31 अक्टूबर को G20 के राष्ट्राध्यक्षों की एक फोटो खूब वायरल हुई. इसमें वे एकफव्वारे के आगे खड़े हैं. उनके पीछे ये भव्य फव्वारा नजर आ रहा है. सभीराष्ट्राध्यक्ष फव्वारे की तरफ पीठ करके उसमें सिक्के डाल रहे हैं. इनमें भारत केपीएम नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं. ये इटली के रोम शहर के सबसे फेमस टूरिस्ट स्पॉट्समें से एक है. नाम है ट्रेवी फाउंटेन.रोम की पहचान है 'तिराहे का फव्वारा'हमारे एक मित्र रोम होकर आए तो उन्होंने शहर का वर्णन करते हुए कहा- शहर क्या पूरीआर्ट गैलरी है. चौराहा हो या मैदान, हर जगह कलाकृति ही लगी मिलती है. उसके बारे मेंजानकारी चाहिए तो नीचे लगी शिलापट्ट पढ़ने बैठ जाओ.आर्ट के दीवानों के लिए रोम शहर को पूरी तरह घूमने ओर उसे समझने में महीनों लगतेहैं. खैर आज बात उस खास कलाकृति की जिसे देखे बिना रोम की यात्रा अधूरी है. इस जगहका नाम है ट्रेवी फव्वारा. ट्रेवी का मतलब तिराहा. ट्रेवी लैटिन शब्द ट्राइवियम सेनिकला है. रोम में इस फव्वारे को कहा जाता है 'फोन्टाना डे ट्रेवी'. मतलब ऐसाफव्वारा जो तिराहे पर लगा है.साइज़ की बात की जाए तो ये विहंगम है. 26.3 मीटर ऊंचा और 49.15 मीटर चौड़ा. ये शहरका सबसे बड़ा बरॉक फव्वारा है. आप पूछेंगे ये बरॉक फव्वारा क्या बला है? असल में येएक तरह का आर्ट फॉर्म है. सन 1600 के आसपास विकसित हुआ. इसमें बनाए गए आर्ट मेंकिरदार ज्यादा चलायमान और दैवीय नजर आते हैं. बरॉक आर्ट फॉर्म में पेंटिंग से लेकरमूर्तिकला और संगीत के नूमने भी मिलते हैं. इस आर्ट फॉर्म के बड़े आर्टिस्ट की बातकी जाए तो सबसे पहले नाम आता है माइकल एंजिलो का. रोम के सिस्टीन चैपल की बनी छत परबनी इनकी कलाकृति देखने अब भी लाखों लोग जुटते हैं.जी20 लीडर्स के साथ तिराहे के फव्वारे के आगे खड़े पीएम मोदी. (तस्वीर- पीटीआई)बनते-बनते बरसों लग गएहम वापस आते हैं फव्वारे पर. ऐसा नहीं है कि ट्रेवी फाउंटेन हमेशा से ही इतना भव्यऔर पॉपुलर था. साल 1629 में पोप अष्टम इस फव्वारे से खासे नाखुश हुए. उनका कहना थाकि इसमें ड्रामा नहीं है. उनकी नाखुशी के बाद सुधार के लिए कई बड़े आर्किटेक्ट औरकलाकार बुलाए गए. इसमें से एक जियान लॉरेंजो बेरनीनी ने मरम्मत करके सुधार काजिम्मा उठाया. काम जोर-शोर से शुरू हुआ लेकिन सुधार कभी न हो पाया. पोप ने मामले कोठंडे बस्ते में डाल दिया.अब फास्ट फॉरवर्ड करके आते हैं पोप क्लीमेंट XII के जमाने में. साल 1730. फव्वारेको सुधारने के लिए इनाम की घोषणा कर दी गई. पुरस्कार जीतने वाले को ट्रेवी फव्वारेको डिजाइन करने की जिम्मेदारी सौंपी जानी थी. इसमें जीत हुई ओलेसांड्रो गैलिली की.लेकिन इससे रोम वाले नाराज़ हो गए. नाराज़ इसलिए हो गए क्योंकि गैलिली दूसरे शहरफ्लोरेंस के रहने वाले थे. अब रोम वाले कैसे बर्दाश्त करते कि उनके शहर का इतनाभव्य फव्वारा कोई दूसरे शहर का डिजाइनर बनाए. मामला इस बात पर सेटल हुआ कि फव्वाराबनाने का जिम्मा दूसरा पुरस्कार जीते रोम के आर्टिस्ट निकोला साल्वी को दिया जाए.इसके बाद साल्वी ने इस फव्वारे के इर्दगिर्द नई थीम डिजाइन करना शुरू कर दिया. इसथीम का नाम रखा गया 'टेमिंग ऑफ द वॉटर'. इस पर साल 1732 में काम शुरू हुआ. साल्वीइसे बनाने में डूब गए. लेकिन इसे किस्मत का खेल कहें या दुर्भाग्य वो इस फव्वारे केकाम को पूरा होते नहीं देख सके. साल 1751 में उनका देहांत हो गया. उनके बादग्युस्पे पानेनी ने प्रोजेक्ट का चार्ज लिया और इसे 1762 में बना कर पूरा किया.ट्रेवी फाउंटेन पर तीन कैरेक्टर नजर आते हैं. जो इसे फव्वारे से ज्यादा एक कलाकृतिमें तब्दील कर देते हैं.फव्वारा क्या आर्ट का नमूना कहिएये फव्वारा अपनी कलाकृतियों के चलते एक सामान्य फव्वारे की जगह एक आर्टिफेक्ट मेंतब्दील हो चुका है. दुनिया में इसे पब्लिक आर्ट का बेहतरीन नमूना कहा जाता है.इसमें तीन कैरेक्टर हैं. तीनों अलग-अलग भावनाएं प्रकट करते हैं. मिसाल के तौर परफव्वारे के बीचोबीच में ओसेनियस की मूर्ति है. उनका घोड़ा दो समुद्री घोड़े लेकर जारहे हैं. इन घोड़ों में एक नाम है विंड और दूसरे का नाम डोसाइल. जो समुद्र के दोभावों को प्रकट करते हैं.लेफ्ट साइड में अबंडंस की मूर्ति है. मतलब समृद्धि की देवी. दूसरी तरफ हेल्थ यानीस्वास्थ्य की देवी की मूर्ति है. इस आर्ट पीस वाले फाउंटेन का जलवा ऐसा है कि यूरोपमें शूट हुई कई फिल्मों में इसे दिखाया गया है. इस फव्वारे के आसपास फिल्माई गईफिल्मों में खास हैं. - रोमन हॉलिडे (1953), थ्री कॉइंस इन द फाउंटेन(1954), लाडोल्से वीटा (1960), द लिज़ी मैक्गवायर मूवी (2003) और साल 1998 में बनी सबरीनागोज़ टु रोम.साल 2003 में मशहूर मूवी लिज़ी मैग्वॉयर मूवी के महत्वपूर्ण हिस्से की शूटिंगट्रेवी फाउंटेन के आसपास हुई थी.मोदी जी ने इसमें सिक्का क्यों फेंका?रवायत के अनुसार बाकी राष्ट्रध्यक्षों के साथ पीएम मोदी ने भी इस फव्वारे मेंसिक्का फेंका. वैसे तो आपने भी कभी न कभी नदी-पोखरे में सिक्के जरूर डाले होंगे.शायद इस मान्यता के चलते कि ऐसा करने से सभी मन्नतें पूरी होती हैं. या शायद इसआस्था के कारण कि ऐसा करने से हमेशा पैसा बना रहता है. हालांकि ट्रेवी फाउंटेन मेंसिक्का फेंकने का अलग कारण है. कहा जाता है कि फव्वारे की तरफ पीठ करके जो भीसिक्का फेंकता है वो रोम वापस जरूर आता है. लोग यहां तक कहते हैं कि अगर आपने 1 कीजगह 2 सिक्के फेंके तो आपको किसी इटेलियन लड़की से प्रेम हो जाएगा. हालांकि इस बारेमें कुछ पढ़ने को नहीं मिला कि तीसरा सिक्का फेंकने से क्या होगा.आपके मन में सवाल ये भी आ रहा होगा कि अगर लाखों लोग हर साल रोम जाते हैं तब तोबहुत पैसा जमा होता होगा. जी हां. हर रात ट्रेवी फाउंटेन से सिक्के निकाले जातेहैं. औसतन हर रोज 3000 यूरो बाहर निकाले जाते हैं. 3 हजार यूरो मतलब 2.5 लाख रुपए.इस पैसे को कैथलिक चैरिटी में दान दे दिया जाता है. इसका इस्तेमाल ये पैसा जरूरतमंदलोगों को सहारा देने और मेंटिनेंस पर खर्च किया जाता है.