आज 24 सितंबर है और आज की तारीख़ का संबंध है एक आतंकी हमले से.क्या हुआ था 24 तारीख़ को?गुजरात के गांधीनगर स्थित अक्षरधाम मंदिर में रोज़ की तरह भीड़ इकट्ठा है. शाम के 4बजे मंदिर के गेट नम्बर 3 के आगे एक सफ़ेद एम्बेसडर कार आकर रुकती है. उसमें से दोलोग उतरते हैं. दोनों के पास एक पिट्ठू बैग है और दोनों ने ही एक जैसी जैकेट पहनरखी है.ये दोनों अपनी बंदूक़ें निकालते हैं और 7 फुट की दीवार फांद कर मंदिर के अहाते मेंबने एम्यूजमेंट पार्क में एंटर हो जाते हैं. मंदिर की मुख्य इमारत के आगे 200 फ़ीटलम्बा एक रास्ता है. जिसके अग़ल बग़ल बुक स्टाल लगे हैं. लोग किताबें ख़रीदने औरबच्चे खेलने में मशगूल हैं. तभी चारों तरफ गोलियों की आवाज़ गूंजने लगती है. येआतंकियों की बंदूक़ से निकलती गोलियों की आवाज़ है.अक्षरधाम मंदिर से सभी श्रद्धालुओं को लगभग 7:30 बजे तक सुरक्षित बाहर निकाल लियागया था (तस्वीर: AFP)पार्क को पार करते हुए दोनों आतंकी मुख्य रास्ते तक पहुंच जाते हैं. इनके रास्तेमें जो पड़ा, इन्होंने उसे गोली से भून डाला. सुमित्रा नाम की एक महिला अपने दोबच्चों को मंदिर घुमाने आई हैं. गोलियों की आवाज़ सुनकर वो बच्चों के साथ एग्ज़िटगेट की तरफ़ भागती हैं. बंदूक़ की एक गोली सुमित्रा के पैर में लगती है, और वो गिरजाती हैं. दोनों आतंकी सुमित्रा के पास पहुंचते हैं. सुमित्रा उनसे अपने बच्चों कीजान की भीख मांगती है. दोनों हां में सिर हिलाते हैं और मुड़कर सुमित्रा के तीन औरचार साल के दोनों बच्चों को गोलियां मार देते हैं.विधायक हीरा सोलंकी की पिस्तौलइत्तेफ़ाक से विधायक हीरा सोलंकी भी उस दिन मंदिर में पूजा करने पहुंचे हैं. और साथमें अपनी लाइसेन्सी पिस्तौल भी लेकर आए हैं. सोलंकी पिस्तौल निकालकर आतंकियों कीतरफ़ गोली चलाते हैं. इससे आतंकियों को कोई नुक़सान तो नहीं होता लेकिन वो कुछकन्फ़्यूज़ ज़रूर हो जाते हैं. आतंकियों को लगता है कि पुलिस मंदिर तक पहुंच गई है.हड़बड़ी में वो मुख्य मंदिर की तरफ़ दौड़ लगाते हैं. इस आपाधापी में क़रीब 300लोगों को बाहर भागने का मौक़ा मिल जाता है.मुख्य मंदिर के अंदर क़रीब 30 लोग पूजा में लगे हुए हैं. सुपरवाइज़र खोदसिंह जाधवकी नज़र आतंकियों पर पड़ती है. वो मुख्य मंदिर के गेट से कुछ बाहर खड़े हुए हैं.दोनों आतंकियों का इरादा जानकर जाधव भी मंदिर की तरफ़ भागते हैं. आतंकी उनके बाएंपैर में गोली मार देते हैं. जाधव इसके बावजूद भागना जारी रखते हैं. क्योंकि 200फ़ीट की इस रेस के रिज़ल्ट पर 30 लोगों की ज़िंदगी और मौत निर्भर है.कौन थे ये आतंकी?ये जानने के लिए हमें इसके अगले दिन यानी 25 सितंबर की तारीख़ पर जाना होगा. उस दिनसुरक्षा बलों के हाथ आतंकियों का एक लेटर लगा. इसमें एक आतंकी संगठन का ज़िक्र था,तहरीक-ए-कसास यानी मूवमेंट फ़ॉर रिवेंज. इस संगठन का नाम पहली बार सुना गया था.लेटर के मुताबिक़ आतंकी उसी साल हुए गुजरात दंगों में मुस्लिम बच्चों और औरतों कीमौत का बदला लेना चाहते थे. और इसी इरादे से अक्षरधाम मंदिर में दाखिल हुए थे. एकसवाल था कि ये लोग कहां के रहने वाले थे. इसका सुराग मिला पाकिस्तान में छपे एकअख़बार से, जिसमें दोनों आतंकियों की फोटो और नाम के साथ एक शोक संदेश छपा था.दोनों का ताल्लुक़ जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से भी था.मुख्य मंदिर का दरवाज़ा (तस्वीर: AFP)एक और सवाल ये था कि ये लोग इतने बड़े मंदिर में बिना किसी रोकटोक के इतनी आसानी सेकैसे घुस गए?ध्यान दीजिए कि अक्षरधाम मंदिर गांधीनगर के VIP इलाक़े में बना हुआ है. गुजरात केमुख्यमंत्री के घर से इतना नज़दीक कि थोड़ा ताक़त लगाकर पत्थर फेंकों तो मंदिर केगेट तक तो पहुंच ही जाए. कुछ ही दूरी पर गुजरात का राज भवन भी है. इतना ही नहीं,मंदिर से इंडियन एयर फ़ोर्स (IAF) के साउथ- वेस्टर्न एयर कमांड तक दूरी भी पैदलनापी जा सकती है. 2002 हमले के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कई धमकियां मिल रहीथीं. इसी के चलते इस एरिया की सुरक्षा दोगुनी कर दी गई थी. मंदिर पर हमले से पहलेIB ने कई चेतावनियां भी दी थीं. IB को अंदेशा था कि किसी मंदिर पर हमला हो सकता है.सोमनाथ मंदिर के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए उसे टार्गेट समझा गया. और उसकेसुरक्षा इंतज़ाम कड़े कर दिए गए. लेकिन अक्षरधाम के बारे में किसी को ख़्याल नहींआया. जिसकी सुरक्षा ना के बराबर थी. मंदिर के मेन गेट पर सिक्योरिटी के लिए सिर्फ़वॉलंटियर तैनात थे.सुरक्षा में ढील का एक और कारण ये भी था कि आतंकी हमलों में हाई प्रोफ़ाइल लोगों कोटार्गेट किया ज़ाता था. और तब के हिसाब से आम लोगों पर हमले की ये रेयर घटना थी.आगे क्या हुआ?पैर में गोली लगने के बावजूद सुपरवाइज़र जाधव तेज़ी से दौड़ते हुए मुख्य मंदिर केअंदर दाखिल हुए. अगर आप अक्षरधाम गए हैं तो मंदिर के दरवाज़ों से वाक़िफ़ होंगे.इनकी लम्बाई क़रीब 15 फुट है और पुराने राजा महाराजाओं के महल सरीखे हैं. एक आदमीके लिए इन दरवाज़ों को अकेले बंद कर पाना आसान काम नहीं. लेकिन जाधव ने अकेलेदरवाज़ों को बंद किया और उनमें कुंडी लगा दी.जाधव की इस होशियारी और हिम्मत का महत्व सिर्फ़ जान बचाने तक सीमित नहीं था. अगरआतंकी मुख्य मंदिर के अंदर घुस जाते तो वो लोगों को होस्टेज बना सकते थे. जिससेसुरक्षा बलों के लिए सिचुएशन और भी मुश्किल हो जाती. बाद में इन लोगों के पास काजूऔर किशमिश के पैकेट भी मिले. जैसे कि 2001 में संसद पर हुए हमले के दौरान मिले थे.यानी इनका इरादा लम्बा गेम खेलने का था. तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदीका भी ऐसा ही सोचना था. घटना की खबर लगते ही उन्होंने डिप्टी PM लालकृष्ण आडवाणी कोफ़ोन मिलाया और NSG कमांडो का दस्ता भेजने की दरखास्त की.तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी (तस्वीर: AFP)उधर शाम के 5.30 बज़े तक मुख्य मंदिर में घुसने का कोई ज़रिया ना देख दोनों आतंकीएग्जिबिशन हॉल की तरफ़ मुड़े. जहां एक मल्टीमीडिया थिएटर भी था. थिएटर में मौजूदवॉलंटियर्स ने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया लेकिन हड़बड़ी में किसी को एग्ज़िट गेटका ख्याल नहीं आया. दोनों आतंकी एग्ज़िट गेट से अंदर घुसे और वहां मौजूद लोग़ों परअंधाधुंध गोलियां चला दीं.इनमें से एक गोली हॉल के केयरटेकर हरी धरिया को लगी लेकिन वो ज़िंदा थे. एक आतंकीने हरी से पूछा, “अभी तक तुम ज़िंदा हो?” हरी ने जवाब दिया, “जी हां, आपकी कृपासे." आतंकी ने तब उससे कहा, “ठीक है, अगर ज़िंदा रहना चाहते हो, तो ऊपर जाने कारास्ता बताओ." हरी ने उन्हें ऊपर जाने वाली एक सीढ़ी का रास्ता बता दिया. दोनों छतपर चढ़कर ऊपर वाले कॉरिडोर में घुस गए. ये परफेक्ट वेंटेज पॉइंट था. यहां से वोमंदिर के अंदर-बाहर चारों तरफ़ नज़र रख सकते थे.गुजरात पुलिस और NSG कमांडो5.35 तक गुजरात पुलिस भी मंदिर तक पहुंच चुकी थी. आतंकियों की एक गोली DSP आर. आर.ब्रह्मभट्ट के हाथ में लगी जिसके कारण उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. उनका साहसदेखिए कि वो गोली निकलवा कर आधे घंटे में दुबारा दुबारा ड्यूटी पर हाज़िर थे.गुजरात पुलिस का आतंकियों से पहली बार पाला पड़ रहा था. दोनों तरफ़ से हेवीफ़ायरिंग हो रही थी. इस मुठभेड़ में दो पुलिसवाले अर्जुन सिंह गमेटी और अल्ला रक्खाशहीद हो गए.NSG कमांडो की टीम (तस्वीर: AFP)NSG के पहुंचने में अभी कुछ घंटे लगने थे. ऐसे में अंधेरा होने तक स्टेट पुलिस नेटेम्पल को चारों तरफ़ से घेर लिया था. पुलिस को ये सुनिश्चित करना था कि किसी भीतरह आतंकियों को भागने का मौक़ा नहीं मिले. हरियाणा के मानेसर स्थित NSG बेस में उसदिन ब्रिगेडियर राज सीतापथि टेनिस खेल रहे थे. शाम 5.30 पर उनका फ़ोन बजा. सीतापथिने फ़ोन उठाया. दूसरे तरफ़ से सिर्फ़ एक संदेश था, "Get moving in 30 minutes.”यानी “तीस मिनट में निकलने की तैयारी करो” ब्रिगेडियर सीतापथि स्पेशल एक्शन ग्रुप(ASG) के प्रमुख थे,. ASG NSG की इलीट काउंटर टेररिस्ट विंग है, जो होस्टेज सिचुएशनके लिए ख़ास तौर पर ट्रेंड होती है. घंटे भर के अंदर सीतापथि और उनके आदमी दिल्लीपालम हवाई अड्डे पहुंच चुके थे. यहां एक स्पेशल प्लेन उनका इंतज़ार कर रहा था.प्लेन के अंदर ही ऑपरेशन का प्लान बनाया गया. रात 10.10 PM पर NSG के दो ट्रक मंदिरके गेट पर रुके. बाहर खड़ी भीड़ ने नारा लगाया भारत माता की जय.ऑपरेशन वज्र शक्तिकुछ ही देर में NSG कमांडोज़ ने अपनी पोजिशन ले ली. ब्रिगेडियर सीतापथि के लिए सबसेबड़ी दिक़्क़त थी कि मंदिर के आसपास कोई ऐसी इमारत नहीं थी जहां स्नाइपर तैनात किएजा सकें. आतंकी भी तब तक टॉयलेट कॉम्प्लेक्स में जा छुपे थे. NSG के पास एक ऑप्शनथा कि टॉयलेट कॉम्प्लेक्स को ही रॉकेट लॉंचर से उड़ा दिया जाए. लेकिन तब तक ऑपरेशनब्लू स्टार की यादें धुंधली नहीं हुई थीं. डिप्टी PM आडवाणी ने सख़्त निर्देश दियाथा कि मंदिर को कोई डैमेज नहीं होना चाहिए.रात 12 बजे बाद आतंकी मंदिर के साउथ ईस्ट कॉर्नर तक पहुंच गए. यहां अशोक के पेड़ोंका झुरमुट था. उस तरफ़ रोशनी का कोई इंतज़ाम भी नहीं था इसलिए ये छुपने की एक अच्छीजगह साबित हुई. ब्रिगेडियर सीतापथि के ऑर्डर पर सूबेदार सुरेश यादव कुछ लोगों कोलेकर झुरमुट के तरफ़ बढ़े. उन्होंने बुलेट प्रूफ़ जैकेट और हेल्मेट पहन रखा था.लेकिन तभी एक गोली आकर हेल्मेट और जैकेट के बीच उनके गले में लगी. जिसके कारण वोवहीं पर शहीद हो गए.अपने साथी की मरहमपट्टी करता हुआ एक कमांडो (तस्वीर: AFP)और कैजुअल्टी ना हो इसलिए ब्रिगेडियर सीतापथि ने निर्णय लिया कि सुबह होने काइंतज़ार किया जाए. सुबह की पहली किरण होते ही NSG ने फुर्ती दिखाते हुए दोनोंआतंकियों को मार गिराया.समस्या यहीं पर ख़त्म नहीं हुई. याद रखिए कि गोधरा ट्रेन हादसे को सिर्फ़ 6 महीनेहुए थे. जिसके बाद पूरा गुजरात दंगों की आग में झोंक दिया गया था. ऐसी टेंशन के बीचये आतंकी घटना एक और चिंगारी भड़का सकती थी. लेकिन इस बार राज्य और केंद्र सरकारदोनों चौकन्नी थीं. उप प्रधानमंत्री आडवाणी 24 की शाम ही गुजरात पहुंचे. तबप्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मालदीव के दौरे पर थे. अपना दौरा बीच में हीकैन्सिल किया और 25 सितम्बर तक वो भी अक्षरधाम पहुंच गए थे. सरकार की चिंता का एकऔर कारण था. दरअसल उसी साल गुजरात में विधानसभा चुनाव होने थे. लेकिन इलेक्शन कमीशनने दंगों के बाद की स्थिति को देखते हुए नवम्बर तक इलेक्शन पर रोक लगा दी थी.गुजरात सरकार ने EC के निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की हुईथी.ऐसे में यदि दुबारा अशांति की स्थिति पैदा होती तो गुजरात सरकार को भारी शर्मिंदगीउठानी पड़ती. वो भी तब जब उनकी जीत लगभग तय मानी जा रही थी. 2 सितम्बर को विश्वहिंदू परिषद (VHP) ने पूरे गुजरात बंद का ऐलान किया. लेकिन सरकार ने सुरक्षा केकड़े इंतज़ाम किए थे. इस कारण स्थिति कमोबेश शांति पूर्ण बनी रही.पॉलिटिक्स ऑफ़ टेररइससे एक बात तो तय हो जाती है. यदि सरकार और प्रशासन चाहे तो दंगों को रोका जा सकताहै. ख़ैर राजनीति को परे रखते हुए इतिहास की बात करते हैं. इस घटना का ऐतिहासिकमहत्व समझने के लिए इसके बाद की एक घटना को जानिए.हमले के बाद शांति बरकरार रखने में अक्षरधाम मंदिर ट्रस्ट का भी बड़ा हाथ था. 14दिन बाद जब मंदिर खुला तो वहां एक प्रार्थना सभा रखवाई गई. मंदिर प्रमुख स्वामीमहाराज ने सभी मारे गए लोगों की आत्मा के लिए प्रार्थना की. चौंकाने वाली बात ये थीकि अंत में उन्होंने दोनों आतंकियों की आत्मा की शांति की प्रार्थना भी की. इसकेबावजूद वहां मौजूद सभी लोग शांत थे. ना कोई नारा लगाया गया. ना ही किसी समुदायविशेष को दोषी ठहराया गया.हमले का बाद हालत का जायज़ा लेते मुख्यमंत्री और उप प्रधानमंत्री (तस्वीर: AFP)ब्रिगेडियर सीतापथि ने अक्षरधाम घटना पर एक केस स्टडी बनाई. नाम था, "AkshardhamResponse: How to challenge an attack with calm and peace." और आने वाले सालों मेंHyderabad स्थित Sardar Patel Police Academy और विभिन्न आर्मी ट्रेनिंग सेशन्स मेंइस स्टडी को पेश किया. उन्होंने बताया कि घटना के बाद का रिस्पांस बिलकुलअविश्वसनीय था.उन्होंने अपनी स्टडी में लिखा, “मैंने अपनी प्रोफेशनल लाइफ़ में बहुत से वॉयलेंटएन्काउंटर्स का सामना किया है. लेकिन अक्षरधाम के बाद लोगों का रिस्पांस मेरे लिएबहुत बड़ा सबक़ था. ऑपरेशनल और फ़िलॉसॉफ़िकल दोनों नज़रिए से” आप में कई लोगों कोबदला लेने की बात जायज़ लगती होगी. ग़ुस्सा आना भी स्वाभाविक है. लेकिन कुछ भीपक्का कर लेने से पहले दो बातें याद रखिएगा. पहली कि आतंकियों का नाम भले हीमुहम्मद अमजद और हाफ़िज़ यसीन था. लेकिन शहीद होने वाले पहले पुलिस वाले का नाम भीअल्ला रक्खा था.दूसरी बात,दंगों से लोगों के बदले की प्यास बुझे ना बुझे, आतंकियों के मंसूबे ज़रूर पूरे होजाते हैं.क्योंकि याद रखिए कि आतंकी घटना कोई मिलिटरी ऑपरेशन नहीं होता. लोगों को आतंकितकरना, ग़ुस्सा दिलाना हमेशा ही एक पॉलिटिकल टूल होता है. समाज में दरार पड़ने सेआतंकियों की पॉलिटिकल जीत होती है. मारते वक्त लोगों की गिनती के बजाय उससे पैदाहोने वाला आफ़्टर इफ़ेक्ट ही आतंकियों का मुख्य उद्देश्य होता है.