कि सिक्किम और डार्जलिंग के विकास में ज़मीन-आसमान का अंतर है. इसलिए सिक्किम के विकास के लिए भारत की संसद में सिक्किम का प्रतिनिधित्व ज़रूरी है. जो बिना भारत में विलय के संभव नहीं है. काओ के लिए टास्क था कि चुनाव के बाद विधानसभा में कम से कम 70% मेम्बर भारत के पक्ष के हों. ताकि विलय में कोई दिक़्क़त पेश न आए. 1974 में चुनाव हुए काओ की इच्छानुसार क़ाज़ी की सिक्किम नेशनल कांग्रेस को भारी बहुमत मिला. चोग्याल को अंदाज़ा हो चुका था कि अब राजभवन भी उनके हिस्से में नहीं आना है. इसलिए उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय पटल पर ये मुद्दा उठाना शुरू किया. इसे देखते हुए रॉ ने सिक्किम ऑपरेशन का आख़िरी हिस्सा शुरू किया. जिसके तहत ज़रूरी था कि बिना खून-ख़राबे के राजभवन भी नियंत्रण में आ जाए.
1974 सिक्किम चुनाव में मत डालने के लाइन में लगे लोग (तस्वीर: नॉर्थईस्ट नाउ)
इस काम की शुरुआत विधान सभा से होनी थी. जहां क़ाज़ी और उनकी पार्टी ने 'द गवर्नमेंट ऑफ़ सिक्किम ऐक्ट 1974' सदन में पेश किया. ऐक्ट पारित हुआ और सिक्किम भारत का एशोसिएट स्टेट बन गया. पूर्ण राज्य बनाने के लिए रेफेरेंडम ज़रूरी था. उससे पहले एक आख़िरी कदम ज़रूरी था. यानी राजभवन को अपने नियंत्रण में लेना. जहां भारी मात्रा में सिक्किम गार्ड तैनात थे. और ये सब राजा के प्रति अपनी निष्ठा रखते थे. बिना विधान सभा की अनुमति के सेना सीधे राजभवन पर कब्जा नहीं कर सकती थी.
रॉ के प्लान के तहत सबसे पहले गंगटोक में प्रदर्शन शुरू हुए. और मांग उठी कि राजभवन को राज्य के अधीन किया जाए. और सिक्किम गार्ड्स को वहां से हटाया जाए. इसके बाद चोग्याल को लेकर योजना तैयार हुई. जिसके अनुसार चोग्याल को राजभवन से हटाकर इंडिया हाउस में ले ज़ाया जाएगा. और बाद में उन्हें गंगटोक के बाहर एक गेस्ट हाउस में ट्रांसफ़र कर दिया जाएगा.
ये सब तय होने के बाद सिक्किम नेशनल कांग्रेस के लीडर क़ाज़ी ने भारतीय अधिकारियों को दो पत्र लिखे. जिनमें उन्होंने सेना के हस्तक्षेप की मांग की. इसके बाद 8 अप्रैल के रोज़ ब्रिगेडियर दीपेन्द्र सिंह के नेतृत्व में सेना की तीन बटालियन राजभवन पहुंची. सिक्किम गार्ड्स ने थोड़ा रेजिस्टेंस दिखाया. लेकिन 20 मिनट के अंदर राजभवन को कब्जे में ले लिया गया. इसके बाद पूरे सिक्किम में विधान सभा की देख रेख में एक रेफ़्रेंडम कराया गया. 97 % जनता ने भारत में विलय के पक्ष में मत दिया. और 16 मई 1975 को सिक्किम आधिकारिक रूप से भारत का बाईसवां राज्य बन गया.