मल्लिकार्जुन खड़गे, जो दो बार CM बनते-बनते रह गए और अब कांग्रेस अध्यक्ष बन गए हैं
मल्लिकार्जुन खड़गे आलाकमान के वफादार कहे जाते हैं. कांग्रेस पार्टी का दामन उन्होंने 27 साल की उम्र में थामा था.
साल 1945-46 की बात है. आज़ादी की लड़ाई अपना अंतिम रूप ले रही थी. तब के हैदराबाद राज्य में एक जगह थी वर्वट्टी, जो अब कर्नाटक में है. हैदराबाद के निज़ाम के कुछ सैनिक वर्वट्टी के एक गांव जाते हैं. घर के बाहर एक बच्चा खेल रहा था. उम्र करीब तीन बरस रही होगी. पिता काम पर गए थे. घर में मां और बहन थे. निजाम के सैनिकों ने मां और बहन दोनों को जिंदा जलाकर मार डाला. बच्चा सब देखता रहा. वो दर्दनाक दृश्य जीवन भर के लिए उसकी आंखों में कैद हो गया था.
वो बच्चा आगे चलकर राजनीति में आता है. कर्नाटक के बड़े नेताओं में अपनी जगह बनाता है. पार्टी आलाकमान के सबसे वफादारों में गिना जाने लगता है. और 19 अक्टूबर, 2022 की दोपहर को यही नेता देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत जाता है. उस नेता का नाम है मल्लिकार्जुन खड़गे.
मल्लिकार्जुन खड़गेपहले लोकसभा और अब राज्यसभा में सरकार के खिलाफ अक्सर मोर्चा खोलने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे को निजी तौर पर जानने वाले बताते हैं कि वो बेहद शांत स्वभाव के हैं. गरीबी में बचपन बीता. मां की मौत के बाद खड़गे अपने पिता के साथ गुलबर्गा शहर चले गए. पिता एक मिल में काम करते थे. गुलबर्गा में ही खड़गे की शुरुआती पढ़ाई हुई और उसके बाद वहीं के सरकारी कॉलेज में उन्होंने दाखिला ले लिया. पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति की शुरुआती शिक्षा भी उन्हें कॉलेज से मिली. खड़गे ने जीवन में पहली बार चुनाव कॉलेज में ही लड़ा था. तब उन्हें छात्रसंघ का महासचिव चुना गया था.
कॉलेज की राजनीति के दौरान खड़गे मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई में हिस्सा लेने लगे थे. खड़गे जब तक पूरी तरह से राजनीति में उतरे, तब तक वो संयुक्त मजदूर संघ के प्रभावशाली नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे.
साल 1969. कांग्रेस में ओल्ड गार्ड और इंदिरा गांधी के बीच संघर्ष चल रहा था. और इसी साल खड़गे ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. उस समय खड़गे की उम्र महज 27 साल थी. उन्हें सपोर्ट मिला कर्नाटक के तब के बड़े नेता देवराज उर्स का. देवराज ने खड़गे को पहली बार विधानसभा का टिकट दिलवाया. 1972 में खड़गे राज्य की गुरमितकल सीट से पहली बार विधायक चुने गए.
खड़गे के लिए ये महज शुरूआत थी. 1972 के बाद खड़गे लगातार 9 बार इसी सीट से विधायक चुनकर आते गए. पहली बार विधायक बनने पर ही खड़गे को तब के सीएम देवराज उर्स ने मंत्री बना दिया. 1976 में खड़गे पहली बार प्राथमिक शिक्षा विभाग में राज्य मंत्री बनाए गए. इसके बाद खड़गे लगातार कर्नाटक सरकार के अलग-अलग विभागों का जिम्मा संभालते रहे.
बेदाग हैं खड़गेखड़गे के बारे में एक बात कांग्रेसी और उनके विपक्षी भी कहते हैं कि सियासत की काजल की कोठरी में पांच दशक से ज्यादा रहने के बावजूद उनपर कभी कोई दाग नहीं लगा.
साल 1980 में देवराज के बाद गुंडूराव राज्य के मुख्यमंत्री बने. खड़गे को कैबिनेट मंत्री बनाया गया. खड़गे उस समय भूमि सुधार के लिए एक बिल लेकर आए. कहा जाता है इस बिल के बाद किसानों को उनके अधिकार मिल सके. ये पहला मौका था जब स्पॉटलाइट खड़गे पर थी. कर्नाटक में खड़गे 1990 में बंगारप्पा सरकार और 1992 में वीरप्पा मोइली सरकार में भी कैबिनेट मंत्री बने. इसके बाद में 1994 में खड़गे की भूमिका बदली. कर्नाटक में सरकार बनी जनता दल सेक्युलर की. मुख्यमंत्री बने एच डी देवेगौड़ा. खड़गे विपक्ष के नेता बने.
अबतक खड़गे कांग्रेस में कद्दावर नेता के साथ-साथ 'यस मैन' की छवि भी स्थापित कर चुके थे. कहा जाता है कि खड़गे कभी भी आलाकमान के फैसले के खिलाफ नहीं जाते हैं. न ही सवाल पूछते हैं. इस बात की बानगी बाद के सालों में देखने को मिली.
1999 में कर्नाटक में कांग्रेस की वापसी हुई. पिछली विधानसभा में खड़गे विपक्ष के नेता थे. कद बढ़ चुका था. इस बार खड़गे का नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में माना जा रहा था. लेकिन आलाकमान ने एस एम कृष्णा को सरकार का जिम्मा सौंप दिया. वही एस एम कृष्णा, जिन्हें मनमोहन सरकार में कांग्रेस ने विदेश मंत्री बनाया था. एस एम कृष्णा की सरकार में गृह विभाग खड़गे को मिला. खड़गे के शासनकाल में ही कुख्यात वीरप्पन ने कन्नड़ सिनेमा के जाने माने एक्टर और गायक राजकुमार का अपहरण किया था. कांग्रेस समर्थक इस मामले को हैंडल करने के लिए खड़गे की तारीफ भी करते हैं.
मुख्यमंत्री की कुर्सी से चूके खड़गेअगले विधानसभा चुनाव हुए साल 2004 में. कर्नाटक में एक बार फिर कांग्रेस की वापसी हुई. कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई. इस बार ये लगभग तय माना जा रहा था कि मल्लिकार्जुन खड़गे के सिर ही मुख्यमंत्री का ताज सजेगा. लेकिन ऐन वक्त पर बाजी पलट गई. निजी तौर पर खड़गे के दोस्त और सियासी प्रतिद्वंदी धरम सिंह को आलाकमान ने मुख्यमंत्री बनने का आदेश दे दिया. कहते हैं खड़गे के लिए ये झटका था, लेकिन उन्होंने पार्टी के फैसले के खिलाफ चूं भी नहीं की.
इंडिया टुडे के कन्सल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई कहते हैं,
कहा जा रहा था कि धरम सिंह तो खड़गे से जूनियर हैं. खड़गे अपने जूनियर के नीचे कैसे काम करेंगे. लेकिन खड़गे ने कहा कि क्यों नहीं कर सकता. पार्टी का आदेश है तो धरम सिंह ही मेरे नेता हैं और मुझे उनके अंडर काम करने में कोई दिक्कत नहीं है.
खड़गे को यूं ही गांधी परिवार का वफादार नहीं कहा जाता. खड़गे के पांच बच्चे हैं. दो बेटी और तीन बेटे. इसे महज इत्तेफाक तो नहीं कहा जा सकता कि एक बेटी का नाम प्रियदर्शिनी (इंदिरा गांधी का नाम प्रियदर्शिनी था) है और दो बेटों का नाम प्रियंक और राहुल हैं.
खड़गे के परिवार से उनके बेटे प्रियंक कर्नाटक में विधायक हैं. वो सिद्धारमैया सरकार में 2016 में मंत्री भी बनाए गए थे. इसके अलावा उनकी बेटी प्रियदर्शिनी डॉक्टर हैं. जबकि दूसरे बेटे राहुल साइन्टिस्ट हैं. साल 2005 में खड़गे पर भरोसा जताते हुए कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी का चीफ़ बनाया.
केंद्र में मंत्री बने खड़गेसाल 2008 में कर्नाटक में कांग्रेस की हार हुई. हालांकि, खड़गे चुनाव जीत गए थे. लेकिन गांधी परिवार की गुड बुक्स में शामिल होने का इनाम खड़गे को मिला. 2009 में कांग्रेस ने खड़गे को उनके घर गुलबर्गा से टिकट दे दिया. खड़गे लोकसभा पहुंचे और मनमोहन सिंह ने उन्हें UPA-2 में लेबर और इम्प्लॉमेंट मंत्रालय का जिम्मा दे दिया.
लेकिन खड़गे के साथ एक बार फिर धोखा हुआ 2013 में. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. इस बार किसी को संदेह नहीं था कि खड़गे को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. लेकिन सिद्धारमैया जनता दल छोड़कर कांग्रेस में आ चुके थे. और आलाकमान ने एक बार फिर खड़गे के ऊपर सिद्धारमैया को चुना. इस बार भी खड़गे ने कोई सवाल नहीं पूछा. लेकिन जवाब में उन्हें 2013 में देश की रेल चलाने का जिम्मा दे दिया गया था.
इंडिया टुडे के जुड़े नागार्जुन कहते हैं,
गिरती कांग्रेस के साथ खड़गे का ग्राफ चढ़ाखड़गे को कांग्रेस में दलित नेता के तौर पर गिना जाता है. लेकिन वो इस बात से काफी नाराज़ होते हैं. खड़गे कहते हैं कि मैं दलित नेता नहीं, कांग्रेस नेता हूं.
2013 से ही कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार खराब होता गया. लेकिन इससे इतर खड़गे की राजनीति चमकती गई. 2014 में कांग्रेस को सिर्फ 44 सीट मिलीं. ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों की जमानत तक जब्त हो गई. लेकिन खड़गे, इस मोदी लहर में भी जीतकर लोकसभा पहुंचे. और कांग्रेस ने उन्हें संसद के निचले सदन में पार्टी का नेता चुना.
हालांकि, 2019 में खड़गे लोकसभा चुनाव हार गए. ये उनके राजनीतिक करियर में पहली हार थी. लेकिन इस बार भी कांग्रेस आलाकमान की मेहरबानी खड़गे पर बरसी और उन्हें 2020 में राज्यसभा भेजा गया. खड़गे सिर्फ राज्यसभा नहीं गए बल्कि उन्हें 2021 में सदन में विपक्ष का नेता भी बनाया गया.
अपना 80वां जन्मदिन नहीं मनायाखड़गे इसी साल 80 साल के हुए हैं. 21 जुलाई को खड़गे अपना जन्मदिन मनाते हैं. इस साल भी दिल्ली से लेकर कर्नाटक के गुलबर्गा तक जन्मदिन के जश्न की तैयारी थी. लेकिन खड़गे ने कहा कि इस जन्मदिन पर कोई जश्न नहीं मनेगा. वजह ये थी कि इसी दिन प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को नेशनल हेराल्ड केस में पूछताछ के लिए बुलाया था. खड़गे ने जन्मदिन नहीं मनाया, अपनी नेता के लिए सड़क पर उतर प्रदर्शन किया.
पार्टी, आलाकमान और गांधी परिवार के लिए अपनी इन्हीं वफादारियों का नतीजा था कि सोनिया गांधी ने उन्हें अपनी कुर्सी पर बैठाने का फैसला किया. राजनीति को समझने वालों के लिए ये कहना मुश्किल नहीं है कि खड़गे ही कांग्रेस के अगले अध्यक्ष होंगे. क्योंकि गहलोत की तरह उन्हें भी गांधी परिवार की तरफ से अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए नहीं कहा गया है, बल्कि अध्यक्ष बनने का 'आदेश' दिया गया है.
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