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किस्सा इस्लाम के उस लीडर का, जिसे मस्जिद में ज़हर में डूबी हुई तलवार से क़त्ल किया गया

इन्हें सुन्नी मुस्लिम भी मानते हैं और शिया मुस्लिम भी, मगर दोनों के मानने में बहुत बड़ा अंतर है.

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symbolic image (Source : mohamediraq.deviantart.com)
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1 अक्तूबर 2017 (Updated: 1 अक्तूबर 2017, 09:47 IST)
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ये वो लीडर है जिसे अल्लाह के पैगंबर (दूत) मुहम्मद साहब के बाद सुन्नी मुस्लिम ने अपना चौथा खलीफा माना. शिया मुस्लिम ने अपना पहला इमाम. इस्लाम का ये वो लीडर है, जिनके बेटे हुसैन ने कर्बला (इराक़) में भूखे प्यासे रहकर लोगों को बताया कि जिहाद किस तरह किया जाता है. ये वो लीडर है जिसकी शादी उस शख्सियत की बेटी के साथ हुई जिनको दुनिया का मुसलमान 'प्यारा नबी' (मुहम्मद साहब) पुकारता है. इस्लाम का ये वो लीडर है, जो उस इमारत में पैदा हुआ, जिसका तवाफ़ (परिक्रमा करना) पूरी दुनिया का मुसलमान करता है. यानी 'काबा'. इस लीडर का नाम है अली. इस्लामिक हिस्ट्री में और कोई नहीं मिलता जिसका जन्म क़ाबे के अंदर हुआ हो.

17 मार्च सन 600 में (13 रजअब , इस्लामिक कैलंडर का सातवां महीना) अली इस दुनिया में तशरीफ़ लाए. इनकी पैदाइश को लेकर एक किस्सा बहुत मशहूर है. बताया जाता है जब अली दुनिया में तशरीफ़ लाने वाले थे, तब इनकी मां फातिमा बिन्ते असद मक्का में काबे की तरफ ये कहती हुई जा रही थीं, 'ऐ अल्लाह मुझे तुझपर यकीन है और तेरे नबी (हज़रत इब्राहिम) पर यक़ीन है, जिन्होंने तेरे हुक्म पर इस घर (काबा) की नींव रखी. ऐ अल्लाह तुझे उसी पैग़म्बर की क़सम है, और तुझे मेरे गर्भ में पलने वाले बच्चे की क़सम है. मेरे प्रसव क़ो मेरे लिए आसान और आरामदायक बना दे.' ये कहते हुए फातिमा बिन्ते असद काबे के पास पहुंची. काबे के गेट पर ताला लगा था. काबे की दीवार खुद ब खुद फट गई. फातिमा बीनते असद अकेली उस काबे के अंदर दाखिल हो गईं. दीवार फिर आपस में जुड़ गई. अली के वालिद अबुतालिब इब्ने अब्दुल मुत्तलिब भी काबे के पास पहुंचे. अबुतालिब पैगंबर मुहम्मद साहब के वालिद अब्दुल्लाह के भाई थे. इस तरह अली मुहम्मद साहब के चचेरे भाई हुए. और जब अली पैदा हुए तो उस वक़्त मुहम्मद साहब की उम्र 28 साल थी.
तो हां अली की पैदाइश के बारे में आगे कहा जाता है कि काबे के पास भीड़ जमा हो गयी. सब परेशान थे. काबे का गेट बंद है और फातिमा बिन्ते असद अंदर हैं. ताला खोला गया. फातिमा बिन्ते असद बाहर आईं उनकी गोद में बच्चा था. इस बच्चे का नाम रखा गया अली. अली के मानी होता है बुलंद. अली की मां फातिमा बिन्ते असद ने उनका नाम 'हैदर' रखा था.
अली की शादी मुहम्मद साहब की बेटी फातिमा से हुई. यानी अली अबतक मुहम्मद साहब के चचेरे भाई थे और अब दामाद बन गए थे.
मुहम्मद साहब के साथ रहकर अली ने कई इस्लामिक जंगे लड़ीं. उनकी बहादुरी के बारे में बताया जाता है कि अली ने खैबर की जंग में मरहब (जो यहूदी सेना का प्रमुख था) नाम के पहलवान को पछाड़ा था. मरहब ऐसा था कि उसकी ताकत किसी क़ो भी कंपा देती थी! लेकिन अली ने उसे ही पटकी नहीं दी, बल्कि उसके साथी 'अंतर' को भी पटक दिया. इस जंग में अली ने खैबर के क़िले के दरवाज़े को उखाड़ कर ढाल की तरह इस्तेमाल किया था. इस दरवाज़े के बारे में बताया जाता है कि इसे करीब 20 लोग मिलकर बंद करते थे. अली ने खैबर की जंग को जीत लिया.
नजफ़ (इराक) में इमाम अली का रोज़ा (दरगाह), जिसे अली मस्जिद भी कहा जाता है.
नजफ़ (इराक) में इमाम अली का रोज़ा (दरगाह), जिसे अली मस्जिद भी कहा जाता है.

अली इमाम हैं या खलीफा, इसको लेकर है बहस

जब मुहम्मद साहब इस दुनिया से रुख्सत हुए तो हज़रत अली उनके जनाज़े की तैयारी कर रहे थे. नहलाना धुलाना इत्यादि. और बाक़ी साथी मुहम्मद साहब के बाद इस्लाम की ज़िम्मेदारी किसी एक को सौंपने की तैयारी कर रहे थे. यानी खलीफा बनाने की तैयारी. इसको लेकर बहस चल रही थी. हालांकि इसमें भी मतभेद है शिया मुस्लिम दावा करते हैं कि अली ने ही मुहम्मद साहब का कफन-दफन किया. जबकि सुन्नी मुस्लिम इस बात को नकारते हैं. शियाओं के मुताबिक अली दफन में लगे रहे बाद में उन्हें पता चला कि पहला खलीफा (उत्तराधिकारी) अबू बकर को चुन लिया गया. और यहीं से शिया-सुन्नी मुस्लिम के बीच एक गहरी खाई बनती जाती है.
अबू बकर के बाद  उमर को खलीफा बनाया गया. इनके बाद उस्मान और फिर अली को अपना खलीफा मान लिया. जबकि शिया मुसलमान खलीफा के इस चुनाव को गलत मानते हैं. शियाओं का कहना है जो पहले तीन खलीफा बने वो गलत तरीके से बने. अली को सुन्नियों ने चौथा खलीफा माना, जबकि शिया ने अपना पहला इमाम (लीडर) माना. और फिर इस तरह शियाओं के 12 इमाम हुए. पहले अली, दूसरे अली के बेटे हसन, तीसरे हुसैन. हुसैन अली के दूसरे बेटे थे. चौथे इमाम, हुसैन के बेटे ज़ैनुल आबेदीन बने. और इनके बाद बेटे के बेटे इमाम बनते गए.
अली को पहला मानने के लिए शिया मुहम्मद साहब की हदीसें पेश करते हैं तो इसके जवाब में सुन्नी भी अबू बकर को खलीफा मानने के लिए हदीसें पेश करते हैं.

कैसे क़त्ल किया गया अली को?

18 रमज़ान (इस्लामिक कैलंडर का नौवां महीना) की रात अली ने नमक और रोटी से रोज़ा इफ्तार किया. रिवायतों में उनकी बेटी ज़ैनब के हवाले से मिलता है कि रातभर बाबा (अली) बेचैन रहे. इबादत करते रहे. बार-बार आंगन में जाते और आसमान को देखते. 19 रमज़ान को सुबह की नमाज़ पढ़ाने के लिए अली मस्जिद पहुंचे. मस्जिद में मुंह के बल अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम नाम का शख्स सोया हुआ था. उसको अली ने नमाज़ के लिए जगाया. और खुद नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो गए. इब्ने मुल्जिम मस्जिद के एक ख़म्भे के पीछे ज़हर में डूबी तलवार लेकर छिप गया. अली ने नमाज़ पढ़ानी शुरू की. जैसे ही सजदे के लिए अली ने अपना सिर ज़मीन पर टेका, इब्ने मुलजिम ने ज़हर में डूबी हुई तलवार से अली के सिर पर वार कर दिया. तलवार की धार दिमाग़ तक उतर गई. ज़हर जिस्म में उतर गया.
अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम के बारे में कहा जाता है कि उसने ये अटैक मुआविया के उकसावे में आकर किया. मुआविया अली के खलीफा बनाए जाने के खिलाफ था. अली के जिस्म में ज़हर फैल गया हकीमों ने हाथ खड़े कर दिए और फिर 21 रमजान को वो घड़ी आई, जब शियाओं के पहले इमाम और सुन्नियों के चौथे खलीफा अली इस दुनिया से रुखसत हो गए. मुआविया की दुश्मनी अली की मौत के बाद रुकी नहीं. उनके बाद अली के बड़े बेटे हसन को ज़हर देकर मारा गया और फिर कर्बला (इराक) में अली के छोटे बेटे हुसैन को शहीद किया गया.
अली के बारे में कहा जाता है कि सबसे पहले कुरआन को उन्होंने ही लिखा. क्योंकि अल्लाह के मैसेज लेकर फ़रिश्ते मुहम्मद साहब के पास आते थे. और अली उनको लिखते थे. अली की एक और किताब है, जो शिया कम्युनिटी में अहम मुकाम रखती है. नाम है 'नहजुल बलागा' इस किताब में अली ने जिंदगी जीने के फलसफों को बयान किया है.

हज़रत अली के मशहूर कोट

अगर इन्सान को तकब्बुर (घमंड) के बारे में अल्लाह की नाराज़गी का इल्म हो जाए तो बंदा सिर्फ फकीरों और गरीबों से मिले और मिट्टी पर बैठा करे.
लफ्ज़ आपके गुलाम होतें हैं, मगर सिर्फ बोलने से पहले तक, बोलने के बाद इन्सान अपने अल्फाज़ का गुलाम बन जाता है, अपनी ज़बान की हिफाज़त इस तरह करो, जिस तरह तुम अपने माल की करते हो. एक शब्द अपमान कर सकता है और आपके सुख को ख़त्म कर सकता है.
भीख मांगने से बदतर कोई और चीज़ नहीं होती है.
बात तमीज़ से और एतराज़ दलील से करो, क्योंकि जबान तो हैवानों में भी होती है, मगर वह इल्म और सलीके से महरूम होते हैं.
अपनी सोच को पानी के कतरों से भी ज्यादा साफ रखो क्योंकि जिस तरह कतरों से दरिया बनता है उसी तरह सोच से ईमान बनता है.
चुगली करना उसका काम होता है जो अपने आप को बेहतर बनाने में असमर्थ होता है.
कभी भी कामयाबी को दिमाग में और नाकामी को दिल में जगह न देना, क्योंकि कामयाबी दिमाग में तकब्बुर (घमंड) और नाकामी दिल में मायूसी पैदा कर देती है.



asgar (1)
ये स्टोरी हमारे साथी मुहम्मद असगर ने की है.



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