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लाल मस्जिद वाले इमाम की कहानी, जिसने पूरा पाकिस्तान हिला दिया था!

कौन हैं मौलाना अब्दुल अज़ीज़ जिनकी गिरफ्तारी पर बवाल मच गया है?

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Maulana Abdul Aziz, the Imam of Lal Masmouzid
लाल मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल अज़ीज़.
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साजिद खान
22 जून 2023 (Updated: 23 जून 2023, 17:01 IST)
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एक मौलाना जिससे पाकिस्तान की सरकार ‘डरती’ है.

मौलाना, जिसके संदेशों को रोकने के लिए पूरे इस्लामाबाद के मोबाइल फ़ोन्स बंद करवा दिए जाते थे.

मौलाना, जिस पर दहशत फैलाने के आरोप लगते हैं.

जिसके तार आतंकी संगठन TTP और अल-कायदा जैसे संगठन से जुड़ते हैं.

और, मौलाना जिसके नाम पर उसके समर्थक जान लेने और देने के लिए उतारू हो जाते हैं.

उसका नाम है, मौलाना अब्दुल अज़ीज़. पॉपुलर कल्चर में अज़ीज़ को इस्लामबाद की लाल मस्जिद के इमाम के तौर पर जाना जाता है. लेकिन वो सरकार के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है.

21 जून 2023 को पुलिस ने अज़ीज़ को अरेस्ट करने की कोशिश की. लेकिन वे नाकाम रहे. इसके बाद मौलाना के समर्थकों ने हंगामा काट दिया. उसके मदरसे में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स सड़कों पर उतर आए. कई घंटों तक हिंसा की. पाक आर्मी और पुलिस के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने की धमकी भी दी. वे TTP से समर्थन मांग रहे हैं.  

मौलाना अब्दुल अज़ीज़.

हालात का अंदाजा इस बात से लगाइए कि राजधानी की सड़क पर दिनदहाड़े एक महिला पुलिसकर्मी को पीटा गया और किसी ने एक्शन नहीं लिया. ये तस्वीर देखिए. 

बुर्क़ा पहनी ये लड़कियां जामिया हफ्सा मदरसे की छात्रा हैं. ये मदरसा लाल मस्ज़िद चलाती है. मौलाना अब्दुल अज़ीज़ इसी मदरसे का सर्वेसर्वा है.

सबसे पहले ये नक़्शा देखिए.

एक बिंदु पर आपको लाल मस्जिद लिखा दिख रहा होगा. दूसरे बिंदु पर पाकिस्तान की संसद है. इनके बीच की दूरी महज़ 3 किलोमीटर है. 

लाल मस्जिद से महज़ डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ISI का मुख्यालय है. लाल मस्जिद से करीब और क्या है? पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय है, सुप्रीम कोर्ट है और कई देशों के दूतावास हैं.

मतलब, ये मस्जिद राजधानी की सबसे प्राइम लोकेशन पर है. स्थापना के समय से ही इसका पाकिस्तान की राजनीति में दखल रहा है. लाल मस्जिद की कहानी क्या है?

साल 1967. उस वक्त जनरल अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे. उन्होंने इस्लामाबाद के बीचोबीच एक मस्जिद तामीर करवाई. ये वही साल था, जब पाकिस्तान अपनी राजधानी कराची से उठाकर इस्लामाबाद ले आया था.

जब मस्जिद बनकर तैयार हुई, तब एक सवाल उठा, इसमें नमाज़ कौन पढ़ाएगाय़ इसका भी हल जनरल अयूब ने खोज रखा था. उन्होंने कराची के प्रसिद्ध मदरसे जामिया बनूरिया से मदद मांगी. अल्लामा यूसुफ़ बनूरी तब जामिया बनूरिया के मुखिया हुआ करते थे. उन्होंने पंजाब प्रांत के एक छोटे से कस्बे के मौलाना मोहम्मद अब्दुल्लाह का नाम सजेस्ट किया. अयूब ने हामी भर दी. और इस तरह अब्दुल्लाह लाल मस्जिद के इमाम बन गए. उनका एक परिचय ये भी है कि वो मौलाना फ़जलुर रहमान (जो शहबाज़ शरीफ की सरकार में गठबंधन पार्टी का हिस्सा हैं.) के गुरुभाई थे.

लाल मस्जिद की लोकेशन राजधानी में ऐसी जगह थी जहां ज़्यादातर A ग्रेड के सरकारी कर्मचारी, सरकार के अफसर और नेता रहते थे. इसी वजह से वो लाल मस्जिद में ही नमाज़ पढ़ने आया करते थे. ऐसे में अब्दुल्लाह के ताल्लुकात बड़े रसूखदार लोगों से होने लगे. फिर आया साल 1977. उस वक्त पाकिस्तान में जुल्फ़िकार अली भुट्टो की सरकार थी. इसी साल जमात-एृ-इस्लामी और पाकिस्तान नेशनल अलायंस ने मिलाकर आंदोलन शुरू किया. शरिया कानून लागू करने की मांग की. अब्दुल्लाह ने इस आन्दोलन को समर्थन दिया.

कुछ समय बाद पाकिस्तान में तख्तापलट हो गया. जनरल ज़िया उल-हक़ ने मुल्क़ की बागडोर संभाली. चूंकि ज़िया शरिया कानून का वादा कर सत्ता में आए थे तो लाल मस्जिद ने उन्हें पूरा समर्थन दिया. बदले में ज़िया ने भी मस्जिद को प्रोटेक्शन देने का वादा किया. अब्दुल्लाह को रूअत-ए-हिलाल कमिटी का चेयरमेन बना दिया गया. ये कमिटी चांद पर नज़र रखती है. कई त्योहारों जैसे ईद के चांद की तश्दीक करती है. लेकिन इस कमिटी की अहमियत चांद की तश्दीक करने तक महदूद नहीं थी. बल्कि ये पाकिस्तान की एक पोलिटिकल पावर का प्रतीक भी था. इसके अलावा ज़िया ने अब्दुल्लाह को मस्जिद और मदरसों के निर्माण के लिए ख़ूब पैसा भी दिया.

1980 में सोवियत-अफ़गान वॉर की शुरुआत हुई. अमेरिका ने अफ़गान मुजाहिदों को अमेरिका ने समर्थन दिया. पाकिस्तान का बड़ा धड़ा इस भी इसके समर्थन में था. इसमें अब्दुल्लाह भी थे. पूरी दुनिया के मुसलमानों को इस जंग में लड़ने का आग्रह किया गया. कहा जाता है कि जो भी लोग इस जंग में लड़ने जाते, उन्हें लाल मस्जिद में ठहराया जाता. अब्दुल्लाह खुद भी इस जंग में लड़ने गए थे. 1998 में अबदुल्लाह अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल गया. अपने साथ छोटे बेटे अब्दुल राशिद के साथ. तालिबान से मिलने. इस दौरान वे लादेन से भी मिले थे. मुलाक़ात के दौरान राशिद ने लादेन का जूठा पानी पी लिया था. जब लादेन ने इसकी वजह पूछी तो रशीद ने कहा कि मैं भी आप जैसा जिहादी बनना चाहता हूं.

इस के एक बरस बाद ही अब्दुल्लाह की हत्या हो गई. घरवालों ने पाकिस्तान की सरकार और सेना पर आरोप लगाया. अब्दुल्लाह के बाद लाल मस्जिद की कमान उसके बड़े बेटे अब्दुल अज़ीज़ को मिल गई. उसका छोटा भाई मदरसे का मैनेजमेंट देखने लगा. फिर अक्टूबर 2001 में वॉर ऑन टेरर शुरू हुआ. पाकिस्तान की कमान जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के पास थी. उन्होंने अमेरिका का साथ दिया. लाल मस्जिद ने इसपर ऐतराज़ जताया. कहा कि कुछ समय पहले जिन लोगों का हम साथ देते थे आज उन्हीं के ख़िलाफ़ हम हथियार उठा रहे हैं. ये बात सही नहीं. हम इसके ख़िलाफ़ हैं.

मुशर्रफ ने लाल मस्जिद की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया. तालिबानियों पर हमला जारी रखा गया. कहा जाता है उस वक्त ओसामा बिन लादेन ने अब्दुल अज़ीज़ से सेना के ख़िलाफ़ फ़तवा निकालने की मांग की थी. फतवा जारी भी किया गया. फतवे में कहा गया कि पाकिस्तानियों को सेना के ख़िलाफ़ लड़ना चाहिए, और इसमें जो भी अपनी जान गवाएगा उसको शहीद का दर्जा दिया जाएगा. और सेना के लोगों को मुसलामानों के कब्रिस्तान में नहीं दफनाने दिया जाएगा. इस फतवे के बाद मुशर्रफ़ पर भी दो बार हमले हुए लेकिन वो इन हमलों में बच गए.

धीरे-धीरे लाल मस्जिद की कट्टरता बढ़ती जा रही थी. मस्जिद में तालिबानी नेताओं को भी जगह दी जाने लगी. कुछ समय तक तो परवेज़ मुशर्रफ़ इसे नज़रअंदाज़ करते रहे. लेकिन 2007 में सब्र का बांध टूट गया. 10 जुलाई 2007 को सेना ने ऑपरेशन शुरू किया. इसमें सौ से अधिक लोग मारे गए. मरनेवालों में अब्दुल अज़ीज़ का छोटा भाई अब्दुल राशिद भी था. राशिद की मौत पाकिस्तान की हुकूमत के लिए बुरे सपने की तरह साबित हुई.

उसे एक नायक की तरह पूजा जाने लगा. दुनियाभर के आतंकी संगठनों ने उसे आदर्श मान लिया था. लादेन ने एक ऑडियो टेप जारी किया. इसमें उसने राशिद को ‘इस्लाम का हीरो’ बताया और पाकिस्तान सेना के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने का ऐलान कर दिया. अयमान अल जवाहिरी जो उस वक्त अल क़ायदा का दूसरे नंबर का नेता था उसने भी एक ऑडियो टेप रिलीज़ कर पाकिस्तानी सेना के ख़िलाफ़ विद्रोह की बात कही.

सेना ने फिर मस्जिद पर कारवाई की. इसमें अब्दुल अज़ीज़ बुर्क़ा पहनकर भाग निकला. जब महिला पुलिस कर्मी ने उनके मदरसे के लड़कियों की चेकिंग की तब अज़ीज़ पकड़ आया. और उसे जेल हुई. इसके बाद अज़ीज़ के मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों ने हिंसक आन्दोलन किए. एक पार्लर में काम करने वाले 7 चीनी नागरिकों को अगवा कर लिया गया. आरोप लगा कि यहां वेश्यावृत्ति का काम होता है. मामला इतना बढ़ गया था कि ये केस उस समय के चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ तक पहुंच गई थी.

फिर 2009 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अज़ीज़ की रिहाई हुई. लेकिन अभी भी उसके नफरती तेवर कम नहीं हुए थे. वो मस्जिद से अभी भी ज़हरीले भाषण दे रहा था. उसका खौफ़ इतना था कि पाकिस्तान की सरकार शुक्रवार के दिन कुछ घंटों के लिए इस्लामाबाद में मोबाइल सिग्नल को कम कर देती है. ताकि उसका भाषण लोगों तक न पहुंचे. 2014 में TTP के आतंकियों ने पेशावर के एक स्कूल में हमला किया जिसमें 150 लोगों की जान चली गई. इसमें 134 मासूम बच्चे थे. एक TV शो में जब उससे इसपर सवाल पूछा गया तो अज़ीज़ ने हमले की मुख़ालफ़त करने से मना कर दिया. इसके बाद अज़ीज़ के ख़िलाफ़ अरेस्ट वारेंट निकाला गया. लेकिन उसकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकी.

जब भी उसकी गिरफ्तारी की कोशिश होती उसके मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे समर्थन में बाहर आ जाते. अल जज़ीरा को दिए गए एक इंटरव्यू में उसने बतया था कि उसके मदरसे में 5 हज़ार से ज़्यादा बच्चे पढ़ते हैं. और 500 से ज़्यादा टीचर उन्हें पढ़ाते हैं. उस इंटरव्यू में उसने शियाओं के ख़िलाफ़ अपनी नफ़रत भी ज़ाहिर की थी. उसके मुताबिक उसके पिता अब्दुल्लाह की हत्या एक शिया ने ही की थी.

आज हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं? क्योंकि एक बार फिर अब्दुल अज़ीज़ की गिरफ्तारी को कोशिश हुई है. और फिर एक बार ये कोशिश नाकाम रही.
21 जून को अज़ीज़ दोपहर की नमाज़ पढ़ाने के बाद मस्जिद से निकल रहा था. उसी वक्त काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट (CTD) के लोग उसे लेने आ गए. इसके विरोध में अज़ीज़ के समर्थकों ने हंगामा कर दिया. झड़प के बीच वो बाहर निकलने में कामयाब रहा. इसके बाद उसके मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों ने सड़क जाम की और प्रदर्शन किया.

पुलिस का क्या कहना है?

पाकिस्तानी अखबार डॉन ने CTD से बात की. उन्होंने अखबार को बताया कि हमारी टीम अज़ीज़ से मिलने गई थी और उन्हें CDT के दफ्तर पेश होने को कहा था. CTD ने बताया कि अज़ीज़ को लाल मस्जिद के इमाम के पद से हटा दिया गया है. फिर भी वो वहां नमाज़ पढ़ाता है. इसके अलावा बच्चों की लाइब्रेरी के पास वाले प्लाट में उसने कब्ज़ा किया हुआ है. इन्हीं मसलों पर CTD अज़ीज़ से पूछ-ताछ करना चाहती थी.

गिरफ्तारी की कोशिश के बाद मौलाना अब्दुल अजीज ने सोशल मीडिया पर अपना वीडियो जारी किया है. कहा,

‘दो सीटीडी की दो गाड़ियों ने मेरा पीछा किया. मेरी कार को रोका और मुझे गिरफ्तार करने की कोशिश की. उन्होंने हम पर गोली भी चलाई. इससे मैं घायल भी हो गया हूं. आप मेरी कार भी देख सकते हैं. लेकिन हमने बदले में बंदूक नहीं चलाई. इस बीच, बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए, जिससे मुझे भागने का मौका मिल गया.’ 

इस कथित हमले के बाद उसकी पत्नी उम्मे हसन का भी एक वीडियो सोशल मीडिया में घूम रहा है जिसमें वो बदले की बात कह रही हैं.

वीडियो: दुनियादारी: Titanic का मलबा दिखाने गई पनडुब्बी गायब, लोगों के बचने की कितनी संभावना?

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