दो लोगों का देश, दुनिया के सबसे छोटे देश की कहानी!
ब्रिटेन की नाक में दम करने वाला सबसे छोटा देश कौन सा है? यह देश समंदर के बीचों-बीच एक खंडहर बन चुके समुद्री किले पर स्थित है. जानिए इसकी पूरी कहानी.
फर्ज़ करें जंगल में एक खंडर है. वीरान, बंजर बेनाम. एक रोज़ एक आदमी उस पर कब्ज़ा कर लेता है. और घोषणा कर देता है कि ये खंडहर एक देश है. जिसकी अपनी करेंसी अपना पासपोर्ट है. जिसका अपना राजा है, रानी है और शहजादा भी है. अब सोचिए वो देश क्या करेगा जिसकी सीमा में ये खंडर पड़ता है. क्या हो अगर किसी दिन एक दूसरा आदमी इस खंडहर/देश पर हमला कर शहजादे को किडनैप कर ले. और खुद को नया राजा घोषित कर दे. फंतासी सी लगने वाली ये कहानी है सीलैंड नाम के एक देश की. (World's Smallest Country)
ये कहानी है एक ऐसे देश की, जिसकी जनसंख्या है महज दो लोग. एरिया- 0.004 वर्ग किमी. इसके बावजूद इस देश का अपना झंडा है. करेंसी है और पासपोर्ट है. कमाल की बात ये कि ये देश ब्रिटेन के जस्ट बगल में है. आंखें दिखाता है लेकिन कभी एक चौथाई दुनिया पर राज करने वाला ब्रिटेन इस देश का कुछ नहीं बिगाड़ पाया है. ये कहानी है सीलैंड की. (Sealand)
पत्नी का गिफ्ट -नया देशकहानी शुरू होती है साल 1966 से. क्रिसमस की शाम. पैडी रॉय बेट्स अपने घर में सोए हुए रात के 12 बजने का इंतज़ार कर रहे थे. बेट्स की पत्नी का कुछ दिन बाद जन्मदिन था. और उन्होंने वादा किया था कि इस बार वो ऐसा गिफ्ट देंगे जो उनकी पत्नी कभी भूल नहीं पाएंगी. बेट्स के दिमाग में एक प्लान था. आर्मी में मेजर रह चुका ये बंदा उस रात चुपके से अपने घर से निकला. पास में समंदर था. वहां नाव पकड़ी और समंदर की यात्रा पर निकल गया. तट से कुछ 20 किलोमीटर दूर जाकर बेट्स की नाव रुकी. समंदर के बीचों बीच एक तोपखाना बना हुआ था. एक समुद्री किला. (Smallest country of the World)
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हालांकि किले से किसी महलनुमा आकृति की कल्पना मत कर लीजिएगा. दो खंभों के ऊपर बना कंक्रीट का एक प्लेटफार्म. जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश फौज के इस्तेमाल के लिए बनाया गया था. इस प्लेटफॉर्म पर एंटी एयरक्राफ्ट गन्स तैनात रहती थीं. ताकि जर्मन जहाज हमला करने आएं तो उनसे निपटा जा सके. इस किले को अंग्रेज़ रफ़्स टावर कहते थे. द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म हुआ तो ये किसी काम का नहीं रहा. इसलिए यूं ही वीरान छोड़ दिया गया. (Sealand world's smallest country)
पैडी रॉय बेट्स जब घर ने निकले ये किला उनके दिमाग में था. किले पर चढ़कर उन्होंने उस पर कब्ज़ा कर लिया और कुछ रोज़ बाद अपनी पत्नी को तोहफे में दे दिया. इस अफलातूनी तोहफे से उनकी पत्नी काफी खुश हुई. दोनों इस किले पर जाकर छुट्टी मना सकते थे. एडवेंचर कर सकते थे. इसमें कोई समस्या नहीं थी. लेकिन फिर जल्द ही एक समस्या खड़ी हुई.
जैसा पहले बताया बेट्स फौज में मेजर रहा चुका था. 15 साल की उम्र में फौज ज्वाइन करने के बाद वो सबसे कम उम्र का मेजर बना था, और द्वितीय विश्व युद्ध में उसने इटली, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के अभियानों में हिस्सा लिया था. युद्ध के दौरान एक बार एक ग्रेनेड उसके चेहरे के एकदम नजदीक फटा था. बड़ी मुश्किल से उसकी जान बच पाई थी. एक दूसरे मौके पर उसका एयरक्राफ्ट क्रैश हुआ और दुश्मन सैनिकों ने उसे कैद कर लिया. यहां से भी वो बच निकला था. फौज़ी जोश के साथ साथ फौज वाली अड़ियल बुद्धि उसके पास थी. ऐसे में एक रोज़ पार्टी के दौरान एक दोस्त ने उससे कहा,
"यार तेरा तो अपना आइलैंड है".
बेट्स की बीवी ने मुस्कुराते हुए कहा
"हां, बस नारियल के पेड़ों, धूप और झंडे की कमी है, देश तैयार हो जाएगा".
बाकी सब लोग हंस पड़े. सिवाय बेट्स के. कुछ दिनों बाद वो दोबारा सबके सामने हाजिर हुआ. और ऐलान करते हुए बोला,
"रफ़्स टावर अब एक नया देश है. उसका नाम होगा सीलैंड".
सबने सोचा मजाक है. सरकार ने भी. लेकिन बेट्स मजाक नहीं कर रहा था. उसने किले की सतह पर सीलैंड नाम पेंट किया और वहां रहना शुरू कर दिया. कुछ समय बाद उसे एक और आइडिया आया. उस दौर में ब्रिटेन में सिर्फ एक रेडियो चैनल हुआ करता था. BBC. गाने सुनने का एकमात्र साधन. लेकिन दिक्कत ये थी कि BBC पर गाने देर रात को आते थे. इसलिए बेट्स ने सोचा क्यों न सीलैंड से रेडियो प्रसारण शुरू किया जाए. इस तरह उसने सीलैंड से एक रेडियो स्टेशन शुरू किया. जिस पर 24 घंटे गाने बजते रहते थे. और ये संगीत मेनलैंड यानी ब्रिटेन तक भी पहुंचता था. शुरुआत में ये सब यूं ही चलता रहा. लेकिन फिर जल्द ही बेट्स ने सरकार के लिए मुसीबत खड़ी करनी शुरू कर दी.
पहली लड़ाईसीलैंड के आधिकारिक इतिहास में दर्ज़ है. साल 1968 में इस देश पर पहला हमला हुआ. ब्रिटिश नेवी की शिप्स सीलैंड तक पहुंची और उन्हें धमकाने लगीं कि रफ़्स टावर गिरा दिया जाएगा. ये देखकर पैडी रॉय बेट्स के बेटे माइकल बेट्स ने हवा में बन्दूक से फायर की. ये चेतावनी देने के लिए कि कोई सीलैंड की सीमा में दाखिल ना हो. मामला नाजुक था. इसलिए सरकार ने माइकल को गोली चलाने और धमकाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. मुक़दमा शुरू हुआ. ब्रिटिश सरकार शुरू में सोच रही थी कि ये एक छोटी मोटी परेशानी है. लेकिन जब मुक़दमा शुरू हुआ, उन्हें असली मुसीबत का एहसास हुआ.
कोर्ट ने माइकल को अपराधी मानने से इंकार कर दिया. इसके पीछे वजह ये थी कि ब्रिटेन की समुद्री सीमा तट से महज 6 किलोमीटर के इलाके तक थी. यानी सीलैंड ब्रिटेन की सीमा में नहीं आता था. इसलिए ब्रिटेन का क़ानून भी सीलैंड पर लागू नहीं होता था. माइकल के रिहा होने के बाद बेट्स के तेवर और बढ़ गए. उसने कहा,
"कोर्ट के इस निर्णय का अर्थ है मैं चाहूं तो सीलैंड पर किसी का खून भी कर सकता हूं".
बेट्स ने शायद ये बात शायद मज़ाक़ में कही थी. लेकिन जल्द ही वो इसे असलियत में बदलने को तैयार हो गया. 1975 में उसने अपने 50 दोस्तों को सीलैंड पर रहने के लिए बुलाया. और सबके सामने सीलैंड के नए संविधान की घोषणा कर डाली. 7 चैप्टर वाले इस संविधान के तहत सीलैंड का अपना अलग पासपोर्ट, झंडा और करेंसी थी. करेंसी पर उसकी पत्नी जोन की तस्वीर भी लगी हुई थी. और संविधान के तहत उसका बेटा माइकल सीलैंड का शहजादा था. धीरे धीरे बेट्स ने सीलैंड पर संसाधन जुटाने शुरू कर दिए. उसने नावों से राशन मंगाया. रहने के लिए 10 कमरे तैयार करवाए और साथ ही एक जनरेटर भी लगाया जो कमरों को गर्म रख सकता था.
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बेटस की इस बढ़ती जुर्रत ने ब्रिटिश सरकार की चिताएं बढ़ा दीं. बाद में डीक्लासिफ़ाइ हुए गुप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है, सरकार ने एक से ज्यादा मौकों पर सीलैंड को बम से उड़ाने की तैयारी कर ली थी. ब्रिटिश अधिकारी सीलैंड को क्यूबा की संज्ञा देने लगे थे. क्योंकि क्यूबा भी एक छोटा सा देश था. लेकिन अमेरिका के लिए एक बड़ा सरदर्द था. प्रेक्टिकली सोचें तो सीलैंड किसी भी हाल में एक देश कहलाने लायक नहीं था. न किसी दूसरे देश से उसे मान्यता मिली थी. फिर भी उसके साथ वो सब कुछ हुआ जो एक देश के साथ होता है. 1968 में उसने ब्रिटेन के हमले से खुद को बचाया. इसके बाद एक मौका ऐसा भी आया जब सीलैंड पर तख्तापलट की कोशिश हुई.
तख्तापलटसाल 1978 की बात है. ऑस्ट्रिया के एक हीरों के व्यापारी ने पैडी रॉय बेट्स और उसकी पत्नी को अपने देश आने का न्यौता दिया. बेट्स दम्पति ऑस्ट्रिया गए. लेकिन उनका बेटा माइकल सीलैंड पर ही रहा. ऑस्ट्रिया में बेट्स को पता चला कि उसके साथ धोखा हुआ है. ऑस्ट्रिया में कोई व्यापारी उससे मिलने नहीं आया. वहीं उसे पता चला कि किसी जर्मन नागरिक ने उसके देश पर कब्ज़ा कर लिया है. बेट्स के जाने के बाद एक हेलीकॉप्टर सीलैंड तक आया. उसमें से कुछ लोग उतरे और उन्होंने प्रिंस माइकल को बंधक बना लिया. जिसने बंधक बनाया, उसने खुद को सीलैंड का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया.
हालांकि बेट्स ने भी हार नहीं मानी. उसने कुछ लोगों के साथ सीलैंड पर जवाबी हमला कर दिया. शहजादे माइकल को छुड़ा लिया गया और जर्मन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक बार फिर भागने पर मजबूर हो गए. हालांकि बेट्स ने सबको आजाद नहीं किया. उसने एक जर्मन को बंधक बनाकर रख लिया. और उसे छोड़ने के एवज में 30 लाख रूपये की मांग की. मामला इतना आगे बढ़ा कि ब्रिटेन में मौजूद जर्मन राजदूत को सामने आना पड़ा. राजदूत खुद हेलिकॉप्टर से सीलैंड गए और बेट्स से बातचीत कर जर्मन नागरिक को छुड़ाया. बेट्स को अपने तीस लाख तो कभी नहीं मिले. लेकिन ये उसके लिए एक बड़ी जीत थी. उसने दावा किया कि चूंकि जर्मनी का राजदूत उससे समझौता करने आया था. इससे ये तय होता था कि वो उन्हें मान्यता देते हैं. बात टेक्निकली सही भी थी.
ब्रिटिश सरकार के पास बेट्स की दलीलों का कोई जवाब नहीं था. वो उस पर हमला भी नहीं कर सकते थे. इससे उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ती. और दूसरा कोई चारा भी नहीं था. इसलिए कई सालों तक बेटस सीलैंड पर अपनी सत्ता चलाता रहा. साल 1987 में ब्रिटिश सरकार ने सीलैंड से निपटने का एक नया रास्ता निकाला. उन्होंने अपनी समुद्री सीमा 6 किलोमीटर से बढ़ाकर 22 किलोमीटर कर दी. इससे हुआ ये कि सीलैंड ब्रिटेन की सीमा के अंदर आ गया. यानी लीगली अब वो अलग देश नहीं हो सकता था. तो क्या सीलैंड का अस्तित्व यहीं खत्म हो गया?
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जवाब है नहीं. सीलैंड 2023 में भी खुद को एक अलग देश मानता है. 2012 में पैडी रॉय बेट्स की मौत के बाद उनका बेटा, माइकल इसे चलाता है. माइकल खुद ब्रिटेन में रहता है लेकिन सीलैंड की रक्षा करने के लिए दो गार्ड इस पर हर समय मौजूद रहते हैं. यही दो लोग अब इस देश के नागरिक हैं. बाक़ी लोग चाहें तो इस देश की करेंसी और डाक टिकट खरीद सकते हैं. और ये लोगों को उपाधियां भी देता है. मसलन मशहूर अंग्रेज़ी गायक एड शीरन का नाम आपने सुना होगा. शीरन को सीलैंड से बैरन की उपाधि मिली हुई है.इतना ही नहीं सीलैंड की अपनी फुटबॉल टीम भी है. जो फ़ीफ़ा द्वारा मान्यता प्राप्त तो नहीं है लेकिन फिर भी देश विदेश के कई मुकाबलों में हिस्सा लेती है.
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