The Lallantop
Advertisement

क्या है ये थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी, जिसके चलते तमिलनाडु में BJP प्रदेश अध्यक्ष और DMK मंत्री लड़ पड़े?

BJP के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई और DMK के मंत्री PTR के बीच ज़ुबानी जंग हुई. क्या है ये तमिलनाडु भाषा विवाद? हिंदी पर दशकों से जारी ये लड़ाई कब ख़त्म होगी?

Advertisement
Tamilnadu hindi imposition row
तमिलनाडु की DMK सरकार में मंत्री और CM स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन (फोटो सोर्स- ANI)
pic
शिवेंद्र गौरव
15 जनवरी 2024 (Updated: 15 जनवरी 2024, 17:14 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

तमिलनाडु (Tamilnadu) के CBSE एजुकेशन सिस्टम स्कूलों में तीसरी भाषा नीति (Third Language Policy) लागू करने को लेकर बवाल हो गया है. तमिलनाडु BJP के अध्यक्ष के अन्नामलाई और सत्ताधारी दल DMK के मंत्री पलानीवेल त्यागराजन (PTR) के बीच ज़ुबानी जंग छिड़ गई है. केंद्र सरकार राज्य में तीसरी भाषा नीति को लागू करना चाहती है. जबकि DMK सरकार लगातार इसका विरोध कर रही है. तमिलनाडु सहित देश के दक्षिणी राज्यों में भाषा विवाद क्यों है, हिंदी को थोपे जाने (hindi imposition) का आरोप क्यों लगाया जाता है, केंद्र की क्या कोशिशें हैं और उत्तर-दक्षिण के बीच साझा विरासत विकसित करने के लिए काशी-तमिल संगमम जैसे आयोजनों के बाद भी ये विवाद सुलझता क्यों नहीं है, इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से जानेंगे.

ये भी पढ़ें: 'कर्नाटक में हो तो कन्नड़ सीखो, एटीट्यूड मत दिखाना, भीख मांगने आते हो', ऑटो के मैसेज से हंगामा

तीसरी भाषा नीति: पुराना विवाद

पहले इसे समझते हैं. तीन भाषा की नीति हिंदी, अंग्रेजी और संबंधित राज्यों की अपनी क्षेत्रीय भाषा से जुड़ी है. पूरे देश में हिंदी भाषा में पढ़ाई करवाना, एक पुरानी चली आ रही व्यवस्था का ही हिस्सा था. सबसे पहले साल 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे आधिकारिक रूप से शामिल किया गया था. त्रि-भाषा सूत्र या थ्री लैंग्वेज पॉलिसी कोई नई बात नहीं है. इसकी चर्चा आजादी के कुछ वक़्त बाद ही यूनिवर्सिटीज में शिक्षा से जुड़े सुझावों को लेकर बनाए गए राधाकृष्णन आयोग (1948-49) की रिपोर्ट से ही शुरू हो गई थी. इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि प्रादेशिक भाषा, हिंदी और अंग्रेजी भाषा में शिक्षा दी जाए. इसके बाद साल 1955 में डॉ लक्ष्मण स्वामी मुदलियार के नेतृत्व में माध्यमिक शिक्षा आयोग बना. इस आयोग ने राज्य की अपनी क्षेत्रीय भाषा के साथ हिंदी की पढ़ाई का द्विभाषा सूत्र (टू लैंग्वेज पॉलिसी) दिया और इंग्लिश या किसी और एक भाषा को वैकल्पिक भाषा बनाने का प्रस्ताव दिया. इसके बाद कोठारी आयोग बना. उसकी सिफारिश पर 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को स्वीकार कर लिया गया. लेकिन ये समाधान या सिफारिश दक्षिणी राज्यों में धरातल पर नहीं लाई जा सकी.

थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी है क्या?

प्रस्ताव के मुताबिक, पहली भाषा- मातृभाषा या संबंधित राज्य की क्षेत्रीय भाषा होगी. दूसरी भाषा- हिंदी भाषी राज्यों में दूसरी भाषा कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा या अंग्रेज़ी होगी. जबकि गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी या अंग्रेज़ी होगी. जबकि तीसरी भाषा- हिंदी भाषी राज्यों में अंग्रेज़ी या कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा होगी. जबकि गैर-हिंदी भाषी राज्य में अंग्रेज़ी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी.

इस नीति पर दशकों से चली आ रही खींचतान, तब तेज हो गई जब 2019 में जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा पेश किया गया. दक्षिण भारतीय राज्यों ने अपने स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाने के केंद्र के प्रस्ताव को वापस लेने का दबाव बनाया. साल 2020 में नई शिक्षा नीति आई. इसमें त्रि-भाषा सूत्र का प्रस्ताव था. तमिलनाडु समेत अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों ने इसे ख़ारिज कर दिया. उनका आरोप था कि इस सूत्र के जरिए सरकार 'शिक्षा का संस्कृतिकरण' (कल्चराइजेशन) करना चाहती है. जबकि  केंद्र सरकार का कहना था कि वह नई शिक्षा नीति के तहत 'देश के स्कूल और कॉलेजों में शिक्षा को ज्यादा समग्र और लचीला बनाना चाहती है. और हिंदी व गैर-हिंदी भाषी राज्यों में भाषा के अंतर को ख़त्म करना चाहती है.

दक्षिणी राज्यों का आरोप: डर या सियासत?

बात सिर्फ तमिलनाडु की नहीं है. भाषा को लेकर कर्नाटक जैसे दूसरे राज्य भी हिंदी के विरोध में रहे हैं. और ये विरोध काफ़ी पुराना है और राजनीति का एक बड़ा मुद्दा भी. दक्षिण भारत में हिंदी के विरोध की शुरुआत आजादी के पहले ही हो गई थी. साल 1937 में प्रांतीय चुनाव हुए. तमिलनाडु में मद्रास प्रेसिडेंसी में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला. सत्ता की कमान चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के हाथ आई. उन्होंने राज्य में हिंदी की पढ़ाई को बढ़ावा देने की बात कही. अप्रैल 1938 में मद्रास प्रेसिडेंसी के सौ से ज्यादा माध्यमिक स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा के तौर पर लागू कर दिया गया. लेकिन तमिलभाषी लोगों ने इसका विरोध किया. इतना कि ये विरोध एक जनांदोलन बन गया. अन्नादुरई ने इस आंदोलन को अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के तरीके की तरह इस्तेमाल किया. करीब दो साल तक ये आंदोलन चला. साल 1939 में सरकार ने इस्तीफ़ा दे दिया और फिर ब्रिटिश शासन ने फैसले को वापस लेते हुए हिंदी की अनिवार्यता ख़त्म कर दी. आंदोलन तो थम गया लेकिन यहां से राज्य में हिंदी विरोधी राजनीति की शुरुआत हो चुकी थी.

हिंदी का विरोध: तमिलनाडु में राजनीतिक मुद्दा

साल 1967 में हिंदी विरोधी आंदोलन के जरिए DMK (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम) तमिलनाडु की सत्ता हासिल करने में कामयाब हो गई. आज भी हिंदी विरोध, तमिलनाडु की राजनीति का एक बड़ा मुद्दा है. हालांकि इस मुद्दे को जिंदा रखने में हिंदी भाषी राज्यों का भी एक तरह का योगदान है. हिंदी भाषी राज्य भी दक्षिण भारतीय राज्यों की भाषाओं को लेकर उदासीन रहे हैं. हाल ही में शुरू हुए काशी-तमिल संगमम जैसे अभियान को छोड़ दें, तो हिंदी भाषी राज्यों में तमिल-तेलुगू जैसी दक्षिणी भाषाओं को सीखने-सिखाने का कोई उत्साह नहीं देखा गया है. शायद इसीलिए दक्षिण भारतीय राज्यों में भी हिंदी भाषा सीखने को लेकर उदासीनता रही है.

भाषा पर तमिलनाडु मॉडल

साल 1968 के बाद तमिलनाडु ने द्विभाषा नीति के तहत तमिल और अंग्रेजी भाषा को अपनाया है. वहां ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव को देखते हुए, कम्युनिकेशन के लिए अंग्रेजी को भी एक हद तक महत्व दिया गया है. अंग्रेजी का इस्तेमाल बढ़ने से तमिल लोगों को विकास के अवसर भी मिले. लेकिन तमिल बच्चों में हिंदी सीखने को लेकर उत्सुकता में कमी रही. इसकी एक बड़ी वजह है- हिंदी को लेकर राज्य में विरोध की राजनीति.

ताजा विवाद क्या है?

इंडिया टुडे की एक खबर के मुताबिक, DMK के मंत्री PTR का कहना है कि तमिलनाडु टू-लैंग्वेज पॉलिसी पर प्रतिबद्ध है. और कंपलसरी थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को स्वीकार नहीं करेगा. उनका तर्क है कि 'इस नीति के जरिए हिंदी थोपी जाएगी और तमिल भाषा का महत्व कम हो जाएगा.' जबकि BJP के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई उम्मीद जताते हैं कि आने वाले वक़्त में तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में बच्चों को तीसरी भाषा पढ़ानी शुरू की जाएगी.

दोनों नेताओं के बीच जुबानी जंग अन्नामलाई के एक वीडियो पोस्ट करने के बाद शुरू हुई. इस वीडियो में एक बुजुर्ग व्यक्ति, तीसरी भाषा लागू करने को लेकर मंत्री PTR से सवाल कर रहा था. अन्नामलाई ने दावा किया कि करुणानिधि नाम के इस व्यक्ति के साथ, PTR ने बहसबाजी की और कथित तौर पर उसे धमकाया और फिर उसे कार्यक्रम से बाहर कर दिया गया.

सोशल मीडिया साइट एक्स पर अन्नामलाई ने कहा,

"जवाब देने के बजाय, उन्हें (बुजुर्ग व्यक्ति को) DMK के मंत्री ने धमकाया. तमिलनाडु सरकार ने सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को एक तीसरी भाषा सीखने से वंचित कर दिया है. तमिलनाडु सरकार की गलत नीतियों को उजागर करने के चलते उन बुजुर्ग को हॉल से बाहर कर दिया गया.

PTR क्या बोले?

अन्नामलाई के आरोपों का जवाब देते हुए PTR ने अन्नामलाई के आरोप को 'आधा सच' और 'तोड़-मरोड़कर दिया गया बयान' करार दिया. उन्होंने कहा कि अन्नामलाई ने वीडियो के उस हिस्से को छोड़ दिया जिसमें बात का निष्कर्ष है. उस हिस्से में लैंग्वेज पॉलिसी को लेकर राजनीतिक तर्क थे. PTR ने ये भी कहा कि किसी को भी कमरे से बाहर नहीं निकाला गया. PTR ने कहा,

"हर बार जब मैंने WAIT कहा, तो मैं उस व्यक्ति से उसके सवाल का मौक़ा देने को कह रहा था."

बता दें कि उत्तर और दक्षिण भारत के लोगों के बीच 'भाषाई और सांस्कृतिक अंतर को दूर करने के उद्देश्य' से बीते साल काशी-तमिल संगमम की शुरुआत की गई थी. इस बार 17 दिसंबर से 30 दिसंबर तक इसका दूसरा संस्करण आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के बीच संस्कृति, कला, शिल्प और भाषाई आदान-प्रदान था. दूसरी तरफ तमिलनाडु में भी BJP, हिंदी की पढ़ाई के लिए प्रयासरत है, लेकिन तमिलनाडु में एक बड़ा वर्ग इसे तमिल भाषा के लिए खतरे के तौर पर देखता है. राजनीतिक मुद्दा है सो अलग. ऐसे में ये विवाद कब सुलझेगा, ये कहना मुश्किल है.

वीडियो: ‘जय भीम’ में हिंदी भाषा को लेकर मचा बवाल, तो प्रकाश राज ने ट्रोल आर्मी को चुप करा दिया

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement