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जब पहली बार एक आदिवासी को मिला परम वीर चक्र!

बचपन में तीरंदाज़ी करने वाला, जब मशीन गन से टकराया!

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Lance Naik Albert Ekka, 1971 India-Pakistan war param veer chakra
1971 में भारत-पाक के बीच हुई जंग के हीरो थे अल्बर्ट एक्का (तस्वीर/सांकेतिक तस्वीर- Wikimedia commons)
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कमल
14 जुलाई 2023 (Updated: 13 जुलाई 2023, 22:51 IST)
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बचपन में तीर कमान चलाने वाला वो लड़का आज बंदूक़ थामे हुए खड़ा था. बंदूक़ ख़ाली हो चुकी थी लेकिन दो गोलियां अभी भी उसके पास थीं. बात बस इतनी थी कि ये गोलियां उसके शरीर के अंदर धंसी हुई थीं. हालांकि दो हों या चार, ये गोलियां गिनने का वक्त नहीं था. रात अपने अंतिम पहर में थीं, रौशनी का कहीं कोई निशान नहीं था. बस दूर से आ रही मशीन गन की आवाज़ से पता चलता था, मंज़िल किस तरफ है. बदन में दो जगह से रिस रहे लहू की अनदेखी कर, आवाज़ के सहारे वो आगे बढ़ता रहा. क्योंकि मशीन गन को चुप कराना ज़रूरी था. फिर इसके लिए चाहे जान चली जाए, इसकी उसे रत्ती भर परवाह नहीं थी. (India Pakistan war 1971)

ये 1971 युद्ध का मैदान था. पूर्वी मोर्चे पर दांव पर लगा था एक रेलवे स्टेशन. जिसका उस पर क़ब्ज़ा होता, बाज़ी में वो आगे निकल जाता. बाज़ी लगी लेकिन जान की. और जान की बाज़ी हारने वाला हारकर भी जीत गया. (Albert Ekka)

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Albert Ekka
अलबर्ट एक्का 1962 में वे बिहार रेजिमेंट में शामिल हुए थे. 1968 में उनका तबादला ब्रिगेड ऑफ द गार्ड्स की 14वीं बटालियन की यूनिट में गया (सांकेतिक तस्वीर- Getty)
कपड़े नहीं निशाना देखो 

ये कहानी है, 1971 के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए परमवीर चक्र विजेता, लांस नायक एल्बर्ट एक्का की. झारखंड, जो तब बिहार का हिस्सा था. उसके एक छोटे से गांव में पैदा हुए एक्का, आदिवासी समुदाय से आते थे. जिस कबीले का वो हिस्सा थे, उसने एक जमाने में छोटा नागपुर में ज़मींदारों के साथ लड़ाई लड़ी थी. बाद में अंग्रेजों से भी दो दो हाथ किए. इस परम्परा को आगे बढ़ाते हुए एल्बर्ट अक्का ने साल 1962 में बिहार रेजिमेंट जॉइन की. रचना बिष्ट अपनी किताब, शूरवीर में लिखती हैं,

लेफ्टिनेंट ओ. पी. कोहली, एल्बर्ट एक्का के कमांडर हुआ करते थे. जब एक्का की भर्ती हुई, पहली नज़र में कोहली को वो क़द काठी में काफ़ी साधारण दिखे. किताब के बाबत कोहली बताते हैं,

"मैं उनका कंपनी कमांडर था. लेकिन उन्हें देख कर ऐसा कभी नहीं लगा कि वह एक दिन हमें इतनी शोहरत दिलवाएंगे. उनका चेहरा हमेशा भावहीन रहता था और वे सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर ही बात किया करते थे. उनके चेहरे को देखकर कभी कोई नहीं बता सकता था कि वे खुश हैं या उदास, या वे क्या सोच रहे हैं".

अक्सर देखा जाता है कि सेना के जवान अपनी यूनिफॉर्म का ख़ास ध्यान देते हैं. यूनिफॉर्म अनुशासन का हिस्सा मानी जाती है. लेकिन रचना लिखती हैं कि एलबर्ट एक्का को पहनावे में कोई रुचि नहीं थी. जिस साइज़ की यूनिफॉर्म मिले, यूं ही पहन लेते थे. बिना दर्ज़ी के पास ले जाए या फ़िटिंग कराए हुए. इस बात पर उनके कंपनी कमांडर काफ़ी नाराज़ होते थे. लेकिन फिर भी एक्का पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था. हालांकि कपड़े पहनने में चाहे एक्का चूक जाएं पर एक चीज़ थी, जो कभी नहीं चूकती थी, वो था उनका निशाना. जंगल में कभी गश्त पर निकले तो हर रोज़ एक्का एक न एक जानवर मारकर ले आते थे. कभी नाले से केकड़े पकड़ लिया करते, और फिर उन्हें आग में पकाकर अपने साथियों को खिलाते.

Indo-Pakistani War of 1971
1971 में भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा. पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया और बांग्लादेश के रूप में एक नया देश बना (तस्वीर- Getty)

6 साल बिहार रेजिमेंट के साथ रहने के बाद एक्का ब्रिगेड ऑफ़ द गार्ड्स की 14th बटालियन में शामिल हो गए. इसी बटालियन में वो लांस नायक के पद तक पहुंचे. 1971 में जब भारत का पाकिस्तान का युद्ध शुरू हुआ. 14th बटालियन की दो कम्पनियों, अल्फ़ा और ब्रावो को गंगा सागर रेलवे स्टेशन पर क़ब्ज़े की ज़िम्मेदारी मिली. एक्का भी एक कम्पनी का हिस्सा बने. और गंगा सागर के मोर्चे पर गए. पाक फ़ौज ने ये पूरा इलाक़ा बंकरों में तब्दील कर दिया था. भारत की फ़ौज को आगे बढ़ने के लिए एक-एक कर उन्हें नष्ट करना ज़रूरी था.

पाक फौजी ने पूछा, कौन है?  

फ़ौज के सिपाही रेलवे ट्रैक के साथ चलते-चलते रात के अंधेरे में रेलवे स्टेशन तक पहुंचे. लेकिन ऐन मंज़िल से चालीस गज की दूरी पर एक गलती हो गई. किसी सिपाही का पैर एक तार को छुआ और पूरा इलाक़ा एक धमाके के साथ जगमग हो गया. रेलवे स्टेशन की इमारत के पास पहरा दे रहा एक गार्ड ये पूरा नजारा देख रहा था. धमाके से उसे इतना अंदाज़ा तो हो गया कि वहां कोई है, लेकिन जानवर या इंसान, ये पक्का करने के लिए उसने ज़ोर की आवाज़ लगाई. वहां कौन है?

इतनी देर में अंधेरे से एक शख़्स उस पर झपट्टा मारने के लिए उछला. गार्ड के सवाल का जवाब देते हुए वो जो बोला, उसे शालीन भाषा में कहें तो कहेंगे, "तुम्हारे पिता हैं". उसने संगीन गार्ड के सीने में उतारी और आगे बढ़ गया. ये एलबर्ट एक्का थे. एक्का ने दो लोगों को ढेर करते हुए एक लाइट मशीन गन को नष्ट कर दिया. एक्का के इस हमले के बाद एकदम से पूरे इलाक़े की लाइट ऑन हो गई. इसलिए भारतीय फ़ौज जो अब तक अंधेरे का फ़ायदा उठाकर आगे बढ़ रही थी, उन्हें ज़बरदस्त जवाबी फ़ायरिंग का सामना करना पड़ा.

दो गोली एक्का को भी लगीं. एक बांह में और एक गले में. खून बह रहा था. गोली लगने से एक बार एक्का लड़खड़ाए भी. लेकिन फिर दोबारा उठकर खड़े हो गए. पाक फ़ौज के जितने बंकर थे, उन पर एक-एक कर क़ब्ज़ा कर लिया गया. लेकिन रेलवे की इमारत अभी भी पहुंच से दूर थी.

Albert Ekka stamp
अल्बर्ट एक्का का जन्म 27 दिसंबर 1942 को झारखंड के गुमला मे हुआ था (तस्वीर- Wikimedia commons)

इमारत में तैनात एक एमएमजी मशीन गन लगातार फ़ायरिंग कर रही थी. जिसका मुक़ाबला करना कठिन साबित हो रहा था. लेकिन किसी को तो ये काम करना था. कौन करता? वो 'कौन' इस समय गोली लगने के बाद एक दलदली इलाक़े में पेट के बल लेटा हुआ था. खून की बहती धार के बीच भी एक्का ने आगे बढ़ना जारी रखा. रेलवे की इमारत के एकदम नज़दीक पहुंचकर उन्होंने राइफ़ल को अपनी पीठ पर डाला और खड़े होकर इमारत की ओर चार्ज कर दिया. मशीन गन को शांत करने का उपाय उनकी कमर से लटक रहा था.

मशीन गन के सामने एक्का 

एक दीवार के पास पहुंचकर एक्का ने अपनी कमर से हथगोला निकाला और उसका पिन दांतों से निकालकर दीवार में बने एक छेद से दूसरी तरह फेंक दिया. ज़ोर का धमाका हुआ. मशीन गन के पास खड़ा एक पाक फ़ौजी धमाके के असर से सीधे दीवार से जाकर टकराया और वहीं गिर गया. एक और था, जो अभी भी मशीन गन सम्भाले हुए था. एक्का सीढ़ी के ज़रिए एक खिड़की तक पहुंचे और उसके अंदर दाखिल हो गए. दूसरे पाक फ़ौजी को भी उन्होंने वहीं ढेर कर दिया.

15 मिनट चली लड़ाई में रेलवे की इमारत भारत के क़ब्ज़े में आ चुकी थी. सवेरा नज़दीक था. ब्रावो कंपनी के कमांडर ओ.पी. कोहली ने एक्का को गोला फेंकते, सीढ़ी चढ़ते और मशीन गन को शांत कराते देख लिया था. उन्हें उम्मीद थी कि जिस रास्ते एक्का गए, उसी रास्ते कुछ ही पल में बाहर भी आ जाएंगे. एक्का निकले लेकिन उनके कदमों की रफ़्तार अब सुस्त हो चुकी थी. सीढ़ियों की गिनती ख़त्म होने को थी कि आख़िरी सीढ़ी से पहले एक्का रुके. कुछ देर पहले लगी गोली का असर अब दिख रहा था. ओ.पी. कोहली ने देखा, एक्का सीधे खड़े होने की कोशिश में एक तरफ़ मुड़े और फिर एकदम से नीचे लुढ़क गए.

एलबर्ट एक्का वहीं पर वीरगति को प्राप्त हो गए. इस अदम्य साहस के लिए एल्बर्ट एक्का को परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया. ये सम्मान इस मायने में और भी ख़ास था कि बिहार, गार्ड्स ब्रिगेड और ईस्टर्न थिएटर को मिलने वाला ये पहला परम वीर चक्र था.

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