केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की ये तस्वीरें और वीडियोज़ आपने सोशल मीडिया में देखीहोंगी, जहां वो मदीना में घूमते नज़र आ रही हैं. स्मृति ईरानी दरअसल 2 दिन की सऊदीअरब की यात्रा पर गई हुई थीं. इसी के चलते 8 जनवरी को वो मदीना में थीं. इस दौरानउन्होंने भारत के हज यात्रियों को लेकर एक समझौता भी किया है. ये समझौता हज कीसीटों के अलॉटमेंट को लेकर हुआ है. इस साल सऊदी अरब ने भारत को हज के लिए 1 लाख 75हज़ार सीट दी हैं. ख़बर का पैग यही था, तो हमने आज सोचा कि इसी बहाने आपको आज हज केबारे में जानकारी दे दी जाए. तो आइए जानते हैं. हज का इतिहास क्या है?भारत से हज जाने वालों को क्या करना पड़ता है? और हज पर जाने वाले लोगों पर सऊदी अरबकौन सी शर्तें लगाता है?सबसे पहले जानते हैं कि हज क्या है?इस्लाम के अनुयायी को पांच बातों पर यकीन करना और उसपर अमल करना लाज़मी होता है. इसेइस्लाम के 5 फ़र्ज़ भी कहते हैं. आम भाषा में इसे इस्लाम के पांच स्तंभ भी कहते हैं.कौन-कौन से हैं ये स्तंभ?पहला, एक ईश्वर पर यकीन करना और पैगंबर मोहम्मद को ईशदूत मानना.दूसरा, नमाज़ कायम करना.तीसरा ज़कात (दान) देना चौथा, रोज़े रखनाऔर पांचवा हज करना.आज हमारा फोकस हज पर रहेगा. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार शारीरिक और आर्थिकरूप से सक्षम हर मुसलमान को अपनी ज़िंदगी में कम से कम एक बार इस फर्ज़ को निभानेका हुक्म है. आम भाषा में करने वालों को हाजी कहा जाता है. इसलिए हम आगे इसी शब्दका इस्तेमाल करेंगे.क्या है हज की प्रक्रिया?मक्का शहर से 8 किलोमीटर दूर मीक़ात नाम की जगह से इसकी शुरुआत होती है. यहांपहुंचने के बाद हाजियों को अहराम बांधना पड़ता है. ये एक ख़ास तरह का कपड़ा होता है.अहराम सिला हुआ नहीं होता है. ये सफ़ेद रंग का कपड़ा होता है. महिलाओं को अहराम पहनने की ज़रूरत नहीं होती, वो परंपरागत सफ़ेद रंग के कपड़े पहनतीहैं और अपना सिर ढंकती हैं. अहराम पहनकर हाजी मक्का पहुंचते हैं, और सबसे पहले उमराकरते हैं. उमरा में लोग काबे में नमाज़ अदा करते हैं. वहां अपने गुनाहों की माफ़ीमांगते हैं. हज की शुरुआत इस्लामिक महीने ज़िल-हिज की 8 तारीख़ से होती है. इस दिनहाजी मक्का से क़रीब 12 किलोमीटर दूर मिन्हा शहर जाते हैं, और आठ की रात हाजीमिन्हा में गुज़ारते हैं फिर अगली सुबह यानी 9 तारीख़ को अराफ़ात के मैदान पहुंचतेहैं.अराफ़ात के मैदान में हाजी खड़े होकर अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहोंकी माफ़ी मांगते हैं. शाम को हाजियों को मुज़दलफ़ा शहर जाना होता है. फिर 9 तारीख़की रात में उन्हें वहीं ठहराया जाता है. 10 तारीख़ की सुबह हाजी फिर मिन्हा शहर लौटजाते हैं. अगली सुबह हाजियों को शैतान को कंकड़ मारने के लिए ले जाया जाता है. शैतानबड़े चट्टान के रूप में होता है. माने सांकेतिक रूप. इस प्रक्रिया को अंग्रेजी में‘स्टोनिंग ऑफ़ डेविल’ कहा जाता है. अरबी में इसे जमारात कहते हैं.शैतान को पत्थर मारने के बाद हर हाजियों को कुर्बानी करनी होती है. इसमें आम तौर परबकरे या भेड़ की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी के बाद मर्द अपने सिर के बालमुन्डवाते हैं और महिलाओं को अपने थोड़े से ही बाल कटवाने होते हैं. कुर्बानी के बादहाजी वापस मक्का शहर लौटते हैं. जहां वे काबे के 7 चक्कर लगाते हैं. इस प्रक्रियाको तवाफ़ कहा जाता है. इसी दिन पूरी दुनिया में ईद उल अज़हा मनाई जाती है. जिसे हमारेयहां बकरीद भी कहा जाता है. तवाफ़ के बाद हज यात्री वापस मिन्हा शहर लौट जाते हैंऔर वहां दो दिन और रहते हैं. 12 तारीख़ को आख़िरी बार हज यात्री क़ाबा का तवाफ़करते हैं और दुआ करते हैं. इसे तवाफ ए विदा कहते हैं. और इस तरह हज मुकम्मल हो जाताहै.आपने हज की पूरी प्रक्रिया जानी, अब एकदम ब्रीफ में उसका इतिहास भी जान लीजिए,इतिहास शुरू होता है. ईसा के लगभग 2 हज़ार साल पहले. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिकअल्लाह ने इब्राहीम को आदेश दिया कि वो अपने बेटे इस्माइल और बीवी हाजरा कोफिलिस्तीन से मक्का पहुंचा दें. आदेश के मुताबिक मां और बेटे मक्का पहुंच गए. कुछदिन के बाद मक्का में रहना मुश्किल हो रहा था क्योंकि गर्म रेगिस्तान में पानी नहींथा. और खाने का सामान जो वो अपने साथ लाए थे खत्म होने लगा था.एक दिन हाजरा बेटे इस्माइल को गोद में लेकर पानी की तालाश में निकली. वो सफा मरवापहाड़ियों में भटकटी रहीं लेकिन पानी नहीं मिला. निराश होकर पहाड़ियों से नीचे उतरींऔर इस्माइल को ज़मीन पर रख दिया. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इस्माइल रोने लगे औरउनके पैर रगड़ने से पानी का चश्मा फूटा. इस पानी से हाजरा ने अपनी और अपने बेटे कीजान बचाई. इसे ज़म-ज़म कहा गया. जब इब्राहीम मक्का लौटे तो उन्होंने ज़म-ज़म के किनारेबसने का इरादा किया. इसी दौरान अल्लाह का आदेश हुआ कि यहां एक इबादतखाना बनाया जाए.इसलिए इब्राहीम और बेटे इस्माइल ने मिलकर चार दीवारी स्ट्रक्चर बनाया. इसे ही काबाकहा गया. यहां लोग अल्लाह की इबादत किया करते थे. और यही आगे चलकर हज का केंद्रबना. ये तो रही हज की प्रक्रिया उसका इतिहास. अब जानते हैं हज को लेकर क्या नियम कानूनबनाए गए हैं?दुनिया में करीब 1.8 अरब मुसलमान हैं. इसमें से हर साल लाखों की संख्या में हज करनेकी ख्वाहिश रखते हैं. लेकिन इतने सारे लोगों को एक साथ हज करवाना नामुमकिन है. आमतौर पर हर साल 25 लाख या उससे कम मुसलमान हज करने पहुंचते हैं. इसी समस्या को लेकरसाल 1987 में आर्गनाईजेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस में बैठक हुई थी. तय हुआ कि हरमुसलिम बाहुल्य देश में एक हज़ार में से केवल एक मुसलमान को हज करने की अनुमति दीजाएगी. इसी हिसाब से सऊदी अरब दूसरे देशों को हाजियों की संख्या का एक कोटा आवंटितकरेगा. ये हर साल बढ़ता घटता रहेगा. उदाहरण के लिए इंडोनेशिया की आबादी 27 करोड़ है.इसमें 88 फिसद से ज़्यादा मुसलमान हैं. साल 2023 में वहां से 2 लाख 30 हज़ार लोगों कोहज करने की अनुमति दी.ये तो हुई सऊदी अरब की बात. दूसरे देश कैसे तय करते हैं कि किन लोगों को हज परभेजना है. जवाब है हर देश का तरीका अलग होता है.कुछ देश लॉटरी सिस्टम चलाते हैं. जॉर्डन जैसे मुल्क लोगों की उम्र के हिसाब से हजमें जाने की इजाज़त देते हैं. माने जिनकी उम्र ज़्यादा हो गई है उन्हें पहले तरजीह दीजाती है. साथ ही इस बात का भी ख्याल रखा जाता है कि किसने पहले हज नहीं किया है.भारत में कैसे होता है चयन?इसको तय करने का काम केंद्र सरकार का अल्पसंख्यक मंत्रालय और हज कमेटी ऑफ इंडियाकरती है. वो ये तय करती है कि भारत के हर राज्य से कितने लोग हज की यात्रा करसकेंगे. इसके लिए हर राज्य की हज कमेटी आवेदन मंगाती है. उसका ड्रा निकाला जाता है.इस आधार छांटे गए लोगों को हज जाने का मौका मिलता है. आबादी के आधार पर सबसे ज्यादाहज यात्री उत्तर प्रदेश के होते हैं. इसे तय करने और छांटने का काम पूरी तरह राज्यहज कमेटियों का होता है, वो भारतीय हज कमेटी के साथ तालमेल पर काम करती हैं.हज का 70 फीसदी कोटा केंद्र सरकार अपने अल्पसंख्यक मंत्रालय और हज कमेटी के जरिए तयकरती है और 30 फीसदी कोटा प्राइवेट आपरेटर्स पूरा करते हैं. सरकारी कोटे से जानेवाले लोगो को छूट मिलती हैं वहीं प्राइवेट आपरेटर्स अपने हिसाब से इस खर्च को तयकरते हैं. पहले भारत की सरकार हज सब्सिडी भी दिया करती थी लेकिन साल 2018 में इसेखत्म कर दिया गया था. आज हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं?जैसा शुरू में बताया, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सऊदी अरब के साथ हज में जानेवाले यात्रियों पर समझौता किया है. समझौते के मुताबिक इस साल हज यात्रा पर भारत से1 लाख 75 हजार 25 हज यात्री जाएंगे. पिछले साल भी इतने ही हज यात्री गए थे. भारतसरकार ने मेहरम के बिना हज यात्रा करने वाली महिलाओं को प्रोत्साहित करने की भीपहलकदमी की है. इस्लाम में मेहरम वो पुरुष होता है जो महिला का पति हो या ख़ून केरिश्ते में आता हो. पिछले साल 4 हजार से ज़्यादा महिलाएं बिना महरम के हज करने गईथीं.कौन हज नहीं कर सकता?हज सिर्फ मुसलामानों के लिए है. किसी भी गैर मुस्लिम को हज करने की इजाज़त नहीं है.दुनिया का हर मुसलमान हज कर सकता है बस उसकी उम्र 12 साल से ज़्यादा हो. लेकिन जातेजाते एक किस्सा सुनते जाइए जब एक मुस्लिम देश के साथ ही हज पर सऊदी अरब की लड़ाई होगई थी. ये बात है साल 2015 की. 24 सितंबर को मक्का में भगदड़ मच गई. इसमें लगभग 2हज़ार लोग मारे गए थे. इनमें 4 सौ से अधिक ईरान के नागरिक थे. जब बात मीडिया मेंपहुंची तो पूरी दुनिया से शोक संदेश आए. ईरान अपने 4 सौ नागरिकों की मौत से बहुतनाराज़ हुआ. उसने सऊदी पर इन लोगों की हत्या का आरोप लगा दिया. ईरान के सुप्रीम लीडरअयातुल्ला खुमैनी ने सऊदी को हार्टलेस मर्डरर्स कहकर बुलाया. नतीजा ये हुआ कि ईरानने अपने नागरिकों को हज में भेजने से मनाही कर दी. बाद में दोनों देश के बीच हालातसामन्य हुए तब जाकर ईरान वाले हज करना वापस शुरू किए.