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क्या हैं T-90 टैंक, जिन्हें भारत ने लद्दाख में चीन सीमा पर भेज दिया है

इनका दूसरा नाम है 'भीष्म'

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T- 90 भारतीय थल सेना के अहम हिस्सा हैं.
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6 अगस्त 2020 (Updated: 6 अगस्त 2020, 11:51 IST)
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लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव बना हुआ है. चीन ने अपनी सीमा में काफी सैन्य जमावड़ा कर रखा है. ऐसे में भारत भी पीछे नहीं है. खबर है कि भारत ने देपसांग इलाके में T-90 टैंक तैनात कर दिए हैं. भारत में इन्हें भीष्म कहा जाता है. साथ ही बख्तरबंद गाड़ियों और सैनिकों को भी यहां पर भेजा गया है. भारत ने इससे पहले 1962 की जंग में AMX-13 लाइट टैंक चीन सीमा के पास तैनात किए थे. यह टैंक फ्रांस से खरीदे गए थे. वहीं साल 2016 में T-72 टैंक लद्दाख में भेजे गए थे. आपने T-90 टैंक के बारे में पढ़ा, आज इसी बारे में बात की जाएगी.
लेकिन पहले इतिहास की पढ़ाई
टैंक को युद्ध से जुड़े मामले में 20वीं सदी का सबसे बड़े आविष्कारों में से एक माना जाता है. टैंक बनाने का क्रेडिट ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में बंटता है. यह आविष्कार पहले विश्व युद्ध के दौरान हुआ. टैंक के आने ले पहले लड़ाई खंदकों में होती थी. इसे ट्रेंच वारफेयर कहा जाता था. खंदक से निकलकर दुश्मन पर चढ़ाई करने में सामने से आती गोलियों से बचने का कोई बहुत पुख्ता इंतज़ाम नहीं था. लेकिन टैंक के आने से मोबाइल वारफेयर की शुरुआत हुई. माने लड़ाई में गति आई. टैंक के होने से इंफेंट्री (पैदल सेना) का काम आसान हो जाता है. वो इसकी सुरक्षा में आगे बढ़ सकते हैं, और टैंक अपनी बड़ी तोप से दुश्मन पर वहां भी निशाना लगा सकता है, जहां वो मज़बूती से जमा हुआ हो. बाद में टैंक युद्धों के अभिन्न अंग बन गए. दूसरे विश्व युद्ध में तो टैंकों की लड़ाई प्रमुखता से लड़ी गई.
पर टैंक होता क्या है?
टैंक एक तरह की बख्तरबंद लड़ाकू गाड़ी है. लेकिन आप इसे चाहें तो एक चलता-फिरता बंकर भी कह सकते हैं. आम गोला बारूद का इसपर कोई खास असर नहीं होता है. कई टैंक मिलाकर एक बख्तरबंद मोर्चा तैयार किया जा सकता है, जो दुश्मन पर तेज़ गति के साथ चढ़ाई कर सकता है. मैदान और रेगिस्तान में टैंक बड़े काम की चीज़ होती है.
हर टैंक में एक बड़ी तोप होती है. इसका गोला दुश्मन पर हथौड़े की तरह गिरता है. इसके अलावा टैंक में दूसरी बंदूकें और उपकरण भी लगाए जा सकते हैं. टैंक में दो मुख्य हिस्से होते हैं.
>>पहला - हल- यह टैंक का निचला हिस्सा होता है. इसे बेहद मज़बूत धातु की मोटी चादर से बनाया जाता है. इसमें ड्राइवर के साथ-साथ टैंक का बाकी क्रू बैठता है. टैंक किस तरफ जाएगा या मुड़ेगा, यह हल से ही संचालित होता है. हल ही वो बंकर है, जिसका ज़िक्र हमने किया था. >>दूसरा - टरेट- टैंक की जो तोपनुमा बंदूक होती है, वह टरेट का ही हिस्सा होती है. इसमें गनर बैठा होता है. किस निशाने को भेदना है, और इसके लिए गोला लोड करने का काम गनर का ही होता है. सभी आधुनिक टैंक्स की टरेट 360 डिग्री घूम सकती है. इसके अलावा तोप भी ऊपर नीचे होती है. घूम सकने वाली टरेट के चलते टैंक अपनी दिशा बदले बिना बहुत बड़ी रेंज में निशाना लगा सकता है. दुश्मन अगर अचानक टैंक के पीछे आ जाए तो टैंक को रिवर्स नहीं लेना होगा. वो बस टरेट घुमाकर गोला दाग देगा. इसीलिए टैंक इतना घातक हथियार माना जाता है. कई टैंक पूरी रफ्तार पर भागते हुए भी निशाना लगाने में सक्षम होते हैं.
टैंक के पहिए
टैंक बहुत भारी भरकम हथियार है. तो सामान्य पहिए इसका वज़न नहीं उठा पाते. इसलिए धातु के पहिए इस्तेमाल किए जाते हैं. इन्हें कहते हैं रोड व्हील. इनकी संख्या टैंक के आकार के हिसाब से घटती बढ़ती है. टी 90 भीष्म - जिसका इस्तेमाल भारत की सेना में आर्मर्ड कोर करती है, उसमें कुल 8 रोड व्हील होते हैं. 4 एक तरफ, 4 दूसरी तरफ.
धातु के पहिए लगाने से टैंक के वज़न की समस्या हल हो जाती है. रबर के टायर की तरह वो पंचर भी नहीं होते. लेकिन एक समस्या आ जाती है. कि धातु के पहिए ज़मीन में चलते हुए धंस जाते हैं. टैंक चूंकि बहुत भारी होता है, इसीलिए ये धंसने वाली समस्या और बड़ी हो जाती है. हल - वज़न को बांट दो.
वज़न को बांटने के लिए टैंक के पहिए को एक चौड़े से पट्टे पर चलाया जाता है. इस पट्टे को कहते हैं ट्रैक. ट्रैक से टैंक का वज़न बहुत बड़े क्षेत्र में बंट जाता है. इसके चलते हमारा टैंक न कीचड़ में धंसता है, न रेत में. ट्रैक्स के सहारे टैंक मुश्किल से मुश्किल रास्ते पर बढ़ सकता है.
ट्रैक्स को घुमाते रहने के लिए हर टैंक में चारों छोर पर दांतों वाले चार पहिए होते हैं. इन्हें कहते हैं ड्राइव स्पॉकेट. ये आपकी मोटरसाइकिल के स्पॉकेट की ही तरह होता है. लेकिन बहुत बड़ा. स्पॉकेट ट्रैक्स को घुमाते रहते हैं. इसके अलावा टैंक को दुश्मन की गोलियों से बचाने के लिए अलग-अलग तरह के सुरक्षा कवच होते हैं. इन कवच को आर्मर कहते हैं.
टैंक का पुर्जा-पुर्जा देख लीजिए.
टैंक का पुर्जा-पुर्जा देख लीजिए.

टैंक नाम रखे जाने की कहानी भी दिलचस्प है. दरअसल ब्रिटेन बख्तरबंद हथियार पर काम कर रहा था. लेकिन इसका नाम गुप्त रखना चाहता था. इसलिए उसकी ओर से कहा गया कि वे पानी के टैंक बना रहे हैं. इसी से आगे चलकर इसे टैंक कहा जाने लगा. सितंबर 1916 में पहली बार युद्ध में टैंकों का इस्तेमाल हुआ. ब्रिटेन ने इन्हें सबसे पहले जंग में उतारा था.
क्या है T-90 टैंक?
यह जंगी टैंक है यानी युद्ध के मैदान में काम आता है. इसे रूस ने बनाया है और यह तीसरी पीढ़ी का टैंक है. इसमें T का मतलब है टैंक. 90 इसलिए क्योंकि यह 1990 के दशक में बना था. साल 1992 में यह पहली बार दुनिया के सामने आया. इसकी गिनती दुनिया के आधुनिक टैंकों में होती है. ये टैंक T-72, T-80 जैसे टैंकों की जगह लेने को तैयार किए गए थे. बताते हैं कि T-90  टैंक को T-71 टैंक के प्लेटफॉर्म यानी मूल ढांचे पर ही तैयार किया गया है.
कैसी है T-90 की कद-काठी?
यह टैंक 3.78 मीटर चौड़ा, 2.20 मीटर ऊंचा और 9.53 मीटर लंबा होता है. T-90 भारी भरकम टैंक है. इसका वजन करीब 46 टन है. यह डीजल इंजन पर चलता है. इसमें अधिकतम 1600 लीटर फ्यूल डाला जा सकता है. T-90 टैंक को सामान्य रास्ते पर 60 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चलाया जा सकता है. जबकि उबड़खाबड़ रास्ते पर इसकी अधिकतम रफ्तार 50 किलोमीटर प्रतिघंटे के करीब होती है. इसे रूस के निझ्नी तागिल में उरालवैगनजावोद फैक्ट्री में बनाया जाता है. T-90 टैंक कहीं भी ले जाए जा सकते हैं.
T 90 टैंक रूस ने तैयार किया है.
T-90 टैंक रूस ने तैयार किया है.

 
T-90 की खास बातें
- T-90 टैंक में 125 मिलीमीटर की मोटाई वाली स्मूदबोर टैंक गन होती है. इसके जरिए कई तरह के गोले और मिसाइलें दागी जा सकती हैं. जैसे- बख्तरबंद गाड़ियों को उड़ाने वाली मिसाइल, एंटी टैंक मिसाइल आादि.
- इस टैंक से एक राउंड में सात मिसाइल छोड़ी जा सकती हैं. इसमें मिसाइल ऑटोमेटिक लोड होती है यानी एक बार निशाना लगाने बाद दोबारा रॉकेट या मिसाइल अपने आप लोड हो जाती है.
- T-90 टैंक एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल भी दाग सकती है. इससे 100 मीटर से लेकर 4000 मीटर तक की रेंज में निशाना लगाया जा सकता है. 4000 मीटर तक की रेंज को यह मिसाइल 11.7 सेकंड में तय कर लेती हैं.
- T-90 टैंक को इस तरह तैयार किया गया है कि ये 2 किलोमीटर तक की रेंज में हैलीकॉप्टर को भी मार गिरा सकते हैं. इसके लिए टैंक में सबसे ऊपर एंटी एयरक्राफ्ट गन लगी है. इससे मेन्युअली यानी इंसान द्वारा और रिमोट दोनों तरह से चलाया जा सकता है. यह गन एक मिनट में 12.7 एमएम की 800 गोलियां चलाती है.
- टैंक में एक थर्मल इमैजर होता है. थर्मल इमैजर शरीर से निकली गर्मी के आधार पर काम करता है. इसके जरिए दिन और रात में छुपे हुए और 6 किलोमीटर दूरी तक मौजूद दुश्मन को देखा जा सकता है.
- इसमें तीन लोगों का क्रू होता है. कमांडर, गनर और ड्राइवर. कमांडर सबसे ऊपर होता है. टैंक से कहां निशाना लगाना है, कैसे लगाना है, यह तय करना उसी के जिम्मे होता है. गनर का जिम्मा निशाने के लिए गोले, मिसाइल या रॉकेट को सेट करना होता है. वहीं ड्राइवर का काम टैंक को चलाना होता है.
- T-90 टैंक मैदानी इलाकों, रेगिस्तान, दलदली जमीन और पानी के अंदर भी चलाए जा सकते हैं. पांच मीटर पानी की गहराई तक यह काम कर सकते हैं.
- दुश्मन से बचाव के लिए T-90 टैंक में Kaktus K-6 एक्सप्लोसिव रिएक्टिव आर्मर होता है. इस आर्मर का काम टैंक को दुश्मन के हमले से बचाना होता है. इसे आप टैंक का बुलेटप्रूफ जैकेट कह सकते हैं. Kaktus K-6 आर्मर पर जब गोली या रॉकेट लगता है तो यह विस्फोट को बाहर की तरफ धकेलता है. इससे टैंक को नुकसान नहीं होता.
अच्छा भारत में यह टैंक कैसे आया?
साल 2001 में भारत ने पहली बार रूस से T-90 टैंक खरीदने का सौदा किया था. यह सौदा पाकिस्तान के यूक्रेन निर्मित T-80 टैंकों के जवाब में हुआ था. पाकिस्तान ने यह टैंक 1995 से 1997 के बीच खरीदे थे. ऐसे में भारत ने रूस को 310 T-90 टैंक का ऑर्डर दिया. इनमें से 124 रूस से बनकर आए जबकि बाकी को भारत में असेंबल किया गया. जिन T-90 टैंकों को भारत में असेंबल किया गया उन्हें ही 'भीष्म' नाम दिया गया.
पहले 10 भीष्म टैंक अगस्त 2009 में सेना में शामिल हुए. साल 2020 के आखिर तक 1640 भीष्म टैंक शामिल करने का प्लान भारत ने बना रखा है. अभी भारत के पास 1000 के करीब T-90 टैंक है. भारत के पास अभी यही सबसे आधुनिक टैंक है. अभी भीष्म टैंक को तमिलनाडु के अवाडी स्थित हैवी व्हीकल फैक्ट्री में बनाया जाता है. भीष्म को और अधिक आधुनिक बनाने के लिए रूस के साथ ही फ्रांस से भी मदद ली जाती है.
26 जनवरी पर परेड में शामिल T-90 यानी भीष्म टैंक.
26 जनवरी पर परेड में शामिल T-90 यानी भीष्म टैंक.

रूस वाले T-90 टैंक से अलग है भारत के T-90 टैंक
भारत ने रूस से T-90 टैंक जरूर खरीदे लेकिन उनमें अपने हिसाब से बदलाव किए. T-90 टैंक का पूरा प्लेटफॉर्म रूस वाला ही रखा. प्लेटफॉर्म यानी टैंक का बेसिक ढांचा. लेकिन टैंक की हिफाज़त के लिए हथियार प्रणाली और मिसाइल के लिए उसने फ्रांस की मदद ली. साथ ही कुछ बदलाव स्वदेशी स्तर पर किए गए.
कहां-कहां काम आए
भारत ने तो अभी इन टैंक का जंग में उपयोग किया नहीं है. हालांकि कई बार उसने सीमा के पास इन्हें तैनात जरूर किया है. लेकिन इसका मकसद केवल सामने वाले को अपनी ताकत दिखाना होता है. इसके अलावा युद्धाभ्यासों में जरूर इन टैंकों का जलवा दिखाया गया है. भारत ने अभी पहली बार चीन सीमा के पास यह टैंक तैनात किए हैं.
- रूस ने 1999 में चेचेन्या इलाके में इसका इस्तेमाल किया था. मॉस्को डिफेंस ब्रीफ की रिपोर्ट के अनुसार, इस लड़ाई में एक T-90 टैंक को सात आरपीजी एंटी टैंक रॉकेट लग गए थे लेकिन फिर भी वह टैंक एक्शन में रहा. - साल 2014 में यूक्रेन में डोनबास की लड़ाई में भी T-90 टैंक इस्तेमाल हुए. - साल 2015 में सीरिया में भी रूस ने इन टैंकों को जंग के मैदान में उतारा था. फरवरी 2016 में सीरियाई सेना ने भी इन टैंकों का इस्तेमाल किया.
रूस ने सीरिया में छिड़े गृह युद्ध में T-90 टैंक इस्तेमाल किए थे. इस लड़ाई में एक टैंक के नष्ट होने की खबर आई थी.
रूस ने सीरिया में छिड़े गृह युद्ध में T-90 टैंक इस्तेमाल किए थे. इस लड़ाई में एक टैंक के नष्ट होने की खबर आई थी.

किन-किन देशों के पास हैं ये टैंक
भारत और रूस के अलावा, अल्जीरिया, आर्मेनिया, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान, सीरिया, उगांडा के पास भी यह टैंक हैं. ईरान. पेरु, लीबिया, वियतनाम, साइप्रस और वेनेजुएला जैसे देशों ने भी टी-90 टैंक खरीदने में रुचि दिखाई. लेकिन अलग-अलग वजहों से डील हो नहीं पाई.
एक T-90 टैंक कितने का आता है?
एक टैंक की कीमत 20 से 33 करोड़ रुपये पड़ती है. बाकी टैंक की अलग-अलग सुविधाओं के हिसाब से कीमत घटती-बढ़ती रहती है.
भारत के पास और कौन-कौनसे टैंक हैं?
T-90 टैंक के अलावा भारतीय सेना के पास अर्जुन टैंक, T-72 अजेय जैसे टैंक भी है. ग्लोबलफायरपावर की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सेना के पास 4000 से ज्यादा टैंक हैं. इस कैटेगरी में भारतीय सेना दुनिया में पांचवें नंबर पर है.
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भारत ने अभी तक कब-कब टैंकों से युद्ध लड़े?
# भारत के टैंकों से युद्ध की शुरुआत आजादी के बाद से ही हो गई थी. 1947-48 में पाकिस्तान से कश्मीर युद्ध के दौरान भारत ने हवाई जहाज के जरिए 7-8 टैंक कश्मीर भेज दिए थे. इससे पाकिस्तान से आए कबायली हमलावरों को काफी झटका लगा था. क्योंकि उन्होंने सोचा ही नहीं था कि इतनी ऊंचाई तक टैंक आ सकता है. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि लेह को कबाइलियों से इसीलिए बचाया जा सका क्योंकि भारत लड़ाई में टैंक लेकर पहुंच गया था.
# 1962 में चीन से जंग में भी टैंक लद्दाख में भेजे गए थे.
# टैंकों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हुआ. इसमें दोनों तरफ से टैंक इस्तेमाल किए गए. पाकिस्तान के पास अमेरिकी पैटन टैंक थे जबकि भारत के पास सेंचुरियन टैंक थे. 4 ग्रेनेडियर के कंपनी क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने इसी युद्ध में पाकिस्तान के सात टैंकों को नष्ट कर दिया था. हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र भी दिया गया.
# 1971 में बांग्लादेशी स्वतंत्रता की लड़ाई के दौराऩ भी टैंकों का इस्तेमाल हुआ. इनमें बैटल ऑफ बसंतर और लोगेंवाला प्रमुख हैं. लोंगेवाला में पाकिस्तान ने ही टैंकों का इस्तेमाल किया था. इसी लड़ाई पर बॉर्डर फिल्म बनी थी.
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क्या टैंक के मामले में भारत को कोई कमी भी है?
जी हां. भारत के पास अभी कोई लाइट टैंक नहीं है. लाइट टैंक से मतलब है 20 से 30 टन के टैंक. लाइट टैंक होने से उनका पहाड़ी इलाकों में इस्तेमाल आसान हो जाता है. चीन के पास इस तरह के टैंक हैं. पिछले 10 साल से भारतीय सेना इस तरह के टैंक की तलाश में है लेकिन अभी तक खरीद नहीं हो पाई. हालांकि इस दिशा में काम चल रहा है.


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