CIA का टारगेट नंबर वन, जो भारत का फैन था!
क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो, भारत के पहले प्रधानमंत्री से लेकर राजीव गांधी तक के अच्छे दोस्त रहे थे.
साल 1983. मौका है गुटनिरपेक्ष देशों के सम्मलेन का. इस बार इस सम्मलेन की मेजबानी भारत को करनी है. पूरा आयोजन विज्ञान भवन दिल्ली में रखा गया है. करीब 100 से ज्यादा देशों के राष्ट्रध्यक्ष मौजूद हैं. पूरा मीडिया मौजूद है. इस बीच सामने स्टेज पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी(Indira Gandhi) आती हैं. इंदिरा के सामने खड़ा एक है एक शख्स, जिसके हाथ में एक लकड़ी की हथौड़ी है. हथौड़ी इंदिरा को दी जानी है. जिसका मतलब होता, अध्यक्षी अब भारत को सौंप दी जाएगी. सैकड़ों लोगों के आगे वो शख्स और इंदिरा आमने-सामने आते हैं. इंदिरा हथौड़ी लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाती हैं. लेकिन दूसरी तरफ से हाथ आगे नहीं बढ़ता.
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इंदिरा एक और बार कोशिश करती हैं, लेकिन सामने खड़ा शख्स बस मुस्कुराता रहता है. हथौड़ी अभी भी उसी के हाथ में है. पशोपेश में आ चुकी इंदिरा इससे पहले कुछ समझ पाती, वो शख्स एक कदम आगे बढ़ता है और इंदिरा को गले लगा लेता है. अचानक तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा माहौल गूंज उठता है. जिस इंदिरा गांधी के सामने दुनिया के बड़े-बड़े नेता भी अदब से पेश आते थे, उन्हें गले लगाने वाला ये शख्स कोई आम नेता नहीं था.
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ये वो शख्स था, जिसे 638 बार मारने की कोशिश की गई थी. वो भी अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA द्वारा. इसके बावजूद इस शख्स ने 47 साल अपने देश पर राज किया. इस शख्स का नाम था, फिदेल कास्त्रो(Fidel Castro). कास्त्रो ने बाद में बताया था कि उनके लिए इंदिरा भारत की प्रधानमंत्री बाद में और नेहरू की बेटी पहले थीं. नेहरू, जिनके बारे में कास्त्रो का कहना था,
क्यूबा-भारत के रिश्तों की शुरुआत“जब मुझे राजनीति की कोई समझ नहीं थी, नेहरू ने मेरा हौंसला बढ़ाया था. मैं उनका अहसान कभी नहीं भूल सकता”
भारत और क्यूबा के रिश्तों की शुरुआत साल 1959 में हुई(Cuba–India relations). क्यूबा की क्रांति को लीड किया था फिदेल कास्त्रो ने. कास्त्रो ने गुरिल्ला युद्ध की मदद से फुलगेन्सियो बटिस्टा को सत्ता से उखाड़ फेंका था. उन्होंने अपनी सरकार बनाई. भारत उन पहले कुछ देशों में था जिन्होंने इस सरकार को मान्यता दी. क्यूबा गुट निरपेक्ष आंदोलन से जुड़ा, जिसकी अगुवाई भारत कर रहा था. उसी साल कास्त्रो के खास सिपाह-सालार चे ग्वेरा ने भारत की यात्रा की. अगला मौका आया साल 1960 में.
संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्षगांठ पर नेहरू और कास्त्रो, दोनों न्यू यॉर्क पहुंचे थे. न्यू यॉर्क में कास्त्रो ने पाया कि कोई भी होटल उन्हें कमरा देने के लिए तैयार नहीं है. अमेरिका की इस नाराजगी के दो कारण थे. एक तो कास्त्रो ने क्यूबा में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. दूसरा वो रूस से तेल खरीद रहे थे. अमेरिका में कास्त्रो को रूस के दोस्त के तौर पर देखा जाता था. बहरहाल उस रोज़ जब कास्त्रो को कोई कमरा न मिला तो वो सीधे संयुक्त राष्ट्र महासचिव से मिलने पहुंच गए. और उन्हें धमकी दी कि अगर उनके और उनके प्रतिनिधिमंडल के रहने का इंतज़ाम न हुआ तो UN के आगे तम्बू डाल देंगे. हालांकि इसकी नौबत नहीं आई. न्यू यॉर्क का एक होटल ने उन्हें अपने यहां रहने के लिए कमरा दे दिया. कई साल बाद कास्त्रो ने इस दौरे से जुड़ा एक किस्सा भारत के पूर्व विदेश मंत्री नटवर से साझा किया था. कास्त्रो ने बताया,
क्या तुम इंदिरा को अपना दोस्त मानते हो?"क्या आप को पता है कि जब मैं न्यूयॉर्क के उस होटल में रुका तो सबसे पहले मुझसे मिलने कौन आया? महान जवाहरलाल नेहरू. मेरी उम्र उस समय 34 साल थी. अंतरराष्ट्रीय राजनीति का कोई तजुर्बा नहीं था मेरे पास. नेहरू ने मेरा हौसला बढ़ाया जिसकी वजह से मुझमें ग़ज़ब का आत्मविश्वास जगा. मैं ताउम्र नेहरू के उस एहसान को नहीं भूल सकता."
क्यूबा और भारत की दोस्ती जवाहरलाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) के बाद भी बरक़रार रही. कास्त्रो ने 1973 में पहली बार भारत की यात्रा की. दूसरी यात्रा वो थी जिसका किस्सा हमने शुरुआत में सुनाया था. इसी दौरे से जुड़ा एक और किस्सा है. हुआ यूं कि उस साल गुट निरपेक्ष सम्मलेन में भाग लेने के लिए फिलिस्तीन के नेता यासर अराफात भी पहुंचे थे. ऐन मौके पर पता चला कि अराफात सम्मलेन में बिना शिरकत किए वापस लौटने की सोच रहे हैं. ये खबर सम्मेलन के सेक्रेट्री जनरल, नटवर सिंह तक पहुंची. नटवर ने कारण जानने की कोशिश की तो पता चला कि आराफात सम्मलेन की तैयारियों से खफा थे. खासकर इस बात से कि उनके बोलने की बारी जॉर्डन देश के बाद रखी गई है. जॉर्डन और फिलिस्तीन के रिश्ते तब कुछ खास अच्छे नहीं थे.
नटवर सिंह ने ये बात इंदिरा को बताई. इंदिरा ने ये बात कास्त्रो से साझा की. और कास्त्रो सीधे यासर अराफात से मिलने पहुंच गए. कास्त्रो ने उनसे दो टूक पूछा,
“क्या आप इंदिरा गांधी को अपना दोस्त मानते हैं?”
अराफात ने कहा,
“दोस्त क्या, मैं तो उन्हें अपनी बड़ी बहन मानता हूं और उनके लिए कुछ भी कर सकता हूं.”
इस पर कास्त्रो ने कहा,
“तो फिर ठीक है. एक छोटे भाई की तरह बर्ताव करो. और सम्म्मेलन में भाग लो.”
इस तरह कास्त्रो की मदद से ये बड़ी मुसीबत टल गई.
पिस्तौल दी लेकिन गोली नहींतीसरा किस्सा है 1993 का. उस साल कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी क्यूबा की यात्रा पर गए थे. बीबीसी से बातचीत में दोनों ने इस यात्रा से जुड़ा एक किस्सा सुनाया. हुआ यूं कि ज्योति बसु और सीताराम येचुरी को कास्त्रो ने आधी रात को मिलने के लिए बुलाया. डेढ़ घंटे चली बैठक में कास्त्रो लगातार सवाल करते जा रहे थे. मसलन भारत में लोहा कितना पैदा होता है, कोयला कितना पैदा होता है, आदि. ज्योति बसु को ये आंकड़े याद नहीं थे. तब फिदेल कास्त्रो ने सीताराम येचुरी की तरफ देखकर उनसे कहा, ये (यानी ज्योति बसु) तो बुजुर्ग हैं, आप जैसे नौजवानों को तो ये सब याद होना चाहिए.
यात्रा पूरी होने के बाद दोनों दोनों भारत लौटने के लिए हवाना एयरपोर्ट पहुंचे. वो वहां VIP लाउंज में बैठे हुए थे, तभी अचानक लाउंज खाली करा दिया गया. बसु और येचुरी को समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों किया गया. तभी उन्होंने देखा कि फिदेल कास्त्रो चले आ रहे हैं. फिदेल दोनों को विदा करने आए थे. उस समय येचुरी के कंधे पर एक बैग था. फिदेल ने पूछा उसमें क्या है तो येचुरी बोले कि कुछ किताबें हैं. फिदेल ने कहा,
“तुम तो आ गए, लेकिन कोई सामने इस तरह बैग लेकर नहीं आता है. न जाने उसमें क्या हो. CIA कई बार मुझे मारने की कोशिश कर चुकी है.”
येचुरी ने उनसे कहा कि उनके पास तो पिस्तौल है, तो उन्हें किस बात का डर. इस पर कास्त्रो बोले,
“ये राज समझ लो आज. ये पिस्तौल हमने अपने दुश्मनों को डराने के लिए रखी है, लेकिन इसमें कभी गोली नहीं होती है.”
अब एक किस्सा और पढ़िये, जिसने कास्त्रो को हमेशा के लिए भारत का मुरीद बना दिया. बात 1991 की है. सोवियत संघ के विघटन के बाद क्यूबा की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी, क्योंकि इस मामले में क्यूबा काफी हद तक सोवियत संघ पर निर्भर था. ऐसे में भारत के वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने पार्टी की तरफ से क्यूबा को 10 हजार टन गेहूं भिजवाने का फैसला लिया. इस किस्से के बारे में येचुरी बताते हैं,
“उस समय क्यूबा अपना सामान दुनिया में कहीं और नहीं भेज सकता था. न तो उनके पास खाने के लिए खाना था और न नहाने के लिए साबुन. ऐसे में कॉमरेड सुरजीत ने ऐलान किया कि वो क्यूबा को गेहूं भेजकर मदद करेंगे. उन्होंने लोगों से अनाज और पैसे जमा किए.”
ये वो वक्त था, जब भारत में नरसिम्हा राव की सरकार थी. येचुरी बताते हैं,
“सुरजीत के प्रयास से पंजाब की मंडियों से अनाज लेकर एक खास ट्रेन कोलकाता बंदरगाह भेजी गई थी. फिर वहां से 'कैरिबियन प्रिंसेस' नाम का शिप गेहूं लेकर क्यूबा गया था. सुरजीत ने नरसिम्हा राव से भी कहा था कि जब वो 10 हजार टन गेहूं भेज रहे हैं, तो सरकार को भी इतनी ही मदद करनी चाहिए. सरकार ने बात मानी और उतना ही गेहूं और भेजा. साथ में 10 हजार साबुन भी भेजे गए.”
जब वो शिप क्यूबा पहुंचा, तो फिदेल कास्त्रो खुद उसे रिसीव करने पहुंचे और उन्होंने खास तौर से सुरजीत को बुलवाया. इस मौके पर कास्त्रो ने कहा भारत से भेजे गए गेहूं से जो ब्रेड बनेगी उसे भारत की ब्रेड कहा जाएगा.
तो भारतीय होते फिदेल कास्त्रोकेंद्र में मंत्री और दो राज्यों की राज्यपाल रहीं मारग्रेट अल्वा ने अपनी ऑटोबायोग्राफी, करेज़ एन्ड कमिटमेंट में कास्त्रो से हुई कुछ मुलाकातों का जिक्र किया है. एल्वा लिखती है कि राजीव गांधी(Rajiv Gandhi) के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक बार उनकी कास्त्रो से मुलाक़ात हुई थी. इस मुलाक़ात में कास्त्रो ने उनसे कहा,
“मैं राजीव की मां का दोस्त था. उनसे कहना अपनी मां के नक़्शे कदम पर चले. उन्हें ये सन्देश भी देना कि वो अपने वित्त मंत्री (VP सिंह) पर भरोसा न करे. वो राजीव के खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है. और एक दिन उसकी पीठ पर छुरा भोंक देगा”.
इस पर अल्वा ने जवाब दिया कि VP सिंह राजीव के अच्छे दोस्त हैं और राजीव उनकी सलाह पर निर्भर रहते हैं. जवाब में कास्त्रो ने निराशा में सर हिलाते हुए कहा,
“ये अच्छी बात नहीं है”.
अल्वा बताती है कि एक बार कास्त्रो ने भोजन के दौरान उनसे पूछा, तुम्हारा वजन कितना है. अल्वा ने जवाब दिया, हमारे यहां कहावत है कि उस चीज़ के बारे में हरगिज़ न बताया जाए जिसे साड़ी छुपा सकती है. कास्त्रो जोर से हांसे और बोले,
“मैं तुम्हें उठाकर बता सकता हूं, तुम्हारा वजन कितना है”
ये कहकर कास्त्रो ने एल्वा को पकड़ा और जमीन से एक फुट ऊपर उठा लिया. बोले, अब मैं बता सकता हूं, तुम्हारा वजन कितना है. एक दूसरी मुलाक़ात के दौरान कास्त्रो ने मार्गरेट अल्वा से पूछा,
“क्या होता अगर स्पेनिश लोग क्यूबा न उतरकर भारत में उतरे होते”
अल्वा ने जवाब दिया,
“तो आप भारतीय होते”
इस पर कास्त्रो ने जवाब दिया,
“ये मेरे लिए खुशकिस्मती की बात होती! भारत एक महान देश है."
अंत में एक और किस्सा जो कास्त्रो की 1983 की भारत यात्रा से जुड़ा है. कर्नल अजीत यादव को इस यात्रा के दौरान कास्त्रो का निजी सचिव बनाया गया था. अजीत बताते हैं कि क्यूबन अधिकारी बार बार ये सवाल पूछ रहे थे कि उन्हें सचिव क्यों बनाया गया है. इसका कारण था कि कास्त्रो की हत्या की सैकड़ों बार कोशिश की जा चुकी थी. क्यूबन अधिकारी बार- बार अजीत से पूछ रहे थे कि कास्त्रो के नजदीक पहुंचने के लिए लोगों को करोड़ों डॉलर घूस ऑफर की जा चुकी है. अजीत बताते हैं कि जिस रोज़ कास्त्रो का प्लेन दिल्ली लैंड हुआ, उन्हें रेडियो पर खबर मिली कि जिस रुट पर कास्त्रो जाने वाले हैं, उस पर आगे एक बंदूकधारी को पकड़ा गया है. बाद में पता चला कि ये व्यक्ति क्यूबा का ही था. और ख़ुफ़िया तरीके से कास्त्रो की सुरक्षा की निगरानी कर रहा था. बाद में उसे रिहा कर दिया गया. अजीत बताते हैं कि क्यूबा के अधिकारियों ने उनसे कहा था,
“हमारे लड़के बहुत शातिर है. अगर तुम उन्हें पकड़ सकते हो तो मतलब तुम काम के हो”
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