अमेरिकी गांधी को जब भारत में ‘अछूत’ कहा गया!
मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिकन सिविल राइट मूवमेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. दुनियाभर में उन्हें आज मानव अधिकारों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.
साल 1959, फरवरी महीने की बात है. दिल्ली में इंडिया गेट के पास जनपथ होटल की लॉबी में करीब दो दर्ज़न पत्रकार इंतज़ार कर रहे थे. एक खास मेहमान आ रहा था. अमेरिका से. कुछ घंटों बाद पालम पर एक विमान उतरा और वो खास मेहमान होटल तक पहुंचा. एक प्रेस कांफ्रेस रखी गई थी. प्रेस कांफ्रेस की शुरुआत से पहले उस शख्स ने एक लिखित बयान पढ़ा. वो बोला,
“मैं कबसे भारत आने का इंतज़ार कर रहा था. मैं कई देशों में गया, ये सब मेरे लिए महज़ पर्यटन यात्राएं थीं. लेकिन भारत की यात्रा मेरे लिए पर्यटन नहीं बल्कि एक तीर्थ यात्रा है. जो आपके लिए भारत है, उसे मैं गांधी और नेहरू के नाम से जानता हूं”
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गांधी(Mahatma Gandhi) कभी खुद अमेरिका नहीं गए. लेकिन अमेरिका ने खुद अपना गांधी ढूंढ लिया था. और आज वो गांधी की धरती पर खड़े होकर उन्हें नमन कर रहा था. इस शख्स का नाम था मार्टिन लूथर किंग जूनियर(Martin Luthar King Jr.), जिन्हें उनके अनुयायाई प्यार से डॉक्टर किंग कहकर बुलाते हैं. आज ही के रोज़ यानी 10 फरवरी 1959 को मार्टिन लूथर किंग भारत की यात्रा पर आए थे(1959: Martin Luthar King Jr. India visit). इस दौरान उन्होंने पूरे भारत का दौरा किया, विनोबा भावे के साथ पैदल घूमे. जिस घर में कभी गांधी रहे थे, उस घर में एक रात गुजारी. और अंत में एक स्कूल का दौरा किया जहां दलित बच्चे पढ़ाई करते थे. यहां उन्हें एक ऐसा अनुभव हुआ, जिसने उन्हें अहसास कराया कि जिस नस्लभेद के खिलाफ वो अमेरिका में लड़ रहे थे. वही लड़ाई भारत को जातिवाद के खिलाफ लड़नी थी.
कैसा था डॉक्टर किंग का भारत दौरा?
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अमेरिका में नस्लभेदडॉक्टर किंग की भारत यात्रा से पहले अमेरिकी इतिहास की महत्वपूर्ण घटना को जानना जरूरी है. ये बात है 1955 की. डॉक्टर किंग अपने परिवार समेत अमेरिका के अलाबामा राज्य के एक शहर मोंट्गोमेरी में रहा करते थे. अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में तब अश्वेतों से जबरर्दस्त भेदभाव किया जाता था. और इस भेदभाव को सरकार का संरक्षण भी हासिल था. एक नियम था कि अश्वेत लोग बस में आगे नहीं बैठ सकते. अगर कोई गोरा व्यक्ति बस में चढ़ जाए तो अश्वेत लोगों को उनके लिए सीट खाली करनी पड़ती थी. ये नियम सालों से चले आ रहे थे. ऐसे में दिसंबर 1955 में एक घटना हुई. रोज़ा पार्क्स(Rosa Parks) नाम की एक अश्वेत महिला बस में बैठी हुई थी. तभी उस बस में कुछ गोर लोग चढ़े और बस ड्राइवर ने अश्वेतों से अपनी सीट छोड़ देने को कहा. रोज़ा पार्क्स अड़ गई. उन्होंने सीट छोड़ने से इंकार कर दिया.
नतीजा हुआ कि रोज़ा को गिरफ्तार कर लिया गया. इस गिरफ्तारी के खिलाफ एक बड़े प्रदर्शन की शुरुआत हुई. मार्टिन लूथर किंग तब मोंट्गोमेरी इम्प्रूवमेंट एसोसिएशन नाम की एक संस्था के अध्यक्ष हुआ करते थे. उन्होंने रोज़ा पार्क्स की गिरफ्तारी के खिलाफ एक बड़ा प्रदर्शन शुरू किया. इस आंदोलन की खास बात थी कि ये पूरी तरह अहिंसक था. डॉक्टर किंग ने अश्वेत लोगों से बसों का बहिष्कार करने को कहा. बसों में चलने वाले 75 % लोग अश्वेत हुआ करते थे. उनके बहिष्कार से सरकारी बसों को घाटा होने लगा. सरकार इस पर भी बाज़ न आई और उन्होंने टैक्सी चालकों से भाड़ा बढ़ाने को कहा. जल्द ही मामले ने इतना तूल पकड़ा कि मोंट्गोमेरी की घटना पूरे अमेरिका की नज़रों में आ गई. अंत में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देते हुए भेदभाव को क़ानून को गैर संविधानिक करार दे दिया. मार्टिन लूथर किंग और उनके सहयोगियों की जीत हुई. ये आंदोलन तब अमेरिका के दक्षिणी राज्यों एक लिए एक नजीर बना कि कैसे अंहिंसात्मक तरीके से अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई जा सकती है.
डॉक्टर किंग का कहना था कि आंदोलन के इस तरीके के लिए महात्मा गांधी उनकी प्रेरणा थे. अपनी आत्मकथा में वो कहते हैं,
“जैसे ही बसों में भेदभाव के मुद्दे पर हमें जीत मिली, मेरे कुछ मित्रों ने कहा: तुम भारत जाकर महात्मा का काम क्यों नहीं देख आते, तुम तो उनके बहुत प्रशंसक हो?’’
यहीं से डॉक्टर किंग ने ठान लिया कि वो भारत का दौरा करेंगे. यूं तो डॉक्टर किंग अमेरिका के एक बड़े नेता बन चुके थे. लेकिन ये यात्रा उन्होंने प्राइवेट स्पांसरशिप से पूरी की थी. अमेरिकी सरकार उनकी इस यात्रा से हरगिज़ खुश नहीं थी. क्योंकि उन्हें लग रहा था कि डॉक्टर किंग की यात्रा से अमेरिका में हो रहे नस्लभेद की बात एशिया में फैलगी और उनकी किरकिरी का कारण बनेगी. हालांकि इससे पहले अश्वेत गायकों और संगीतकारों को अमेरिकी सरकार द्वारा एशिया के दौरे पर भेजा जाता रहा था. 3 फरवरी को अपनी यात्रा शुरू कर डॉक्टर किंग 10 फरवरी को भारत पहुंचे. इस बीच उन्होंने कुछ और देशों का भी दौरा किया. भारत आकर सबसे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू से मुलाक़ात की. 1956 में नेहरू जब अमेरिका दौरे पर गए थे, वहां उन्होंने डॉक्टर किंग से मुलाक़ात की इच्छा जताई थी, लेकिन दोनों मिल नहीं पाए थे.
गांधी के रास्ते परअपने एक महीने के दौरान डॉक्टर किंग ने भारत में कई जगहों का दौरा किया. खासकर हर उस जगह का जिसका महात्मा गांधी से रिश्ता था. राजघाट पर दर्शन के दौरान वो कई देर तक समाधि के आगे बैठकर प्रार्थना करते रहे. इसके अलावा उन्होंने साबरमती आश्रम और मणि भवन का दौरा भी किया. मणि भवन में एक रात उन्होंने उसी कमरे में गुजारी जिसमें गांधी रहा करते थे. यहां से लौटते हुए उन्होंने गेस्ट बुक में लिखा,
”जिस घर में कभी गांधी सोए थे वहां रहना मेरे लिए कभी न भुला सकने वाला अनुभव था”.
डॉक्टर किंग ने भारत के विश्ववद्यालयों का दौरा किया. यहां पढ़ने वाले अफ्रीकी मूल के छात्रों से मिले. कई जगह भाषण भी दिए, जिन्हें सुनने के लिए हजारों लोग की भीड़ उमड़ पड़ती थी. भारत में डॉक्टर किंग अक्सर सड़कों पर सैर को निकल जाते थे. अक्सर कोई उन्हें मिलता और पूछ लेता,
"आप मार्टिन लूथर किंग ही हैं न? कई बार ऐसे भी हुआ कि जिस जहाज से डॉक्टर किंग यात्रा कर रहे होते, उसका पायलट कॉकपिट से बाहर आकर उनका ऑटोग्राफ मांगने लगता. डॉक्टर किंग अपनी आत्मकथा में कहते हैं, “भारत में मैं जहां भी गया, हर दरवाज़ा मुझे अपने लिए खुला हुआ मिला”.
एक जगह वो लिखते हैं,
“मैं कई नेताओं और बुद्धिजीवियों से मिला, और एक ऐसे व्यक्ति से जो शायद संत था”
डॉक्टर किंग जिस व्यक्ति की बात कर रहे थे. वो आचार्य विनोबा भावे थे. डॉक्टर किंग की यात्रा के दौरान भूदान आंदोलन जोरों पर था. इस आंदोलन ने और विनोबा के व्यक्तित्व ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था. और वो भूदान आंदोलन में उनके साथ कई मील पैदल चले. अपनी आत्मकथा में वो लिखते हैं,
“भारत एक ऐसी भूमि है जहां आज भी आदर्शवादियों और बुद्धिजीवियों का सम्मान किया जाता है. यदि हम भारत को उसकी आत्मा बचाए रखने में मदद करें, तो इससे हमें अपनी आत्मा को बचाए रखने में मदद मिलेगी.”
डॉक्टर किंग को भारत में कई चीजों ने प्रभवित किया. लेकिन एक चीज जिसने उन पर सबसे अधिक असर डाला वो थी भारत की गरीबी. डॉक्टर किंग लिखते हैं,
‘‘हम जहां भी गए लोगों की भारी भीड़ दिखी. ज़्यादातर लोग गरीब थे, उनका पहनावा भी वैसा ही था. बंबई जैसे शहर में पांच लाख से भी अधिक लोग- अकेले, बेरोज़गार, सड़कों पर रात बिताते हैं.’’
इस यात्रा में उनके साथ आईं उनकी पत्नी कोरेटा किंग ने लिखा,
‘‘कचरे के डिब्बों में खाना ढूंढते सिर्फ गंदी लंगोटी पहने लोगों को देखकर मेरे पति बहुत विचलित हुए. ऐसी गरीबी तो हमने अफ्रीका में भी नहीं देखी थी’’.
भारत की गरीबी से डॉक्टर किंग इतने प्रभावित हुए कि अमेरिका लौटकर उन्होंने न्यू यॉर्क में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. और पश्चिम के देशों से भारत को मदद देने की बात कही. एक और चीज जिसने मार्टिन लूथर लिंग जूनियर पर बहुत असर डाला, वो था भारत में जातिवाद और छुआछूत की कुप्रथा. उन्होंने इसे अमेरिका में चल रही नस्लभेद की परंपरा से जोड़कर देखा. हालांकि वो भारत में आरक्षण के प्रयासों से काफी प्रभावित भी हुए. अमेरिका जाकर उन्होंने प्रेस कांफ्रेस में इस बात का जिक्र भी किया. उन्होंने कहा,
'अछूत' कहा गया“दोनों देशों में भेदभाव के खिलाफ क़ानून हैं. लेकिन भारत में सरकारी, धार्मिक और शिक्षा संस्थाओं के नेताओं ने इन कानूनों का समर्थन किया है. भारत में कोई भी नेता खुलकर जातिवाद का समर्थन नहीं कर सकता, जबकि अमेरिका के कई नेता खुलकर नस्लभेद का समर्थन करते हैं”
इस यात्रा के दौरान डॉक्टर किंग के साथ हुई एक घटना का किस्सा सुनिए. इस घटना का जिक्र उन्होंने भारत यात्रा के काफी साल बाद किया था. हुआ यूं कि केरल की यात्रा के दौरान मुंख्यमंत्री EMS नम्बूदरीपाद ने डॉक्टर किंग का खूब आदर सत्कार किया. नम्बूदरीपाद कम्युनिस्ट नेता थे. उन्होंने डॉक्टर किंग से केरल के स्कूलों का दौरा करने को कहा, ताकि वो सरकार के प्रयासों को देख सकें. एक रोज़ डॉक्टर किंग एक सरकारी स्कूल पहुंचे, जहां अधिकतर बच्चे तथाकथित पिछड़ी जातियों से आते थे. स्कूल के प्रिंसिपल ने डॉक्टर किंग को स्कूल के बच्चों से मिलाया. लेकिन इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसा कहा, जिसे सुनकर डॉक्टर किंग को काफी अचम्भा हुआ. प्रिंसिपल ने डॉक्टर किंग का परिचय करवाते हुए कहा,
“आज मैं तुम्हारा परिचय अमेरिका से आए एक फेलो अछूत से कराना चाहता हूं”.
ये बात अजीब थी. क्योंकि अछूत शब्द जातिवाद से सम्बंधित था. और डॉक्टर किंग एक दूसरे देश, दूसरे धर्म के व्यक्ति थे. 1965 में एक भाषण के दौरान उन्होंने इस घटना का जिक्र करते हुए कहा,
“मैंने अपने उन 2 करोड़ भाई बहनों के बारे में सोचा जो गरीबी में जिंदगी बिताने को मजबूर हैं. जिनके बच्चों के पास अच्छे स्कूल नहीं है. और उस दिन मुझे अहसास हुआ, हां मैं अछूत हूं, और अमेरिका में रहने वाला हर अश्वेत अछूत है”
करीब एक महीना भारत में बिताने के बाद 9 मार्च को डॉक्टर किंग भारत से अमेरिका लौट गए. गांधी स्मारक निधि पर एक भाषण के दौरान उन्हें भारत से विदा लेते हुए कहा,
“इस देश में गांधी की आत्मा आज भी उतनी ही मजबूत है.”
अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपनी भारत यात्रा को ‘अहिंसा-धाम की तीर्थयात्रा’ का नाम दिया. उन्होंने लिखा-
“अहिंसक साधनों से अपने लोगों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने के दृढ़तर संकल्प के साथ मैं अमेरिका लौटा. भारत यात्रा का एक परिणाम यह भी हुआ कि अहिंसा के बारे में मेरी समझ बढ़ी और इसके प्रति मेरी प्रतिबद्धता और भी गहरी हो गई.”
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