कहावत है कि इतिहास जीतने वाले के हिसाब से लिखा जाता है. अगर हिटलर या दुर्योधनइतिहास में विजेता होते तो क्या उन्हें सिकंदर, अशोक और अकबर की तरह महान नहीं मानाजाता. आज के शासक दाराशिकोह और औरंगज़ेब के बहाने गुड मुगल और बैड मुगल की बात कररहे हैं. इतिहास को फिर से लिखने की बात हो रही है. ये कोई पहला मौका नहीं है जबऐसा हुआ हो. इससे पहले कम्युनिस्ट और उससे पहले अंग्रेज़ इतिहासकारों ने अपनी-अपनीविचारधारा और सहूलियत के हिसाब से इतिहास को लिखा और व्याख्या की.पर आज मौका है 14 फरवरी का. आज बाबर का जन्मदिन होता है. बाबर ने जिस मुगलियासल्तनत की नींव हिंदुस्तान में रखी उसमें यहां पर कई चीजें बदलीं. मुगलों ने कईचीज़ें दीं, कुछ बाद में उनके नाम से जोड़ दी गईं. चलिए इसी बहाने हम बात करेंगे उनमिथकों की जिनमें कहा जाता है कि मुगल नहीं होते तो ये नहीं होता, वो नहीं होता-1. बाबर हिंदुस्तान के प्रेम में थाबाबर ने अपनी डायरी तुजुके बाबरी में काफी कुछ अच्छा और बुरा दोनों लिखा है. उसमेंहिंदुस्तान के बारे में क्या लिखा है, आप खुद ही पढ़ लीजिए.“हिंदुस्तान दिलचस्प मुल्क है. यहां के लोग खूबसूरत नहीं हैं. सामाजिक तानाबाना भीबहुत समृद्ध नहीं है. लोगों में शायरी करने का हुनर नहीं है. तमीज़, तहज़ीब और बड़ादिल नहीं है. कला और शिल्प में सही अनुपात नहीं है. अच्छे घोड़े, मीट, अंगूर,तरबूज़ यहां नहीं होते. बाज़ारों में रोटी, अच्छा खाना या बर्फ नहीं मिलती है.गुसलखाने और मदरसे नहीं हैं.”बाबर ने हिंदुस्तान की दो चीज़ों की तारीफ खूब की है, पहली आम की और दूसरीहिंदुस्तानियों के पास मौजूद सोने की. दरअसल बाबर ने जो लिखा है वो उसकेपरिप्रेक्ष्य में बिल्कुल सही है. समरकंद से आया एक आदमी एक बिलकुल अलग भूगोल औरसमाज में पहुंच जाता है और अपने हिसाब से चीज़ों को लिखता है. उसको आज के समीकरणोंके हिसाब से देखना गलत है.2. मुगल न होते तो हिंदुस्तान में खूबसूरत इमारतें न होतींतर्क दिया जाता है कि मुगल न होते तो लालकिला न होता, ताजमहल न होता, तमाम खूबसूरतइमारतें नहीं होती. कुछ हद तक बात सच भी है. मगर अंग्रेज़ों के अपने हिसाब से लिखेगए इतिहास और आज़ादी के बाद लंबे समय तक गोरों की लिखी हर बात को प्रमाणिक मानने कीहमारी फितरत ने हिंदुस्तान की विरासत में तमाम चीज़ों का क्रेडिट छीन लिया. अगरताजमहल नहीं भी होता तो भी अजंता, ऐलोरा की गुफाएं, सांची का स्तूप, खजुराहो केमंदिर, दक्षिण के भव्य मंदिर, तंजौर की मूर्ति कला, मौजूद होते. शेरशाह सूरी काग्रैंड ट्रंक रोड और मकबरा होता. बीजापुर का गोल गुंबद होता. उड़ीसा के मंदिर होते.बहुत चीजें हैं.3. बाबर न होता तो बिरयानी न होतीबिरयानी शब्द फारसी के बिरिंज बिरियां से बना है. इसका अर्थ होता है तले हुए चावल.बिरयानी को आज के हिंदुस्तान की सबसे चर्चित डिश कहा जाए तो गलत नहीं होगा. बिरयानीखिलाना तो एक राजनीतिक मुहावरा बन चुका है. मुगल चिकन बिरयानी के नाम हिंदुस्तान भरमें ठेले से लेकर पांच सितारा तक कइयों की दुकानदारी चल रही है. मगर बिरयानी कोमुगलों से जोड़ना गलत है. गौर करिए हिंदुस्तान में लखनवी और हैदराबादी बिरयानी सबसेपॉपुलर नाम हैं. आगरे या फतेहपुर सीकरी की बिरयानी आपने नहीं सुनी होगी. बाबर तुर्कथा और बिरयानी फारसी खाना है. बाद के मुगल बादशाह पुलाव के शौकीन थे. वैसे बिरयानीकी बात चली ही है तो बता दें कि बिरयानी का मुगलों के अलावा चावल से भी रिश्ता नहींहै. ईरान में रुमाली रोटी के संग रखे हुए मसालेदार भुने गोश्त के कॉम्बिनेशन कोबिरयानी कहते हैं.ईरान में बिरयानी फोटो- लिविंग फ्राइंगपैन.कॉमये कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि आज मुगल खाने के नाम पर जो परोसा जा रहा है उसमेंज़्यादातर मुगल है ही नहीं. मुगलई के नाम पर जो कबाब और निहारी हम खा रहे हैं. वोमुगल सल्तनत के बाद के दौर में नवाबों और ज़मींदारों के यहां की ईजाद है.4. गंगा जमुनी तहज़ीब और उर्दू मुगल लाएगंगा जमुनी तहज़ीब का नाम आते ही अकबर का नाम ज़ेहन में आता है. मगर सूफीवाद, उर्दूऔर गंगा जमुनी तहज़ीब जैसी चीज़ें हिंदुस्तान में बाबर के आने से पहले ही थीं. अमीरखुसरो बाबर से कम से कम 250-300 साल पहले ही "ज़िहाले मिस्किन मकुन तगाफुल दुराएनैना बनाए बतिया" लिखकर उर्दू की शुरुआत कर चुके थे. निज़ामुद्दीन औलिया भी खुसरोके समकालीन थे. जिनकी मज़ार को आज भी साझा हिंदू मुस्लिम विरासत का प्रतीक मानाजाता है. तो अकबर जिस हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा दे रहे थे, वो बादशाह सलामत कीअपनी खोज नहीं थी. अकबर अपने से पहले मौजूद दरगाहों और मजारों की संस्कृति कोबढ़ा रहे थे.5. मुगल पहले आए, यूरोपियन बाद में आएवास्को डि गामा 1498 में हिंदुस्तान पहुंचा था. जबकि बाबर 1526 में हिंदुस्तान आया.तो इतिहास की इस धारणा को भूल जाइए कि मुगल पहले आए थे और यूरोपियन बाद में.इतिहासकारों के मुताबिक गुजरात जीतने वाला अकबर पुर्तगालियों की बेहतर नौसेना केचलते गोवा की तरफ नहीं गया था. यहां तक कि उसने कुछ जगहों पर पुर्तगालियों सेसमझौते भी किए थे.तो फिर मुगलों ने दिया क्या?अगर कोई इस बात पर खुश हो कि मुगलों की हिंदुस्तान में कोई खास विरासत नहीं है तोये गलतफहमी है. अगर गौर करें तो देखेंगे हिंदुस्तान में अंग्रेज़ों की बनवाई हुईज़्यादातर इमारतें लाल रंग की होती हैं. जानकार बताते हैं कि इसके पीछे की वजहज़्यादातर मुगल इमारतों का लाल पत्थर का बना होना है. अंग्रेज़ हिंदुस्तान मेंगिनती में बहुत कम थे और मुगलों के अंदाज़ को अपनाकर जनता के मन में शासक वाली इमेजबनाए रखना चाहते थे. इसीलिए अंग्रेज़ों ने अपनी इमारतों में कई ऐसे पहलू शामिल किएजिनमें मुगल आर्किटेक्चर की झलक मिलती है.हिंदुस्तान में बंदूकों और तोप का इस्तेमाल सबसे पहले बाबर ने किया. बारूद के आनेसे युद्ध करने का तरीका बदला. मुगलों ने शेरो-शायरी को काफी बढ़ावा दिया. बाबरतुर्की में कविताएं लिखता था. अकबर ने ब्रजभाषा में छंद लिखे. रहीम तो अकबर केसेनापति थे. तुलसीदास ने खुद लिखा है कि अकबर ने उनको मनसबदारी देने की पेशकश कीथी. “तुलसी अब क्या होइए नर के मनसबदार” इसके अलावा हिंदुस्तानी संगीत में खयालगायकी मुगलों के समय में फली फूली. तबले और सितार की खोज खुसरो खां (अमीर खुसरोनहीं) ने इसी दौर में की. मुगलों ने खूब सारे बाग भी बनवाए. कुल्फी और फालूदा कोभी मुगलों ने मशहूर किया. इसके साथ ही खाने में फलों का चलन भी मुगलों के समय मेंबढ़ा.कुल मिला कर बात ये है कि इतिहास को लिखते समय हर बार लिखने वाला जाने अनजाने अपनेसमय और सोच के हिसाब से मिलावट कर देता है. कल्पनाएं सच बन जाती हैं और सचहास्यास्पद मिथक लगने लगता है. पढ़ने वालों को चाहिए कि इतिहास को इतिहास ही रहनेदें, हास्य की इति न बना दें.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें :500 साल के इतिहास में हुआ है कोई इस हीरो के जैसा?पढ़ें आख़िरी मुग़ल बादशाह के लिखे शेरमुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद उसके वंशज गलियों में भीख मांगते थेदिल्ली में 22 हज़ार मुसलमानों को एक ही दिन फांसी पर लटका दिया गया!