आज 29 सितंबर है और आज की तारीख़ का संबंध है एक तैराक से.दुनिया में स्त्री अधिकारों और उनकी बराबरी का विमर्श एक बड़ा मुद्दा है. शनेल,कॉस्मेटिक्स का एक बड़ा ब्रांड है. इस ब्रांड का नाम पड़ा है मशहूर फ़्रेंचडिज़ाइनर कोको शनेल के ऊपर. उनकी माने तो इस विमर्श में एक मूलभूत कमी है. उनकाकहना था, Trying to be a man is a waste of a woman. यानी एक औरत के लिए सिर्फ़आदमी के बराबर बनने की कोशिश उसके सामर्थ्य की बर्बादी है. बात सही भी है. पूरेमानव इतिहास में महिलाएं ना सिर्फ़ पुरुषों के बराबर खड़ी हुई हैं बल्कि उनसे आगेनिकल कर भी दिखाया है. आज ही के दिन 1959 में 18 साल की एक लड़की ने ऐसा ही कारनामाकरके दिखाया था. नाम -आरती साहा.ओलिंपिक के पांच छल्लेदुनिया के बारे में जानने के लिए दुनिया को जानना भी ज़रूरी है. इसलिए आज शुरुआतभूगोल से. ओलिंपिक खेलों के झंडे में 5 छल्ले होते हैं, आपस में जुड़े हुए. ये 5छल्ले 5 महाद्वीपों की एकता के प्रतीक हैं. यूरोप, एशिया, अमेरिका, अफ्रीका औरओशिनिया. ओशिनिया यानी न्यूज़ीलैण्ड और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप.इन छल्लों को “पियरे डी कुबर्तिन” ने 1912 में डिज़ाइन किया था (तस्वीर: AFP)अब आप कहेंगे भैया लल्लनटॉप, बचपन में तो पढ़ाया गया था कि महाद्वीप सात हैं. तोबात दरअसल ये है कि तब साउथ और नॉर्थ अमेरिका महाद्वीपों को एक मान लिया गया था. और1900 की शुरुआत में अंटार्कटिका ग्लोबल वॉर्मिंग का शिकार नहीं हो रहा था. वहांइंसानों का कोई नामोनिशान ही नहीं था तो वहां का ओलिंपिक खेलों से कोई रिश्ता भीनहीं था. इसलिए पांच महाद्वीपों के 5 छल्ले हुए.इन 5 महाद्वीपों के बीच में अथाह-अनंत समंदर है. लेकिन कहीं-कहीं महाद्वीप इतनेनज़दीक है कि उनके बीच में समंदर के संकरे रास्ते बन जाते हैं. इन्हें कहते हैं,‘स्ट्रेट’. जैसे,पाल्क स्ट्रेट- हिंद महासागर में भारत और श्रीलंका के बीच स्ट्रेट ऑफ़ जिब्रॉल्टर-अटलांटिक महासागर में यूरोप और अफ़्रीका के बीच डार्डनेल्स- एशिया और यूरोप के बीचबॉसफोरस या स्ट्रेट ऑफ़ इस्तांबुल- एशिया और यूरोप के बीच पनामा कनाल- अटलांटिक औरप्रशांत महासागर के बीच स्ट्रेट ऑफ़ डोवर- फ़्रांस और इंग्लैंड के बीच इंग्लिश चैनलमें मौजूद सबसे संकरा रास्ता.अब आज के किस्से का ओलिम्पिक से भी रिश्ता है और इन ‘स्ट्रेट्स’ से भी. आदमी नेतैरना कब सीखा, इसके बारे में बताना कठिन है, लेकिन ईसा से 10 हज़ार साल पुरानी केवपेंटिंग्स में तैरने की तस्वीरें मिलती हैं. सभ्यता आई तो तैराकी एक खेल बन गया औरओलिम्पिक में भी इसका कंपीटिशन होने लगा. 1952 में ओलिम्पिक का आयोजन हेलसिंकी मेंहुआ. जो उत्तरी यूरोप के एक देश फ़िनलैंड की राजधानी है. भारत में इस नाम की पहचाननेटफ़्लिक्स के शो ‘मनी हाइस्ट’ के पॉप्युलर होने के बाद हुई.ओलिम्पिक में आरतीख़ैर 1952 के ओलिम्पिक खेलों में भारत ने पहली बार एक पूर्ण गणराज्य के तौर पे भागलिया. ध्यानचंद तब रिटायर हो चुके थे. लेकिन हॉकी में भारत की टीम तब भी विश्व मेंनम्बर एक थी. अपेक्षा के अनुरूप हॉकी में इंडिया को गोल्ड मिला. और कुश्ती में भीभारत ने एक कांस्य पदक जीता.1952 में गोल्ड मेडल जीतकर भारत ने हॉकी में लगातार 5 गोल्ड जीतने का रिकॉर्ड बनाया(फ़ाइल फोटो)भारत ने आज तक ओलिम्पिक में तैराकी में एक भी पदक नहीं जीता. उस साल भी भारत की टीमतैराकी में भाग लेने गई थी. जिसमें कोई पुरुष ना होकर सिर्फ़ दो लड़कियां थीं, आरतीसाहा और डॉली नज़ीर. आरती की उम्र तब सिर्फ़ 11 साल, 11 महीने और 305 दिन थी. जैसेही आरती ने पूल में डाइव लगाई, वो भारत की ओर से ओलिम्पिक में भाग लेने वाली सबसेयुवा प्रतिभागी बन गई. ये रिकॉर्ड आज भी क़ायम है.उम्र छोटी और तब के रूढ़िवादी समाज में एक लड़की होना. सोचिए कितना कठिन रहा होगाआरती का सफ़र. जब आज भी सानिया मिर्ज़ा के खेल के बजाय उनकी स्कर्ट के साइज़ कोलेकर फ़तवे जारी होते रहते हैं. इन्हीं दिनों सूदूर फ़्रांस में सिमोन डी ब्यूवारस्त्री विमर्शों पर एक किताब लिख रही थीं, “द सेकंड सेक्स”. जिसमें उन्होंने लिखा“One is not born, but rather becomes, a woman.” यानी स्त्री पैदा नहीं होती बल्किबना दी जाती है. इंटलेक्ट पर ज़ोर ना डालिए. किसी भी स्त्री से उसके वयस्क होने काअनुभव पूछिए. तुरंत इस वाक्य का अर्थ समझ आ जाएगा. आरती साहा ने ओलिम्पिक के बादअगले 7 साल इसी वयस्क होने की प्रक्रिया में गुज़ारे. ओलिम्पिक में मिली निराशा केकारण उन्होंने खुद को तैराकी की प्रैक्टिस में झोंक दिया. इस दौरान वो आठ-आठ घंटेलगातार तैरने की प्रैक्टिस करतीं.आरती का बचपनइंटरनेट के सनसनीख़ेज़ दावों के विपरीत आदमी का बच्चा पैदा होने से ही तैरने नहींलगता. नैचुरल रिफ़्लेक्स के कारण वो पानी में सांस ज़रूर रोक लेता है, लेकिन तैरनहीं सकता. मनुष्य की तरह ही लगभग सभी स्तनपायी जानवर तैरने की काबिलियत रखते हैं.सिवाय दो के, एक जिराफ़ और दूसरा हमारे नज़दीकी रिश्तेदार ‘एप्स’.आरती साहा और मिहिर सेन (तस्वीर: Getty)आरती ने भी बचपन से ही तैराकी के गुर सीख लिए थे. 24 सितंबर 1940 को आरती का जन्मएक मिडिल क्लास परिवार में हुआ. केवल 2 साल की उम्र में मां को खो देने के बादउन्हें दादी ने पाला. कोलकाता के चम्पातला घाट पर पिता के साथ तैरने जाती थीं. पिताने प्रतिभा देखी तो एक स्विमिंग स्कूल में भर्ती कर दिया.क़िस्मत से आरती को छोटी उम्र में ही सचिन नाग जैसे गुरु मिल गए. जो एशियन गेम्समें भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीतकर लाए थे. 1946 में 5 साल की उम्र में आरती नेएक लोकल कंपीटीशन में अपना पहला गोल्ड मेडल जीता. 1951 तक वो भारत में 100 मीटरब्रेस्ट स्ट्रोक में नेशनल रिकॉर्ड तोड़ चुकी थीं. इसके अलावा स्टेट और नेशनल लेवलकंपीटीशन्स में वो 22 पदक हासिल कर चुकी थीं.कंपीटीशन लेकिन बैर नहीं100 मीटर ब्रेस्ट स्ट्रोक में उन्होंने जिनका रिकॉर्ड तोड़ा. वो थी डॉली नज़ीर. जो1952 में भारतीय ओलिम्पिक स्विमिंग टीम में आरती की साथी थीं. 27 सितंबर 1958 कोभारत के चैम्पियन तैराक मिहिर सेन ने इंग्लिश चैनल पार किया. ऐसा करने वाले वो पहलेभारतीय और दूसरे एशियाई व्यक्ति थे. उसी साल 18 अगस्त को बांग्लादेश के ब्रोजेन दासइंग्लिश चैनल पार कर ऐसा करने वाले पहले एशियाई बन गए थे.बांग्लादेश तब पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था. ‘‘कंपीटीशन लेकिन बैर नहीं’ कि जोमिसाल हमने कुछ दिन पहले देखी थी (2021 तोक्यो ओलिम्पिक के दौरान ). उसी की तर्ज़पर आरती ने ब्रोजेन दास को बधाई संदेश भेजा.फ़्रांस और ब्रिटेन के बीच इंग्लिश चैनल (तस्वीर: Getty)ब्रोजेन दास ने ख़त का जवाब देते हुए आरती से कहा कि वो भी ऐसा ही कर सकती है. इतनाही नहीं उन्होंने अगले साल के इवेंट के लिए कमिटी को आरती का नाम भी सुझाया.ब्रिटेन तक फ़्लाइट का खर्चा उठाना आरती के बस का नहीं था. सरकार से मिलने वालाखेलों का बजट भी बहुत सीमित हुआ करता था. तब आरती की मदद को मिहिर सेन आगे आए.मिहिर ने चंदा इकट्ठा करवाया. लेकिन वो भी कम पड़ गया.आरती ने तब भी हिम्मत ना हारी. उनके लिए सवाल ये नहीं था कि उन्हें इवेंट में भागलेने कौन देगा. सवाल ये था कि ऐसा करने से उन्हें रोकेगा कौन. उन्होंने मिहिर कीमदद से बंगाल सरकार से गुज़ारिश की. तब मुख्यमंत्री डॉक्टर बिधान रॉय और PM नेहरूआरती की मदद को आगे आए. और उन्होंने ब्रिटेन तक की यात्रा का इंतज़ाम करवाया.इंग्लिश चैनल पारइवेंट की तारीख़ 27 अगस्त 1959 थी. इसमें 23 देशों के 58 लोग भाग लेने पहुंचे थेजिनमें 5 महिलाएं भी थीं. आरती को फ़्रांस के तट केप ‘ग्रिस नेज़’ से इंग्लैंड केसैंडगेट तट तक तैर कर जाना था. दोनों तटों के बीच 67 किलोमीटर का फ़ासला था. मौसमसाफ और आरती का इरादा मज़बूत था. लेकिन क़िस्मत ने धोखा दिया और आरती की पाइलट बोटने आने में आधे घंटे की देरी कर दी.1999 में डाक विभाग की तरफ़ से आरती के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया(तस्वीर: wikimedia)इसके बावजूद आरती ने रेस शुरू की और 37 मील का फ़ासला तय कर लिया. लेकिन तब तक मौसमकरवट बदल चुका था. समंदर की लहरें इतनी तेज हो गई थीं कि वो आरती को पीछे धकेलनेलगीं. इसके बावजूद 6 घंटे तक वो लहरों से जद्दोजहद करती रहीं. अंत में उन्हें समंदरसे हार मानकर वापस लौटना पड़ा. आरती ने दुबारा प्रयास का फ़ैसला किया. इसके बाद आजही के दिन यानी 29 सितंबर 1959 को आरती ने 16 घंटे 20 मिनट में इंग्लिश चैनल को पारकिया. सैंडगेट तट पर तिरंगा फहराते ही वो और ऐसा करने वाली एशिया की पहली महिला बनगईं. उनकी उम्र तब सिर्फ़ 18 साल थी.इस कारनामे को अंजाम देने के लिए सरकार ने 1960 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानितकिया. ये सम्मान पाने वाले वो पहली महिला खिलाड़ी थीं. 1999 में डाक विभाग की तरफ़से उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया. ऊपर हमने आपको दुनिया में महासागरों औरमहाद्वीपों को जोड़ने वाले 5 स्ट्रेट्स के बारे में बताया था. 1966 में मिहिर सेनने इन पाचों को एक ही साल में तैरकर पार किया. और गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपनानाम दर्ज़ कराया.