The Lallantop
Advertisement

MN मुल्ला: भारतीय सेना का वो कप्तान जो जान-बूझकर जहाज संग डूब गया

कहानी, एक फौजी की चुनी हुई शहादत की.

Advertisement
Img The Lallantop
pic
अनिमेष
9 दिसंबर 2016 (Updated: 17 दिसंबर 2016, 13:03 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

"जहाज के ब्रिज पर लगी कप्तान की कुर्सी पर वो शख्स शांत बैठा था. बिना हड़बड़ी और घबराहट के. जब तक जहाज दिखता रहा, हम उसकी ओर देखते रहे."

ये 45 साल पहले हुई उस जंग में जिंदा बचे एक नौसैनिक का बयान था, अपने जहाज के कप्तान को याद करते हुए. आज इसकी तारीखी प्रासंगिकता है, क्योंकि 9 दिसंबर 1971 को ही ये जहाज डूबा था. लेकिन ये कहानी सिर्फ एक जहाज के डूबने की नहीं है.  ये कप्तान महेंद्रनाथ मुल्ला की चुनी हुई शहादत की कहानी है.
उस रात भारतीय नौसेना के दो जहाजों- INS कृपाण और INS खुकरी को आदेश मिला कि पाकिस्तानी पनडुब्बी हंगोर को मार गिराया जाए. दोनों जहाजों के कमांडिंग अफसर महेंद्रनाथ मुल्ला खुद INS खुकरी पर मौजूद थे. अरब सागर में दीव के पास ये ऑपरेशन शुरू हुआ. ब्रिटिश काल के ये दोनों जहाज फ्रांस से मंगाई गई 'हंगोर' सबमरीन के मुकाबले तकनीकी तौर पर बहुत पिछड़े थे. भारतीय नौसैनिक जानते थे कि मुकाबला बराबरी का नहीं है, पर जंग में नियम और शर्ते नहीं होतीं.
ins khukri
INS खुकरी

पाकिस्तानी पनडुब्बी बहुत धीमी रफ्तार से बढ़ती रही. शाम 7:57 पर उसने 'INS कृपाण' पर पहला टॉरपीडो फायर किया. कृपाण ने फटने से पहले ही उसको देखकर ऐंटी सबमरीन मोर्टार से उसे नष्ट कर दिया.
खुकरी ने अपनी स्पीड बढ़ाई और हंगोर की तरफ बढ़ी. हंगोर ने इसी समय दूसरा टॉरपीडो फायर किया जो सीधे खुकरी के ऑयल टैंक में लगा. जहाज में तुरंत आग लग गई. पाकिस्तानी सबमरीन के कप्तान कमांडर अहमद तस्नीम ने बाद में दावा किया था कि जहाज कुल 2 मिनट में डूब गया. जबकि सारी रिपोर्ट्स कहती हैं कि खुकरी को डुबोने के लिए बाद में 2 टॉरपीडो और फायर करने पड़े. उधर कृपाण को एक और टॉरपीडो लगा, जिससे उसका हल टूट गया और वो बीच समंदर में एक जगह असहाय खड़ा हो गया.
खुकरी को डूबता देख कैप्टन मुल्ला ने बिना किसी पैनिक के नौ-सैनिकों को जहाज छोड़ने का आदेश दिया. कप्तान ने अपनी लाइफ जैकेट भी किसी दूसरे नौ-सैनिक को दे दी और अपनी कुर्सी पर बैठे आदेश देते रहे. 176 नौ-सैनिक, भारतीय नौसेना के इकलौते डूबे जहाज से बच निकलने में नाकाम रहे और इनकी ज़िम्मेदारी लेते हुए कैप्टन महेंद्रनाथ मुल्ला ने भी जल समाधि ले ली.
गोरखपुर के इस कैप्टन को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. साथ ही नौसेना के प्लानिंग और ढांचे पर नए सिरे से विचार विमर्श शुरू हुआ.

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement