36 साल से बन रहे देसी फाइटर जेट 'तेजस' में दिक्क़त क्या है?
'तेजस' में कब, क्या, कैसे हुआ, आगे की राह क्या है, सबकुछ यहां पढ़िए.
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19 सितंबर, 2019 की सुबह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देसी फाइटर जेट तेजस की सवारी की. वो बेंगलुरू में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के एयरपोर्ट पहुंचे. यहां उन्होंने वो जी सूट पहना जो वायुसेना के लड़ाकू पायलट पहनते हैं. वायुसेना के सीनियर अधिकारियों ने उड़ान के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों पर राजनाथ को ब्रीफ किया. टेलिविज़न कैमरों के सामने राजनाथ हेलमेट और ऑक्सीजन मास्क लगाकर तेजस में बैठे. और फिर राजनाथ हाथ से टाटा किया और तेजस रनवे पर दौड़ने लगा. जैसे ही तेजस ने ज़मीन छोड़ी, राजनाथ सिंह भारत के पहले रक्षामंत्री बन गए जिन्होंने इस घरेलू फाइटर जेट में उड़ान भरी.
30 मिनिट बाद तेजस रक्षामंत्री को लेकर वापस एचएएल के हवाई अड्डे पर उतरा. राजनाथ सिंह ने तेजस की तारीफ की. बोले कि हम आज वहां पहुंच गए हैं कि दुनिया भर को फाइटर जेट निर्यात कर सकते हैं. रक्षा मंत्रालय ने भी अपने बयान में कहा कि राजनाथ तेजस में उड़ान भरकर तेजस प्रोग्राम से जुड़े लोगों का मनोबल बढ़ाना चाहते थे. वायुसेना की भाषा में ऐसी उड़ानों को फैमिलियराइज़ेशन सॉर्टी कहा जाता है. गणमान्य लोगों को हवाई जहाज़ की खूबियों से परिचित करवाने के लिए सैर करवाना. लेकिन राजनाथ की सैर तेजस प्रोग्राम से जुड़े लोगों के लिए कितने मायने रखती है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि राजनाथ के पायलट नेशनल फ्लाइट टेस्ट सेंटर के प्रोजेक्ट डायरेक्टर एयर वाइस मार्शल एन तिवारी खुद थे. कुल मिलाकर संदेश ये कि भारत सरकार का राजनैतिक नेतृत्व और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन माने डीआरडीओ ऐसा फाइटर जेट बनाने में सक्षम हैं जो देश में ही बना हो और सेनाओं के बताए रक्षा मानदंडों पर खरा भी उतरता हो.Flying on ‘Tejas’, an Indigenous Light Combat Aircraft from Bengaluru’s HAL Airport was an amazing and exhilarating experience.
Tejas is a multi-role fighter with several critical capabilities. It is meant to strengthen India’s air defence capabilities. pic.twitter.com/jT95afb0O7
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) September 19, 2019
Raksha Mantri Shri @rajnathsinghरक्षामंत्री सेना और रक्षा अनुसंधान से जुड़े लोगों का मनोबल बढ़ाएं, ये लाज़मी है. लेकिन भारत जिस तेजस को 36 साल से बना रहा है, क्या वो वायुसेना का भरोसा जीतने में कामयाब रहा है? और क्या रक्षामंत्री के कहे मुताबिक भारत सचुमच दुनिया को फाइटर जेट बेच सकता है? इन सवालों के जवाब आपको तेजस की कहानी में मिल जाएंगे. पढ़िए.
is ready for a sortie on the LCA ‘Tejas’ in Bengaluru. He is the first Defence Minister to fly this indigenous multi-role fighter. pic.twitter.com/tJiCJCusr5
— रक्षा मंत्री कार्यालय/ RMO India (@DefenceMinIndia) September 19, 2019
इंदिरा गांधी के दो कदम
कहानी ऐसी है कि भारतीय वायुसेना ने 1964 में सोवियन संघ से खरीदा मिग 21. ये भारतीय वायुसेना का पहला सूपरसॉनिक जेट था. लेकिन 70 का दशक खत्म होते-होते भारतीय वायुसेना के लिए और आधुनिक जेट की ज़रूरत महसूस होने लगी. भारत ने ब्रिटेन से जैगुआर खरीदे. लेकिन वायुसेना के लिए लड़ाकू बेड़े में सुधार की गुंजाइश बनी रही.
1980 आते-आते भारत को इस बात का पता चला कि अमरीका पाकिस्तान को 1982 से F-16 देने लगेगा. F-16 उस समय अत्याधुनिक फाइटर जेट माना जाता था. उसके आने के बाद पाकिस्तान की वायुसेना भारतीय वायुसेना लड़ाकू विमानों के मामले में काफी आगे निकल जाती. 1971 की लड़ाई को अभी बहुत ज़्यादा वक्त नहीं बीता था. मौका मिलने पर पाकिस्तान वार न करता, ये दावे से कहना मुश्किल था. भारत को तुरंत कुछ करना था. लेकिन उन दिनों भारत सरकार की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वो वायुसेना को तुरंत ढेर सारे लड़ाकू विमान खरीदकर दे पाती. सोवियत संघ से मदद लेने का रास्ता था, लेकिन किसी एक देश पर रक्षा ज़रूरतों को लेकर पूरी तरह आश्रित होना सामरिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता.
मिराज फाइटर प्लेन कारगिल जंग में गेम चेंजर साबित हुआ.
इस समस्या का समाधान इंदिरा गांधी की सरकार ने दो तरह से निकाला- फ्रांस से मिराज 2000 फाइटर जेट की खरीद प्रक्रिया शुरू कर दी और एक घरेलू फाइटर जेट बनाने पर काम शुरू किया. मिराज 2000 पाकिस्तान के साथ शक्ति संतुलन के काम आता और घरेलू जेट भारतीय वायुसेना के लिए किफायती जेट बनाता. यही जेट बूढ़े हो रहे मिराज 21 की जगह लेते, वायुसेना की रीढ़ बनते. इन्हीं घरेलू जेट को बनाने के लिए भारत सरकार ने 1983 में Light Combat Aircraft याने LCA प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी. लेकिन इंदिरा गांधी के ये दोनों कदम अलग-अलग दिशाओं में भागे. मिराज 2000 पर जो भरोसा दिखाया गया, वो उसके प्रदर्शन से और मज़बूत हुआ. कारगिल की लड़ाई में ये इतना काम आया कि भारत सरकार ने और मिराज खरीद लिए.
पाकिस्तान के बालाकोट स्थित जैश ए मुहम्मद के आतंकी कैंप पर हुई वायुसेना की कार्रवाई में भी मिराज का इस्तेमाल हुआ. दूसरी तरफ LCA की इतनी दुर्गति हुई कि इसे भारत में रक्षा अनुसंधान की विफलता का सबसे बड़ा नमूना तक बताया गया. LCA ही आज तेजस कहलाता है. जो हुआ, उसे बिंदुओं में समझिए -
>> 1983 में LCA प्रोजेक्ट को सरकार की मंज़ूरी मिली. 1985 तक इसकी तकनीकी ज़रूरतें कर ली गईं और फिर शुरू हुआ काम. ज़िम्मेदारी मिली डीआरडीओ के मातहत काम करने वाली एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ए.डी.ए.) को. ए.डी.ए. को 1984 में खास एलसीए प्रोजेक्ट के लिए ही बनाया गया था. तेजस प्रोग्राम के लिए कुछ मदद बतौर कंसल्टंट दासौ एविएशन से भी ली गई. दासौ से ही हमने मिराज 2000 और रफाल लिए हैं. >> 1991 में तेजस से देश के सबसे मशहूर एयरोस्पेस इंजीनियर का नाम जुड़ा - एपीजे अब्दुल कलाम. कलाम डीआरडीओ के अध्यक्ष और ए.डी.ए के डायरेक्टर जनरल बने. उनके रहते प्रोग्राम के लिए पहली बार इतना पैसा मिले कि कोई ठोस काम हो पाए. >> देसी फाइटर जेट के लिए घरेलू जेट इंजन कावेरी को बनाने की कोशिश हुई. इसमें विफलता मिली तो अमेरिका से GE 404 इंजन खरीदना पड़ा. यही हाल रडार का भी था. >> LCA को पूरी तरह बनकर, सारे सर्टिफिकेट हासिल करके 1998 में भारतीय वायुसेना में शामिल हो जाना था. प्रोजेक्ट के तहत 220 फाइटर जेट बनने थे. लेकिन हमारे हाथ लगी साल दर साल निराशा. पहले LCA प्रोटोटाइप टेकऑफ करते तक साल 2001 आ गया था. पूरे पांच साल की देरी. अटल बिहारी वाजपेयी ने LCA को नाम दे दिया - तेजस. >> लेकिन नाम से प्रोग्राम में तेज़ी नहीं आई. जेट को वायुसेना की न्यूनतम ज़रूरतों को पूरा करने पर मिलने वाला इनीशियल ऑपरेशन क्लीयरेंस मिलने में पूरे 12 साल और लगे. >> जनवरी 2015 में जाकर वायुसेना को पहला तेजस मिला. लेकिन वो तब भी लड़ाई में उतरने लायक नहीं था. LCA के नाम में लाइट था, लेकिन ये काफी भारी था. इसकी रेंज ज़्यादा नहीं थी और DRDO के लाख कहने के बाद कि उनका जेट फोर्थ जनरेशन है, तेजस में समकालीन फोर्थ जनरेशन फाइटर जेट की कोई बड़ी खूबी शामिल नहीं है. ये कम वज़न लेकर उड़ पाता है और इसे एक उड़ान के बाद तैयार होने में दूसरे फोर्थ जनरेशन लड़ाकू विमानों से लगभग दोगुना वक्त लगता है. >> वादे के मुताबिक तेजस पूरी तरह स्वदेशी भी नहीं है. सीएजी की एक रिपोर्ट तेजस में लगे 30 फीसदी विदेशी पुर्ज़ों की बात करती है. लेकिन जुलाई 2018 में छपी इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि जेट में लगे 70 फीसदी कलपुर्ज़े और सिस्टम विदेश से मंगवाए गए हैं. >> 10 सितंबर, 2018 को तेजस पहली बार मिड एयर रिफ्यूलिंग कर पाया था. हवा में ईंधन भरने की ये क्षमता किसी भी आधुनिक फाइटर जेट के लिए बेहद ज़रूरी मानी जाती है.
तेजस एक इंजन वाला मल्टीरोल सूपरसॉनिक फाइटर जेट है. (तस्वीरः वेंकट मांगुडी/विकिमीडिया कॉमन्स)
वायुसेना - जो तेजस का इंतज़ार ही करती रह गई
जिन खामियों की यहां चर्चा हुई, उनके चलते वायुसेना एक वक्त तक तेजस से कतराती रही. लेकिन तेजस पर जितना वक्त और संसाधन खर्च हो चुके थे, उसे देखते हुए उसे पूरी तरह खारिज करना लगभग नाममुकिन था. आखिरकार वायुसेना ने एचएएल को 40 तेजस मार्क 1 का ऑडर दे दिया. सब जानते थे कि तेजस मार्क 1 को फाइनल ऑपरेशनल क्लीयरेंस (एफ.ओ.सी.) हासिल करने में वक्त था. इस सर्टिफिकेट के बाद ही किसी फाइटर जेट को लड़ाई में उतरने लायक माना जाता है. तो सौदा इस तरह तैयार किया गया कि एचएएल आधे जेट इनीशियल ऑपरेशनल क्लीयरेंस के साथ ही वायुसेना को दे सके. लेकिन एचएएल इस छूट के साथ भी ऑडर को समय पर पूरा नहीं कर पाया.
2016 से लेकर 2019 की फरवरी तक एचएएल ने महज़ 16 जेट बनाए जिन्हें एचएएल के सीएमडी आर. माधवन ने एयरो इंडिया 2019 के वक्त 'ऑलमोस्ट फुली डिलीवर्ड' बताया था. इसका एक मतलब ये भी था कि इन 16 जेट्स में भी कुछ ऐसे थे जो अपने अंतिम रूप में नहीं थे. सनद रहे कि हम इनीशियल ऑपरेशन सर्टिफिकेट वाले तेजस की बात कर रहे हैं. एचएएल ने लगभग चार साल में 16 तेजस बनाए. जबकि सोच ये थी कि एचएएल हर साल 18 तेजस बनाएगा जो वायुसेना के बेड़े से लगातार रिटायर हो रहे जहाज़ों की जगह लेते रहेंगे. फिलहाल भारतीय वायुसेना का नंबर 45 स्कॉड्रन तेजस उड़ा रहा है और ये सभी जहाज़ फिलहाल तमिलनाडु के सुलुर एयरफोर्स स्टेशन पर तैनात हैं.
तेजस को बेंगलुरु स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के यहां बनाया जा रहा है.
जब लगा सब ठीक हो गया, लेकिन
20 फरवरी, 2019 को एयरो इंडिया शो के पहले दिन तेजस को फाइनल ऑपरेशन सर्टिफिकेट मिला. इसके बाद जाकर वायुसेना को बेहतर तेजस मार्क 1 मिलने का रास्ता खुला. एफओसी वाली इस बात को राहत के तौर पर लिया जाता इससे पहले ही 22 मार्च को द प्रिंट में अमृता नायक दत्ता की रिपोर्ट से एक और खुलासा हुआ. ये कि फरवरी वाला एफओसी भी तब मिला था जब वायुसेना तेजस मार्क 1 को दस 'कंसेशन' देने को राज़ी हुई. कंसेशन का मतलब होता है ऐसी छूट जिसकी भरपाई जेट की डिलिवरी के बाद पूरी की जा सके. इनमें से एक छूट तेजस के एरफ्रेम की मज़बूती से भी जुड़ी थी.
दत्ता की रिपोर्ट लिखे जाने तक एयरफ्रेम की मज़बूती से जुड़ा कम से कम एक टेस्ट पूरा होना बाकी था. इन छूटों पर सवालों के जावब में एचएएल के प्रवक्ता गोपाल सुतार ने दत्ता से कहा था कि रक्षा निर्माण में कंसेशन आम बात हैं. एचएएल ने आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा. लेकिन सुतार के इस जवाब ने इसी आशंका को पुष्ट किया कि एफओसी से पहले तेजस मार्क 1 को कुछ छूट दी गई हैं. आज भी वो आखिरी तारीख सार्वजनिक रूप से पता नहीं है जब एफओसी वाले तेजस मार्क 1 का पूरा स्कॉड्रन वायुसेना को सप्लाई कर दिया जाएगा.
तेजस ने 13 सितंबर 2019 को गोवा में एक शॉर्ट लैंडिंग सफलतापूर्वक पूरी की थी. (ये तस्वीर एक एयरोशो के दौरान ली गई थी) (साभार-HAL)
तेजस - लेकिन किस कीमत पर?
यही नहीं, 2018 में भारतीय वायुसेना ने एचएएल को एक और रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल भेजकर 83 तेजस मार्क 1 ए खरीदने की इच्छा जताई. तेजस मार्क 1 वायुसेना की सभी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता. वायुसेना की दिलचस्पी है तेजस मार्क 2 में. लेकिन चूंकि मार्क 2 के बनने में अभी काफी वक्त है, एक बीच का रास्ता निकाला गया. तेजस मार्क 1 ए - तेजस मार्क 1 का थोड़ा उन्नत संस्करण. वायुसेना ने इस सौदे पर तकरीबन 50 हज़ार करोड़ खर्च करने का मन बनाया हुआ है. लेकिन जून 2018 में इस सौदे को लेकर एक बेहद निराश करने वाली रिपोर्ट सामने आई. इंडियन एक्सप्रेस में सुशांत सिंह ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि एचएएल ने तेजस मार्क 1 ए की कीमत 463 करोड़ प्रति जेट बताई थी. इस आंकड़े को नीचे लिखी बातों के आलोक में देखिए -
>> एचएएल नासिक में सुखोई 30 एमकेआई 415 करोड़ में असेंबल कर देता है; यही जेट रूस 330 करोड़ में सप्लाई कर देता है. >> स्वीडन की रक्षा कंपनी साब अपना ग्राइपेन फाइटर जेट 455 करोड़ की कीमत पर भारत में बनाने को तैयार थी. >> अमेरिकी रक्षा कंपनी लॉकहीड मार्टिन अपना एफ- 16 भारत में 380 करोड़ की कीमत पर बनाने को तैयार थी.
ये बात स्थापित है कि जिन तीनों जेट्स की हमने बात की है, वो तेजस मार्क 1 ए से कहीं उन्नत हैं. फिर भी कहीं कम कीमत पर उपलब्ध हैं. एचएएल ने जो तेजस मार्क वन वायुसेना को इससे पहले दिया है, उसकी कीमत भी 350 करोड़ के आस-पास थी. सरकार तक इस बात पर हैरान थी कि महज़ एक अपग्रेड तेजस की कीमत को सीधे 100 करोड़ कैसे बढ़ा सकता है. इसके बाद रक्षा मंत्रालय के प्रमुख सलाहकार (मूल्य) की अध्यक्षता में एक कमेटी बैठा दी गई जिसे भारत में रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों में बनने वाले साज़ो-सामान की कीमतों की समीक्षा करनी थी.Raksha Mantri Shri @rajnathsingh
— रक्षा मंत्री कार्यालय/ RMO India (@DefenceMinIndia) September 19, 2019
visited the exhibition area of HAL and witnessed certain defence equipments and platforms developed indigenously by the @DRDO_India
& @HALHQBLR
pic.twitter.com/Aqj0Zp7wpw
नौसेना की तेजस को ना
वायुसेना तेजस प्रोग्राम को लेकर प्रतिबद्ध नज़र आने की कोशिश में रहती है. लेकिन नौसेना ने 2016 में सारी औपचारिकताएं किनारे रखकर तेजस के हालिया संस्करण को भारी बताकर खारिज कर दिया था. वायुसेना की तरह ही नौसेना भी तेजस के मार्क 2 का इंतज़ार कर रही है. इसे एलसीए नेवी मार्क 2 कहा जाएगा. सितंबर 2019 में तेजस पहली बार अरेस्टेड लैंडिंग में सफल हुआ. इसमें फाइटर जेट को एक केबल की मदद से बेहद छोटी पट्टी पर लैंड कराया जाता है.
हवा में कलबाज़ियां दिखाता तेजस. (साभार-HAL)
नौसेना के विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर इसी तकनीक इस्तेमाल होता है. भारत का पहला घरेलु विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत 2021 के अंदर-अंदर नौसेना में शामिल होने वाला है. तब तक विमानवाहक पोत पर उतरने लायक नौसेना के तेजस का औद्योगिक उद्पादन शुरू हो पाएगा, इसकी संभावनाएं कम ही हैं.
तेजस में देरी कितनी महंगी?
भारतीय वायुसेना दो मोर्चों पर लड़ने के लिए कम से कम 42 स्कॉड्रन चाहती है. आखिरी बार भारतीय वायुसेना के पास इतने स्कॉड्रन 17 साल पहले थे. तब से साल दर साल वायुसेना के पास जहाज़ कम होते गए हैं. सुखोई और रफाल (जिसके दोनों स्कॉड्रन तैनात होने में अभी काफी वक्त है) को छोड़कर सभी जेट पुराने हैं, अपग्रेड हो रहे हैं. तीन लड़ाकू जेट्स - जैगुआर, मिग 27 और मिग 21 बाइसन - का रिटायरमेंट सिर पर है. ये खतरा मंडरा रहा है कि 2021 तक भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू जहाज़ों के सिर्फ 26 स्कॉड्रन बचेंगे. माने पाकिस्तान से सिर्फ एक ज़्यादा.
एक अनुमान ये भी है कि लड़ाई के वक्त चीन हमारे खिलाफ 42 स्कॉड्रन तक भेज सकता है. इसलिए वायुसेना जल्द से जल्द अपने स्कॉड्रन स्वीकृत संख्या तक ले जाना चाहती है. जो तेजस तैयार हो भी रहा है, वो न वायुसेना की ज़रूरत मुताबिक क्षमता रखता है, न ज़रूरत के मुताबिक संख्या में बन रहा है. नतीजे में हमारी वायुसेना नियमित अंतराल में अपनी ज़रूरतों के लिए रक्षा सौदों की तिकड़मबाज़ी में फंसती है. ऐसा भी नहीं है कि तिकड़मबाज़ी करके लड़ाकू विमान मिल ही जाते हैं. रफाल खरीद ताज़ा उदाहरण है. इस खरीद के लिए संकल्प अटल बिहारी वाजपेयी के समय ही हो गया था. 2019 आ गया, वाजपेयी को गुज़रे हुए एक साल से ज़्यादा हो गया, पहला रफाल भारत नहीं पहुंचा है.
वायुसेना चाहती है कि उसे तेजस मार्क 2 मिले, जिसके तैयार होने में अभी वक्त है. फिलहाल वायुसेना को तेजस मार्क 1 से काम चला रही है.
पुराने जेट खरीदकर काम चलाना पड़ रहा है हमें
बड़ी सैनिक ताकतों में भारत अकेला है जिसके पास अपना उन्नत फाइटर जेट नहीं है. ज़रूरत पड़ने पर अंतर्राष्ट्रीय हथियार बाज़ार की तरफ ताकने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं बचता. हाल का उदाहरण देख लीजिए. स्कॉड्रन्स की गिरती संख्या चलते भारत लड़ाकू विमानों की आपात खरीद में लगा हुआ है. कहां से? वही पुराना साथी, रूस. रूस की वायुसेना 1983 से मिग 29 उड़ा रही है. 1986 में भारत इस लड़ाकू जेट का पहला विदेशी खरीददार बना. 2019 में भारत इसी जेट को दोबारा खरीदना चाहता है. सोवियत संघ के विघटन के बाद वहां की फैक्ट्रियों में मिग 29 के एयरफ्रेम (विमान का ढांचा) जस के तस पड़े रहे, उन्हें असेंबल नहीं किया गया. 80 के दशक के आखिरी कुछ सालों से ये धूल खा रहे इन जेट्स को भारत खरीदकर मिग 29 के अपग्रेडेड वर्ज़न में असेंबल कराना चाहता है. मिग 29 का प्रदर्शन बढ़िया रहा है, लेकिन इससे ये बात छिपती नहीं है कि नया लड़ाकू विमान खरीदने के लिए समय और संसाधन नहीं हैं, इसीलिए 40 साल पुराना एयरफ्रेम खरीदकर काम चलाने की कोशिश हो रही है. भारत ने 272 जेट्स के अपने पुराने ऑडर से इतर सुखोई के एक और स्कॉड्रन के लिए किट्स भी मंगाई हैं. ये सब, क्योंकि हमारे पास तेजस नहीं है.
क्या इसका मतलब ये है कि तेजस एक हारी हुई लड़ाई है? नहीं. तेजस की कहानी ये नहीं कहती कि तेजस एक उन्नीस फाइटर जेट है. वो समस्या नहीं है. वो समस्या का एक लक्षण है. वो हमारे देश में रक्षा अनुसंधान के क्षेत्र में बरती गई ढिलाई की एक बानगी मात्र है. विज्ञान का सबक है कि असफलताओं का स्वागत किया जाए. ऐसे ही एक दिन सही रास्ता मालूम पड़ता है. लेकिन वायुसेना की ज़रूरत के मुताबिक पहला तेजस मिलने में लगे 36 साल ये चीख-चीखकर कहते हैं कि कुछ तो था, जो ठीक तरीके से नहीं हुआ.
तेजस के मामले में जटिलता का बहाना स्वीकार किया जाए तो फिर सवाल बचता है कि भारत आज तक एक देसी राइफल क्यों नहीं बना पाया जो सेना का दिल जीत सके. क्यों सेना इंसास के अलावा दूसरी राइफलों को तरज़ीह देती है?
राजनाथ सिंह देश के पहले रक्षामंत्री हैं जिन्होंने तेजस में उड़ान भरी है.
देसी जेट क्यों ज़रूरी?
सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उद्यम भारत में सफल क्यों नहीं हैं, ये एक अलग बहस का मुद्दा है. लेकिन इतनी समझ आसानी से पैदा की जा सकती है कि रक्षा क्षेत्र में सबसे ऊपरी पायदान पर अगर कुछ भी होना चाहिए, तो वो है प्रदर्शन. और अगर प्रदर्शन सेना के मानदंडों पर खरा न उतरे तो इसकी ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए. ऐसा माहौल नहीं बनना चाहिए जहां अनंत काल तक गलतियां होती रहें, दोहराई तक जाती रहें. एक स्वदेशी जेट सिर्फ पैसे नहीं बचाता. भारत यूं भी रक्षा सौदों पर दिल खोलकर खर्च करता है. यहां मुद्दा है लगातार बदल रही रक्षा ज़रूरतों के मुताबिक एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना, जिसपर सिर्फ भारत काम में लेना जानता हो. भारत के दुश्मन चाहकर भी इसपर हाथ न डाल पाएं.
अप्रैल 2019 में छपी खबरों में आशंका जताई गई थी कि कतर को रफाल ब्रिक्री सौदे के तहत दासौ ने कतर की वायुसेना के जिन पायलट्स को ट्रेनिंग दी, उनमें कुछ पाकिस्तानी पायलट भी शामिल थे जो एक एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत वहां गए थे. स्वदेशी फाइटर जेट के साथ ऐसा होना असंभव है. इसीलिए एलसीए प्रोजेक्ट में देरी के लिए ज़िम्मेदारी तय होना बेहद ज़रूरी है.
भारतीय वायुसेना - जो न तेजस को उगल पा रही है न निगल पा रही है. (तस्वीरः भारतीय वायुसेना).
साथ ही ज़रूरत है तेजस मार्क 2 के जल्द से जल्द से तैयार होने की. भारत 2032 तक स्वदेश में निर्मित एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) अपनी वायुसेना में शामिल करना चाहता है. डीआरडीओ इसपर काम शुरू कर भी चुका है. ये भारत का पहला अत्याधुनिक लड़ाकू विमान होगा. अगर हम इसे बुरा सपना बनने से रोकना चाहते हैं तो हमें तेजस प्रोग्राम से सीखना ही होगा. राजनाथ सिंह को चाहिए कि वो जेट निर्यात के बजाय एक ऐसा जेट बनाने की कोशिश करें जिसे वायुसेना दुनिया में किसी से न बांटना चाहे.
पुनश्चः
मीम महामारी के इस दौर में सोचते हैं कि आपको बता दें कि राजनाथ के एचएएल दौरे में चाहे जो फोटो-ऑप के दायरे में आता हो, लेकिन उनकी पोशाक नहीं.राजनाथ सिंह दुनियाभर में फाइटर जेट बेचना चाहते हैं, लेकिन फिलहाल तेजस की कीमत काफी ज़्यादा है.
उन्होंने वो जी सूट पहना था जो भारतीय वायुसेना के लड़ाकू पायलट पहनते हैं. तेजस हवा की रफ्तार से तेज़ चलने वाला जेट है. ऐसा फाइटर जेट जब हवा में कलाबाज़ियां खाता है तो शरीर पर बड़ी ज़ोर का बल लगता है. सारा खून पांव की तरफ दौड़ने लगता है. दिमाग में जैसे ही खून की कमी होती है, पायलट बेहोश होने लगता है. इसी दिक्कत से निपटने के काम आता है जी सूट. ये ज़िंदगी और मिशन दोनों की हिफाज़त करता है.
Defence Minister Mr Rajnath Singh in LCA Tejas for a sortie. @drajaykumar_ias
@DefProdnIndia
@SpokespersonMoD
@gopalsutar
pic.twitter.com/I4HeYixB4w
— HAL (@HALHQBLR) September 19, 2019
वीडियोः 1965 के भारत-पाक युद्ध में ये दोनों भारतीय पायलट पाकिस्तान पर कहर बनकर टूटे थे