17 वीं सदी के उत्तरार्ध की बात है. राजौरी (कश्मीर) में एक राजपूत परिवार में एकलड़के का जन्म हुआ. नाम पड़ा लछमन देव. बचपन से ही तीर कमान का शौक़. घुड़सवारी औरशिकार में भी महारत हासिल थी. लड़कपन में घटी एक घटना ने लछमन के मन पर गहरा प्रभावडाला. हुआ यूं कि एक दिन लछमन जंगल में शिकार के लिए गया. वहां उसने एक हिरनी कोनिशाने पर लिया और तीर छोड़ दिया. तीर ने अपना काम कर डाला. हिरनी वहीं ढेर हो गई.लछमन उसके पास गया तो पता चला कि वो गर्भवती थी. पेट फाड़ कर देखा, तो वहां दोबच्चे थे. दोनों ने लछमन की आंखो के सामने दम तोड़ा.इस घटना के बाद लछमन का मन दुनिया से उचट गया. घर-बार छोड़ के वो साधु संन्यासी केभेष में दर-दर भटकने लगा. उसने अपना नाम भी बदल कर माधो दास रख लिया. घूमते-घूमतेमाधो दास नासिक के पास पंचवटी पहुंचा और वहां बाबा औघड़ नाथ का शिष्य बन गया. 21साल की उम्र में उसने नांदेड़ में अपना आश्रम बनाया और वहीं रहने लगा. आगे चलकरइलाक़े में उसकी खूब ख्याति फैली.सितम्बर 1708 में नांदेड़ के आश्रम में गुरु गोविंद सिंह पधारे. औघड़ जोगी माधो दासने ग़ुस्से में कहा, 'कौन हो तुम और मेरे आश्रम में आने की हिम्मत कैसे हुई.' गुरुसाहब ने जवाब दिया, 'सुना है तुम सर्वशक्तियों के मालिक हो. इतना तो तुम्हें पताहोना चाहिए.' उसी दिन से माधो दास ने चोग़ा छोड़कर खालसा धर्म अपना लिया. और वोगुरु गोविंद सिंह का शिष्य बन गया. गुरु ने नया नाम दिया. गुरबक्श सिंह.पंजाब की ओरगुरु गोविंद सिंह तब मुग़लों के निशाने पर थे. गुरु तेग़ बहादुर की हत्या के बादसिखों और मुग़लों के बीच 25 साल से जंग चल रही थी. जिसके चलते गुरु गोविंद सिंह कोआनंदपुर साहिब छोड़कर दक्षिण की ओर जाना पड़ा था. गुरु गोविंद सिंह ने गुरबक्श कोपंजाब की ओर रवाना किया. उन्होंने कहा कि वो पंजाब में मुग़लों के ख़िलाफ़ सिखों कानेतृत्व करें. सिख इतिहासकारों के हिसाब से गुरु गोविंद सिंह ने तब गुरबक्श को एकदो-धारी तलवार, 3 तीर और पांच साथी भी दिए.गुरु गोविंद सिंह (फ़ाइल फोटो)गुरु की आज्ञा मानते हुए गुरबक्श ने पंजाब की ओर कूच किया. लेकिन उनके पीछे गुरुगोविंद सिंह की हत्या कर दी गई. इसके बाद सिख साम्राज्य की बागडोर गुरबक्श नेसम्भाल ली. अपनी बहादुरी के चलते वो बंदा सिंह बहादुर के नाम से मशहूर हुए. 1708में औरंगज़ेब की मौत के बाद मुग़ल बागडोर आई बादशाह बहादुर शाह के पास. उसके भाईकाम बक्श ने दक्कन में विद्रोह कर दिया था. जिस कारण बहादुर शाह को दक्कन केकैम्पेन पर निकलना पड़ा.मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए बंदा बहादुर सतलज के किनारे पहुंचे. और वहां के किसानोंको अपनी सेना में जोड़ना शुरू किया. औरंगज़ेब की मौत के बाद सरहिंद में ज़मींदारोंकी ताक़त बढ़ चुकी थी. वो मनमाने ढंग से लोगों से टैक्स वसूली कर रहे थे. सामंतोंका उत्पीड़न आम बात थी, लेकिन दिल्ली की ताक़त कमजोर हुई, तो उन्होंने और फ़ायदाउठाना शुरू किया.सरहिंद में किसान एक काबिल लीडर की तलाश में थे. बंदा बहादुर के कहने पर उन्होंनेउनकी सेना में भर्ती होना शुरू कर दिया. उन्हें घोड़ों और पैसों से मदद दी. मुग़लमनसबदार ऐश फ़रमा रहे थे. कई सालों से सैनिकों को वेतन नहीं मिला था. ऐसे सैनिकोंने भी बंदा बहादुर की फ़ौज में जाना बेहतर समझा.गुरु का बदला10 हज़ार की फ़ौज हुई तो बंदा बहादुर ने सबसे पहले सोनीपत और कैथल में मुग़लों काख़ज़ाना लूटा. इसके बाद 1709 में बंदा बहादुर ने सरहिंद के एक क़स्बे को निशानाबनाया. इस कस्बे का नाम सामना था, यहां के गवर्नर वज़ीर ख़ां ने गुरु गोबिंद सिंहके बेटों की हत्या की थी. हमले का मकसद गुरु का बदला लेना था.सामना के बाद बारी आई सरहिंद की. बंदा बहादुर ने मई 1710 में सरहिंद पर हमला बोलाऔर वहां लौहगढ़ किले पर क़ब्ज़ा कर लिया. इतना ही नहीं लौहगढ़ को राजधानी घोषितकरते हुए बंदा बहादुर ने गुरु गोविंद सिंह के नाम वाले सिक्के भी जारी किए. इसकेकुछ समय बाद बंदा बहादुर ने उत्तर में राहोन, बटाला, पठानकोट और पूर्व मेंसहारनपुर, जलालाबाद, मुज़फ़्फ़रनगर पर क़ब्ज़ा कर लिया. अगस्त 1710 तक लाहौर सेपूर्व में पंजाब में सिखों का शासन हो चुका था. और इससे दिल्ली सल्तनत और लाहौर केबीच कम्यूनिकेशन में बाधा पड़ रही थी. बहादुर शाह दक्कन के कैम्पेन से लौटा तो उसनेसिख साम्राज्य पर नकेल कसने की ठानी.मुग़ल बादशाह बहादुर शाह और फ़र्रुख़सियर (तस्वीर: Wikimedia Commons)29 अगस्त 1710 की घटना है. उस रोज़ मुग़ल सेना में एक अजीब-सा फ़रमान जारी हुआ.बादशाह बहादुर शाह ने आदेश दिया कि मुग़ल सेना में जितने भी हिंदू हैं, उन्हें अपनीदाढ़ी कटवानी होगी. कारण कि मुग़ल सिखों पर हमला करने जा रहे थे. और वो नहीं चाहतेथे कि कोई भी सिख गलती से भी सेना में शामिल हो. मुग़ल सेना ने मुनीम ख़ां कीअगुवाई में सरहिंद पर आक्रमण किया. मुग़ल सेना के सामने बंदा बहादुर की फ़ौज कमजोरथी. लौहगढ के किले में ज़बरदस्त लड़ाई हुई, लेकिन 60 हज़ार की मुग़ल सेना ने लौहगढके किले का घेराव कर लिया. तब गुलाब सिंह ने बंदा की जगह ले ली. और बंदा भेष बदलकरकिले से निकल गए. उन्होंने चंबा के जंगलों का रुख़ किया.फरमान- जहां कोई सिख दिखे मार दोबंदा के इस तरह हाथ से निकल जाने से बहादुर शाह बहुत नाराज़ हुआ. 10 दिसंबर 1710 कोउसने फ़रमान जारी किया कि जहां कोई सिख दिखे उसे मार डाला जाए. बंदा ने जंगलों सेही सिखों को हुकुमनामे भेजे. ताकि वो दुबारा अपनी ताक़त इकट्ठा कर उनसे मिलें. दोसाल तक बंदा छुपते-छुपाते रहे. उनके बुलाने पर 1712 में कीरतपुर साहिब में सिखों नेराजा अजमेर चंद हो हराया. अजमेर चंद ने ही पहाड़ी राजाओं को गुरु गोविंद सिंह केख़िलाफ़ भड़काया था.1712 में बहादुर शाह की भी मौत हो गई. जिसके बाद उसके बेटों में सत्ता को लेकर ठनगई. मुग़लों में पड़ी फूट का फ़ायदा उठाते हुए बंदा बहादुर ने लौहगढ़ पर दुबाराकब्जा किया. बहादुर शाह की मौत के बाद मुग़लों की कमान फ़र्रुख़सियर ने अपने हाथमें ले ली थी. उसने सबसे पहले समद ख़ां को लाहौर का गवर्नर और उसके बेटे जकरियाख़ां को जम्मू का फ़ौजदार नियुक्त किया. फिर इन दोनों को बंदा बहादुर के ख़िलाफ़अभियान शुरू करने को कहा.3 साल के इस अभियान में समद ख़ां ने बंदा बहादुर को गुरदासपुर शहर से चार मील दूरगुरदास नांगल तक ढकेल दिया. वहां किले की सुरक्षा में बंदा और उनके साथी किसी तरहबचे रहे. समद ख़ां ने यूज़वल टैक्टिक्स का सहारा लेते हुए गुरदास नांगल किले केसारे रास्ते बंद कर दिए. ना खाना अंदर जा सकता था, ना पानी. बंदा पहले भी लौहगढ केकिले से भाग निकले थे. इसलिए हमले की बजाय समद ख़ां ने इंतज़ार की नीति अपनाई.बिना खाना पानी के आठ महीनेखाने के लाले पड़े तो बंदा और उनके साथी घास पत्तियों पर गुज़ारा करते रहे. उससे भीकाम ना बना तो घोड़ों और गधों का मांस खाना पड़ा. आठ महीने किसी तरह गुजरे लेकिनदिसंबर आते-आते दिखने लगा गया था कि बाहर निकलने के सिवा कोई चारा नहीं है. किले केदरवाज़े खुले तो मुग़ल सेना टूट पड़ी. आज ही के दिन यानी 17 दिसंबर 1715 को 300सिखों को क़त्ल कर लगभग 700 सिखों को बंदा बहादुर सहित गिरफ़्तार कर लिया गया.सरहिंद की लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर (तस्वीर: bhaisahib.org)फ़र्रुख़सियर ने आदेश दिया था कि बंदा उसे ज़िंदा चाहिए. मारे गए सिखों के सिर भालेमें टांग कर पहले लाहौर के बाज़ार में परेड करवाई गई. और फिर उन्हें दिल्ली लेज़ाया गया. औरंगज़ेब के जमाने से ही दुश्मनों की नुमाइश का रिवाज था. बंदा और उनकेसाथियों को देखने के लिए दिल्ली में भीड़ उमड़ी. समद ख़ां का बेटा ज़करिया ख़ांइनकी अगुवाई कर रहा था. मखौल उड़ाने के लिए बंदा को शाही पोशाक पहनाई गई. और हाथीके ऊपर पिंजरे में डाल रखा था. उनके बाकी साथियों को बिना जीन ऊंट पर बिठा रखा था.इनके आगे सिखों के सिर भूसे से भरकर नेजों और बांसों पर टंगे हुए थे.इन सब को बादशाह फ़र्रुख़सियर के आगे पेश किया गया. फ़र्रुख़सियर ने बंदा और उनके23 साथियों को मीर आतिश इब्राहिम-ओ-दीन-खां के हाथों सौंप दिया. और मीर आतिश नेउन्हें त्रिपोलिया जेल में कैद कर दिया. बंदा के बाकी साथियों को दिल्ली के कोतवालसरबराह खां के हवाले कर दिया गया. 5 मार्च 1716 को सजा का ऐलान हुआ. सजा थी, सर कलमकिया जाना.ना बोलते ही सिर धड़ से अलगएक बड़े से चबूतरे पर एक-एक आदमी को ले जाकर, एक ही सवाल पूछा जाता, क्या तुम इस्लामक़बूल करते हो?हर सिर ना में हिलता गया और धड़ से अलग होता गया. 7 दिनों तक चले इस क़त्ल-ए-आम सेकोतवाल सरबराह खां जब थक गया, तो उसने सजा पर रोक लगा दी. उसने फ़र्रुख़सियर से कहाकि मसले को ज़रा ठहरने दिया जाए. कुछ दिन जुल्म सहेंगे. तो होश आएगा और इस्लामक़बूल कर लेंगे.बंदा सिंह बहादुर को यातनाएं देते हुए (तस्वीर: Wikimedia Commons)3 महीने तक बंदा बहादुर को काल कोठरी में बंद रखा गया. सवाल का जवाब तब भी ना हीथा. अंत में 9 जून 1716 को बंदा बहादुर की भी मौत का हुक्म जारी कर दिया गया. सजासे पहले एक आख़िरी उपाय किया गया. बंदा को अच्छे कपड़े पहना कर कुतुबुद्दीनबख्तियार काकी की दरगाह पर ले ज़ाया गया और दरगाह के चारों ओर घुमाया गया.वहां पर कोतवाल ने कहा, 'आख़िरी बार पूछ रहा हूँ मौत या इस्लाम?'बंदा अपने जवाब पर अड़े थे. कोतवाल को सूझी तो वो उनके चार साल के बेटे अजय सिंह कोसामने ले आया. बेटे की गर्दन पर तलवार रख बंदा से फिर वही सवाल दोहराया गया. बंदाकी गरदन इनकार में पूरी घूमी भी नहीं कि जल्लाद ने अजय का सर कलम कर दिया. इसके बादउसने शव से बच्चे का कलेजा निकाला और बंदा सिंह के मुंह में ठूंस दिया. बंदा तब भीडिगे नहीं. उन्होंने मौत चुनी. इसके बाद जल्लाद ने एक ख़ंजर से उनकी दोनों आंखेंफोड़ दीं. गर्म सलाख़ों से उनके शरीर को दागा गया. मौत से पहले जितनी सम्भव थी,यातना दी गई. शरीर से मांस नोचा गया. और अंत में शरीर के टुकड़े काटकर अलग-अलग करदिए गए.बंदा की मौत के दो साल बाद मराठाओं ने फ़र्रुख़सियर को जंग में हरा दिया. मुग़लसाम्राज्य इसके बाद जहां ढलता चला गया, वहीं महाराजा रणजीत सिंह ने काबुल, श्रीनगरऔर लाहौर पर क़ब्ज़ा कर उत्तर में एक विशाल सिख साम्राज्य बनाया.